विष्णु सहस्रनाम

 Vishnu Sahasranamam
विष्णु सहस्रनाम भगवान विष्णु के हजार नामों से युक्त एक प्रमुख स्तोत्र है। इसके अलग अलग संस्करण महाभारत, पद्म पुराण व मत्स्य पुराण में उपलब्ध हैं। स्तोत्र में दिया गया प्रत्येक नाम श्री विष्णु के अनगिनत गुणों में से कुछ को सूचित करता है। विष्णु जी के भक्त प्रातः पूजन में इसका पठन करते है।

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विष्णुसहस्ननाम दर्शन
अनुशासन पर्व के 449 वे अध्याय में श्री विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र के अन्तर्गत युधिष्ठिर व भीष्म के मध्य वार्ता का उल्लेख किया गया है जिसके अन्तर्गत युधिष्ठिर ने भीष्म से छः प्रश्न किये हैं कि इस सम्पूर्ण जगत में एक ही देव कौन है व पृथ्वी लोक का परम आश्रय स्थान कौन सा है? किस देवता का पूजन, कीर्तन भजन तथा स्तुति करने से मनुष्य कल्याण की प्राप्ति कर सकता है? सभी धर्मों में परम श्रेष्ठ धर्म कौन सा है? और किसका जप करने से मनुष्य इस संसार रूपी बंधन से मुक्त हो जाता है?
युधिष्ठिर के उपर्युक्त प्रश्नों को सुनकर भीष्म ने कहा है कि इस चल-अचल संसार में देवों के देव, अनन्त तथा श्रेष्ठ पुरुषोत्तम का सहस्र नामों से निरन्तर जागरूक व एकाग्रचित्त रहकर स्तुति करने से मनुष्य इस जगत के सब दुखों से पार हो जाता है। जो मनुष्य एकाग्रचित्त व उस परम शक्ति की भक्ति में लीन होकर उसका ध्यान, स्तवन व नमस्कार करता है वही इस मोहरूपी संसार से मुक्ति पा सकता है।
परमपिता देव की स्तुति की प्रशंसा करते हुए भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि ब्राह्मणों का हित करने वाले, सभी धर्मों के विद्वान, भूत, वर्तमान, भविष्य को जानने वाले, एवं इस सम्पूर्ण संसार के कारण रूप परमेश्वर का निरन्तर जप करंने से मनुष्य समस्त कष्टों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। सभी मनुष्यों को भक्ति पूर्वक गुण संकीर्तन तथा स्तुतियों से अर्चन करना चाहिए। ईश्वर की महिमा का वर्णन करते हुए भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि महान आत्म स्वरूप विष्णु ऊँ० सच्चिदानंद स्वरूप, विराट रूप वाले, सब जगह व्याप्त, वषट्कार (जिनके उद्देश्य से यज्ञ में वषट्‌ किया की जाती है ऐसे यज्ञ स्वरूप) भूत, भविष्य और वर्तमान के स्वामी, सम्पूर्ण भूतों की रचना करने वाले, सम्पूर्ण गुणों से युक्त, सम्पूर्ण भूतों का पालन पोषण करने वाले, भाव स्वरूप, सम्पूर्ण भूतों के आत्मा, भूतों का उत्पादन एवं वृद्धि करने वाले है।
वह पूतात्मा (पवित्रात्मा), परमात्मा (परम श्रेष्ठ नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव) मुक्त पुरुषों की सबसे अच्छी गति, करने वाले, अव्यय, पुरुष, (शरीर में शयन करने वाले), क्षेत्रज्ञ (समस्त शरीर को पूर्णतया जानने वाले), एवं अक्षर (कभी क्षीण न होने वाले) हैं। वह सर्वरूप, सारी प्रजा का प्रलयकाल में संहार करने वाले, तीनों गुणों से परे कल्याण स्वरूप (शिव), स्थिर, भूतों के आदि कारण, प्रलयकाल में सब प्राणियों के लीन होने के लिए अविनाशी स्थान रूप, अपनी इच्छा सेभली प्रकार प्रकट होने वाले, समस्त भोक्‍ताओं को फल देने वाले, सबका भरण करने वाले, दिव्य जन्म वाले, प्रभु (सबके स्वामी) एवं ईश्वर (उपाधि रहित ऐश्वर्य वाले) हैं।
