The Industrial Disputes Act, 1947
औद्योगिक विवाद अधिनियम-1947 क्या है ?
आज जब किसी उद्योग के कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया जाए, उसे उस की नौकरी का लाभ न दिया जाए, या कर्मचारी अपनी सेवा शर्तों को गैरवाजिब मान कर हड़ताल कर दें या फिर स्वयं उद्योग के प्रबंधक ही उद्योग में तालाबंदी, छंटनी या ले-ऑफ कर दें तो हमें तुरंत औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की याद आती है। मौजूदा औद्योगिक विवाद अधिनियम आजादी के तुरंत पहले 1 अप्रेल 1947 को अस्तित्व में आया था। इस के लिए केन्द्रीय असेम्बली में विधेयक 8 अक्टूबर 1946 को प्रस्तुत हुआ था तथा दिनांक 31 मार्च 1947 को पारित कर दिया गया था। तब से अब तक 1956, 1964, 1965, 1971, 1972, 1976, 1982, 1984,1996 तथा 2010 में इस अधिनियम में संशोधन किए गये हैं। इस के अतिरिक्त अन्य विधेयकों के द्वारा भी इस में 28 बार संशोधित किया गया है। इस तरह इस अधिनियम को कुल 38 बार संशोधित किया गया है।
ब्रिटिश भारत में सर्वप्रथम 1929 में ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल लाया गया था। इस बिल के द्वारा जनउपयोगिता के उद्य़ोगों में हड़ताल और तालाबंदी को प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन उन औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए कोई विकल्प प्रदान नहीं किया गया था और इसे दमनकारी माना गया था। युद्ध के दौरान इस अधिनियम के इस अभाव को दूर करने के लिए डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के नियम 81-ए में प्रावधान किया गया था कि केन्द्र सरकार किसी भी औद्योगिक विवाद को न्यायाधिकरण को सौंप सकती है और उस के द्वारा प्रदान किए गए अधिनिर्णय को लागू करवा सकती है। ये नियम युद्ध की समाप्ति के साथ ही दिनांक 1 अक्टूबर 1946 को समाप्त हो गये लेकिन नियम 81-ए को इमरजेंसी पावर्स (कंटीन्यूअस) ऑर्डिनेंस 1946 से इसे जारी रखा गया। इसी ऑर्डिनेंस के स्थान पर बाद में औद्योगिक विवाद अधिनियम अस्तित्व में आया।
औद्योगिक विवादों का अन्वेषण तथा उनका समाधान करना औद्योगिक विवाद अधिनियम-1947 का प्रमुख उद्देश्य है। इस अधिनियम के अंतर्गत दो तरह की संस्थाएँ बनाई गईं। बड़े उद्योगों में जहाँ 100 या उससे अधिक श्रमिक नियोजित हो श्रमिकों और नियोजकों के प्रतिनिधियों की संयुक्त वर्क्स कमेटी बनाने का उपबंध किया गया। वहीं औद्योगिक विवादों के समाधान केलिए समझौता अधिकारियों की नियुक्ति और बोर्डों का गठन करने के उपबंध किये गए। समझौता संपन्न न होने पर औद्योगिक विवादों के न्याय निर्णयन के लिए श्रम न्यायालय, औद्योगिक न्यायाधिकरण की व्यवस्था की गई तथा हड़तालों व तालाबंदियों को रोकने के लिए भी उपबंध किए गए हैं।
औद्योगिक विवाद के विवाद हैं जो औद्योगिक संबंधों में कोई असहमति हो जाने के कारण उत्पन्न होते हैं। औद्योगिक संबंध शब्द से नियोजक और कर्मचारियों के बीच; कर्मचारियों के बीच तथा नियोजकों के बीच परस्पर संवादों के कई पहलू जुड़े हुए हैं।
ऐसे संबंधों में जब भी हितों को लेकर कोई विरोध होता है तो इससे जुड़े किसी एक पक्ष में असंतोष पैदा हो जाता है और इस प्रकार औद्योगिक विवाद अथवा संघर्ष हो जाता है, यह विवाद कई रूप ले लेता है जैसे कि विरोध, हड़ताल, धरना, तालाबंदी, छंटनी, कर्मचारियों की बर्खास्तगी, आदि।
औद्योगिक विवाद के मुख्य कारण
औद्योगिक विवाद के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार है:-
