माधवराव सदाशिव गोलवलकर का चिंतन सर्वदा राष्ट्र, समाज एवं ग्रंथों पर चलता रहता था। इससे चिंतन में एक दिन उनके मन में विचार आया कि साहित्य के क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ करना चाहिए, जिससे ग्रंथों का संरक्षण किया जा सके। दूसरी ओर साहित्य में दो कमियाँ थी, भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता को नकारना व सभी भारतीय भाषाओं का एक साझा मंच नहीं था। इन कारणों को देखते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र जी के साथ मिलकर, 1966 में ‘अखिल भारतीय साहित्य परिषद’ की स्थापना की गई।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख हिन्दी साहित्यकारों के विकास के लिए प्रचार माध्यम की व्यवस्था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा की गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य यह है कि व्यक्ति का चरित्र-निर्माण और समाज का संगठन तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार को सारे समाज में पहुँचाना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य है। इस कार्य का प्रमुख साधन है स्वयंसेवक, जो व्यक्तिगत सम्पर्क और बंधुभाव का विस्तार करते हुए यह कार्य सम्पन्न करता है। फिर भी इसमें उसकी सहायता के लिए जनसंचार माध्यमों और लिखित साहित्य की भी अपनी उपयोगिता है। अतएव 1947 में कुछ स्वयंसेवकों ने दिल्ली में ‘भारत प्रकाशन’ नामक संस्था स्थापित कर ‘ऑर्गेनाइजर’ साप्ताहिक पत्र प्रारंभ किया। फिर ‘पाञ्चजन्य’ साप्ताहिक और ‘राष्ट्र धर्म’ मासिक (लखनऊ) का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। बाद के वर्षों में विभिन्न प्रान्तों से ‘मदरलैण्ड’, ‘स्वदेश’, ‘युगधर्म’, ‘तरुण भारत’ इत्यादि दैनिक समाचार-पत्र तथा कुछ पत्रिकाएँ भी प्रकाशित होने लगी। अनेक वर्षों तक ‘हिन्दुस्तान’ नामक समाचार अभिकरण भी चलाया गया। कतिपय कारणों से व्यवधान के उपरान्त अब पुनः कार्यरत है। वर्तमान में आधुनिक सूचना-माध्यमों से युक्त विश्व संवाद केन्द्र भी अनेक स्थानों पर स्थापित किये गये हैं।पुस्तक रूप में राष्ट्रवादी साहित्य के प्रकाशन हेतु दिल्ली में सुरुचि प्रकाशन, लखनऊ में लोकहित प्रकाशन, जयपुर में ज्ञानगंगा प्रकाशन, भोपाल में अर्चना प्रकाशन, मुम्बई, नागपुर, पूणे में भारतीय विचार साधना, विजयवाड़ा में साहित्य निकेतन, कुरुक्षेत्र में विद्याभारती प्रकाशन व जालन्धर में अपना साहित्य इत्यादि संस्थाओं की स्थापना की गयी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख हिन्दी साहित्यकारों का परिचय इस प्रकार हैः-
1. डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखने के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अनेक भाषण, संवाद के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों को आगे बढ़ाया। आपकी पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तत्व और व्यवहार में आपने हिन्दुओं का भविष्य, संगठन व स्वयंसेवकों के गुणों को बड़े ही प्रभावशाली लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। यह लेख सुरुचि प्रकाशन के द्वारा संकलित है।
2. माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख साहित्यकारों में इनका नाम लिया जाता है, इन्हें श्री गुरुजी के नाम से लोग अधिक जानते हैं। श्री गुरुजी की पुस्तक ‘विचार नवनीत’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आधार कही जा सकती है। इसमें अनेक लेखक व भाषणों का संग्रह है। इसमें उन्होंने राष्ट्र, संस्कृति, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का परिचय अधिकतर सभी विषयों से ये हमें परिचित कराते हैं। इनकी दूसरी पुस्तक ‘गुरु दक्षिणा’ में इन्होंने गुरु, दक्षिणा, यज्ञ, गुरुपूर्णिमा के विषयों को बड़े ही अच्छे ढंग से स्पष्ट किया है। संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग इनकी पुस्तक में देखने को मिलता है।