उन्हें ईशान (सर्व भूतों के नियन्ता), सबके प्राण दाता स्वरूप, प्रजापति ईश्वर विकमी, शांक धनुष धारण करने वाले, उत्पन्न बुद्धिमान, गरूड पक्षी द्वारा गमन करने वाले, कम विस्तार के कारण, सबसे उत्तकृष्ट, किसी से भी अपमानित न हो सकने वाले, कृतज्ञ, पुरूष-प्रयत्न के आधार रूप, अपनी ही महिमा में स्थिति कहा गया है। वे अज (जन्म से रहित), सर्वेश्वर, नित्य सिद्ध, सब. भूतों के आदि कारण, अपनी स्थिति से कभी त्रिकाल में भी च्युत न होने वाले, धर्म और वाराहरूप, सबको न दिखायी देने वाले, एवं विभिन्‍न प्रकार के शास्त्रोक्त योगों (साधनों) के द्वारा प्राप्त होने वाले हैं। समस्त लोंको के अधियति, देवताओं के अध्यक्ष, कार्य के अनुरूप फल देने वाले, धर्म और अधर्म का निर्णय करने वाले धर्माध्यक्ष, कार्यरूप से कृत और कारण रूप से अकृत, ब्रह्मा, विष्णु, महेश और निराकार ब्रम्हा इन चार स्वरूपों वाले, उत्पत्ति, स्थिति, नाश और रक्षारूप इन चार व्यूहों को रचने वाले, चार दाढों वाले नरसिंह रूप, चार भुजाओं वाले भगवान विष्णु हैं।
वे अतीन्द्रिय, सदा योग में स्थित रहने वाले, महान मायावी, महान - बुद्धि वाले, महान वीर्य वाले, महान सामर्थ्यवान, महान तेजवाले, जिनके स्वरूप का वर्णन नही किया जा सकता, ऐश्वर्य से युक्त, जिनके स्वरूप का कोई अनुमान न लगाया जा सके ऐसी आत्मा वाले, महान महान पर्वतों (मन्दराचल एवं गोवर्धन) को धारण करने वाले है। वे महान धनुर्धारी, पृथ्वी का पालन पोषण करने वाले, श्री युक्त, सज्जनों को आश्रय देने वाले, किसी के बन्धन में न बंधने वाले, देवताओं को आनन्दित करने वाले, वेदों के द्वारा वश में रहने वाले, वेदवाणी को जानने वालों के स्वामी हैं।
वे सब विद्याओं का उपदेश करने वाले गुरू, ब्रहमा आदि को भी ब्रहम विद्या प्रदान करने वाले, सत्य स्वरूप, विश्वात्मा, सहस्त्राक्ष, सहस्त्र सिर वाले विष्णु (सर्वव्यापी) सभी शोको से रहित, संसार के भवसागर से तारने वाले, जन्म-मृत्यु के भय से तारने वाले, शूरवीर, श्री वसुदेव जी के पुत्र, समस्त जीवों के कर्ता-धर्ता, सबके अनुकूल, सैकड़ों बार अवतरित होने वालें, अपने हाथ में कमल धारण करने वालें, एवं कमल के समान दृष्टि वाले हैं।“ सभी मनुष्यों को अज्ञानता की नींद में सुलाने वाले, पूरी तरह से स्वतन्त्र, हर जगह व्याप्त रहने वाले, हर युग में अनेक रूप धारण करने वाले, भिन्‍न-भिन्‍न अवतारों में अनेक कर्म करने वाले, सबके निवास स्थान, भक्तों के प्रति स्नेह रखने वाले, वत्सों का पालन करने वालें, रत्नों को अपने गर्भ में धारण करने वालें, धनों के स्वामी हैं।
भगवान विष्णु महावाराह रूप धारण करने वाले, नष्ट हुई पृथ्वी को पुनः प्राप्त कर लेने वाले, सुसज्जित सेना के सहित युद्ध में गमन करने वाले, सोने का बाजूबंद धारण करने वाले, हृदय के भीतर छिपे रहने वाले, गम्भीर स्वभाव वाले, जिनके स्वरूप में प्रविष्ट होना अत्यन्त कठिन हो ऐसे, वाणी और मन से जानने में न आने वाले, चक और गदा आदि को धारण करने वाले हैं। उत्पत्ति और प्रलय, आना और जाना तथा विद्या और अविद्या को जानने वाले, अपने भक्तों का प्रेम बढ़ाने के लिए उनके ऐश्वर्य का हरण करने वाले, परम आनन्द देने वाले, वनमाला धारण करने वाले, हल धारण करने वाले, अदिति पुत्र, वामन भगवान, सूर्यमण्डंल में विराजमान ज्योतिः स्वरूप, सभी कठिनाईयों को सहन करने वाले, सर्वश्रेष्ठ गति स्वरूप हैं।
