1524 ई में 'राव धाम देव सिंह सिकरवार' ने "खनहुआ के युद्ध" में राणा सांगा (संग्राम सिंह) की साँचा:बाबर के विरुद्ध मदद की। बाद में अपने वंश को बाबर से बचाने के लिये सीकरी से निकल लिये।
राव जयराज सिंह सिकरवार के तीन पुत्र क्रमशः थे -- 1 - कामदेव सिंह सिकरवार(दलपति) 2 - धाम देव सिंह सिकरवार (राणा सांगा के पुत्र) 3 - विराम सिंह सिकरवार
काम देव सिंह सिकरवार जो दलखू बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए, ने साँचा:मध्य प्रदेश के जिला साँचा:मुरैना में जाकर अपना वंश चलाया।
कामदेव सिकरवार (दलकू) सिकरवार की वंशावली
कामदेव सिकरवार (दलकू) सिकरवार की वंशावली
चंबल घाटी के सिकरवार राव दलपत सिंह यानी दलखू बाबा के वंशज कहलाते हैं, दलखू बाबा के गांव इस प्रकार हैं –
सिरसैनी – स्थापना विक्रम संवत 1404
भैंसरोली – स्थापना विक्रम संवत 1465
पहाड़गढ़ – स्थापना विक्रम संवत 1503
सिहौरी - स्थापना बिवक्रम संवत 1606
भैंसरोली – स्थापना विक्रम संवत 1465
पहाड़गढ़ – स्थापना विक्रम संवत 1503
सिहौरी - स्थापना बिवक्रम संवत 1606
इनके परगना जौरा में कुल 70 गांव थे, दलखू बाबा की पहली पत्नी के पुत्र रतनपाल के ग्राम बर्रेड, पहाड़गढ़, चिन्नौनी, हुसैनपुर, कोल्हेरा, वालेरा, सिकरौदा, पनिहारी आदि 29 गॉंव रहे, भैरोंदास त्रिलोक दास के सिहोरी, भैंसरोली, "खांडोली" आदि 11 गॉंव रहे, हैबंत रूपसेन के तोर, तिलावली, पंचमपुरा बागचीनी, देवगढ़ आदि 22 गॉंव रहे , दलखू बाबा की दूसरी पत्नी की संतानें – गोरे, भागचंद, बादल, पोहपचंद खानचंद के वंशज कोटड़ा तथा मिलौआ परगना ये सब परगना जौरा के ग्रामों में आबाद हैं, गोरे और बादल मशहूर लड़ाके रहे हैं, राव दलपत सिंह (दलखू बाबा) के वंशजों की जागीरें – 1. कोल्हेरा 2. बाल्हेरा 3. हुसैनपुर 4. चिन्नौनी (चिलौनी) 5. पनिहारी 6. सिकरौदा आदि रहीं, मुरैना जिला में सिहौरी से बर्रेंड़ तक सिकरवार राजपूतों की आबादी है, आखरी गढ़ी सिहोरी की विजय सिकरवारों ने विक्रम संवत 1606 में की उसके बाद मुंगावली और आसपास के क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया, इनके आखेट और युद्ध में वीरता के अनेकों वृतांत मिलते हैं।
पहाड़गढ़ रियासत सिकरवार राजगद्दी
मुरैना जिला में पहाड़गढ़ के सिकरवार राजाओं की वंशवृक्ष रियासत इस प्रकार है
राव धन सिंह – विक्रम संवत 1503 से 1560
राव भारतीचंद – विक्रम संवत 1560 (उसी वर्ष देहांत हो गया )
राव नारायण दास – विक्रम संवत 1560 से 1597
राव पत्रखान सिंह – 1597 से 1641
राव जगत सिंह - 1641 से 1670
राव वीर सिंह - 1670 से 1703
राव दलेल सिंह - 1703 से 1779
राव कुअर राय - 1779 से 1782
राव बसंत सिंह - 1782 से 1791
राव पृथ्वीपाल सिंह - 1791 से 1801
राव विक्रमादित्य - 1801 से 1824
राव अपरवल सिंह - 1824 से 1860
राव मनोहर सिंह - 1860 से 1899
राव गणपत सिंह - 1899 से 1905 (चिन्नौनी से दत्तक पुत्र)
राव अजमेर सिंह 1905 से 1973 (निसंतान ) दत्तक लिया
राजा पंचम सिंह 1973 से 2004
इसके बाद में जमींदारी और जागीरदारी प्रथा समाप्त हो गयी और भूमि स्वामी किसान बन गये। राजा पंचम सिंह सिकरवार की पहली रानी से पुत्र निहाल सिंह व पद्म सिंह एवं एक पुत्री का जन्म हुआ, पदम सिंह को राय सिंह तोमर की पुत्री ब्याहीदूसरी रानी सिरसावाली से पुत्र हरी सिंह का जन्म हुआ, हरी सिंह को कश्मीरी डोगरा राजपूत ब्याही ..