3. श्री चन्द्रशेखर परमानन्द भिशीकर - श्री चन्द्रशेखर परमानन्द जी मूलतः नागपुर निवासी है। दैनिक ‘तरुण भारत’ का सम्पादन 1949 में किया। इसी की एक शाखा पुणे में खुल गई वहाँ पर आपने कार्यकारी सम्पादन किया। आगे चलकर 1964 से 1978 में आप ‘तरुण भारत’ के मुख्य संपादक रहे। विगत लगभग 12 वर्षों से वे रविवार के तरुण भारत में चिंतनशील साहित्यिक स्तम्भ लिखते रहे हैं। आप ने दो ग्रंथ ‘केशवः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निर्माता’ और ‘श्री गुरुजी’, ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचार दर्शनः राष्ट्र की अवधारणा’ एक से अधिक भाषाओं में प्रकाशित हुई है। ‘डॉ. हेडगेवार परिचय एवं व्यक्तित्व’ पुस्तक में भी आपने डॉ. हेडगेवार के व्यक्तित्व को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से दिखाया है। आपके विचारों में आध्यात्मिकता देखने को मिलता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघप्रणीत जनकल्याण-समिति के आप प्रांतीय उपाध्यक्ष है।
4. पंडित दीनदयाल उपाध्याय - पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 में एक गरीब परिवार में प्रसिद्ध ज्योतिषी पं. हरिराम उपाध्याय के वंश में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में, नाग्ला चन्द्रभान ग्राम में हुआ। स्वयंसेवक, वक्ता, लेखक, पत्रकार, 1951 के बाद राजनीतिज्ञ साथ में चिंतक। जीवन भर देश, जनता और उसकी समस्या इन्ही चिन्ता में मग्न। आजन्म ब्रह्मचारी, स्नेहशील विनोदप्रिय व्यक्ति थे। उनकी रचनाएँ- ‘पोलिटिकल डायरी’, ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’, ‘जगद्गुरु शंकराचार्य’, लघु उपन्यास (मात्र 16 घण्टे में रचित)- ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ आदि हैं। दीनदयाल जी की भाषा सरल व स्पष्ट थी। यह भी संस्कृतनिष्ठ भाषा के पक्षधर थे। इन्होंने हर समसामायिक परिस्थितियों के अनुसार लेख भी ‘आर्गनाईजर’ में लिखे हैं, जिनका संकलन ‘पोलिटिकल डायरी’ में है। राष्ट्र को दिशा देने के, राष्ट्र, राज्य, व्यक्ति व समाज जैसे विषयों को उन्होंने ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ में स्पष्ट किया है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का स्वरूप भी स्पष्ट किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रमुख साहित्यकारों में से इनका नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है।
5. श्री दत्तोपंत बालकृष्ण ठेंगड़ी - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों तथा स्वर्गीय श्री गुरुजी के निकट सहवास से जिस गुण समृद्ध नेतृत्व का अनेक क्षेत्रों में निर्णय हुआ, उनमें श्री दत्तोपंत बालकृष्ण ठेंगड़ी का उल्लेख प्रमुखता से करना होगा कुशाग्र मेधा के अध्ययनशील तत्वचिन्तक, कुशल संगठन और राष्ट्र समर्पित जीवन के तपस्वी थे। श्री ठेंगड़ी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आजीवन प्रचारक थे। संगठन के कार्य को, उलझाये रखने वाले दायित्व संभालते हुए भी ठेंगड़ी ने सैद्धान्तिक लेखन पर्याप्त मात्रा में किया है। उन्होंने अपने गं्रथ ‘दत्तोपंत बापूराव ठेंगड़ी के विचार दर्शन’ व ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शनः तत्व जिज्ञासा’ में दीनदयाल के दार्शनिक विचारों को, पाठकों तक सम्प्रेषित करने में सफल हुए हैं। जिसका अनुभव पाठक कर सकते हैं।