भक्तों को श्री देने वाले, लक्ष्मी के नाथ, श्री लक्ष्मी जी के अन्दर नित्य निवास करने वाले, सारे श्रियों के आधार, कर्म के अनुसार मनुष्य को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले, श्री को धारण करने वाले, भक्तों के लिए श्री का विस्तार करने वाले, कल्याण स्वरूप, सब प्रकार की श्रियों से युक्त, तीनों लोकों के आधघार हैं। वे परम सुन्दर आखों वाले, अतिसुन्दर कोमल मनोहर अंगों वाले, अतिशय आनन्द देने वाले, परमानन्द स्वरूप, नक्षत्र समुदायों के ईश्वर, सबके मन को जीतने वाले, वर्णनातीत, सच्ची कीर्ति वाले, सभी प्रकार के संशय से रहित हैं।
वे समस्त कामनाओं के परमदेव, भक्तों की कामनाओं की पूर्ति करने वाले, अपने प्रिय को चाहने वाले, परम सुन्दर स्वरूप, समस्त वेद और शास्त्रों के रचयिता, जिनके स्वरूप का वर्णन न किया जा सके ऐसे शरीर वाले, शेषनाग पर लेटने वाले भगवान विष्णु, वीर, अनन्त गुणों से युक्त और बहुत सा धन जीतने वाले हैं। वे महान पराकम वाले, महान कर्म करने वाले, महान तेजवाले, बड़ेभारी सर्प, महान यज्ञ स्वरूप बड़े बड़े यज्ञों का अनुष्ठान करने वाले, यज्ञ स्वरूप, एवं महान छवि वाले। वे मनुष्यों को अच्छी गति प्रदान करने वाले, सत्कार्य करने वाले, शाश्वत सत्ता वाले, विभिन्‍न प्रकार के रूपों और गुणों से युक्त, सज्जनों के परम पवित्र आश्रय, शूर वीर सेना वाले, यदुवंशियों में सर्वश्रेष्ठ श्री कृष्ण के बाल सखा गोपाल-बाल आदि अति सुन्दर हैं।
विश्व ही जिंनकी मूर्ति है ऐसे स्वरूप वाले (विश्वमूर्ति), विष्णु, देदीप्यमान तेज से युक्त, बिना किसी आकार वाले, अनेक प्रकार की मूर्तियों को धारण करने वाले, जिसको व्यक्त न किया जा सके, ऐसे अप्रकट स्वरूप वाले, सैकड़ों मूर्तियों वाले, एवं सैकड़ों मुखों वाले हैं। वे अपने आप में अद्वितीय, अनेक अवतार लेने वाले, यज्ञस्वरूप, वाले, सुखस्वरूप, ब्रहमा स्वरूप स्वतः सिद्ध होने वाले, विस्तार करने वाले, परमपदस्वरूप प्रदान करने वाले, समस्त प्राणियों का हित करने वाले, समस्त लोक के स्वामी, मधुकुल में उत्पन्न होने वाले, भक्तों के प्रति अपार स्नेह रखने वाले हैं।
वे सोने के समान पीले रंग वाले, सोने के समान चमकते अंगों वाले, अति सुन्दर अंगों वाले, चन्दन के लेप और बाजूबंद से सुशोमित, वीर, असुरों का नाश करने वाले, अपने भक्तों के लिए पूरी तरह कृपालु, किसी भी प्रकार से विचलित न होने वाले, वायु की तरह सर्वत्र गमन करने वाले, स्वंय कभी भी मान की चाह न रखने वाले, दूसरों को मान देने वाले, सबके पूजे जाने योग्य, सारे संसार व भुवनों के स्वामी, तीनों लोकों को धारण करने वालें, अति सुन्दर बुद्धि वाले, यज्ञ के द्वारा प्रकट होने वाले, धन्‍्य-धन्य कर देने वाले, सच्ची बुद्धि वाले, अनन्त भगवान रूप में पृथ्वी धारण करने वाले हैं।
