चाणक्य नीति की 656 अकाट्य बातें जो आपके कभी फेल नही होने देगी के आगे..
- निकम्मे और आलसी व्यक्ति को भूख का कष्ट झेलना पड़ता है।
- निकृष्ट उपायों से प्राप्त धन की अवहेलना करने वाला व्यक्ति ही साधू होता है।
- नित्य दूसरे को सहभागी बनाए।
- निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार उद्योग-धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते है।
- निर्धन व्यक्ति की पत्नी भी उसकी बात नहीं मानती।
- निर्धन व्यक्ति की हितकारी बातों को भी कोई नहीं सुनता।
- निर्धन होकर जीने से तो मर जाना अच्छा है।
- निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए।
- निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए।
- नीच और उत्तम कुल के बीच में विवाह संबंध नहीं होने चाहिए।
- नीच की विधाएँ पाप कर्मों का ही आयोजन करती है।
- नीच लोग दूसरों की तरक्की देखकर जलते है और दूसरों के बारे में अपशब्द कहते है क्यों कि उनकी कुछ करने की औकात नहीं है।
- नीच लोगों की कृपा पर निर्भर होना व्यर्थ है।
- नीच व्यक्ति की शिक्षा की अवहेलना करनी चाहिए।
- नीच व्यक्ति के सम्मुख रहस्य और अपने दिल की बात नहीं करनी चाहिए।
- नीच व्यक्ति को अपमान का भय नहीं होता।
- नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं। नीच लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
- नीच व्यक्ति हृदयगत बात को छिपाकर कुछ और ही बात कहता है।
- नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है।
- नीम का फल कौए ही खाते है।
- न्याय विपरीत पाया धन, धन नहीं है।
- पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है।
- पति का अनुगमन करना, इहलोक और परलोक दोनों का सुख प्राप्त करना है।
- पति के वश में रहने वाली पत्नी ही व्यवहार के अनुकूल होती है।
- पराई वस्तु को पाने की लालसा नहीं रखनी चाहिए।
- पराए खेत में बीज न डाले अर्थात पराई स्त्री से सम्भोग (सेक्स) न करें।
- पराए धन को छीनना अपराध है।
- पराया व्यक्ति यदि हितैषी हो तो वह भाई है।
- परिचय हो जाने के बाद दोष नहीं छिपाते।
- परीक्षा करके विपत्ति को दूर करना चाहिए।
- परीक्षा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती है।
- पहले निश्चय करिए, फिर कार्य आरम्भ करिए।
- पहले पांच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये। अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये। जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यवहार करिए। आपके वयस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं।
- पांच साल तक पुत्र को लाड एवं प्यार से पालन करना चाहिए, दस साल तक उसे छड़ी की मार से डराए। लेकिन इसके बाद उससे मित्र के समान व्यवहार करे क्योंकि आपके बालिग पुत्र ही आपके और आप उसके सबसे अच्छे मित्र होते हैं।
- पाप कर्म करने वाले को क्रोध और भय की चिंता नहीं होती।
- पापी की आत्मा उसके पापों को प्रकट कर देती है।
- पिता को अपने बच्चों को हमेशा अच्छे-बुरे की सीख देनी चाहिए क्योंकि समझदार लोग ही समाज में सम्मान पाते हैं।
- पुत्र की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए।
- पुत्र के गुणवान होने से परिवार स्वर्ग बन जाता है।
- पुत्र के बिना स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती।
- पुत्र के सुख से बढ़कर कोई दूसरा सुख नहीं है।
- पुत्र को पिता के अनुकूल आचरण करना चाहिए।
- पुत्र को सभी विद्याओं में क्रियाशील बनाना चाहिए।
- पुत्र प्राप्ति के लिए ही स्त्री का वरण किया जाता है।
- पुत्र प्राप्ति सर्वश्रेष्ठ लाभ है। प्रायः पुत्र पिता का ही अनुगमन करता है।