6. श्री भालचंद्र कृष्णा जी केलकर - सिद्धस्त पत्रकार, लेखक तथा दिल्ली में ‘महाराष्ट्र परिचय केंद्र’ के संस्थापक-संचालक श्री भालचंद्र कृष्ण जी केलकर ने ‘नवशक्ति’, ‘विवेक’, ‘तरुण भारत’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में भरपूर लेखन किया है। 1983 में सरकारी सेवा से निवृत्त हो गये थे व स्वतंत्र लेखन शुरू किया है। इनकी रचनाएँ ‘सुभाष चरित्र’, ‘तिलक विचार’, ‘समाज-सुधारक सावरकर’, ‘सावरकर दर्शन’ व ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शनः राजनीतिक चिन्तन’ आदि लिखे हैं। दीनदयाल जी का राजनीतिक दृष्टिकोण, उनके अनुभव के साथ लिखा है जो पाठकों को पढ़ने के लिए आकर्षित करता है।
7. डॉ. जागेश्वर पटेल - डॉ. जागेश्वर पटेल का जन्म मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में बैहर तहसील के चीनी ग्राम में 25 जून, 1977 को हुआ। इन्होंने ‘माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर’ के राजनीति चिन्तन पर पी.एच-डी. की। 1999 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। आप विभिन्न अकादमिक संस्थाओं के आजीवन सदस्य हैं एवं लेखन कार्य में सतत् संलग्न है। इनकी रचनाएँ हैं- ‘श्री गुरुजी-एक राष्ट्रवादी संगठक’, ‘श्री गुरुजी एक बहुआयामी व्यक्तित्व’ है, जिसमें इन्हेांने ‘श्री गुरुजी’ के व्यक्तित्व, दर्शन, उनके दृष्टिकोण को उदाहरणों सहित अपनी पुस्तक में प्रस्तुत किया है। ‘श्री गुरुजी’ को जानने के लिए यह पुस्तकें बहुत उपयोगी हैं।
8. श्री आनन्द आदीश - उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ अन्तर्गत ग्राम खेकड़ा के संभ्रान्त, सुशिक्षित, समाजसेवी, जमींदार, वैष्णव परिवार में इनका जन्म हुआ। हिन्दी, अंग्रेजी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की। आप पूर्व प्राचार्य, निदेशक, ब्यूरो आॅफ टैक्स्ट बुक्स, हिन्दी अकादमी के सदस्य व अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय महासचिव पद पर कार्य किया। आप का काव्य संकलन ‘‘राष्ट्र-मंत्र के हे उद्गाता!’’ में आपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्म, विचारधारा व केशव जी का जन्म का वर्णन प्रभावशाली व आकर्षक ढंग से किया है।
9. डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा - 24 सितम्बर, 1949 में सोनीपत, हरियाणा में डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा जी का जन्म हुआ। पिता का नाम श्री हिम्मत राम बवेजा व माता का नाम भागवंती देवी जी था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कार घर से ही मिले। गणित विषय में आपने पी.एच.-डी. की थी। हिन्दू कॉलेज, रोहतक में आप प्राध्यापक थे। उसके बाद आप प्रचारक बने। आपातकाल में आपको जेल भी भेजा गया, जहां पर आपको भीषण यातनाएं दी गयीं। पंजाब प्रांत में बौद्धिक प्रमुख, दिल्ली में सह प्रान्त प्रचारक, हरियाणा के प्रान्त प्रचारक व अनेक वर्षों तक उत्तर क्षेत्र के बौद्धिक प्रमुख भी रहे। इनकी पुस्तक ‘‘श्री गुरुजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व’’ इन्होंने गुरुजी के जन्म शताब्दी के वर्ष में इस पुस्तक की रचना करके राष्ट्रीय स्तर के साहित्य में सहयोग किया। इस पुस्तक में गुरु जी की अनेक विचारधारा का वर्णन लेखक ने किया है।