वे पूजन, भक्ति तथ चिन्तन द्वारा सुगमता से प्राप्त होने वाले, सुन्दर भोजन करने वाले, समस्त सिद्धि वाले, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले, शत्रुओं को तपाने वालें, वटवृक्षरूप, आकाश के भी ऊपर विराजमान रहने वाले, पीपल के वृक्ष के स्वरूप में, चाणूर नामक अन्ध्र जाति के मल्‍ल का वध करने वाले हैं। अत्यन्त छोटे रूप में, सबसे बड़े रूप में, अत्यन्त पतले और हल्के, अत्यन्त मोटे और भारी रूप में, समस्त गुणों से भरे हुए, निर्गुण रूप में, महान सर्वगुण सम्पन्न, जिनको कोई भी धारण नही कर सकता, अपनी महिमा में प्रतिष्ठित, सुन्दर मुखवाले, वंश का आरम्भ करने वाले आदि पुरूष अपने वंश को बढ़ाने वाले हैं।
धनुष धारण करने वाले श्री राम चन्द्र जी, धनुष की सारी विद्याओं व कलाओं को जानने वाले, दण्ड देने वाले, सारी बुरी शक्तिओं का दमन करने वाले, दण्ड के फल देने वाले, शत्रुओं द्वारा कभी पराजित न होने वाले, सब कुछ सहन करने में समर्थ, सबको अपने अपने कर्तव्य का पथ दिखाने वाले, सारे नियमों से परे एवं स्वतन्त्र हैं जिन पर कोई शासन नही कर सकता। वह अनन्त हैं, हवन की सामग्री को भक्षण करने वाले, जगत का पालनहार, भक्तों को परम सुख देने वाले, अपनी स्वेच्छा से अनेक जन्म धारण करने वाले, सबसे पहले जन्म लेने वाले आदि पुरूष, पूर्णकाम होने के कारण उकताहट से रहित, साधु पुरूषों पर क्षमा करने वाले समस्त लोको के अधिष्ठाता अत्यन्त आश्चर्यमय हैं।
भगवान विष्णु अनन्त काल स्वरूप, सनातन परम पुराण पुरूष, महर्षि कपिल के अवतार, सूर्यदेव, सम्पूर्ण जगत के लयस्थल, मंगल देने वाले, कल्याण करने वाले, और भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। वे सब प्रकार के रूद्र भावों से रहित शान्तिमूर्ति, मकराकृत कुण्डलों को धारण करने वाले, सुदर्शन चक को धारण करने वाले, कठोर संकट सहन करने वाले, सबसे विलक्षण पराकमशील, शब्द के अविषय, ज्ञानियों और अज्ञानियों की रात्रि को उत्पन्न करने वाले हैं। संसार के भव सागर से पार करने वाले दुष्टों और पापों का नाश करने वाले, स्मरण करने वाले भक्तों को तारने वाले, ईश्वर की भक्त द्वारा बुरे सपनों का नाश करने वाले, संसार के चक का नाश करने वाले, सब प्रकार से भक्त की रक्षा करने वाले, अच्छे, कार्य के लिए सन्त रूप मे प्रकट होने वाले, और समस्त प्राणियों को जीवन देने वाले, समस्त विश्व को व्याप्त करके स्थित रहने वाले हैं।
वें अनेकों रूप वाले, अपरिमित शोभा वाले, हर प्रकार से कोध पर विजय पाने वाले, भक्तों के भय को हरने वाले, मंगल मूर्ति, गंभीर आत्मा वाले, कर्मानुसार नाना प्रकार के फल देने वाले, सबको आज्ञा देने वाले और वेद के अनुसार कर्म फल बतलाने वाले हैं। समस्त भौतिक भूतों के स्थान, स्वयं सिद्ध, पुष्प की भाँति हास्य वाले, जागृत रहने वाले, नित्य प्रबुद्ध, सबसे ऊपर रहने वाले, सत्य वचन पर चलने वाले, मरे हुए लोगों को भी जीवन दान देने वाले, ओंकार स्वरूप, और यथा योग्य व्यवहार करने वाले हैं। वे भूः भुवः स्व: तीनों लोकों वाले, संसार सागर से पार उतारने वाले, प्रपितामह (पिताम ब्रम्हा के भी पिता), यज्ञ स्वरूप, यज्ञपति, यज्ञ करने वाले, समस्त यज्ञ रूप अंगों वाले एवं यज्ञों के चलाने वाले हैं। विष्णु स्वंय उत्पन्न होने वाले, स्वयं प्रकट होने वाले, पृथ्वी को खोदने वाले, सामवेद को गाने वाले, देवकीपुत्र, समस्त सृष्टि के रचयिता, पृथ्वी पति, मनुष्य के समस्त पापों का नाश करने वाले हैं। पांचजन्य शंख को धारण करने वाले, नन्दक नाम खड्ग धारण करने वाले, सुदर्शन चक धारण करने वाले, शाकं धनुष को धारण करने वाले, कौमोदकी नाम की गदा धारण करने वाले, सुदर्शन चक को हाथ में धारण करने वाले श्रीकृष्ण किसी भी प्रकार से विचलित न होने वाले ज्ञात और अज्ञात सभी अस्त्र-शस्त्र को धारण करने वाले हैं।