- अधिक वेतन और भत्तों की मांग करना
- बोनस का भुगतान करने और उसकी दर निर्धारित करने की मांग करना।
- सामाजिक सुरक्षा के लाभों को बढ़ाने की मांग करना।
- कार्य की अच्छी और सुरक्षित दशाओं जिसमें कार्य दिवस के घंटे, मध्यावकाश और कार्य के बीच-बीच में अवकाश और शारीरिक श्रम के लिए परिवेश की मांग करना।
- श्रम कल्याण और अन्य लाभों में वृद्धि करने की मांग करना। उदाहरणार्थ, अच्छी कैंटीन, विश्राम, मनोरंजन और आवास की सुविधा, दूरवर्ती स्थानों की जाने और जाने की यात्रा की व्यवस्था, आदि।
- इसके अलावा, खराब कार्मिक प्रबंध; परस्पर विरोधी विधायी उपाय एवं सरकारी नीतियों; और मनोवैज्ञानिक घटकों जैसे कि कर्मचारी द्वारा उसकी आत्माभिव्यक्ति, व्यक्तिगत उपलब्धि और उन्नति की मूल आकांक्षा की तुष्टि करने के लिए अवसर प्रदान करने से इंकार करना, आदि के कारण भी श्रमिकों संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947
भारत में, औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 सभी औद्योगिक विवादों की जांच पड़ताल एवं निपटान करने के लिए एक प्रमुख विधान है। इस अधिनियम में उन संभावनाओं की हड़ताल अथवा तालाबंदी की जा सकती है, उन्हें अवैध अथवा गैर-कानूनी घोषित किया जा सकता है, कर्मचारी की जबरदस्ती कामबंदी, छंटनी, उसे सेवामुक्त करना अथवा गबर्खास्त करने की दशाओं, उन परिस्थितियों जिनमें औद्योगिक इकाई को बंद किया जा सकता है और औद्योगिक कर्मचारियों तथा नियोजकों से जुड़े अन्य कई मामलों का उल्लेख किया गया है।
यह अधिनियम श्रम मंत्रालय द्वारा उसके औद्योगिक संबंध प्रभाग के माध्यम से प्रशासित किया जाता है। यह प्रभाग विवादों का निपटान करने के लिए संस्थागत ढांचों में सुधार करने और औद्योगिक संबंधों से जुड़े श्रमिक कानूनों में संशोधन करने से संबंधित है। यह सुनिश्चित करने के प्रयास से कि देश को एक स्थायी, प्रतिष्ठित और कुशल कार्यबल प्राप्त हो, जिसका शोषण न किया जा सके और उत्पादन के उच्च स्तर स्थापित करने में सक्षम हो, यह केन्द्रीय औद्योगिक संबंध मशीनरी (सीआईआरएम) के साथ अच्छे तालमेल से कार्य करता है। सीआईआरएम जो कि श्रम मंत्रालय का एक संगठन कार्यालय है को मुख्य श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) [सीएलसी (सी)] संगठन के नाम से भी जाना जाता है। सीआईआरएम के प्रमुख मुख्य श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) हैं। इसे औद्योगिक संबंधों को रखने, श्रम संबंधी कानूनों को लागू करने और केन्द्रीय क्षेत्र में व्यापार संघ की सदस्यता के सत्यापन का कार्य सौंपा गया है। यह निम्नलिखित के माध्यम से सद्भावपूर्ण औद्योगिक संबंधों को सुनिश्चित करता है :-
केन्द्रीय क्षेत्र में औद्योगिक संबंधों की निगरानी
विवादों का निपटारा करने के लिए औद्योगिक विवादों में हस्तक्षेप, मध्यस्थता और उनका समाधान करना;
हड़ताल और तालाबंदी को रोकने के लिए हड़ताल और तालाबंदी की संभावना की स्थिति में हस्तक्षेप;
व्यवस्थाओं और पंचाटों का कार्यान्वयन।
अधिनियम के मुख्य उद्देश्य
अधिनियम के अनुसार, ‘औद्योगिक विवाद’ शब्द का अर्थ है नियोजकों और नियोजकों के बीच, अथवा नियोजकों और कर्मचारियों के बीच, अथवा कर्मचारियों और कर्मचारियों के बीच किसी तरह का विवाद अथवा मतभेद जिसका संबंध नियोजन अथवा नियोजन भिन्न मामले अथवा नियोजन की शर्तों अथवा किसी व्यक्ति के श्रम की दशाओं से है।
अधिनियम के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं :-