10. श्री रूप सिंह भील - श्री रूप सिंह भील का जन्म 12 जुलाई 1934 को राजस्थान के उदयपुर जिले के खैरवाड़ा तहसील के बनवासी गाँव विलख में हुआ। ‘राजस्थान में भूमि सुधार’ में आदिवासियों के अधिकार और वननीति संबंधी इनका लेख सम्मिलित है। सन् 1996 में काॅमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स एण्ड माइनोरिटी ग्रुप द्वारा नई दिल्ली में आयोजित जनजाति व आदिम जातियों के अधिकार विषयक कार्यशाला में अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया, जो संगठन द्वारा प्रकाशित पुस्तक में सम्मिलित है। जनजाति व अंग्रेजी शासन पर रचित उनकी पुस्तक ‘‘अंग्रेजी शासन में सामग्री शोषण एवं जनजातिय भगत आन्दोलन’’ एक सराहनीय पुस्तक है। 1998 में इन्हें जनजाति समाज की उल्लेखनीय सेवा के लिए ‘महाराणा मेवाड़ फाउन्डेशन का राणा पूजा अवार्ड से नवाजा गया।
11. श्री शरद अनन्त कुलकर्णी - महाराष्ट्र प्रान्त में जलगाँव के निवासी श्री शरद अनंत कुलकर्णी आर्थिक विषयों के अध्येता और अधिकारी लेखक है। बाल्यावस्था से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहते हुए अनेक वर्षों तक उन्होंने जिला कार्यवाह का दायित्व संभाला। आपकी पुस्तक ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शन एकात्मक अर्थनीति’ दीनदयाल जी के आर्थिक दृष्टिकोण को समझने सहायक पुस्तक है।
12. श्री विश्वनाथ नारायण देवधर - श्री देवधर जी, आरम्भ से ही पत्रकार थे। इन्होंने ‘दैनिक भारत’ तथा केसरी से शुरुआत की थी। 1978 से 1984 तक पुणे के ‘तरुण भारत’ के मुख्य संपादक रहे। सटीकता, स्नेहपूर्ण स्वभाव, उत्तम व्यक्तित्व, राष्ट्रवादी विचारों का ठोस अधिष्ठान आदि गुणों एवं आकर्षक लेखन शैली के कारण आपने उल्लेखनीय प्रभाव अर्जित किया है। आप के द्वारा रचित पुस्तक ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शन व्यक्ति दर्शन’ एक सराहनीय पुस्तक है, जिसमें आपने अनेक लोगों से भेंट कर, विविध स्मृतियों के रूप में पं. दीनदयाल जी का उत्कृष्ट व्यक्ति दर्शन कराया है।
13. श्री बलवंत नारायण जोग - मुम्बई, के रहने वाले श्री बलवंत जोग, पत्रकारिता से जुड़े हुए थे। ‘विवेक’ साप्ताहिक पत्रिका के सम्पादक के रूप में आपने काम किया। आपने मुस्लिम समस्या का गहन अध्ययन किया है, जिस पर ‘भारत का यक्ष-प्रश्न’ शीर्षक से पुस्तक भी लिखी। आपके द्वारा रचित ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शन राजनीति राष्ट्र के लिए’ में दीनदयाल जनसंघ में क्यों गये, राजनीति, राष्ट्र के लिए ऐसे विषयों पर दीनदयाल के अनुभव हमारे साथ बाटें। जिससे दीनदयाल को जानने में सहायता मिलती है।
14. विजय कुमार गुप्ता - विजय कुमार गुप्ता का जन्म 1937 में उत्तर प्रदेश में हुआ। बाल्यावस्था में ही 1946 में आपका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रवेश हुआ। मा. भाऊराव देवरस व दीनदयाल जी के सम्पर्क से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समझ आया। स्नातक, बरेली काॅलेज से पास की। अगस्त 1961 में आप ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ से जुड़ गये। आजकल आप सुरुचि प्रकाशन से जुड़़े हैं। आपको लिखने की प्रेरणा मा. राजपाल वासन जी ने दी। आपके द्वारा रचित पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रार्थना’, ‘भारत की महान् क्रान्तिकारी महिलाएँ’ दोनों ही सराहनीय पुस्तक है। ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रार्थना’ में आपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना की व्याख्या, उच्चारण के नियम बड़े ही अच्छे ढंग से स्पष्ट किये हैं। ‘भारत की महान् क्रान्तिकारी महिलाएँ’ में आपने भारत की 36 नारियों की वीरता का वर्णन ओजमयी व प्रभावशाली ढंग से किया है।
