- वंश -सूर्यवंश
- गोत्र-गोतम
- गुरु- वशिष्ट
- निकास -अयोध्या
- ईष्ट -सीताराम ,लक्ष्मीनारायण
- नदी -सरयू
- पहाड़ -गांगेय
- कुण्ड -सूर्य
- वृक्ष-नीम
- पितृ -सोम
- कुलदेवी -नागणेचा
- भेरू-मंडोर, कोडमदेसर
- कुलदेवी स्थान -नागाणा जिला -बाड़मेर
- चिन्ह -चिल
- क्षेत्र -नारायण
- पूजा -नीम
- बड-अक्षय
- गाय-कपिला
- बिडद-रणबंका
- उपाधि -कमधज
- शाखा -तेरह में से दानेसरा राजस्थान में है
- निशान -पचरंगा
- घाट -हरिद्वार
- शंख -दक्षिणवर्त
- सिंहासन -चन्दन का
- खांडा-जगजीत
- तलवार -रणथली
- घोड़ा -श्यामकर्ण
- माला -रतन
- शिखा -दाहिनी
- बंधेज -वामी (बाया)
- पाट-दाहिना
- पुरोहित -सेवड
- चारण -रोहडिया
- भाट-सिगेंलिया
- ढोली-देहधड़ा
- ढोल -भंवर
- नगारा- रणजीत
राठोड़ों के प्रमुख राज्य
राजपुताना – जोधपुर, बीकानेर, कुशलगढ़, किशनगढ़ .
मालवा- रतलाम, सैलाना, अलीराजपुर, ईडर, झाबुआ, जोबेट, काछी, मुलयान, बड़ोदा व अमझेरा.
संयुक्त प्रान्त (उ प्र) – रायपुर (एटा), खिमशेपुर, विजयपुर, मांडा ढहिया.
बिहार – खरसवां, सिंगभूमि .
उड़ीसा – बोनई, रेसखोल.
हिमाचल – जुब्बल, चम्बा.
हरियाणा – जहाजगढ़.
राजपुताना – जोधपुर, बीकानेर, कुशलगढ़, किशनगढ़ .
मालवा- रतलाम, सैलाना, अलीराजपुर, ईडर, झाबुआ, जोबेट, काछी, मुलयान, बड़ोदा व अमझेरा.
संयुक्त प्रान्त (उ प्र) – रायपुर (एटा), खिमशेपुर, विजयपुर, मांडा ढहिया.
बिहार – खरसवां, सिंगभूमि .
उड़ीसा – बोनई, रेसखोल.
हिमाचल – जुब्बल, चम्बा.
हरियाणा – जहाजगढ़.
राठौड़ वंश की सभी शाखाओं का इतिहास
राजपूतों के इतिहास में राठौड़ों का विशेष स्थान है। संस्कृत अभिलेखों, ग्रंथों आदि से राठौड़ों को राष्ट्रकूट लिखा है। कहीं-कहीं रट्ट या राष्ट्रोड भी लिखा है। राठौर राष्ट्रकूट का प्राकृत रूप है। चिन्तामणि विनायक वैद्य के अनुसार यह नाम न होकर एक सरकारी पद था। इस वंश का प्रवर्तक राष्ट्रकूट (प्रांतीय शासक) था।
राठौड़ अथवा राठौड एक राजपूत गोत्र है जो उत्तर भारत में निवास करते हैं। राठौड़ अपने को राम के कनिष्ठ पुत्र कुश का वंशज बताते हैं। इस कारण वे सूर्यवंशी हैं। वे पारम्परिक रूप से राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र मारवाड़ में शासन करते थे। इनका प्राचीन निवास कन्नौज और बदायू था। जहाँ से सीहा मारवाड़ में ई. सन् 1243 के लगभग आया। राजस्थान के सम्पूर्ण राठौड़ो के मूल पुरुष राव सीहा जी माने जाते है जिन्होंने पाली से राज प्रारम्भ किया उनकी छतरी पाली जिले के बिटु गांव में बनी हुई है।