- पुत्र वही है जो पिता का कहना मानें, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करें, और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।
- पुत्र से ही कुल को यश मिलता है।
- पुराना होने पर भी शाल के वृक्ष से हाथी को नहीं बाँधा जा सकता।
- पुरुष के लिए कल्याण का मार्ग अपनाना ही उसके लिए जीवन-शक्ति है।
- पुरुष को कोई भी कार्य बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए ये उसे बर्बाद कर सकता है।
- पुष्प हीन होने पर सदा साथ रहने वाला भौंरा वृक्ष को त्याग देता है।
- पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोकनिंदा का कारण बनता है।
- पृथ्वी सत्य की शक्ति द्वारा समर्थित है; ये सत्य की शक्ति ही है जो सूरज को चमक और हवा को वेग देती है; दरअसल सभी चीजें सत्य पर निर्भर करती हैं।
- प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेता विहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
- प्रकृति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है।
- प्रजा प्रिय राजा लोक-परलोक का सुख प्रकट करता है।
- प्रत्यक्ष और परोक्ष साधनों के अनुमान से कार्य की परीक्षा करें।
- प्रत्येक अवस्था में सर्वप्रथम माता का भरण-पोषण करना चाहिए।
- प्राणी अपनी देह को त्यागकर इंद्र का पद भी प्राप्त करना नहीं चाहता।
- प्रातःकाल ही दिन-भर के कार्यों के बारे में विचार कर लें।
- प्रेत भी धर्म-अधर्म का पालन करते है, दया धर्म की जन्मभूमि है।
- फूलों की इच्छा रखने वाला सूखे पेड़ को नहीं सींचता।
- फूलों की सुगंध केवल वायु की दिशा में फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है।
- बच्चों की सार्थक बातें ग्रहण करनी चाहिए।
- बल प्रयोग के स्थान पर क्षमा करना अधिक प्रशंसनीय होता है।
- बलवान से युद्ध करना हाथियों से पैदल सेना को लड़ाने के समान है।
- बहुत दिनों से परिचित व्यक्ति की अत्यधिक सेवा शंका उत्पन्न करती है।
- बहुत पुराना नीम का पेड़ होने पर भी उससे सरौता नहीं बन सकता।
- बहुत बड़ा कनेर का वृक्ष भी मूसली बनाने के काम नहीं आता।
- बहुत से गुणों को एक ही दोष ग्रस्त कर लेता है।
- बहुमत का विरोध करने वाले एक व्यक्ति का अनुगमन नहीं करना चाहिए।
- बिना अधिकार के किसी के घर में प्रवेश न करें।
- बिना उपाय के किए गए कार्य प्रयत्न करने पर भी बचाए नहीं जा सकते, नष्ट हो जाते है।
- बिना प्रयत्न किए धन प्राप्ति की इच्छा करना बालू में से तेल निकालने के समान है।
- बिना प्रयत्न के जहां जल उपलब्ध हो, वही कृषि करनी चाहिए।
- बिना विचार किये कार्य करने वालों को भाग्यलक्ष्मी त्याग देती है।
- बुद्धिमान व्यक्ति को मूर्ख, मित्र, गुरु और अपने प्रियजनों से विवाद नहीं करना चाहिए।
- बुद्धिमानों के शत्रु नहीं होते।
- बुद्धिहीन व्यक्ति निकृष्ट साहित्य के प्रति मोहित होते है।
- बुद्धिहीन व्यक्ति पिशाच अर्थात दुष्ट के सिवाय कुछ नहीं है।
- बुरे व्यक्ति पर क्रोध करने से पूर्व अपने आप पर ही क्रोध करना चाहिए।
- ब्राह्मणों का आभूषण वेद है, सभी व्यक्तियों का आभूषण धर्म है, विनय से युक्त विद्या सभी आभूषणों की आभूषण है।
- भगवान प्रतिमाओं में नहीं बसते आपकी भावनाएँ ही भगवान हैं और आपकी आत्मा ही परमात्मा का मंदिर हैं ।
- भगवान मूर्तियों में नहीं है, आपकी अनुभूति आपका ईश्वर है, आत्मा आपका मंदिर है।
- भली प्रकार से पूजने पर भी दुर्जन पीड़ा पहुंचाता है।
- भले लोग दूसरों के शरीर को भी अपना ही शरीर मानते है।
- भविष्य के अंधकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।
- भविष्य में आनी वाली मुसीबतों से बचने के लिए धन इकट्ठा करना चाहिए, यहां तक कि अमीरों को भी, क्योंकि जब धन साथ छोड़ता है तो संगठित धन भी तेज़ी से घटने लगता है।
