वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जावें ।
पर सेवा पर उपकार में हम, निज जीवन सफल बना जावें ।।
हम दीन दुखी निबलों विकलों, के सेवक बन सन्ताप हरें ।
जो हों भूले भटके बिछुड़े, उनको तारें ख़ुद तर जावें ।।
छल-द्वेष-दम्भ-पाखण्ड- झूठ, अन्याय से निशदिन दूर रहें ।
जीवन हो शुद्ध सरल अपना, शुचि प्रेम सुधारस बरसावें ।।
निज आन मान मर्यादा का, प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे ।
जिस देश जाति में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जावें ।।
बचपन में स्कूल में गयी जाने वाली प्रार्थना वह शक्ति हमें दो दयानिधे आज भी जब हम कहीं किसी स्कूल के पास से गुजरते सुनते है तो शरीर में गजब का संचार उत्पन्न कर देती है इसकी मधुर गान, यह प्रार्थना मानो सभी मनोरथ को सिद्ध करती प्रतीत होती है।
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