सीहा के वंशज चूण्डा ने पहले मण्डोर पर और उसके पौत्र जोधा ने जोधपुर बसाकर वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की। मुग़ल सम्राटों ने अपनी आधी विजयें ‘लाख तलवार राठोडान‘ अर्थात एक लाख राठोड़ी तलवारों के बल पर प्राप्त की थी क्योंकि युद्ध के लिए 50000 बन्धु बान्धव तो एक मात्र सीहाजी के वंशज के ही एकत्रित हो जाते थे। राठौड़ों का विरुद रणबंका है अर्थात वे लड़ने में बांके हैं। 1947 से पूर्व भारत में अकेले राठौड़ो की दस से ज्यादा रियासतें थी और सैकड़ों ताजमी ठिकाने थे जिनमें मुख्य जोधपुर, मारवाड़, किशनगढ़, बीकानेर, ईडर, कुशलगढ़, सैलाना, झाबुआ, सीतामऊ, रतलाम, मांडा, अलीराजपुर वही पूर्व रियासतों में मेड़ता, मारोठ और गोड़वाड़ घाणेराव मुख्य थे।
राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेचिया माता - राठौड़ो की कुलदेवी नाग चेचियाजी है जिसका पहले नाम राठेश्वरी था। नाग चेचियाजी का पुराना मंदिर नागाना तहसील पचपदरा में हैं। दुसरा मंदिर जोधपुर के किले में जनानी ड्योढ़ी में हैं। गांवों में नागनेचियाजी का थान सामान्यतः नीम के वृक्ष के नीचे होता है। इसी कारण राठौड़ नीम का पेड़ काटते या जलाते नहीं हैं।
राठौड़ वंश की शाखाएं – धांधल, भडेल, धूहड़िया, हटडिया, मालावत, गोगादेव, महेचा, राठौड़, बीका, मेडतिया, बीदावत, बाल चांपावत, कांधलोत, उदावत, देवराजोत, गहड़वाल, करमसोत, कुम्पावत, मंडलावत, नरावत आदि।
राठौड़ों का प्राचीन इतिहास वृत :- राम के पुत्र कुश के कुल में सुमित्र अयोध्या का अंतिम राजा था। नंद वंश के महापद्मनंद ने अयोध्या राज्य को मगध साम्राज्य में मिला लिया। सुमित्र के बाद यशोविग्रह तक के मुख्य व्यक्तियों के नाम ही बडुवों (बहीभट्टों) की बहियों से तथा अन्य साहित्यिक स्त्रोतों से प्राप्त होते हैं। अतः इन साधनों के आधार पर सुमित्र से आगे की वंश परम्परा दी जा रही है। सुमित्र के दो वंशजों में कूर्म के वंशज रोहितास (बिहार), निषिध, ग्वालियर और नरवर होते हुए राजस्थान में आये जो कछवाह कहलाते हैं। दूसरे वंशज विश्वराज के वंशधर क्रमशः मूलराय व राष्ट्रवर के नाम से इनके वंशज राष्ट्रवर (राठौड़) कहलाये। बाद के संस्कृत साहित्य में कहीं कहीं राष्ट्रवर (राठौड़ों) का संस्कृतनिष्ठ शब्द ‘राष्ट्रकूट’ या ‘राष्ट्रकूटियो’ भी लिखा है।
राठौड़ों का प्राचीन इतिहास वृत :- राम के पुत्र कुश के कुल में सुमित्र अयोध्या का अंतिम राजा था। नंद वंश के महापद्मनंद ने अयोध्या राज्य को मगध साम्राज्य में मिला लिया। सुमित्र के बाद यशोविग्रह तक के मुख्य व्यक्तियों के नाम ही बडुवों (बहीभट्टों) की बहियों से तथा अन्य साहित्यिक स्त्रोतों से प्राप्त होते हैं। अतः इन साधनों के आधार पर सुमित्र से आगे की वंश परम्परा दी जा रही है। सुमित्र के दो वंशजों में कूर्म के वंशज रोहितास (बिहार), निषिध, ग्वालियर और नरवर होते हुए राजस्थान में आये जो कछवाह कहलाते हैं। दूसरे वंशज विश्वराज के वंशधर क्रमशः मूलराय व राष्ट्रवर के नाम से इनके वंशज राष्ट्रवर (राठौड़) कहलाये। बाद के संस्कृत साहित्य में कहीं कहीं राष्ट्रवर (राठौड़ों) का संस्कृतनिष्ठ शब्द ‘राष्ट्रकूट’ या ‘राष्ट्रकूटियो’ भी लिखा है।