- भाग्य का शमन शांति से करना चाहिए अर्थात मनुष्य के कार्य में आई विपत्ति को कुशलता से ठीक करना चाहिए।
- भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुखदायी हो जाता है।
- भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है।
- भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।
- भूखा व्यक्ति अखाद्य को भी खा जाता है।
- मंत्रणा की गोपनियता को सर्वोत्तम माना गया है।
- मंत्रणा के समय कर्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
- मंत्रणा को गुप्त रखने से ही कार्य सिद्ध होता है।
- मंत्रणा रूप आँखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है।
- मछवारा जल में प्रवेश करके ही कुछ पाता है।
- मधुर व प्रिय वचन होने पर भी अहितकर वचन नहीं बोलने चाहिए।
- मन में सोचे हुए काम को किसी के सामने जाहिर नहीं करना चाहिए बल्कि उस काम को अपने मन में रखते हुए पूरा कर देना चाहिए।
- मनुष्य कर्मों से महान बनता हैं जन्म से नहीं।
- मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है। दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।
- मनुष्य के चेहरे पर आए भावों को देवता भी छिपाने में अशक्त होते है।
- मनुष्य को ऐसे देश में बिलकुल भी नहीं रहना चाहिए जहाँ पर रोजगार की सुविधा न हो, आदर न हो, शुभचिंतक न हो तथा अंततः शिक्षा प्राप्त करने के स्त्रोत न हों।
- मनुष्य को ऐसे स्थान पर कभी नहीं रहना चाहिए जहाँ के लोग वहाँ के क़ानून नहीं मानते, जहाँ के लोगों में लज्जा न हो, जहाँ के लोगों में दान पुण्य के प्रति आस्था न हो तथा जहाँ पर कला न हो। ऐसे स्थानों में रहना एक निर्जन वन में रहने से भी अधिक खतरनाक होता है।
- मनुष्य को विभिन्न स्वजनों की पहचान विभिन्न समय में होती है। पत्नी की परीक्षा धनाभाव में, मित्र की परीक्षा आवश्यकता के समय में, सगे सम्बंधियों की परीक्षा संकट काल में तथा नौकर की परीक्षा मालिक द्वारा दिये गये अतिआवश्यक कार्य अथवा गुप्त कार्य के समय होती है। ऐसे समय में यदि मनुष्य को इन लोगों की सहायता नहीं मिल पाती तो ये लोग उस मनुष्य के लिए व्यर्थ हैं।
- मन्त्रणा की सम्पति से ही राज्य का विकास होता है।
- मर्यादा का कभी उल्लंघन न करें। विद्वान और प्रबुद्ध व्यक्ति समाज के रत्न है।
- मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
- मलिछ अर्थात नीच की भाषा कभी शिक्षा नहीं देती।
- मलिछ अर्थात नीच व्यक्ति की भी यदि कोई अच्छी बात हो तो अपना लेना चाहिए।
- महाजन द्वारा अधिक धन संग्रह प्रजा को दुःख पहुँचाता है।
- महात्मा को पराए बल पर साहस नहीं करना चाहिए।
- महान व्यक्तियों का उपहास नहीं करना चाहिए। कार्य के लक्षण ही सफलता-असफलता के संकेत दे देते है।
- मांस खाना सभी के लिए अनुचित है।
- माता द्वारा प्रताड़ित बालक माता के पास जाकर ही रोता है।
- मित्रता अपने स्तर के मनुष्य के साथ ही बेहतर होता है।
- मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है।
- मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है।
- मूर्ख लोगों का क्रोध उन्हीं का नाश करता है। सच्चे लोगो के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं।
- मूर्ख व्यक्ति उपकार करने वाले का भी अपकार करता है। इसके विपरीत जो इसके विरुद्ध आचरण करता है, वह विद्वान कहलाता है।
- मूर्ख व्यक्ति को अपने दोष दिखाई नहीं देते, उसे दूसरे के दोष ही दिखाई देते हैं।
- मूर्ख का कोई मित्र नहीं है।
- मूर्ख के लिए किताबों का उतना ही मौल होता हैं जितना किसी नेत्रहीन के लिए दर्पण का ।
- मूर्ख लोग कार्यों के मध्य कठिनाई उत्पन्न होने पर दोष ही निकाला करते है।