- औद्योगिक विवादों का न्यायसंगत, उचित और शांतिपूर्ण ढंग से निपटारा करने के लिए एक उपयुक्त मशीनरी प्रदान करना।
- नियोजक और कर्मचारियों के बीच मित्रता एवं अच्छे संबंध स्थापित करने और उन्हें कायम रखने के उपायों को बढ़ावा देना।
- गैर-कानूनी हड़तालों और तालाबंदी को रोकना।
- कर्मचारियों को जबरदस्ती कामबंदी, छंटनी, गलत तरीके से बर्खास्तगी और उत्पीड़न से राहत प्रदान करना।
सामूहिक सौदाकारी को बढ़ावा देना। - कर्मचारियों की दशा सुधारना।
- अनुचित श्रम प्रणालियों को रोकना
अधिनियम की कार्यप्रणाली
इस अधिनियम के तहत औद्योगिक विवादों के समाधान और निर्णय के लिए एक सांविधिक तंत्र का गठन किया गया है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं :-
- अधिनियम में उपयुक्त सरकार द्वारा ‘समझौता अधिकारियों’ की नियुक्ति का प्रावधान, जिन्हें औद्योगिक विवादों के निपटारे में मध्यस्थता करने और उसका समर्थन करने का कार्य सौंपा गया है। उन्हें किसी विशेष क्षेत्र अथवा विशेष क्षेत्र में विशेष उद्योगों अथवा एक अथवा एक से अधिक विशेष उद्योगों के लिए स्थायी तौर पर अथवा सीमित अवधि के लिए नियुक्त किया जाएगा। कर्मचारियों और आयोजकों को मिलाना तथा उनके मतभेदों का निवारण करने में उनकी मदद करना इन अधिकारियों का कर्तव्य है। यदि विवाद का निपटारा हो जाता है तो वह इस आशय की सूचना उपयुक्त सरकार को देगा।
- उपयुक्त सरकार अवसर आने पर एक समझौता बोर्ड का गठन करेगी जिसमें एक अध्यक्ष और दो या चार जैसा कि उपयुक्त सरकार उचित समझेगी, अन्य सदस्य शामिल होंगे। अध्यक्ष एक स्वतंत्र व्यक्ति होगा और अन्य सदस्य विवाद में पक्षों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक समान संख्या में नियुक्त किए गए व्यक्ति होंगे। जहां विवाद बोर्ड को भेजा गया हो तो बोर्ड बिना विलंब किए, विवाद की छानबीन करेगा और ऐसी हर कार्रवाई करेगा जो वह पक्षकारों को विवाद का न्यायसंगत और शांतिपूर्ण निपटारा करने के लिए प्रेरित करने के प्रयोजन से उचित समझेगा।
- उपयुक्त सरकार अवसर आने पर ऐसी किसी मामले जो औद्योगिक विवाद से संबंधित अथवा संगत प्रतीत हो, की जांच पड़ताल करने के लिए ‘जांच न्यायालय’ का भी गठन करेगी। तत्पश्चात यह सामान्यतया शुरू होने के छह माह की अवधि के अंदर इसकी सूचना सरकार को देगा इस न्यायालय में एक स्वतंत्र व्यक्ति अथवा उतने स्वतंत्र व्यक्ति होंगे जितने उपयुक्त सरकार उचित समझेगी और जहां इसमें दो अथवा दो से अधिक सदस्य निहित होंगे उनमें से एक की नियुक्ति अध्यक्ष के रूप में की जाएगी।
- उपयुक्त सरकार एक अथवा एक से अधिक ‘श्रम न्यायालयों’ का गठन करेगी जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी मामले से संबंधित औद्योगिक विवादों जैसे कि स्थायी आदेशों, कर्मचारियों की सेवा मुक्त अथवा बर्खास्त करने, गैर कानूनी रूप से अथवा अन्यथा की गई हड़ताल अथवा तालाबंदी, प्राप्त हो रहे किसी लाभ को वापस लेने, आदि से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेंगे और उन्हें इस अधिनियम के तहत सौंपे गए किन्हीं अन्य कार्यों का निर्वहन करेंगे। श्रम न्यायालय में केवल एक व्यक्ति शामिल होगा जिसकी नियुक्ति उपयुक्त सरकार द्वारा की जाएगी।
