गंगा भारत की सबसे पवित्र नदी है, यह उत्तराखंड राज्य के गंगोत्री नामक स्थान से निकलते हुए गढ़मुकेश्वर, हरिद्वार, ऋषिकेश, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, पटना सहित विभिन्न नगरों से निकलते हुए गंगासागर नामक तीर्थ स्थान पर समुद्र से मिल जाती है कई महत्वपूर्ण स्थानों से होकर गुजरती है। हिन्दू धर्म में इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है और मां का स्थान प्राप्त है। मान्यता है कि राजा भगीरथ के पूर्वजों को श्राप मिला था, जिसकी वजह से उन्होंने गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता गंगा ने उन्हें दर्शन दिए। राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न ने कहा मां गंगा ने कहा कि जिस समय मैं पृथ्वीतल पर गिरूं, उस समय मेरे वेग को कोई संभालने वाला होना चाहिए। ऐसा न होने पर पृथ्वी को फोड़कर मैं रसातल में चली जाऊंगी। इसके बाद भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव प्रसन्न होकर गंगाजी को अपनी जटाओं में रोकने के लिए तैयार हो जाते हैं। गंगा को अपनी जटाओं में रोककर एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड़ देते हैं। इस प्रकार गंगा के जल से भगीरथ अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल हो जाते हैं। पृथ्वी पर आने से पहले, मां गंगा भगवान ब्रह्मा के कमंडल में रहती थीं। मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा का जल पुण्य देता है और पापों का नाश करता है।
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है, इस लिए इसे जेठ का दशहरा भी कहा जाता है। स्कंदपुराण के अनुसार, गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को निकट की किसी भी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। इस दिन ध्यान व दान करना चाहिए। इससे सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यह मान्यता है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में भागीरथी की तपस्या के फलस्वरूप स्वर्ग से गंगा का धरती पर आगमन हुआ था। इसे हम गंगावतरण के नाम से भी जानते हैं। यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस दिन गंगा में स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप-उपासना और उपवास किया जाय तो समस्त पाप दूर होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान विष्णु के चरणों से निकली और शिव की जटाओं में लिपटी गंगा के जल में डुबकी लगाने से मनुष्य को विष्णु और शिव का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है। इस दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल प्राप्त होता है। गंगा दशहरा के दिन सभी गंगा मंदिरों में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। मोक्षदायिनी मां गंगा की पूजा-अर्चना की जाती है। गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालु जिस भी वस्तु का दान करें उनकी संख्या दस होनी चाहिए। दस वस्तुओं से ही पूजन भी करना चाहिए। गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी दस प्रकार के दोषों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। इतना ही नहीं अवैध संबंध, अकारण जीवों को कष्ट पहुंचाने, असत्य बोलने व धोखा देने से जो पाप लगता है, वह पाप भी गंगा 'दसहरा' के दिन गंगा स्नान से धुल जाता है।
गंगा पूजन की विधि
गंगा दशहरा के दिन गंगा तटवर्ती प्रदेश में अथवा सामर्थ्य न हो तो समीप के किसी भी जलाशय या घर के शुद्ध जल से स्नान करके सुवर्णादि के पात्र में त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावयवभूषित, रत्नकुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रादि से सुशोभित तथा वर और अभयमुद्रा से युक्त श्रीगंगा जी की प्रशान्त मूर्ति अंकित करें। अथवा किसी साक्षात् मूर्ति के समीप बैठ जाएं। फिर 'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः' से आवाहनादि षोडषोपचार पूजन करें। इसके उपरान्त 'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा' से हवन करें। तत्पश्चात 'ऊँ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं (वाक्-काम-मायामयि) हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा।' इस मंत्र से पांच पुष्पाञ्जलि अर्पण करके गंगा को भूतल पर लाने वाले भगीरथ का और जहाँ से वे आयी हैं, उस हिमालय का नाम- मंत्र से पूजन करें। फिर 10 फल, 10 दीपक और 10 सेर तिल- इनका 'गंगायै नमः' कहकर दान करें। साथ ही घी मिले हुए सत्तू और गुड़ के पिण्ड जल में डालें। सामर्थ्य हो तो कच्छप, मत्स्य और मण्डूकादि भी पूजन करके जल में डाल दें। इसके अतिरिक्त 10 सेर तिल, 10 सेर जौ, 10 सेर गेहूँ 10 ब्राह्मण को दें। इतना करने से सब प्रकार के पाप समूल नष्ट हो जाते हैं और दुर्लभ-सम्पत्ति प्राप्त होती है।
जेठ/गंगा दशहरा स्नान कब है - 1 जून 2020
गंगा दशहरा कब मनाया जाता है - प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है।
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