बडगुजर या बढ़गुजर राजपूत Badgujar Rajputs



बडगूजर (राघव) भारत की सबसे प्राचीन सूर्यवंशी राजपूत जातियों में से एक है। वे प्राचीन भारत के सबसे सम्मानित राजवंशो में से हैं। उन्होंने हरावल टुकड़ी या किसी भी लड़ाई में आगे की पहली पंक्ति में मुख्य बल गठित किया। बडगुजर ने मुस्लिम राजाओं की सर्वोच्चता को प्रस्तुत करने के बजाय मरना चुना। मुस्लिम शासकों को अपनी बेटियों को न देने के लिए कई बडगूजरों की मौत हो गई थी। कुछ बडगुजर उनके कबीले नाम बदलकर सिकरवार को उनके खिलाफ किए गए बड़े पैमाने पर नरसंहार से बचने के लिए बदल दिया।
Badgujar Rajputs

वर्तमान समय में एक उपनिवेश को शरण मिली, जिसे राजा प्रताप सिंह बडगूजर के सबसे बड़े पुत्र राजा अनूप सिंह बडगूजर ने स्थापित किया था। उन्होंने सरिस्का टाइगर रिजर्व में प्रसिद्ध नीलकांत मंदिर समेत कई स्मारकों का निर्माण किया, कालीजर में किला और नीलकंठ महादेव मंदिर शिव उपासक हैं; अंबर किला, अलवर, मच्छारी, सवाई माधोपुर में कई अन्य महलों और किलों; और दौसा का किला। नीलकंठ बडगूजर जनजाति की पुरानी राजधानी है। उनके प्रसिद्ध राजाओं में से एक राजा प्रताप सिंह ने कहा बडगूजर था, जो पृथ्वीराज चौहान के भतीजे थे और मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ अपनी लड़ाई में सहायता करते थे, जिनका नेतृत्व 1191 में मुहम्मद ऑफ घोर ने किया था। वे मेवार और महाराणा के राणा प्रताप के पक्ष में भी लड़े थे) हम्मर अपने जनरलों के रूप में। उनमें से एक, समर राज्य के राजा नून शाह बडगुजर ने अंग्रेजों के साथ लड़ा और कई बार अपनी सेना वापस धकेल दिया लेकिन बाद में 1817 में अंग्रेजों के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर किए। बडगूजर हेपथलाइट्स, या हंस के साथ उलझन में नहीं हैं, क्योंकि वे केवल 6 वीं शताब्दी की ओर आए थे। इस बडगूजर की एक शाखा, राजा बाग सिंह बरगुजर विक्रमी संवत 202 मे, जो एडी.145 से मेल खाते थे, अंतर 57 वर्ष है। इस जगह को 'बागोला' भी कहा जाता था। उन्होंने उसी वर्ष सिलेसर झील के पास एक झील भी बनाई और जब इसे लाल पानी खोला गया, जिसे कंगनून कहा जाता था।
महाराजा अचलदेव बड़गूजर के लिए कहा जाता है कि जब खलीफा -अल- मामून ने 880 विक्रम संवत भारत पर चढ़ाई करि थी तो मेवाड़ के महाराणा खुम्मान के नेतृत्व में भारत के सभी राजपूत राजाओं ने मिलकर उससे युद्ध किया था, उस सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व महाराज अचलदेव बड़गूजर ने किया था। राजस्थान में जालौर जिले में स्थित भीनमाल प्राचीन गुर्जर देश (गुर्जरात्रा) की राजधानी थी, जिसका वास्तविक नाम "श्रीमाल" था, जो बाद में भिलमाल और फिर भीनमाल हुआ।
गल्लका लेख के अनुसार अवन्ति के राजा नागभट्ट प्रतिहार ने 7 वी सदी में गुर्जरो को मार भगाया और गुर्जर देश पर कब्जा किया, गुर्जर देश पर आधिपत्य करने के कारण ही नागभट्ट प्रतिहार गुरजेश्वर कहलाए जैसे रावण लंकेश कहलाता था। यही से इनकी एक शाखा दौसा,अलवर के पास राजौरगढ़ पहुंची, राजौरगढ़ में स्थित एक शिलालेख में वहां के शासक मथनदेव पुत्र सावट को गुर्जर प्रतिहार लिखा हुआ है जिसका अर्थ है गुर्जरदेश से आए हुए प्रतिहार शासक। इन्ही मथंनदेव के वंशज 12 वी सदी से बडगूजर कहलाए जाने लगे क्योंकि राजौरगढ़ क्षेत्र में पशुपालक गुर्जर/गुज्जर समुदाय भी मौजूद था जिससे श्रेष्ठता दिखाने और अंतर स्पष्ट करने को ही गुर्जर प्रतिहार राजपूत बाद में बडगूजर कहलाने लगे।
पशुपालक शूद्र गुर्जर/गुज्जर समुदाय का राजवंशी बडगूजर क्षत्रियों से कोई सम्बन्ध नहीं था। पशु पालक गुज्जर/गुर्जर दरअसल बडगूजर (गुर्जर प्रतिहार) राजपूतों के राज्य में निवास करते थे। राजा रघु के वंशज (क्योंकि श्रीराम और लक्ष्मण जी दोनों रघु के वंशज थे) होने के कारण ही इन्होंने राघव/रघुवंशी पदवी धारण की, इनकी वंशावली में एक अन्य शासक रघु देव के होने के कारण भी इनके द्वारा राघव टाइटल लिखा जाना बताया जाता है। इस प्रकार बडगूजर राजपूत वंशावली में श्रीमाल (गुर्जरदेश की राजधानी भीनमाल का प्राचीन नाम) का होना तथा राजौरगढ़ शिलालेख में बड़गुजरो के पूर्वज मथनदेव को गुर्जर प्रतिहार सम्बोधित किया जाना आधुनिक बडगूजर राजपूत वंश को प्रतिहार राजपूत वंश की ही शाखा होना सिद्ध करता है।

बड़गूजर वंश की कुलदेवी :- मां आशावारी
राजौरगढ के महाराजा अचलदेव बड़गूजर जी ने कुलदेवी मां आशावारी का भव्य गढ़ ( मन्दिर ) बनवाया था। महाराज अचलदेव बड़गूजर मेवाड़ के महाराणा खुम्मान के समकालीन थे। महाराज अचलदेव बड़गूजर ने 9 वी शताब्दी के अंदर राजौरगढ का दुर्ग , कुलदेवता नीलकंठ महादेव जी का मंदिर , कुलदेवी आशावारी माँ का मंदिर बनवाया। महाराजा अचलदेव बड़गूजर ने कई जैन मंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि अचलदेव बड़गूजर के समय में राजौरगढ को काशी की संज्ञा दी जाती थी। जबकि राजौरगढ ( राजगढ़ ) तो महाराज बाघराज बड़गूजर के वंशज राजदेव बड़गूजर ने अपने नाम पर तीसरी सदी में बसाया ओर सम्पूर्ण ढूंढाड़ क्षेत्र में बड़गूजर राजपुतो की स्थिति को मजबूत किया।
कछवाहा राजपूतों के आगमन से पूर्व सम्पूर्ण ढूँढाड़ बड़गूजर राजपुतो के अधिकार में था। बड़गूजर राजपुतो के शासन काल के कई किले एवं महल बनवाये गए जिसे कछवाह के आगमन के बाद वो सभी उनके अधिकार में चले गये। पहले माताजी का छोटा सा मन्दिर था और मूर्ति खंडित अवस्था मे थी परंतु वर्तमान में देवती , राजौरगढ , माचेड़ी से निकले बड़गूजर जागीरदारों ने पुनः मन्दिर का निर्माण करवाया और पुनः शक्ति केंद्र के रूप में उभारा है। मुगल - बड़गूजर युद्ध और कछवाहा - बड़गूजर युद्ध मे मन्दिर को बहुत हानि उठानी पड़ी है इसके बावजूद भी बड़गूजर राजपूतों ने अपनी प्राचीन राजधानी को वर्तमान समय तक कायम रखा। समाज के कुछ लोगो ने मिलकर सभी को एक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष माताजी के गढ़ ( मन्दिर ) में मिलन समारोह का आयोजन किया जाता है। वर्तमान समय मे बड़गूजर राजपूतों की राजौरा शाखा का बहुत योगदान रहा है।


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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Good work 👍👍