भगवान विष्णु को तुलसी बहुत ही प्रिय है। एक ओर रत्न मणि तथा स्वर्ण निर्मित बहुत से फूल चढ़ाया जाएं दूसरी ओर तुलसीदल चढ़ाया जाए तो भगवान तुलसीदल को ही पसंद करेंगे। सच पूछा जाए तो यह तुलसी दल की सोलहवीं कला की भी समता नहीं कर सकते। भगवान को कौस्तुभ(माणिक्य) भी उतना प्रिय नहीं है, जितना की तुलसी पत्र-मंजरी। काली तुलसी तो प्रिय है ही किंतु गौरी तुलसी तो और भी अधिक प्रिय है भगवान ने स्वयं अपने श्रीमुख से कहा है कि यदि तुलसीदल न हो तो कनेर, बेला, चंपा, कमल और मणि आदि से निर्मित फूल भी मुझे नहीं सुहाते। तुलसी से पूजित शिवलिंग या विष्णु की प्रतिमा के दर्शन मात्र से ब्रम्ह हत्या का दोष भी दूर हो जाता है। एक ओर मालती अदि की ताज़ी मालाएं हो दूसरी और दूसरी और बासी तुलसी हो तो भी भगवान उसी बासी तुलसी को ही अपनाएंगे।
शास्त्र ने भगवान पर चढ़ने योग्य पत्रों का भी परस्पर तारतम्य बतलाकर तुलसी की सर्वातिशायिता बतलाई हैं जैसे कि चिड़चिड़े की पत्ती से भंगरैया की पत्ती अच्छी मानी गई है तथा उससे अच्छी खैर की और उससे भी अच्छी शमी की, शमी से दूर्वा, दूर्वा से अच्छा कुश, और उससे भी अच्छा दौनाकी, उससे भी अच्छा बेल की पत्ती और उससे भी अच्छा तुलसीदल होता है।
नरसिंह पुराण में फूलों का तारतम्य बतलाया गया है और कहां गया है की दस स्वर्ण सुमनों का दान करने से जो फल प्राप्त होता है वह एक गुमा के फूल चढ़ाने से प्राप्त हो जाता है। इसके बाद उन फूलों का नाम गिनाए गए हैं जिनमें पहले की अपेक्षा अगला उत्तरोत्तर हजार गुना अधिक फलप्रद होता है जैसे घुमा के फूल से हजार गुना बढ़कर एक खैर, हजारों खैर के फूल से बढ़कर एक शमी का फूल, हजारों शमी के फूल से बढ़कर एक मौलसिरी का फूल, हजारों मौलश्री के पुष्पों से बढ़कर एक नन्द्यावर्त आर्वत, हजारों ननन्द्यावर्त से बढ़कर एक कनेर, हजारों कनेर के फूलों से बढ़कर एक सफेद कनेर, हजारों सफेद कनेर से बढ़कर एक कुशा का फूल, हजारों कुशा के फूल से बढ़कर एक वनवेला, हजारों वनवेला के फूलों से एक चंपा, हजारों चंपाओं से बढ़कर एक अशोक, हजारों अशोक के पुष्पों से बढ़कर एक माधवी, हजारों वासंतीयों से बढ़कर एक गोजटा, हजारों गोजटाओं के फूल से बढ़कर एक मालती, हजारों मालती के फूलों से बढ़कर एक लाल त्रिसंधि(फगुनिया), हजारों लाल त्रिसंधि के फूल से बढ़कर एक सफेद त्रिसंधि, हजारों सफेद त्रिसंधि के फूलों से बढ़कर एक कुंदन का फूल, हजारों कुंदन पुष्पों से बढ़कर एक कमल का फूल हजारों कमल पुष्पों से बढ़कर एक बेला और हजार बेला फूलों से बढ़कर एक चमेली का फूल होता है निम्नलिखित फूल भगवान को लक्ष्मी की तरह प्रिय हैं इस बात को उन्होंने स्वयं श्री मुख से कहा है--
