रससिंदूर बहु उपयोगी एक सर्वश्रेष्ठ रसायन है, जो औषधि प्रयोग करने पर शारीरिक तथा मानसिक रोगों को दूर करे, जिससे शीघ्र आने वाला बुढ़ापा रुक जाए, जिससे बुद्धि का विकास हो, जो शारीरिक धातुओं की पुष्टि करें उसे रसायन औषधि कहते हैं, रसायन औषधियों में रससिंदूर एक प्रमुख औषधि है, अनेक रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है जो अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है।
रससिंदूर शरीर के सभी रोगों को नष्ट करता है, मधुमेह के लिए यह चमत्कारिक औषधि है, प्रबल शूल को नष्ट करता है, कुछ दिनों तक रससिंदूर के सेवन से भगंदर- बवासीर का समूल नाश हो जाता है। किसी भी ज्वर के लिए यह संजीवनी का काम करता है, सभी प्रकार की सूजन की यह अचूक औषधि है। इसके सेवन से बुद्धि का विकास और शरीर में अत्यंत आनंद का अनुभव होता है।
रति शक्तिवर्धक रससिंदूर वीर्य विकारों को दूर करने वाला तथा कामोद्दीपक है। अनेक प्रकार की कामोद्दीपक औषधियां टॉनिक आदि सब रससिंदूर के आगे व्यर्थ हैं। यह गुल्म रोगहर (पेट में वायु का गोला) तथा रमण इच्छा को अत्यंत तीव्र करने वाला है। पांडुरोग, मोटापा, व्रण, शरीर की रूक्षता तथा अग्निमांद्य को दूर करता है। कुष्ठ रोगों को नाश करने वाला एवं रतिकला में चतुर स्त्री को प्रसन्नता प्रदान करने वाला है।
रससिंदूर वायु दोष शामक और उसे सम अवस्था में रखने वाली उत्तम औषधि है। इससे धमनियों में रक्त का संचार का काम सुचारू रूप से करती हैं, साथ ही वात नाड़ियों अपना काम सुचारू रूप से करती हैं, साथ ही वात नाड़ियां अपना काम विशेष दक्षता पूर्वक करती हैं। इससे रससिंदूर का सेवन करने वाले सदैव स्वस्थ और रोग रहित रहते हैं।
विविध रोगों में रससिंदूर का प्रयोग
- नये ज्वर में रससिंदूर को उचित मात्रा में लेकर फूल वाली तुलसी के पत्ते के रस के साथ अथवा अदरक के रस के साथ या पान के स्वरस के साथ प्रयोग करना चाहिए।
- पुराने ज्वर में रससिंदूर का प्रयोग करना हो तो गिलोय, पित्तपापड़ा तथा धनिया के चतुर्थांश अवशेष काढ़े के साथ देना चाहिए।
- प्रमेह (मधुमेह) में रससिंदूर को गिलोय के स्वरस के साथ देना चाहिए।
- प्रदर रोग में इसको अशोक, खरेंटी, लोध्र आदि ग्राही और शोथहर द्रव्यों के कषाय के साथ सेवन करना चाहिए।
- रक्त प्रदर रोग में वसाकषाय अथवा लोध्र कषाय के साथ दिन में दो बार सेवन करने से तुरंत लाभकारी होता है।
- पुराने प्रमेह में इसे वंग भस्म मिलाकर शहद के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से आराम मिलता है।
- अपस्मार (हिस्टीरिया) में वचचूर्ण के साथ रससिंदूर का सेवन करना चाहिए।
- उन्माद रोग में पेठे के स्वरस के साथ सेवन करना गुणकारी होता है।
- मूर्च्छा रोग में रससिंदूर को एक रत्ती मात्रा में लेकर दो रत्ती पिप्पली चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करें और रोगी को ठंडे जल से स्नान कराएं ऐसा करने से कुछ ही दिनों में इस रोग से छुटकारा मिल जाता है।
- श्वास रोग में बहेड़ा क्वाथ अथवा अडूसा के स्वरस के साथ रससिंदूर का सेवन तुरंत लाभ पहुंचाता है।
- कामला (पीलिया) रोग में रससिंदूर को दारूहल्दी क्वाथ के साथ सेवन करना चाहिए।