15. सिद्धार्थ शंकर गौतम - 2 फरवरी, 1986 में महरौनी, जिला ललितपुर उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थ शंकर गौतम का जन्म हुआ। आपने एम.ए. जन संचार तक शिक्षा ग्रहण की है। आप पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं। वर्तमान में आप ‘नई दुनिया’ से सम्बद्ध हो। गौतम जी की पुस्तक है- ‘वैचारिक द्वन्द्व’, ‘लोकतन्त्र का प्रधानसेवक’ व ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र भावना का जागृत प्रहरी’। इस पुस्तक में इन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति लोगों की गलत सोच पर कटाक्ष करते हुए उनका सही उत्तर देने की कोशिश की है।
16. सुरेश सोनी - गुजरात प्रान्त के सुरेन्द्र नगर जिला स्थित चूड़ा गाँव में एक सामान्य परिवार में जन्मे श्री सुरेश सोनी 16 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये 1973 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। आपातकालीन की परिस्थितियों का सामना किया व प्रताड़ना का शिकार भी हुआ। मध्य भारत प्रान्त प्रचारक व अखिल भारतीय भी हुआ। मध्य भारत प्रान्त प्रचारक व अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख भी रहे। इनकी रचनाएँ हैं- ‘भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परम्परा’, ‘हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्त्रोत’, ‘भारत-अतीत वर्तमान और भविष्य’ ‘गुरुत्व याने हिन्दुत्व।’ इसमें इन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में गुरु का क्या महत्व है, उसे स्पष्ट किया है। ‘हिन्दुत्व सामाजिक समरसता’ में इन्होंने जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्मों के मूल चिन्तन के बारे में बड़े ही अच्छे ढंग से स्पष्ट किया है।
17. डॉ. मोहनराव भागवत - वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत जी जो आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मार्गदर्शन कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में समय-समय पर अपने विचारों की प्रस्तुति देते रहते हैं, जैसे राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका, संगठित हिन्दू समर्थ भारत, समन्वय संकल्पना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आह्वान जगे राष्ट्र-पुरुषार्थ, इनका संकलन सुरुचि प्रकाशन ने किया है। ‘हिन्दुत्व हिन्दू राष्ट्र’, हिंदुत्व सामाजिक समरसता’ दो भागों में ‘हिंदुत्व’ नाम से स्वयंसेवकों के उपयोग के लिये लिखी है, जिसमें हिंदुत्व की अवधारणा को समझने में सहायता मिलती है।
18. डॉ. हरिश्चन्द्र बड़थ्वाल - डॉ. हरिश्चन्द्र बड़थ्वाल ने ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक परिचय’ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का परिचय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समाज में भूमिका, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संगठन का वर्णन स्पष्ट किया है।
इन साहित्यकारों के अतिरिक्त संघ के अनेकों साहित्यकार है जिन्होंने हिन्दी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केे विचारों को प्रस्तुत किया है, उनमें नरेंद्र ठाकुर, डॉ. बजरंग लाल गुप्ता, श्री सुभाष सरवटे, मा.गो. वैद्य, हो.वे. शेषाद्रि, एकनाथ रानडे, उमाकान्त केशव आप्टे, विनोद बजाज, यशवंत गोपाल भावे, दामोदर शाण्डिल्य, मोहनलाल रुस्तगी, प्रशांत बाजपेई, अमरनाथ डोगरा, कुप. सी. सुदर्शन, प्रो. राजेन्द्र सिंह, बालासाहब देवरस जी, स्वामी विज्ञानानंद, कुलदीप चन्द अग्निहोत्री, डॉ. के.