मालती, मौलसिरी, अशोक, कलीनेवारी(शेफालिका), बसंतीनेवारी (नवमल्लिका), आम्रात(आमड़ा), तगर आस्फोत, बेला, मधुमल्लिका, जूही, अष्टपद, स्कंध, कदंब, मधुपिंगल, पाटला, चंपा, हृद्य, लवंग, अतिमुक्तक(माधवी), केवड़ा कुरब, बेल, सायं काल में फूलने वाला श्वेत कमल (कल्हार) और अडूसा
कमल का फूल तो भगवान को बहुत ही प्रिय है। कृष्णरहस्य में बतलाया गया है कि कमल का एक फूल चढ़ा देने से करोड़ों वर्ष के पापों का नाश हो जाता है। कमल के अनेक भेद हैं। उन भेदों के फल भी भिन्न-भिन्न हैं। बतलाया गया है कि सौ लाल कमल चढ़ाने का फल एक श्वेत कमल के चढ़ाने से मिल जाता है तथा लाखों श्वेत कमलों का फल एक नीलकमल से और हज़ारों नील कमलों का फल एक पद्म से प्राप्त हो जाता है यदि कोई भी किसी प्रकार का एक भी पद में चढ़ा दे तो उसके लिए विष्णुपुरी की प्राप्ति सुनिश्चित है।
बलि के द्वारा पूछे जाने पर भक्तराज प्रह्लाद ने भगवन विष्णु को प्रिय कुछ फूलों के नाम बतलाए हैं सुवर्णजाती, शतपुष्पा, चमेली, कुंद, कठचंपा, बाण, चंपा, अशोक, कनेर, जूही, परिभद्र, पाटला, मौलसिरी, अपराजिता, तिलक, अड़हुल, पीले रंग के समस्त फूल और तगर।
पुराणों ने कुछ नाम और गिनाए हैं जो नाम पहले आ गए हैं उनको छोड़कर शेष नाम इस प्रकार हैं अगस्त्य, आम की मंजरी, मालती, बेला, जूही, माधवी, अतिमुक्तक, यावंती, कुब्जई, करण्टक, पीली कटसरैया, धव(धातक), वाण(काली कटसरैया), बर्बरमल्लिका (बेला का भेद) और अडूसा।
विष्णुधर्मोत्तर में बतलाया गया है कि भगवान विष्णु के श्वेत पीले फूल की प्रियता प्रसिद्ध है, फिर भी लाल फूलों में दो पहरिया (बन्धुक), केसर, कुमकुम, अड़हुल के फूल उन्हें प्रिय हैं अतः इन्हें अर्पित करना चाहिए। लाल कनेर और बर्रे भी भगवान को प्रिय है। बर्रे का फूल पीला लाल होता है।
इसी तरह कुछ सफेद फूलों को वृक्षायुर्वेद लाल उगा देता है। लाल रंग होने मात्र से वे अप्रिय नहीं हो जाते, उन्हें भगवान को अर्पण करने चाहिए इस प्रकार कुछ सफेद फूलों के बीच भिन्न-भिन्न वर्ण होते हैं जैसे परिजात के बीच में लाल वर्ण का होता होता है। बीच में भिन्न वर्ण होने से भी उन्हें सफेद फूल माना जाना चाहिए और वह भगवान के अर्पण योग्य हैं।
विष्णुधर्मोत्तर के द्वारा प्रस्तुत नए नाम यह हैं -- तीसी, भूचंपक, पुरन्ध्रि, गोकर्ण और नागकर्ण।
अंत में विष्णुधर्मोत्तर ने पुष्पों के चयन के लिए एक उपाय बतलाया है कि जो फूल शास्त्रों से निषिद्ध ना हो और गंध तथा रूप से संयुक्त हो उन्हें विष्णु भगवान को अर्पण करना चाहिए।
विष्णु भगवान के लिए निषिद्ध पुष्प
विष्णु भगवान पर नीचे लिखे फूलों को चढ़ाना मना है --
आक, धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरीकर्णिका), भटकटैया, कुरैया, सेमल, शिरीष, चिचिड़ा(कोशातकी), कैथ, लान्गुली, सहिजन, कचनार, बरगद, गूलर, पाकर, पीपल और आमड़ा(कपितन)।
घर पर रोपे गए कनेर और दुपहरिया के फूल का भी निषेध है
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