सिकरवार क्षत्रियों की कुलदेवी कालिका माता
भवानीपुर गांव में कालिका माता का प्राचीन मंदिर है। क्षेत्र के सिकरवार क्षत्रियों ने कालिका माता को अपनी कुलदेवी का स्थान दिया है। भवानीपुर कोथावां ब्लाक का गांव है। सिकरवार क्षत्रियों के घरों में होने वाले मांगलिक अवसरों पर अब भी सबसे पहले कालिका माता को याद किया जाता है। यह मंदिर नैमिषारण्य से लगभग 3 किलोमीटर दूर कोथावां ब्लाक में स्थित है। बताते हैं कि कभी गोमती नदी मंदिर से सट कर बहती थी। अब गोमती अपना रास्ता बदल कर मंदिर से दूर हो गयी है, लेकिन नदी की पुरानी धारा अब भी एक झील के रूप में मौजूद है। यहां नवरात्र के दिनों में मेला लगता है। मेला में भवानीपुर के अलावा जियनखेड़ा, महुआ खेड़ा, काकूपुर, जरौआ, अटिया और कोथावां के ग्रामीण पहुंचते हैं। यहां सिकरवार क्षत्रिय एकत्र होकर माता कालिका की विशेष साधना करते हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि पेशवा बाजीराव द्वितीय को 1761 में अहमद शाह अब्दाली ने युद्ध क्षेत्र में हरा दिया था। इसके बाद बाजीराव ने अपना शेष जीवन गोमती तट के इस निर्जन क्षेत्र में बिताया। चूंकि वह देवी के साधक थे। इस कारण मंदिर स्थल को भवानीपुर नाम दिया गया। पेशवा ने नैमिषारण्य के देव देवेश्वर मंदिर का भी जीर्णोद्धार कराया था। अब्दाली से मिली पराजय के बाद उनका शेष जीवन यहां माता कालिका की सेवा और साधना में बीता। उनकी समाधि मंदिर परिसर में ही स्थित है।
सिकवारो के देवता घूघू है
जवाब देंहटाएंधौलपुर की पंचायत समिति राजाखेड़ा सिकरवार बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। जसूपुरा बिंतीपुरा
जवाब देंहटाएंकैलाशपुरा इंछापुर पदमपुरा राधेपुरा शाहपुरा नागर हथवारी खेरिया मीठावली नाडोली चौधरी पुरा लगभग 20 ग्राम है जिनका राजनीतिक वर्चस्व इनका निकास स्थान पीपलखेड़ा से माना जाता है पहले इस क्षेत्र में ब्राह्मणों मीणाओं का क्षेत्र था सिकरवारो ब्राह्मण मीणाओं के आतंक से मुक्त कराया इसमें बाबा बर ने वंड बड़ी वीरता के साथ लड़े सर धड़ से अलग होने के बाद भी लड़ते रहे आज भी उनकी समाधि पिलुआ में है।
रंजीत नगाडा कामाख्या देवी पचरंगी झंडा
जय राजपूताना जय भवानी
सिकरौदा वाले बाबा कहां के हैं उनका मंत्र क्या है
हटाएंबोथपुरा बरेठा भोंडिया मौजा का नगला दुवाटी आदि सिकरवार के गांव धौलपुर पंचायत समिति में आते हैं
जवाब देंहटाएंबोथपुरा बरेठा भोंडिया मौजा का नगला दुवाटी आदि सिकरवार के गांव धौलपुर पंचायत समिति में आते हैं
जवाब देंहटाएंजानकारी पड़ कर गौरवान्वित हूँ जय भवानी
जवाब देंहटाएंBahut acchi jankari
जवाब देंहटाएंJai rajputana jai bhavani
जवाब देंहटाएंJai bhavani jai shree Ram 🙏🙏
जवाब देंहटाएंJai maa bhawani
जवाब देंहटाएंJai shree ram
जवाब देंहटाएंJai dalku baba
Har har mahadev
Jai ma bhavani
जवाब देंहटाएं