- पांडुरोग में रससिंदूर को लौह भस्म के साथ सेवन करना चाहिए।
- मूत्र विकारों में रससिंदूर को मिश्री, छोटी इलायची बीज के चूर्ण तथा शिलाजीत - प्रत्येक संभाग के साथ ठंडे दूध से सेवन करना चाहिए।
- पेट दर्द होने पर रससिंदूर को त्रिफला क्वाथ के साथ सेवन करना चाहिए।
- अजीर्ण होने पर रससिंदूर को मधु के साथ देना चाहिए।
- वमन अधिक होने पर बड़ी इलायची के क्वाथ से अथवा मधु के साथ सेवन करना चाहिए। गुल्म में सौंफ और छोटी हरड़ के क्वाथ के साथ अजवाइन चूर्ण या विड लवण के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
- शरीर में सूजन होने पर रससिंदूर को पुनर्नवा क्वाथ के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
- गर्भाशय के रोगों में रससिंदूर में एक माशा काकोली चूर्ण मिलाकर इसे नारियल के तेल के साथ सेवन कराना चाहिए।
- भगंदर रोग में रससिंदूर का सेवन आंवला, हरड़, बहेड़ा और वायविडंग क्वाथ के साथ प्रयोग करना चाहिए।
- पुराने घावों में इसका सेवन कण्टकारी, सुगंधबाला, गिलोय तथा सोंठ के क्वाथ के साथ प्रयोग करना चाहिए।
- पुराने गठिया रोग में रससिंदूर को गुडूची, मोथा, शतावरी, पिप्पली, हरड़, वच तथा सोंठ के कषाय के साथ सेवन अत्यंत गुणकारी होता है।
- काम शक्ति (वाजीकरण) को बढ़ाने के लिए रससिंदूर का सेवन सेमल की कांपल, मूसली चूर्ण के साथ दुग्धानुपान से सेवन करना चाहिए।
- धातु वृद्धि के लिए अभ्रक भस्म अथवा स्वर्ण भस्म के साथ रससिंदूर का सेवन करना उत्तम है।
- स्वप्नदोष को दूर करने के लिए इसमें जायफल, लौंग, कपूर तथा अफीम का चूर्ण मिलाकर जल अथवा शीतल चीनी के कषाय अनुपान से सेवन करने से स्वप्नदोष से कुछ ही दिनों में छुटकारा मिल जाता है।
- साइटिका के भयानक दर्द में लौह भस्म 20 ग्राम + रस सिंदूर 20 ग्राम + विषतिंदुक वटी 10 ग्राम + त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम, इन सबको अदरक के रस के साथ घोंटकर 250 मिलीग्राम के वजन की गोलियां बना लीजिए और दो-दो गोली दिन में तीन बार गर्म जल से लीजिए।
- कमर दर्द में रससिंदूर को जवाखार और सुहागा मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
रससिंदूर की सेवन मात्रा - एक वर्ष की उम्र वाले बच्चों के लिए रससिंदूर की मात्रा रत्ती का सोलहवां हिस्सा, दो वर्ष की आयु वाले रोगी के लिए रत्ती का सातवां भाग, छह वर्ष की आयु वालों के लिए रससिंदूर की मात्रा रत्ती का तीसरा भाग होना चाहिये। बारह वर्ष की आयु वालों के लिए रससिंदूर की आधी रत्ती और इससे अधिक उम्र वालों के लिए एक रत्ती की मात्रा दी जानी चाहिए।
रससिंदूर प्रयोग से पूर्व कर्म - रससिंदूर सेवन करने से पूर्व रोगी को पंचकर्म द्वारा शुद्ध कर लें। पंचकर्म के बाद उचित समय तक पथ्य सेवन करायें और फिर पूर्ण सोच-विचार के साथ रससिंदूर का प्रयोग करके वर्तमान रोग को दूर करें। यदि रसायन सेवन करने वाला रोगी बालक हो अथवा कृश या क्षीण हो तो उसे पंचकर्म नहीं कराएं। लेकिन उसे समय के अनुसार युक्तिपूर्वक रेचन कराना चाहिए।
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3 टिप्पणियां:
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