हम केशव के अनुयायी हैं,
हमने तो बढ़ना सीखा है।
लक्ष्य दूर है पथ दुर्गम है,
किन्तु पहुँच कर ही दम लेंगे।
बाधाओं के गिरि शिखिरों पर,
हमने तो चढ़ना सीखा है॥1॥
ख्याति प्रतिष्ठा हमें न भाती,
केवल माँ की कीर्ति सुहाती।
माता के हित प्रतिपल जीवन,
हमने तो जीना सीखा है।
अंधकार में बन्धु भटकते,
पंथ बिना व्याकुल दुख सहते।
पथ दर्शन दीपक बन,
तिल-तिल हमने तो जलना सीखा है।।2।।
तृषित जनों को जीवन देंगे,
शस्य-श्यामला भूमि करेंगे।
सुरसरि देने हिमगिरि के सम,
हमने तो गलना सीखा है।
धरती को सुरभित कर देंगे,
हे माँ हम मधुऋतु लायेंगे।
शूलों में भी सुमनों के सम,
हमने तो खिलना सीखा है॥3॥
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