सूरज प्रकाश के लेखक करणीदान व टॉड के अनुसार तेरह खांपों की उत्पत्ति इस प्रकार हुई – (सूरजवंश प्रकाश-करणीदान पृ. 84 से 194)
- दानेश्वरा :- धर्मविम्ब एक दानी व्यक्ति हुआ। अतः इनके वंशज दानेश्वरा कहलाये। इनको कमधज भी कहा जाता था।
- अभैपुरा :- पुंज के दूसरे पुत्र भानुदीप कांगड़ा (हि. प्र.) के पास था। देवी ज्वालामुखी ने उसे अकाल के भय से रहित कर दिया अर्थात अभय बना दिया। इस कारण उसके वंशज अभयपुरा कहलाये।
- कपालिया :- पुंज के तीसरे पुत्र वीरचंद थे। इसने शिव को कपाल चढ़ा दिया था। इस कारण इनके वंशज कपालिया कहलाये।
- कुरहा :- पुंज के पुत्र अमरविजय ने परमारों से कुरहगढ़ जीता। संभवतः कुरह स्थान के नाम से कुरहा कहलाये।
- जलखेड़ा :- पुंज के पुत्र सजनविनोद ने तंवरों को परास्त किया और जलंधर की सहायता से जल प्रवाह में बहा दिया। अतः इसके वंशज जलखेड़ा कहलाये।
- बुगलाणा :- पुंज के पुत्र पदम ने बुगलाणा स्थान के नाम से बुगलाणा कहलाये।
- अहर :- पुंज के पुत्र अहर के वंशज ‘अहर’ कहलाये। बंगाल की तरफ चले गए।
- पारकरा :- पुंज के पुत्र वासुदेव ने कन्नौज के पास कोई पारकरा नामक नगर बसाया अतः उसके वंशज ‘पारकर’ कहलाये।
- चंदेल :- दक्षिण में पुंज के पुत्र उग्रप्रभ ने चंदी व चंदावर नगर बसाये अतः चंदी स्थान के नाम से चंदेल कहलाये। (चंदेल-चंद्रवंशी इनसे भिन्न हैं।)
- वीर :- सुबुद्धि या मुक्तामान बड़ा वीर हुआ। इसे वीर की उपाधि दी। इस कारण इनके वंशज वीर राठौड़ कहलाये।
- दरियावरा :- भरत ने बरियावर स्थान पर राज्य किया। स्थान के नाम से ये ‘बरियावर’ कहलाये।
- खरोदिया :- कृपासिंधु (अनलकुल) खरोदा स्थान के नाम से खरोदिया राठौड़ कहलाये।
- जयवंशी :- चंद्र व इसके वंशज जय पाने के कारण जयवंशी कहलाये।
राठौड़ों की प्राचीन तेरह खांपें थी। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेश्वरा खांप के राठौड़ थे। सींहाजी के वंशजों से जो खांपें चली वे इस प्रकार हैं –
- ईडरिया राठौड़ :- सोगन (पुत्र सीहा) ने ईडर पर अधिकार जमाया। अतः ईडर के नाम से सोगन के वंशज ईड़रिया राठौड़ कहलाये। (टॉड कृत राजस्थान-अनु केशवकुमार ठाकुर पृ. 356)
- हटुण्डिया राठौड़ :- सोगन के वंशज हस्तिकुण्डी (हटूंडी) में रहे। वे हटुण्डिया राठौड़ कहलाये। (अ) (टॉड) कृत राजस्थान-अनु. केशवकुमार ठाकुर पृ. 356) (ब) जोधपुर इतिहास में ओझा लिखते है कि सीहाजी से पहले हस्तिकुण्डी (हटकुण्डी) में राष्ट्रकूट बालाप्रसाद राज करता था। उसके वंशज हटुण्डिया राठौड़ है।
- बाढेल (बाढेर) राठौड़ :- सीहाजी के छोटे पुत्र अजाजी के दो पुत्र बेरावली और बिजाजी ने द्वारका के चावड़ों को बाढ़ कर (काट कर) द्वारका (ओखा मण्डल) पर अपना राज्य कायम किया।इस कारण बेरावलजी के वंशज बाढेल राठौड़ हुए। आजकल ये बाढेर राठौड़ कहलाते है। गुजरात में पोसीतरा, आरमंडा, बेट द्वारका बाढेर राठौड़ो के ठिकाने थे।
