Suryarghya (सूर्यार्घ्य मंत्र) Mantras...
LYRICS (Sanskrit)
एहि सूर्य ! सहस्त्रांशो ! तेजोराशे ! जगत्पते |
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते ||
तापत्रयहरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् |
तापत्रयविमोक्षाय तवार्घ्यं कल्प्याम्यहम् ||
नमो भगवते तुभ्यं नमस्ते जातवेदसे |
दत्तमर्घ्य मया भानो ! त्वं गृहाण नमोस्तुते ||
अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह |
करुणां कुरु मे देव गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते ||
नमोस्तु सूर्याय सहस्त्रभानवे नमोस्तु वैश्वानर- जातवेदसे |
Ehi surya ! Sahastraansho ! Tejoraashe ! Jagatpate |
Anukampya maam bhaktyaa grihaanaarghyam namo-stute ||
Taapatrayaharam divyam parmaanandlakshanam |
Taapatrayavimokshaaya tavaarghya kalpayaamyaham ||
Namo bhagavate tubhyam namaste jaatavedase |
Duttamarghya mayaa bhano ! ttvam grihaana namo-stute ||
Arghyam grihaana devesha gandhpushpaakshataiha saha |
Karunaam Kurume deva grihaanaarghya namo-stute ||
Namostu suryaaya sahastrabhaanave
Namostu vaishvaanar-jaatvedasa |
Ttvameva chaarghyam pratigrihana deva !
Devaadhidevaaya namo Namaste ||
सूर्य अर्घ्य देने की विधि
दीर्घ काल से सूर्योपासना अनवरत चली आ रही है। भगवान सूर्य के उदय होते ही संपूर्ण जगत का अंधकार नष्ट हो जाता है और चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है। सृष्टि के महत्वपूर्ण आधार हैं सूर्य देवता। सूर्य की किरणों को आत्मसात करने से शरीर और मन स्फूर्तिवान होता है। नियमित सूर्य को अर्घ्य देने से हमारी नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है। बल, तेज, पराक्रम, यश एवं उत्साह बढ़ता है।निम्न क्रमानुसार हम भगवान सूर्य को अर्घ देते है-
- सर्वप्रथम प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व शुद्ध होकर स्नान करें।
- तत्पश्चात उदित होते सूर्य के समक्ष आसन लगाए।
- आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।
- उसी जल में मिश्री भी मिलाएं। कहा जाता है कि सूर्य को मीठा जल चढ़ाने से जन्मकुंडली के दूषित मंगल का उपचार होता है।
- मंगल शुभ हो तब उसकी शुभता में वृद्धि होती है।
- जब पूर्व दिशा में सूर्यागमन से पहले नारंगी किरणें प्रस्फुटित होती दिखाई दें, आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़ कर इस तरह जल चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ाती धार से दिखाई दें।
- प्रातःकाल का सूर्य कोमल होता है उसे सीधे देखने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
- सूर्य को जल धीमे-धीमे इस तरह चढ़ाएं कि जलधारा आसन पर आ गिरे ना कि जमीन पर।
- जमीन पर जलधारा गिरने से जल में समाहित सूर्य-ऊर्जा धरती में चली जाएगी और सूर्य अर्घ्य का संपूर्ण लाभ आप नहीं पा सकेंगे।
- अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का पाठ करें -'ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।' (11 बार)
'ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय।
मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा: ।।' (3 बार) - तत्पश्चात सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें।
- अपने स्थान पर ही तीन बार घूम कर परिक्रमा करें।
- आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।
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