दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 108 राजद्रोहात्मक बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति से सम्बंधित है।
- धारा 108:- राजद्रोहात्मक बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति
- क्या उनके स्थानीय अधिकार क्षेत्र की सीमा के अन्दर है
- क्या दंडाधिकारी उपस्थिति के लिए जमानत या जमानत बांड मांगने की शक्ति रखते हैं
- क्या आदेश के समय व्यक्ति को सदेह दंडाधिकारी के अधिकार क्षेत्र में रहना है
- धारा 111 के अधीन नोटिस जारी किया जाना है
- धारा 124 आईपीसी के क्लॉज (1) का सबक्लॉज (ब.)
- धारा 153 आईपीसी, वर्गो के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन
- धारा 295 आईपीसी
- क्या साबित करना आवश्यक हैं,
- क्लॉज (1), सब क्लॉज
- धारा 108 राजद्रोहात्मक बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति
जब कोई दंडाधिकारी यह सूचना पाते हैं कि उनके स्थानीय अधिकार क्षेत्र के अंदर कोई व्यक्ति है जो इस अधिकार क्षेत्र के अंदर अथवा बाहर:- I. या तो मौखिक रूप से लिखित रूप से या किसी अन्य रूप से निम्नलिखित बातें साक्ष्य फैलाता है या फैलाने का प्रयत्न करता है या फैलाने का दुष्प्रेरण करता है, अर्थात:-(क) कोई ऐसी बात जिसका प्रकाशन भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए या धारा 153 ए या धारा 153 बी या धारा 295ए (1860 का 45) के अधीन दंडनीय है या(ख) किसी न्यायाधीश से, जो अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य कर रहा है या कार्य करने का तात्पर्य रखता है, संबंध कोई बात जो भारतीय दंड संहिता 1860 के अधीन आपराधिक अभित्रास या मानहानि की कोटि में आती है अथवा
II. भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 292 में यथानिदेशित कोई अश्लील वस्तु प्रकाशित करता, या आयात करता है, निर्यात करता है, संवाहित करता है, बेचता है, किराए पर देता है, बांटता है, आम जनता के लिए प्रदर्शित करता है अथवा किसी भी तरीके से परिचलित करता है, और दंडाधिकारी इस विचार के हैं, कि पर्याप्त आधार है कार्रवाई के लिए तो दंडाधिकारी उन तरीकों द्वारा जो यहां या इसके बाद प्रावधानित है ऐसे व्यक्ति से चाहेंगे कि वह कारण बताएं कि क्यों न उससे उसके ऐसे व्यवहार के लिए बौंड बनाने के लिए प्रतिभू के साथ आदेशित किया जाए। उतने समय के लिए जो एक साल से अधिक नहीं है या जिसे दंडाधिकारी उचित समझते हैं।प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 में दिए गए नियमों के अधीन रजिस्ट्रीकृत और उनके अनुरूप सम्पादित, मुद्रित और प्रकाशित किसी प्रकाशन में अन्तर्विष्ठ किसी बात के बारे में कोई कार्यवाही; ऐसे प्रकाशन के संपादक, स्वत्वधारी, मुद्रक या प्रकाशन के विरुद्ध राज्य सरकार के या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त किए गए किसी अधिकारी के आदेश से उसके प्राधिकार के अधीन ही की जाएगी, अन्यथा नहीं। - क्या उनके स्थानीय अधिकार क्षेत्र की सीमा के अंदर है (Is within the local limits of his jurisdiction) धारा 108 का क्षेत्र
जहां अभियुक्त मूल रूप से दंडाधिकारी द्वारा समन के अनुपालन में आया हो, अधिकार क्षेत्र के अधीन उसकी उपस्थिति के लिए यद्यपि मूल समन जो उनके द्वारा जारी किया गया था तथा जिसके अनुपालन में वह अभियुक्त आया था वैध नहीं भी हो सकता है।
{नरसिंह प्र॰ अग्रवाल बनाम इम्परर ए॰आई॰आर॰ 1937 नाग॰ 70}इस दृष्टिकोण की सत्यता संदेह के लिए फिर भी खुला है। दंडाधिकारी इस धारा के अधीन अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग तभी कर सकते हैं जब वह व्यक्ति जिसके विरूद्ध कार्रवाई की जा रही है वह उनके अधिकार क्षेत्र की सीमा के अन्दर रहता है। उसकी बाद की न्यायालय में उपस्थिति जो समन के अनुपालन में है, उनके ‘‘स्थानीय अधिकारिता के समतुल्य न तो है और न होगा’’ दूसरी तरह यदि वह चाहता है कि वह दंडाधिकारी के अग्रसर होने के अधिकारिता के आधार पर विरोध करना चाहता है तो वह ऐसा कदापि नहीं कर सकता है। - क्या दंडाधिकारी उपस्थिति के लिए जमानत या जमानत बौंड मांगने की शक्ति रखते है (Whether Magistrate has power to require bail or bail bonds for appearance in court)
इस अध्याय के अधीन प्रावधानित प्रक्रिया पूर्ण रूप से व्यापक (Comprehensive) है तथा दंडाधिकारी आरोपित व्यक्तियों को बुलाने की कोई शक्ति नहीं रखते हैं कि न्यायालय में वह अपनी उपस्थिति के लिए जमानत प्रदान करें।
{एस कृपाल सिंह बनाम हि॰प्र॰ राज्य -1976 क्रि॰एल॰टी॰ 80}जमानत या जमानत बौंड की सुरक्षा कार्रवाई (Security Proceeding) में अवधारणा पूर्ण रूप से गैर अनुमान्य है (In applicable)।
एम.वाई. सिंह ब॰ मणिपुर प्रशासन-ए.आई.आर. 1964 मणिपुर 62वह केस जो दूसरे तरह से धारित किया जाता है वह सही-सही कानून स्थापित नहीं करता है।
बालरूप शर्मा ब0 उ0प्र0 सरकार ए.आई.आर. 1956 इला॰ 270 से 271इस तरह की कार्रवाई में धारा 116(3) के अधीन अंतरिम बौंड लेने के लिए आदेश दिया जाता है बेल बौंड आदेशित नहीं किया जा सकता है। - क्या आदेश के समय व्यक्ति को सदेह दंडाधिकारी के अधिकार क्षेत्र में रहना है? (Should the person be physically within the jurisdiction of the Magistrate at the time of the order)
जहां उस व्यक्ति को जिसके विरूद्ध कार्रवाई की जा रही है साधारण तया वह किसी खास दंडाधिकारी के अधिकार क्षेत्र की सीमा में रहता था तो केवल यह तथ्य कि ‘‘वह दंडाधिकारी के अधिकार क्षेत्र की सीमा में नहीं रहता था जिस दिन आदेश पारित हुआ’’ आदेश को अवैध नहीं बनाता है धारा 462 ठीक ऐसे ही केसों का सामना करता है। सवोर्परि (More over) जैसा कि दंडाधिकारी ने सूचना पर कार्य किया जिसे उन्होंने सच्चा समझा कि व्यक्ति उनके स्थानीय अधिकार क्षेत्र की सीमा में था तो धारा की शर्तों का अनुपालन हुआ।
एन.पी.अग्रवाल बनाम इम्मर -ए.आई.आर. 1937 नाग0 70 - धारा 111 के अधीन नोटिस जारी किया जाना है (Notice under Section 111 is to be issued)
यदि इस धारा के अधीन कार्रवाई किया जाना विचारित है तो प्रथमतः धारा 111 के अधीन एक नोटिस निश्चित रूप से दिया जाना है। उक्त नोटिस में प्राप्त सूचना का सारांश रहना चाहिए। पूर्व शर्तों के अनुपालन के बिना धारा 116(1) के अधीन कार्रवाई या धारा 116(3) के अधीन रोका जाना आदेशित नहीं किया जा सकता है।
-लाल बिहारी ब. राज्य 1976(2) दिल्ली एल.टी. 302 - धारा 124A आईपीसी के क्लॉज (1) का सब क्लॉज (a) (Sub clause (a) of clause (1)of Section 124A, I.P.C.) धारा 124A
आईपीसी के प्रावधान बहुत ही विस्तृत है और कठोर नियमों में वे उन सभी बातों को अपने में समेट लेंगे (Cover) जो सरकार की अवमानना के तुल्य है। यदि कोई एक किसी टर्म का अपवर्जन (Excludes) करता है। प्रशासन के किसी विशिष्ट उपाय या कार्य की आलोचना करता है। धारा के शर्त इतने विस्तृत है कि कोई भी न्याय संगत भाषण इसके अंतर्गत आ जायेगा। कोई आचरण उक्त धारा के शर्त के अधीन है या नहीं न्यायालय को निश्चित रूप से एक स्वच्छ विचार प्रकट करना चाहिए कि पार्टियों के बीच अपने राजनीतिक विचारों की समीचीनता से अलग हटकर। -परमानंद ब0 इम्परर ए.आई.आर. 1941 इला0 156, 157। परीक्षण यह है कि क्या कोई व्यक्ति विप्लवकारी बातों को विस्तार देता रहा है या नहीं और क्या उक्त अपराध के दोहराए जाने का भय है ? प्रत्येक केस में यह तथ्य का प्रश्न है जिसका निर्धारण व्यक्ति के पूर्ववृत्त (Antecedents) एवं आस पास के अन्य परिस्थितियों के आधार पर किया जाना चाहिए।