- मूर्खों को समझाना, चरित्रहीन स्त्रियों की चिंता करना तथा एक निराशा वादी इंसान के साथ समय व्यतीत करना बेवकूफी है, क्योंकि मूर्ख ज्ञानवर्धक बातें नहीं समझ पाते, चरित्रहीन स्त्रियाँ हज़ारों पाबंदियों के बाद भी अपने मन की ही करती हैं, तथा एक निराशा वादी मनुष्य अपने मित्र को किसी भी मूल्य पर खुश नहीं कर सकता है।
- मूर्खों से विवाद नहीं करना चाहिए। मूर्ख से मूर्खों जैसी ही भाषा बोलें।
- मृग तृष्णा जल के समान है।
- मृत व्यक्ति का औषधि से क्या प्रयोजन।
- मृतिका पिंड (मिट्टी का ढेला) भी फूलों की सुगंध बढ़ा देता है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवशय पड़ता है जैसे जिस मिट्टी में फूल खिलते है उस मिट्टी से भी फूलों की सुगंध आने लगती है।
- मृत्यु भी धर्म पर चलने वाले व्यक्ति की रक्षा करती है।
- यदि आदमी के पास प्रसिद्धि है तो भला उसे और किसी श्रृंगार की क्या आवश्यकता है।
- यदि आप पर मुसीबत आती नहीं है तो उससे सावधान रहे, लेकिन यदि मुसीबत आ जाती है तो किसी भी तरह उससे छुटकारा पाए।
- यदि किसी का स्वभाव अच्छा है तो उसे किसी और गुण की क्या जरूरत है ?
- यदि न खाने योग्य भोजन से पेट में बदहजमी हो जाए तो ऐसा भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
- यदि माता दुष्ट है तो उसे भी त्याग देना चाहिए।
- यदि माता दुष्ट है तो उसे भी त्याग देना चाहिए।
- यदि स्वयं के हाथ में विष फैल रहा है तो उसे काट देना चाहिए।
- यदि स्वयं के हाथ में विष फ़ैल रहा है तो उसे काट देना चाहिए।
- यश शरीर को नष्ट नहीं करता।
- यह संसार आशा के सहारे बंधा है।
- याचक कंजूस-से- कंजूस धनवान को भी नहीं छोड़ते।
- युवाओं को किसी भी चीज का लालच नहीं करना चाहिए।
- युवावस्था के छात्र जीवन को तपस्वी की तरह माना गया है। चाणक्य कहते हैं युवा छात्र को स्वादिष्ट भोजन की लालसा छोड़ देना चाहिए और स्वास्थ्यवर्धक संतुलित आहार लेने की कोशिश करनी चाहिए।
- योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।
- योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है। एक अकेला पहिया नहीं चला करता।
- रत्न कभी खंडित नहीं होता अर्थात विद्वान व्यक्ति में कोई साधारण दोष होने पर उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए।
- राज अग्नि दूर तक जला देती है।
- राज पुरुषों से संबंध बनाए रखें।
- राजकुल में सदैव आते-जाते रहना चाहिए।
- राजतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते है।
- राजतंत्र से संबंधित घरेलू और वाह्य, दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा जाता है।
- राजदासी से कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए।
- राजधन की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखना चाहिए।
- राजपरिवार से द्वेष अथवा भेदभाव नहीं रखना चाहिए।
- राजसेवा में डरपोक और निकम्मे लोगों का कोई उपयोग नहीं होता।
- राजा अपने गुप्तचरों द्वारा अपने राज्य में होने वाली दूर की घटनाओं को भी जान लेता है।
- राजा अपने बल-विक्रम से धनी होता है।
- राजा की आज्ञा का कभी उल्लंघन न करें।
- राजा की आज्ञा से सदैव डरते रहे।
- राजा की भलाई के लिए ही नीच का साथ करना चाहिए।
- राजा के दर्शन देने से प्रजा सुखी होती है।
- राजा के दर्शन न देने से प्रजा नष्ट हो जाती है।
- राजा के पास खाली हाथ कभी नहीं जाना चाहिए।
- राजा के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए।
- राजा के सेवकों का कठोर होना अधर्म माना जाता है।
- राजा से बड़ा कोई देवता नहीं।
- राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनों का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है।
- राज्य का आधार अपनी इन्द्रियों पर विजय पाना है।
- राज्य को नीतिशास्त्र के अनुसार चलना चाहिए।