- उपयुक्त सरकार एक अथवा एक से अधिक ‘औद्योगिक अधिकरणों’ का गठन करेगी जो किसी भी मामले के संबंध में चाहे वह दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हो अथवा तीसरी अनुसूची में, हुए औद्योगिक विवादों पर निर्णय लेंगे और इस अधिनियम के तहत उन्हें सौंपे गए किन्हीं अन्य कार्यों का निर्वहन करेंगे। इस अधिकरण में केवल एक ही व्यक्ति शामिल होगा जिसकी नियुक्ति उपयुक्त सरकार द्वारा की जाएगी। तीसरी अनुसूची में वेतन, बोनस, भत्ते और कुछ अन्य लाभ, कार्य की दशाएँ, अनुशासन, यौक्तिकीकरण, छंटनी और प्रतिष्ठान की समाप्ति जैसे मामले शामिल हैं।
- केन्द्र सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक अथवा एक से अधिक राष्ट्रीय औद्योगिक अधिकरणों का गठन करेगी जो उन औद्योगिक विवादों पर निर्णय लेंगे जो केंद्र सरकार की राय में राष्ट्रीय महत्व के प्रश्नों से संबंधित हों अथवा इस किस्म के हों कि उनसे एक से अधिक राज्यों में स्थित औद्योगिक प्रतिष्ठानों का हित जुड़ा हो अथवा वे ऐसे विवादों से प्रभावित हो सकते हों। ऐसे अधिकरण में केवल एक व्यक्ति शामिल होगा जिसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाएगी।
- अधिनियम में नियोक्ता के लिए यह अनिवार्य है कि वह किसी ऐसे औद्योगिक प्रतिष्ठान में जहां पिछले बारह महीनों में पचास अथवा इससे अधिक कर्मचारियों को नियुक्त किया गया है, एक ‘शिकायत निपटान प्राधिकरण (जीएसए)’ की स्थापना करें। उस प्रतिष्ठान में नियुक्त हर कर्मचारी के औद्योगिक विवादों को निपटाना उस प्राधिकरण की जिम्मेदारी होगी।
विवादों की जांच और उनका निपटारा
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत केन्द्रीय सरकार ही केन्द्रीय सरकार के विभागीय उपक्रमों, प्रमुख पत्तनों, खानों, तेल क्षेत्रों, छावनी (केंटोनमेंट) बोर्डों, बैकिंग और बीमा कम्पनियों, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी), भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लि., तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लि., इंडियन एयरलांइस, एयर इंडिया, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण और सभी हवाई यात्रा सेवाओं से संबंधित औद्योगिक विवादों की जांच करने और उनका निपटारा करने के लिए एक उपयुक्त सरकार है। जबकि अन्य औद्योगिक प्रतिष्ठानों के संबंध में राज्य सरकार ही उपयुक्त सरकार है।
तदनुसार, केन्द्रीय सरकार औद्योगिक अधिकरणों (सीजीआईटी) एवं श्रम न्यायालयों की देश के भिन्न-भिन्न भागों में स्थापना की गई है। इस समय 17 सीजीआईटी हैं जहां औद्योगिक विवादों को निर्णय के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। ये सीजीआईटी एवं श्रम न्यायालय नई दिल्ली, मुंबई (2 सीजीआईटी), बंगलौर, कोलकाता, आसनसोल, धनबाद (2 सीजीआईटी), जबलपुर, चण्डीगढ़, कानपुर, जयपुर, लखनऊ, नागपुर, हैदराबाद, चेन्नई और भुवनेश्वर में हैं। इन केन्द्रीय सरकार औद्योगिक अधिकरणों में से 2 केन्द्रीय सरकार औद्योगिक अधिकरणों नामत: मुंबई और कोलकाता, को राष्ट्रीय औद्योगिक अधिकरण घोषित किया गया है।
इसके अलावा, मुख्य श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) संगठन औद्योगिक विवादों के लिए केन्द्र सरकार में एक मुख्य समझौता एजेंसी के रूप में कार्य करता है क्षेत्रीय आयुक्त (केन्द्रीय) और सहायक श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) भी हैं जो देश के भिन्न-भिन्न भागों में मुख्य श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) की ओर से समझौता अधिकारियों के तौर पर कार्य करते हैं।
Share:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें