23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जानकीनाथ बोस एवं प्रभावती के घर जन्मे सुभाष चंद्र बोस का जीवन अत्यंत संघर्ष पूर्ण, शौर्यपूर्ण और प्रेरणादायी है। बाल्यकाल से ही शोषितों के प्रति उनके मन में गहरी करुणा का भाव था। आठ साल की उम्र में वह स्वूफल के गेट पर खड़ी भिखारिन को रोजाना अपना आधा खाना खिला देते थे। गरीब, पीडि़त, शोषित जनता के लिए उनका दिल हमदर्दी से भरा था। क्रांतिकारियों के प्रति उनके मन में विशेष सम्मान था। विवेकानंद की शिक्षाओं का सुभाष पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अपने विशिष्ट व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों की वजह से सुभाष चन्द्र बोस भारत के इतिहास एक महत्वपूर्ण स्थान रखते है। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उस समय हुआ जब भारत में अहिंसा और असहयोग आन्दोलन अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थें। इन आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होनें भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। पेशे से बाल चिकित्सक डा. बोस ने नेताजी की राजनीतिक और वैचारिक विरासत के संरक्षण के उनके कोलकाता स्थित आवास में नेताजी रिसर्च ब्यूरो की स्थापना की।
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1939 में सुभाष चन्द्र बोस का अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में आगमन |
सुभाष के बड़े भाई शरत चंद्र बोस और भाभी विभावती ने उनके विचारों को नई दिशा दी। शुरू से ही वह बहुत मेधावी छात्रा रहे।उनके राजनीतिक जीवन को दिशा देने में ‘देशबंधु’ चितरंजन का अहम योगदान था। शुरुवात में तो नेताजी की देशसेवा करने की बहुत मंशा थी, पर अपने परिवार की वजह से उन्होंने विदेश जाना स्वीकार किया। पिता के आदेश का पालन करते हुए वे 15 सितम्बर 1919 को लंदन गए और वहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने लगे। वहां से उन्होंने आई.सी.एस. की परीक्षा में गुणवत्ता श्रेणी में चौथा स्थान हासिल किया। भारत को आजादी दिलाने में सुभाष चंद्र बोस के योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उस समय की राजसी ठाठ-बाट वाली आइसीएस की नौकरी को छोड़कर अपने देश को मुक्त कराने के लिए निकल पड़े। लोकतांत्रिक ढंग से कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुने गए सुभाष ने गांधीजी की हठधर्मिता को देखते हुए उनकी इच्छा के पालन के लिए पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चन्द्र बोस की सराहना हर तरफ हुई। देखते ही देखते वे एक युवा नेता बन गए। 3 मई 1939 को सुभाषचन्द्र बोस ने कलकता में फाॅरवर्ड ब्लाक अर्थात अग्रगामी दल की स्थापना की।सितम्बर,1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रांरभ हुआ। ब्रिटिश सरकार ने सुभाष के युद्ध विरोधी आन्दोलन से भयभीत होकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सन् 1940 में सुभाष को अंग्रेज सरकार ने उनके घर पर ही नजरबंद कर रखा था। नेताजी अदम्य साहस और सूजबूझ का परिचय देते हुए 17 जनवरी 1941 की सुबह वह अंग्रेजों की नजरबंदी तोड़कर कोलकाता के अपने घर से निकल गए। कोलकाता से दिल्ली, पेशावर होते हुए वह काबुल पहुंचे और वहां से जर्मनी। जर्मनी में उन्हें हिटलर ने पूरा सहयोग दिया। करीब दो दशक के राजनीतिक जीवन में से अगर जेल यात्राओं और देश निषकासन के 14 साल का समय निकाल दें तो उन्हें जनता के साथ मिलकर राजनीतिक कार्य करने के लिए करीब छह साल ही मिले। इतने कम समय में उन्होंने हिंदुस्तान के जनमानस को ऐसा आंदोलित किया, जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वह पनडुब्बी द्वारा जर्मनी से जापान के लिए रवाना हुए। साढ़े तीन माह की कठिन और खतरनाक यात्रा के बाद जून 1943 में जापान पहुंचकर उन्होंने वहां के प्रधानमंत्राी हिडेकी तोजो से मुलाकात की। तोजो सुभाष चंद्र बोस से अत्यंत प्रभावित हुए। सुभाष की सादगी, ओजस्विता, साहस और देश प्रेम की भावना ने जापानी प्रधानमंत्री पर अमिट छाप छोड़ी और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के सुभाष के मिशन में उन्हें भरपूर सहयोग दिया।
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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी के साथ हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में (सन् 1938) उन दोनों के बीच राजेन्द्र प्रसाद और नेताजी के बाएं सरदार वल्लभ भाई पटेल भी दिख रहे हैं। |
महान देशभक्त रासबिहारी बोस के मार्गदर्शन में सुभाष ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर के वैफथे नामक हॉल में आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) का गठन किया। इस सरकार को जापान, इटली, जर्मनी, रूस, बर्मा, थाईलैंड, फिलीपींस, मलेशिया सहित नौ देशों ने मान्यता प्रदान की। आजाद हिंद सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री के पद की शपथ लेते हुए सुभाष ने कहा- मैं अपनी अंतिम सांस तक स्वतंत्रता यज्ञ को प्रज्वलित करता रहूंगा। नेताजी सुभाष के स्वतंत्रता संग्राम का सबसे अहम अध्याय है आजाद हिंद फौज का गठन करना और एक अविश्वसनीय युद्ध में जीत के मुहाने तक पहुंच जाना।
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सुभाष का उनकी पत्नी के साथ दुर्लभ चित्र |
इस मुहिम में जापान ने उनकी हर तरह से सहायता की। विश्व इतिहास में आजाद हिंद फौज जैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता जहां 30-35 हजार युद्ध बंदियों को संगठित, प्रशिक्षित कर अंग्रेजों को पराजित किया। पूर्व एशिया और जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज का विस्तार करना शुरू किया। पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहां स्थानीय भारतीय लोगों से आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने का और आर्थिक मदद करने का आहृान किया। रंगून के 'जुबली हॉल' में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण सदैव के लिए इतिहास के पत्रों में अंकित हो गया जिसमें उन्होंने कहा था -"स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आज़ादी को आज अपने शीश फूल की तरह चढ़ा देने वाले पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है, जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सकें। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। खून भी एक दो बूँद नहीं इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमें में ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो दूँ ।" द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत के ब्रिटिश सामराज्य पर आक्रमण किया। आजाद हिंदी फ़ौज ने जबरदस्त पराक्रम दिखाते हुए ब्रिटिश सेना को हराकर उन्होंने इंफाल और कोहिमा में करीब 1500 वर्ग मील के इलाके पर कब्जा कर लिया था। इंग्लैंड ने इस युद्ध को इतिहास का सबसे कठिन युद्ध माना। विश्व युद्ध के अंतिम चरण में जापान की हार के साथ समीकरण बदल गए। ऐसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पीछे हटना पड़ा।
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टोक्यो में सुभाष चंद्र बोस, 1943 |
प्रख्यात विद्वान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने नेताजी के मृत्यु पर नया सनसनी खेज खुलासा किया है उनका का मानना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हत्या रूस में स्टालिन ने कराई थी और इसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का हाथ बताया और उनके पास इस संबध में दस्तावेज़ है जो नेताजी की जयंती पर वह मेरठ में सारे दस्तावेज और फाइलें सार्वजानिक करेगे। स्वामी का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नेताजी को वार क्रिमिनल घोषित कर दिया गया तो उन्होंने एक फर्जी सूचना फ्लैश कराई गई कि प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत हो गई। बाद में वे शरण लेने के लिए रूस पहुंचे, लेकिन वहां तानाशाह स्टालिन ने उन्हें कैद कर लिया। स्टालिन ने नेहरू को बताया कि नेताजी उनकी कैद में हैं क्या करें? इस पर उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को इसकी सूचना भेज दी। कहा कि आपका वार क्रिमिनल रूस में है। साथ ही उन्होंने स्टालिन को इस पर सहमति दे दी कि नेताजी की हत्या कर दी जाए। स्वामी ने दावा किया कि नेहरू के स्टेनो उन दिनों मेरठ निवासी श्याम लाल जैन थे। 26 अगस्त 1945 को आसिफ अली के घर बुलाकर नेहरू ने उनसे यह पत्र टाइप कराया था। श्याम लाल ने खोसला आयोग के सामने यह बात तो रखी पर उनके पास सबूत नहीं थे। स्वामी का मानना है कि इसी अहसान में नेहरू हमेशा रूस से दबे रहे और कभी कोई विरोध नहीं किया। कहा कि नेताजी की मौत के रहस्य से पर्दा उठेगा। सच सामने आएगा कि देश के गद्दार कौन थे?
वास्तव में नेता जी की मृत्यु के संबंध में जो विवाद बना हुआ है कि 18 अगस्त 1945 के बाद का सुभाषचन्द्र बोस का जीवन/मृत्यु आज तक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है। 23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदेई, पायलट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गंभीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अंतिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितंबर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोक्यो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयी। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेज के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हुई थी। सुभाष चंद्र बोस के अंतिम समय को लेकर रहस्य बना हुआ है। माना जाता है कि हवाई हादसे में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन सुभाष के बहुत से प्रशंसक इस थ्योरी में विश्वास नहीं रखते है।
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कोलकाता स्थित नेताजी भवन में रखी कार जिसमें बैठकर सुभाष चन्द्र बोस घर से फरार हुए |
सुभाष चन्द्र बोस के अनमोल वचन
- तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा!
- दिल्ली चलो।
- याद रखिये सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
- याद रखें सबसे बड़ा अपराध अन्याय और गलत के साथ समझौता करना है।
- प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिन्दी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।
- राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम् , शिवम्, सुन्दरम् से प्रेरित है।
- याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
- इतिहास में कभी भी विचार-विमर्श से कोई वास्तविक परिवर्तन हासिल नहीं हुआ है।
चित्रों में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
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सुभाष का उन दिनों का चित्र जब वे सन् 1920 में इंग्लैण्ड आईसीएस करने गये हुए थे |
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सुभाष के पिता जानकीनाथ बोस का सन् 1905 का चित्र विकिमीडिया कॉमंस से |
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सुभाष चन्द्र बोस का पोर्टेट उनके हस्ताक्षर सहित |
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कटक में सुभाष चन्द्र बोस का जन्म स्थान अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। |
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जापान के टोक्यो शहर में रैंकोजी मन्दिर के बाहर लगी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा
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