- राज्य नीति का संबंध केवल अपने राज्य को समृद्धि प्रदान करने वाले मामलों से होता है।
- रात्रि में नहीं घूमना चाहिए।
- रिश्तेदारों की परख तब करें जब आप किसी मुसीबत में घिरे हों।
- रूप के अनुसार ही गुण होते है।
- रोग शत्रु से भी बड़ा है।
- लाड-प्यार से बच्चों में गलत आदतें ढलती है, उन्हें कड़ी शिक्षा देने से वे अच्छी आदतें सीखते है, इसलिए बच्चों को जरूरत पड़ने पर फिटकारें, ज्यादा लाड ना करें।
- लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है।
- लालच युवाओं के अध्ययन के मार्ग में स बसे बड़ा बाधक माना जाता है।
- लोक चरित्र को समझना सर्वज्ञता कहलाती है।
- लोक व्यवहार शास्त्रों के अनुकूल होना चाहिए।
- लोक-व्यवहार में कुशल व्यक्ति ही बुद्धिमान है।
- लोभ द्वारा शत्रु को भी भ्रष्ट किया जा सकता है।
- लोभ बुद्धि पर छा जाता है, अर्थात बुद्धि को नष्ट कर देता है।
- लोभी और कंजूस स्वामी से कुछ पाना जुगनू से आग प्राप्त करने के समान है।
- लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए।
- लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए।
- वन की अग्नि चंदन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते हैं।
- वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।
- वह चीज जो दूर दिखाई देती है, जो असंभव दिखाई देती है, जो हमारी पहुँच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल हो सकती है यदि हम मेहनत करते है, क्योंकि मेहनत से बढ़कर कुछ नहीं।
- वह जो अपने परिवार से अत्यधिक जुड़ा हुआ है, उसे भय और चिंता का सामना करना पड़ता है, क्योंकि सभी दुखों कि जड़ लगाव है। इसलिए खुश रहने कि लिए लगाव छोड़ देना चाहिए।
- वह जो हमारे चिंतन में रहता है वह करीब है, भले ही वास्तविकता में वह बहुत दूर ही क्यों ना हो; लेकिन जो हमारे ह्रदय में नहीं है वो करीब होते हुए भी बहुत दूर होता है।
- वाहनों पर यात्रा करने वाले पैदल चलने का कष्ट नहीं करते।
- विकृति प्रिय लोग नीचता का व्यवहार करते है।
- विचार अथवा मंत्रणा को गुप्त न रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है।
- विचार न करके कार्य करने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है अर्थात परीक्षा किये बिना कार्य करने से कार्य विपत्ति में पड़ जाता है।
- विद्या अर्जन करना यह एक कामधेनु के समान है जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है, वह विदेश में माता के समान रक्षक एवं हितकारी होती है। इसीलिए विद्या को एक गुप्त धन कहा जाता है।
- विद्या से विद्वान की ख्याति होती है।
- विद्या ही निर्धन का धन है, विद्या को चोर भी चुरा नहीं सकता।
- विनय रहित व्यक्ति का ताना देना व्यर्थ है।
- विनाश का उपस्थित होना सहज प्रकृति से ही जाना जा सकता है।
- विनाश काल आने पर आदमी अनीति करने लगता है।
- विनाश काल आने पर दवा की बात कोई नहीं सुनता।
- विवाद के समय धर्म के अनुसार कार्य करना चाहिए।
- विवेकहीन व्यक्ति महान ऐश्वर्य पाने के बाद भी नष्ट हो जाते है।
- विशेष कार्य को (बिना आज्ञा भी) करें।
- विशेष स्थिति में ही पुरुष सम्मान पाता है। सदैव आर्यों (श्रेष्ठ जन) के समान ही आचरण करना चाहिए।
- विशेषज्ञ व्यक्ति को स्वामी का आश्रय ग्रहण करना चाहिए।
- विश्वास की रक्षा प्राण से भी अधिक करनी चाहिए।
- विश्वासघाती की कहीं भी मुक्ति नहीं होती।
- विष प्रत्येक स्थिति में विष ही रहता है।
- विष में यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।
- वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
- वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है।
- वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगों के प्रति सहृदय है. अच्छे लोगों के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगों से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छपाते. दुश्मनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ों के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है।
- वेद से बाहर कोई धर्म नहीं है।
- वेश्याएं निर्धनों के साथ नहीं रहतीं, नागरिक कमजोर संगठन का समर्थन नहीं करते, और पक्षी उस पेड़ पर घोंसला नहीं बनाते जिस पे फल ना हों।
- वैभव के अनुरूप ही आभूषण और वस्त्र धारण करें।
- वो जिसका ज्ञान बस किताबों तक सीमित है और जिसका धन दूसरों के कब्ज़े मैं है, वो जरूरत पड़ने पर ना अपना ज्ञान प्रयोग कर सकता है ना धन।
- व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है; और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है।
- व्यक्ति के मन में क्या है, यह उसके व्यवहार से प्रकट हो जाता है।
- व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए।
- व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।
- व्यसनी व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही रुक जाता है।
- शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
- शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करें।
- शक्तिहीन को बलवान का आश्रय लेना चाहिए।
- शत्रु का पुत्र यदि मित्र है तो उसकी रक्षा करनी चाहिए।
- शत्रु की जीविका भी नष्ट नहीं करनी चाहिए।
- शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।
- शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाएं रखें।
- शत्रु की निंदा सभा के मध्य नहीं करनी चाहिए।
- शत्रु की बुरी आदतों को सुनकर कानों को सुख मिलता है।
- शत्रु के छिद्र (दुर्बलता) पर ही प्रहार करना चाहिए।
- शत्रु के प्रयत्नों की समीक्षा करते रहना चाहिए।
- शत्रु दण्ड नीति के ही योग्य है।
- शत्रु द्वारा किया गया स्नेहपूर्ण व्यवहार भी दोषयुक्त समझना चाहिए।
- शत्रु भी उत्साही व्यक्ति के वश में हो जाता है।
- शत्रु हमेशा छिद्र (कमजोरी) पर ही प्रहार करते है।
- शत्रुओं के गुणों को भी ग्रहण करना चाहिए।
- शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें।
- शराबी के हाथ में थमें दूध को भी शराब ही समझा जाता है।
- शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है।
- शांत व्यक्ति सबको अपना बना लेता है।
- शांतिपूर्ण देश में ही रहें।
- शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
- शास्त्र का ज्ञान आलसी को नहीं हो सकता।
- शास्त्र शिष्टाचार से बड़ा नहीं है।
- शास्त्रों के ज्ञान से इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है।
- शास्त्रों के न जानने पर श्रेष्ठ पुरुषों के आचरणों के अनुसार आचरण करें।
- शिकार परस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।
- शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है।
- शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है।
- शिष्य को गुरु के वश में होकर कार्य करना चाहिए।
- शुद्ध किया हुआ नीम भी आम नहीं बन सकता।
- श्रेष्ठ और सुहृदय जन अपने आश्रित के दुःख को अपना ही दुःख समझते है।
- श्रेष्ठ व्यक्ति अपने समान ही दूसरों को मानता है।
- श्रेष्ठ स्त्री के लिए पति ही परमेश्वर है।
- संकट में केवल बुद्धि ही काम आती है।
- संकट में बुद्धि ही काम आती है।
- संकटकाल में जो व्यक्ति आपकी सहृदयता से सहायता करता है, वही सच्चे अर्थों में आपका मित्र और भाई होता है। अतः संकट काल में जिन लोगों से सहायता प्राप्त हो उन्हें किसी भी मूल्य पर नहीं भूलना चाहिए।