- बाजी राठौड़ :- बेरावलजी के भाई बीजाजी के वंशज बाजी राठौड़ कहलाते है। गुजरात में महुआ, वडाना आदि इनके ठिकाने थे। बाजी राठौड़ आज भी गुजरात में ही बसते है।
- खेड़ेचा राठौड़ :- सीहा के पुत्र आस्थान ने गुहिलों से खेड़ जीता। खेड़ नाम से आस्थान के वंशज खेड़ेचा राठौड़ कहलाते है।
- धुहड़िया राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के वंशज धुहड़िया राठौड़ कहलाते है।
- धांधल राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धांधल के वंशज धांधल राठौड़ कहलाये। पाबूजी राठौड़ इसी खांप के थे। इन्होंने चारणी को दिये गये वचनानुसार पाणिग्रहण संस्कार को बीच में छोड़ चारणी की गायों को बचाने के प्रयास में शत्रु से लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की। यही पाबूजी लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
- चाचक राठौड़ :- आस्थान के पुत्र चाचक के वंशज चाचक राठौड़ कहलाये।
- हरखावत राठौड़ :- आस्थान के पुत्र हरखा के वंशज।
- जोलू राठौड़ :- आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र जोलू के वंशज।
- सिंघल राठौड़ :- जोपसा के पुत्र सिंघल के वंशज। ये बड़े पराक्रमी हुए। इनका जैतारण पर अधिकार था। जोधा के पुत्र सूजा ने बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से हटाया।
- ऊहड़ राठौड़ :- जोपसा के पुत्र ऊहड़ के वंशज।
- मूलू राठौड़ :- जोपसा के पुत्र मूलू के वंशज।
- बरजोर राठौड़ :- जोपसा के पुत्र बरजोर के वंशज।
- जोरावत राठौड़ :- जोपसा के वंशज।
- रैकवाल राठौड़ :- जोपसा के पुत्र राकाजी के वंशज है। ये मल्लारपुर, बाराबकी, रामनगर, बडनापुर, बैहराइच (जि. रामपुर) तथा सीतापुर व अवध जिले (उ.प्र.) में हैं। बोडी, रहका, मल्लापुर, गोलिया कला, पलवारी, रामनगर, घसेड़ी, रायपुर आदि गांव (उ.प्र.) में थे।
- बागड़िया राठौड़ :- आस्थानजी के पुत्र जोपसा के पुत्र रैका से रैकवाल हुए। नौगासा बांसवाड़ा के एक स्तम्भ लेख बैशाख वदि 1361 में मालूम होता है कि रामा पुत्र वीरम स्वर्ग सिधारा। ओझाजी ने इसी वीरम के वंशजों को बागड़िया राठौड़ माना जाता है (जोधपुर राज्य का इतिहास-ओझा पृ. 634) क्योंकि बांसवाड़ा का क्षेत्र बागड़ कहलाता था।
- छप्पनिया राठौड़ :- मेवाड़ से सटा हुआ मारवाड़ की सीमा पर छप्पन गांवों का क्षेत्र छप्पन का क्षेत्र है। यहाँ के राठौड़ छप्पनिया राठौड़ कहलाये। यह खांप बागड़िया राठौड़ों से ही निकली है। (जोधपुर का राज्य इतिहास-ओझा पृ. 134) उदयपुर रियासत के कणतोड़ गांव की जागीर थी। (राजपूताने का इतिहास प्रथम भाग-गहलोत पृ. 347)
- आसल राठौड़ :- आस्थान के पुत्र आसल के वंशज आसल राठौड़ कहलाये।
- खोपसा राठौड़ :-आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र खीमसी के वंशज।
- सिरवी राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र शिवपाल के वंशज।
- पीथड़ राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र पीथड़ के वंशज।
- कोटेचा राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र रायपाल हुए। रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र कोटा के वंशज कोटेचा हुए। बीकानेर जिले में करणाचण्डीवाल, हरियाणा में नाथूसरी व भूचामण्डी, पंजाब में रामसरा आदि इनके गांव है।
- बहड़ राठौड़ :- धुहड़ के पुत्र बहड़ के वंशज।
- ऊनड़ राठौड़ :- धुहड़ के पुत्र ऊनड़ के वंशज।
- फिटक राठौड़ :- रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र थांथी के पुत्र फिटक के वंशज फिटक राठौड़ हुए। (जोधपुर राज्य की ख्यात जिल्द 1 पृ 21 )
- सुण्डा राठौड़ :- रायपाल के पुत्र सुण्डा के वंशज।
- महीपालोत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र महिपाल के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 )
- शिवराजोत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र शिवराज के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 )
- डांगी :-रायपाल के पुत्र डांगी के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 ) ढोलिन से शादी की अतः इनके वंशज डांगी ढोली हुए।
- मोहणोत :- रायपाल के पुत्र मोहण ने एक महाजन की पुत्री से शादी की। इस कारण मोहण के वंशज मुहणोत वैश्य कहलाये। मुहणोत नैणसी इसी खांप से थे।
- मापावत राठौड़ :- रायपाल के वंशज मापा के वंशज।
- लूका राठौड़ :- रायपाल के वंशज लूका के वंशज।
- राजक :- रायपाल के वंशज राजक के वंशज।
- विक्रमायत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र विक्रम के वंशज। (राजपूत वंशावली -ईश्वरसिंह मढाढ ने रादां, मूपा और बूला भी रायपाल के पुत्रों से निकली हुई खांपें मानी जाती है। )
- भोवोत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र भोवण के वंशज। (नैणसी भाग 2 पृ. 476)
- बांदर राठौड़ :- रायपाल के पुत्र कानपाल हुए। कानपाल के जालण और जालण के पुत्र छाड़ा के पुत्र बांदर के वंशज बांदर राठौड़ कहलाये। घड़सीसर (बीकानेर राज्य) में बताये जाते है।
- ऊना राठौड़ :- रायपाल के पुत्र ऊना के वंशज। (नैणसी भाग 2 पृ. 476)
- खोखर राठौड़ :-
- सिंहमकलोत राठौड़ :- छाड़ा के पुत्र सिंहल के वंशज। अलाउद्दीन के सातलेक के समय सिवाना पर चढ़ाई की।
- बीठवासा उदावत राठौड़ :- रावल तीड़ा के पुत्र कानड़दे के पुत्र रावल के पुत्र त्रिभवन के पुत्र उदा के ‘बीठवास’ जागीर था। अतः उदा के वंशज बीठवासिया उदावत कहलाये। उदाजी के पुत्र बीरमजी बीकानेर रियासत के साहुवे गांव से आये। जोधाजी ने उनको बीठवासिया गांव की जागीर दी। इस गांव के अतिरिक्त वेगडियो व धुनाडिया गांव भी इनकी जागीर में थे। (मा. प. वि. भाग तृतीय पृ. 496)
- सलखावत :- छांडा के पुत्र तीड़ा के पुत्र सलखा के वंशज सलखाखत राठौड़ कहलाये।