वी. पालीवाल, लक्ष्मण श्रीकृष्ण भिड़े, महामहोपाध्याय बाल शास्त्री हरदास, अनिल कुमार, श्री सुरेश जोशी, डॉ. कृष्ण गोपाल, आशा धानकी, लज्जाराम तोमर आदि है, जिनके कारण आज समाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वरूप स्पष्ट हो सका है। इन व्यक्तिगत साहित्यकारों के अतिरिक्त सुरुचि प्रकाशन, शरद प्रकाशन, विद्या भारतीय प्रकाशन, ज्ञान गंगा प्रकाशन आदि भी व्यक्तिगत रूप से अपनी पुस्तकों का निर्माण करते रहते हैं, जिससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों का विकास हो सके। पत्रिकाओं का योगदान भी बराबर है, जैसे- ‘पान्चजन्य’, ‘म्हारा देश-म्हारी माटी’, ‘सेवा साधना’ आदि।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सांस्कृतिक संगठन है, न कि राजनीतिक। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज में फैल रही कुरीतियों के खिलाफ खड़ा एक संगठन है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वर्तमान स्वरूप अर्थात् शुन्य से विराट स्वरूप तक पहुँचने का एकमात्र कारण ‘संगठन का स्वरूप है। इस व्यवस्था का स्वरूप अन्य संगठनों के प्रचलित स्वरूप से भिन्न अर्थात् ‘पारिवारिक’ है। परिवार संविधान के आधार पर नहीं अपितु परम्परा, कर्तव्य पालन, त्याग, सभी के कल्याण-विकास की कामना व सामूहिक पहचान के आधार पर चलता है। परिवार के हित में अपने हित का सहज त्याग तथा परिवार के लिये अधिक से अधिक देने का स्वभाव व परस्पर आत्मीयता ही ‘परिवार’ का आधार है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आधार शिला ही एक पारिवारिक ढंग से की है। यहाँ सब मिल कर रहते हैं। कोई जाति-पाति का यहाँ भेद नहीं है। सारे कार्यक्रम व्यवस्थित ढंग से चलते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में स्वयंसेवकों को प्रतिज्ञा, प्रार्थना, यज्ञ, एकात्म मंत्रों का उच्चारण आदि कराया जाता है, जिससे स्वयंसेवकों को भारत की संस्कृति की रक्षा करने का अपना कर्तव्य याद रहता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश को आजाद कराने में भी अपनी अहम भूमिका निभाई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिज्ञा में भी देश को आजाद कराने की बात कही गयी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राकृतिक आपदाओं में भी सहायता कर यह दिखा दिया है कि वह राष्ट्र जीवन के हर क्षेत्र में सहायता करने का अग्रसर रहेगा। कश्मीर की समस्या हो या आतंकवाद की, हर समस्या में वह राष्ट्र के साथ खड़ा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने का अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए भी ‘विश्व हिन्दू परिषद’ की भी स्थापना की। भैय्या जोशी ने भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की धारणा को स्पष्ट करने के लिए संगोष्ठी की। मोहन भागवत जी भी हिन्दू धर्म की रक्षा करने में सदा अग्रसर रहे हैं। श्री गुरुजी, बाला साहब देवरस, सुदर्शन जी, रज्जू भैया जी ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को आगे बढ़ाया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दी साहित्यकारों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संकल्पना को इतने अच्छे ढंग से स्पष्ट किया है कि पाठक उसे पढ़कर एक बार सोचने पर विवश अवश्य हो जाता है। हिन्दी साहित्य में ऐसे ही साहित्यकारों की आवश्यकता अधिक है, जिनके साहित्य को पढ़कर पाठकों के अन्दर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना पैदा हो और देश के प्रति कुछ कर गुजरने की चाह। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साहित्यकार अपने इसी दृष्टिकोण के विकास में अग्रसर हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे।
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