-इम्परर ब0 बामन 11 बम्बई एल.आर. 743; 10 क्रि.लॉ.ज. 379 - धारा 153A आईपीसी वर्गो के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन (Section 153A I.P.C.Promoting enemity between classes)
किसी आदेश को इस धारा के अधीन जीवित रखने के लिए यह पर्याप्त नहीं है कि व्यवहार की गयी; भाषा किसी एक समुदाय पर अत्यधिक आक्रामक है। यह निश्चित रूप से प्रदर्शित होना चाहिए कि वह व्यक्ति दो समुदायों के बीच घृणा या शत्रुता को प्रेरित और प्रोत्साहित कर रहा था, फिर भी आवश्यक नहीं है कि वह ऐसी भावना भड़काने में सफल हो चुका हो यदि कोई ऐसा करने की मंशा जानबूझकर करने की मंशा जाहिर होती हो। {यू.धमनालोक ब0 इम्परर 4 Bur. एल.टी. 24, 12 क्रि.लॉ.ज. 248}धारा 153B आईपीसी (Section 153B I.P.C.) : कोई भी बात भारतीय दंड संहिता के अधीन दंडनीय होगी यदि यह ऐसी बातों का दोषारोपण या निश्चित अधिघोषणा करता है जो राष्ट्रीय अखंडता के लिए प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है।
- धारा 295A आईपीसी (Section 295A I.P.C.)
धारा 295A किसी बात को दंडनीय बना देता है।
- क्या साबित करना आवश्यक है (What is required to be proved)
इस धारा के अधीन कार्रवाई करने के लिए यह साबित किया जाना चाहिए कि यदि नहीं रोका गया तो अभियुक्त उसी तरह का कार्य करता रहेगा जैसा करता रहा है। यह स्पष्ट रूप से माना जा सकता है कि वह भविष्य में भी वैसा ही कार्य करता रहेगा तो ऐसी स्थिति में उसकी आदतन प्रवृति निश्चित रूप से प्रमाणित की जानी चाहिए।
{जे.एन.नथूरा ब॰इम्परर -ए.आई.आर. 1932 लाहौर 7}शब्द समूह ‘‘विस्तार देता है या विस्तार देने का प्रयास करता है’’ अनेक किये कार्यों को इंगित नहीं करता है वरन जहां साक्ष्य यह प्रमाणित करता है कि कुछ ऐसा है जो यह दर्शाता है कि अपराध की पुनरावृत्ति संभव था। यह प्रत्येक केस के तथ्य पर निर्भर करता है। ए.आई.आर. 1932 पटना 213 धारा के प्रावधान किसी खास अवसर पर दिए गए एकल भाषण (Isolated Speech) पर लागू नहीं होगा। इस बात का निश्चित तौर पर साक्ष्य होना चाहिए कि व्यक्ति ने कोई दूसरा आपत्तिजनक भाषण भूतकाल में दिया था अथवा यह मंशा रखता हो कि भविष्य में ऐसा भाषण फिर देना चाहता हो।
-चंद्रमान गुप्ता बनाम इम्परर - ए.आई.आर. 1934 अवध 70 - क्लॉज (1) सब क्लॉज (बी) Clause (1) sub-Clause (b)
धारा के अधीन कार्रवाई किसी भी उस व्यक्ति के विरुद्ध किया जा सकता है जो या तो मौखिक रूप से या लिखित रूप से या किसी अन्य तरीकों से जानबूझकर किसी न्यायाधीश के संबंध में जो न्यायाधीश की अपने कार्यालीय पदीय कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा हो, व्यवधान पहुंचाता है।
भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख
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- उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली, 1956
- बलात्कार (Rape) क्या है! कानून के परिपेक्ष में
- प्रथम सूचना रिपोर्ट/देहाती नालिशी, गिरफ्तारी और जमानत के सम्बन्ध में नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य
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- हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) 1956
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- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 108
- भारतीय दंड संहिता की धारा 188
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