- जैतमालोत :- सलखा के पुत्र जैतमाल के वंशज जैतमालोत राठौड़ कहलाये। (जो. राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ.184 ) ये बीकानेर रियासत में भी कहीं 2 निवास करते है।
- जुजाणिया :- जैतमाल सलखावत के पुत्र खेतसी के वंशज है। गांव थापणा इनकी जागीर में था।
- राड़धडा :- जैतमाल के पुत्र खींवा ने राड़धडा पर अधिकार किया। अतः उनके वंशज राड़धडा स्थान के नाम से राड़धडा राठौड़ कहलाये। (जो. राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 184 )
- महेचा :-
- बाढ़मेरा :- मल्लीनाथ के छोटे पुत्र अरड़कमल ने बाड़मेर इलाके नाम से इनके वंशज बाढ़मेरा राठौड़ कहलाये।
- पोकरण :- मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल के जिन वंशजों का पोकरण इलाके में निवास हुआ। वे पोकरण राठौड़ कहलाये। नीमाज का इतिहास- पं. रामकरण आसोपा पृ. 4 क्ष. जा. सूची पृ. 22 )
- खाबड़िया :- मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल के पुत्र भारमल हुए। भारमल के पुत्र खीमूं के पुत्र नोधक के वंशज जामनगर के दीवान रहे इनके वंशज कच्छ में है। भारमल के दूसरे पुत्र मांढण के वंशज माडवी (कच्छ) में रहते है वंशज, खाबड़ (गुजरात) इलाके के नाम से खाबड़िया राठौड़ कहलाये।
- कोटड़िया :- जगमाल के पुत्र कुंपा ने कोटड़ा पर अधिकार किया अतः कुंपा के वंशज कोटड़िया राठौड़ कहलाये। (जोधपुर राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 191 ) जगमाल के पुत्र खींवसी के वंशज भी कोटडिया राठौड़ कहलाये।
- गोगादे :- सलखा के पुत्र विराम के पुत्र गोगा के वंशज गोगादे राठौड़ कहलाते है। (जोधपार राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 195-197) केतु (चार गांव) सेखला (15 गांव) खिराज आदि इनके ठिकाने थे।
- देवराजोत :- बीरम के पुत्र देवराज के वंशज देवराजोत राठौड़ कहलाये। (जोधपुर राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 195-197) सेतरावों इनका मुख्य ठिकाना था। सुवालिया आदि भी इनके ठिकाने थे।
- चाड़देवोत :- वीरम के पौत्र व देवराज के पुत्र चाड़दे के वंशज चाड़देवोत राठौड़ हुए। जोधपुर परगने का देछु इनका मुख्य ठिकाना था। गीलाकोर में भी इनकी जागीर थी।
- जैसिधंदे :- वीरम के पुत्र जैतसिंह के वंशज।
- सतावत :- चुण्डा वीरमदेवोत के पुत्र सत्ता के वंशज।
- भींवोत :- चुण्डा के पुत्र भींव के वंशज। खाराबेरा (जोधपुर) इनका ठिकाना था।
- अरड़कमलोत :- चुण्डा के पुत्र अरड़कमल वीर थे। राठौड़ो और भाटियों के शत्रुता के कारण शार्दूल भाटी जब कोडमदे मोहिल से शादी कर लौट रहा था, तब अरड़कमल ने रास्ते में युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध में दोनों ही वीरता से लड़े। शार्दूल भाटी ने वीरगति पाई और कोडमदे सती हुई। अरड़कमल भी उन घावों से कुछ दिनों बाद मर गए। इस अरड़कमल के वंशज अरड़कमलोत राठौड़ कहलाये।
- रणधीरोत :- चुण्डा के पुत्र रणधीर के वंशज है। फेफाना इनकी जागीर थी।