जो मनुष्य विष्णुसह्ननाम को सदा सुनता, और उनका कीर्तन तथा पाठ करता है उसका इस लोक तथा परलोक में भी कुछ अशुभ नहीं होता है। ब्राहमण इसका पाठ करने से वेदों में पारंगत हो जाते है, क्षत्रिय युद्ध में विजय प्राप्त कर हैं, वैश्य धन से सम्पन्न होते हैं, और शूद्र जीवन में सुख पाते हैं। धर्म की इच्छा रखने वाला धर्म की प्राप्ति करता है, अर्थ को चाहने वाला अर्थ की प्राप्ति करता है, भोग की इच्छा करने वाला व्यक्ति भोग प्राप्त करता है, और पुत्र या संतान की इच्छा करने वाला व्यक्ति संतान पाता है। जो मनुष्य सदा प्रात: काल उठकर भली-भांति स्नान करके पवित्र होकर मन में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए इस विष्णु सहस्ननाम का भली-भाँति पाठ करता हैँ. उसे अपार यश तथा जाति में महत्व, अचल सम्पत्ति और अति उत्तम कल्याण की प्रात्ति होती है, उसको कही भी किसी से भय नही होता, उसे वीर्य और तेज की प्राप्ति तथा वह आरोग्यवान कान्ति से युक्त बलशाली, रूपवान और सर्व गुण सम्पन्न हो जाता है। भगवान विष्णु के सहारे और उनके शरण में रहने वाला मनुष्य समस्त पापों से छुटकारा प्राप्त कर और शुद्ध अन्त: करण होकर परम ब्रहम को प्राप्त करता है। पूरे भक्तिभाव से इसका पाठ करने वाले मनुष्य का कभी भी अशुभ नहीं होता तथा उसे जन्म मृत्यु, जरा और व्याधि का भी भय नही होता।
जो मनुष्य भक्ति भाव से इस विष्णु सहसनाम का पाठ करते हैं आत्मसुख, क्षमा, लक्ष्मी, धैर्य, स्मृति, और कीर्ति या यश की प्राप्ति होती है। पुरुषोत्तम में शक्तियुक्त पुण्यवान पुरूषों को कोध, मत्सर, लोभ और अशुभ बुद्धि नही होती स्वर्ग, सूर्य, चन्द्रमा तथा नक्षत्रसहित आकाश, दस दिशाएं, पृथ्वी और महासागर ये सब भगवान विष्णु के प्रभाव से धारण किये गये हैं। देवता, राक्षस, दैत्य, गन्धर्व, यक्ष, सर्प और पूरे जगत के प्राणी भगवान श्री कृष्ण के अधीन रहकर उनके अनुसार चल रहे हैं। सब शास्त्रों में आचार प्रथम माना गया है, आचरण से ही धर्म की उत्पत्ति होती है और धर्म के स्वामी भगवान विष्णु हैं। ऋषि, पितर, देवता, पंच्च महाभूत, धातुएँ और सीवर जंगमात्मक सम्पूर्ण जगत-इन सभी का जन्म नारायण से ही हुआ है। योग, ज्ञान, सांख्य, विद्याएं, शिल्प आदि कर्म, वेद, शास्त्र और विज्ञान-इन सभी की उत्पत्ति विष्णु के द्वारा हुई है। जो व्यक्ति प्रसिद्धि, सुख एवं शान्ति प्राप्त करना चाहता है वह भगवान व्यास जी के कहे हुए इस विष्णु सहस्ननाम स्तोत्र का पाठ करें। जो मनुष्य विश्व के ईश्वर, जगत की उत्पत्ति, स्थिति, और विनाश करने वाले, जन्म से रहित, कमल लोचन भगवान नारायण विष्णु का भजन-पूजन करते है, उनका कभी भी पराभव नहीं होता।

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