- संतान को जन्म देने वाली स्त्री पत्नी कहलाती है।
- संतुलित दिमाग जैसी कोई सादगी नहीं है, संतोष जैसा कोई सुख नहीं है, लोभ जैसी कोई बीमारी नहीं है, और दया जैसा कोई पुण्य नहीं है।
- संधि और एकता होने पर भी सतर्क रहे।
- संधि करने वालो में तेज़ ही संधि का हित होता है।
- संपन्न और दयालु स्वामी की ही नौकरी करनी चाहिए।
- संबंधों का आधार उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है।
- संयोग से तो एक कीड़ा भी स्थिति में परिवर्तन कर देता है।
- संसार में निर्धन व्यक्ति का आना उसे दुखी करता है।
- संसार में लोग जान-बूझकर अपराध की ओर बढ़ते हैं।
- सज्जन की राय का उल्लंघन न करें।
- सज्जन को बुरा आचरण नहीं करना चाहिए।
- सज्जन तिल बराबर उपकार को भी पर्वत के समान बड़ा मानकर चलता है।
- सज्जन थोड़े-से उपकार के बदले बड़ा उपकार करने की इच्छा से सोता भी नहीं।
- सज्जन दुर्जनों में विचरण नहीं करते।
- सत वाणी से स्वर्ग प्राप्त होता है।
- सत्य पर संसार टिका हुआ है।
- सत्य पर ही देवताओं का आशीर्वाद बरसता है।
- सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे नहीं कहना चाहिए।
- सत्य से बढ़कर कोई तप नहीं।
- सत्य से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
- सत्संग से स्वर्ग में रहने का सुख मिलता है।
- सदाचार से मनुष्य का यश और आयु दोनों बढ़ती है।
- सदाचार से शत्रु पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
- सबसे ज्यादा दुख दाई बात किसी दूसरे के घर जाकर उसका अहसान लेना है।
- सबसे बड़ा गुरु मन्त्र है : कभी भी अपने राज़ दूसरों को मत बताएं, ये आपको बर्बाद कर देगा।
- सभा के मध्य जो दूसरों के व्यक्तिगत दोष दिखाता है, वह स्वयं अपने दोष दिखाता है।
- सभा के मध्य शत्रु पर क्रोध न करें।
- सभी अशुभों का क्षेत्र स्त्री है। स्त्रियों का मन क्षणिक रूप से स्थिर होता है।
- सभी पहाड़ियों में मणि मुक्ता नहीं होती, सभी स्थान घर नहीं होता और सभी घर आदर्श मनुष्यों के लिए उत्तम नहीं होता। सभी हाथी के पास गज मुक्ता मणि नहीं होती तथा सभी जंगलों में चन्दन का पेड़ नहीं पाया जाता है। तात्पर्य ये है कि सभी मनुष्य आदर्श मनुष्य नहीं होते हैं।
- सभी प्रकार की सम्पत्ति का सभी उपायों से संग्रह करना चाहिए।
- सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।
- सभी मार्गों से मंत्रणा की रक्षा करनी चाहिए।
- समय का ज्ञान न रखने वाले राजा का कर्म समय के द्वारा ही नष्ट हो जाता है।
- समय का ध्यान नहीं रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में भ्रम में रहता है।
- समय को समझने वाला कार्य सिद्ध करता है।
- समस्त कार्य पूर्व मंत्रणा से करने चाहिए।
- समस्त दुखों को नष्ट करने की औषधि मोक्ष है।
- समस्त संसार धन के पीछे लगा है।
- समुद्र के पानी से प्यास नहीं बुझती।
- समृद्धता से कोई गुणवान नहीं हो जाता।
- सर्प, नृप, शेर, डंक मारने वाले ततैया, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्तों, और एक मूर्ख: इन सातों को नीद से नहीं उठाना चाहिए।
- सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत।
- सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत।
- साधारण दोष देखकर महान गुणों को त्याज्य नहीं समझना चाहिए।
- साधारण पुरुष परम्परा का अनुसरण करते है।
- साधु पुरुष किसी के भी धन को अपना नहीं मानते है।
- सामर्थ्य के अनुसार ही दान दें।
- सारस की तरह एक बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए और अपने उद्देश्य को स्थान की जानकारी, समय और योग्यता के अनुसार प्राप्त करना चाहिए।
- साहसी लोगों को अपना कर्तव्य प्रिय होता है।
- सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।
- सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।
- सीधे और सरल व्यक्ति दुर्लभता से मिलते है
- सुख और दुःख में समान रूप से सहायक होना चाहिए।
- सुख का आधार धर्म है।
- सेवक को तब परखें जब वह काम ना कर रहा हो, रिश्तेदार को किसी कठिनाई में, मित्र को संकट में, और पत्नी को घोर विपत्ति में।
- सेवक को स्वामी के अनुकूल कार्य करने चाहिए।
- सेवकों को अपने स्वामी का गुणगान करना चाहिए।
- सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
- सौंदर्य अलंकारों अर्थात आभूषणों से छिप जाता है।
- सौभाग्य ही स्त्री का आभूषण है।
- स्तुति करने से देवता भी प्रसन्न हो जाते है।
- स्त्रियाँ घर में ही सुरक्षित होती हैं।
- स्त्री का आभूषण लज्जा है।
- स्त्री का नाम सभी अशुभ क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है।
- स्त्री का निरीक्षण करने में आलस्य न करें।
- स्त्री के प्रति आसक्त रहने वाले पुरुष को न स्वर्ग मिलता है, न धर्म-कर्म।
- स्त्री के बंधन से छूटना अथवा मोक्ष पाना अत्यंत कठिन है।
- स्त्री के बंधन से मोक्ष पाना अति दुर्लभ है।
- स्त्री पर जरा भी विश्वास न करें।
- स्त्री बिना लोहे की बड़ी है।
- स्त्री भी नपुंसक व्यक्ति का अपमान कर देती है।
- स्त्री रत्न से बढ़कर कोई दूसरा रत्न नहीं है, रत्नों की प्राप्ति बहुत कठिन है अर्थात श्रेष्ठ नर और नारियों की प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ है।
- स्नेह करने वालों का रोष अल्प समय के लिए होता है।
- स्वजनों की बुरी आदतों का समाधान करना चाहिए।
- स्वजनों के अपमान से मनस्वी दुःखी होते है।
- स्वजनों को तृप्त करके शेष भोजन से जो अपनी भूख शांत करता है, वह अमृत भोजी कहलाता है।
- स्वभाव का अतिक्रमण अत्यंत कठिन है।
- स्वयं अशुद्ध व्यक्ति दूसरे से भी अशुद्धता की शंका करता है।
- स्वयं को अमर मानकर धन का संग्रह करें, धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है।
- स्वर्ग की प्राप्ति शाश्वत अर्थात सनातन नहीं होती।
- स्वर्ग-पतन से बड़ा कोई दुःख नहीं है।
- स्वाभिमानी व्यक्ति प्रतिकूल विचारों को सम्मुख रखकर दोबारा उन पर विचार करे।
- स्वामी के क्रोधित होने पर स्वामी के अनुरूप ही काम करें।
- स्वामी द्वारा एकांत में कहे गए गुप्त रहस्यों को मूर्ख व्यक्ति प्रकट कर देते हैं।
- स्वार्थ पूर्ति हेतु दी जाने वाली भेंट ही उनकी सेवा है।
- हंस पक्षी श्मशान में नहीं रहता अर्थात ज्ञानी व्यक्ति मूर्ख और दुष्ट व्यक्तियों के पास बैठना पसंद नहीं करते।
- हम अपना हर कदम फूँक-फूँक कर रखे।
- हम वही काम करें जिसके बारे हम सावधानीपूर्वक सोच चुके है।
- हमें भूत के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए, विवेक वान व्यक्ति हमेशा वर्तमान में जीते हैं।
- हर एक दोस्ती के पीछे कोई न कोई स्वार्थ होता हैं कोई भी दोस्ती स्वार्थ के बिना नहीं होती यह एक कड़वा सच हैं।
- हर चीज़ की ‘अति’ बुरी होती है, क्योंकि अत्यधिक सुंदरता के कारण सीताहरण हुआ, अत्यंत घमंड के कारण रावन का अंत हुआ, अत्यधिक दान देने के कारण रजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा, अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए।
- हर पल अपने प्रभुत्व को बनाए रखना ही कर्तव्य है।
- हर मित्रता के पीछे कोई ना कोई स्वार्थ होता है, ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमें स्वार्थ ना हो, यह कड़वा सच है।
- हाथ में आए शत्रु पर कभी विश्वास न करें।
- हे बुद्धिमान लोगों ! अपना धन उन्हीं को दो जो उसके योग्य हों और किसी को नहीं। बादलों के द्वारा लिया गया समुद्र का जल हमेशा मीठा होता है।
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