- अर्जुनोत :- राव चुण्डा के पुत्र अर्जुन वंशज। (राजपूत वंशावली – ठा. ईश्वरसिंह मढाढ पृ. 82 )
- कानावत :-चुण्डा के पुत्र कान्हा वंशज कानावत राठौड़ कहलाये।
- पूनावत :- चुण्डा के पुत्र पूनपाल के वंशज है। गांव खुदीयास इनकी जागीर में था।
- जैतावत राठौड़ :- राव रणमलजी के जयेष्ठ पुत्र अखैराज थे। इनके दो पुत्र पंचायण व महाराज हुए। पंचायण के पुत्र जैतावत कहलाते है।
१.) पिरथीराजोत जैतावत :- जैताजी के पुत्र पृथ्वीराज के वंशज पिरथीराजोत जैतावत कहलाते हैं। बगड़ी (मारवाड़) व सोजत खोखरों, बाली आदि इनके ठिकाने थे।
२.) आसकरनोत जैतावत :- जैताजी के पौत्र आसकरण देइदानोत के वंशज आसकरनोत जैतावत है। मारवाड़ में थावला, आलासण, रायरो बड़ों, सदामणी, लाबोड़ी मुरढावों आदि इनके ठिकाने थे।
३.) भोपतोत जैतावत :- जैताजी के पुत्र देइदानजी भोपत के वंशज भोपतोत जैतावत कहलाते हैं। मारवाड़ में खांडों देवल, रामसिंह को गुडो आदि इनके ठिकाने थे। - कलावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र अखैराज, इनके पुत्र पंचारण के पुत्र कला के वंशज कलावत राठौड़ कहलाते हैं। कलावत राठौड़ों के मारवाड़ में हूण व जाढ़ण दो गांवों के ठिकाने थे।
- भदावत :- राव रणमल के पुत्र अखैराज के बाद क्रमशः पंचायत व भदा हुए। इन्हीं भदा के वंशज भदावत राठौड़ कहलाये। देछु (जालौर) के पास तथा खाबल व गुडा (सोजत के पास) इनके मुख्य ठिकाने थे।
- पावत :-
- जोधा राठौड़ :-
- उदावत राठौड़ :-
- बीदावत राठौड़ :-
- मेड़तिया राठौड़ :-
- चाँपावत राठौड़ :-
- मण्डलावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र मण्डलाजी ने वि. सं. 1522 में सारूंडा (बीकानेर राज्य) पर अधिकार कर लिया था। यह इनका मुख्य ठिकाना था। इन्हीं मण्डला के वंशज मण्डलावत राठौड़ है।
- खरोत :- बाला राठौड़ – राव रिड़मल (रणमल) के पुत्र भाखरसी के वंशज भाखरोत कहलाये। इनके पुत्र बाला बड़े बहादुर थे। इन्होनें कई युद्धों में वीरता का परिचय दिया। चित्तौड़ के पास कपासण में राठौड़ों और शीशोदियों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाला घायल हुए। सिंघलों से वि. सं. 1536 में जोधपुर का युद्ध मणियारी नामक स्थान हुआ। इस युद्ध में चांपाजी मारे गए। बाला ने सिंघलो को भगाकर अपने काकाजी का बदला लिया। इन्हीं बाला के वंशज बाला राठौड़ कहलाये। मोकलसर (सिवाना) नीलवाणों (जालौर) माण्डवला (जालौर) इनके ताजमी ठिकाने थे। ऐलाणों, ओडवाणों, सीवाज आदि इनके छोटे छोटे ठिकाने थे।
- पाताजी राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र पाता भी बड़े वीर थे। वि. सं. 1495 में कपासण (चित्तौड़ के पास) स्थान पर शीशोदियों व राठौड़ों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में पाताजी वीरगति को प्राप्त हुआ। इनके पातावत राठौड़ कहलाये। पातावतों के आऊ (फलौदी- 4 गांव) करण (जोधपुर) पलोणा (फलौदी) ताजीम के ठिकाने थे। इनके अलावा अजाखर, आवलो, केरलो, केणसर, खारियों (मेड़ता) खारियों (फलौदी) घंटियाली, चिमाणी, चोटोलो, पलीणो, पीपासर भगुआने श्री बालाजी, मयाकोर, माडवालो, मिठ्ठियों भूंडासर, बाड़ी, रणीसीसर, लाडियो, लूणो, लुबासर, सेवड़ी आदि छोटे छोटे ठिकाने जोधपुर रियासत में थे।
- रूपावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र रूपा ने बीका का उस समय साथ दिया जब वे जांगल देश पर अधिकार रहे थे। इन्हीं रूपा के वंशज रूपावत राठौड़ हुए। मारवाड़ में इनका चाखू एक ताजीमी ठिकाना था। दूसरा ताजीमी ठिकाना भादला (बीकानेर राज्य) था। इनके अतिरिक्त ऊदट (फलौदी) कलवाणी (नागौर) भेड़ (फलौदी) मूंजासर (फलौदी) मारवाड़ में तथा सोभाणो, उदासर आदि बीकानेर राज्य के छोटे छोटे ठिकाने थे।
- करणोत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र करण के वंशज करणोत राठौड़ कहलाये। इसी वंश में दुर्गादास (आसकरणोत) हुए। जिन पर आज भी सारा राजस्थान गर्व करता है। अनेकों कष्ट सहकर इन्होनें मातृभूमि की इज्जत रखी। अपनी स्वामिभक्ति के लिए ये इतिहास में प्रसिद्ध रहे है।
- माण्डणोत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र मांडण के वंशज माण्डणोत राठौड़ कहते हैं। मारवाड़ में अलाय इनका ताजीमी ठिकाना था। इनके अतिरिक्त गठीलासर, गडरियो, गोरन्टो, रोहिणी, हिंगवाणिया आदि इनके छोटे छोटे ठिकाने थे।
- नाथोत राठौड़ :- नाथा राव रिड़मल के पुत्र थे। राव चूंडा नागौर के युद्ध में भाटी केलण के हाथों मारे गए। नाथाजी ने अपने दादा का बेर केलण के पुत्र अक्का को मार कर लिया। इन्हीं नाथा के वंशज नाथोत राठौड़ कहलाते हैं। पहले चानी इनका ठिकाना था।नाथूसर गांव इनकी जागीर में था।
- सांडावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र सांडा के वंशज।
- बेरावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र बेरा के वंशज। दूधवड़ इनका गांव था।
- अडवाल राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र अडवाल के वंशज। ये मेड़ता के गांव आछोजाई में रहे। राव रिड़मल के पुत्र ;-
- खेतसिंहोत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र जगमाल के पुत्र खेतसी के वंशज। इनको नेतड़ा गांव मिला था
- लखावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र लखा के वंशज।
- डूंगरोज राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र डूंगरसी के वंशज डूंगरसी को भाद्रजूण मिला था।
- भोजाराजोत राठौड़ :- राव रिड़मल के पौत्र भोजराज जैतमालोत के वंशज। इन्हें पलसणी गांव मिला था। (राव रिड़मल के पुत्र हापा, सगता, गोयन्द, कर्मचंद और उदा के वंशजों की जानकारी उपलब्ध नहीं। उदा के वंशज बीकानेर के उदासर आदि गांव में सुने जाते हैं )
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