आज बहुत दिनों के बाद ऑनलाइन होने और लिखने का अवसर प्राप्त हुआ, इन दिनों लिखने का अवसर नहीं मिल रहा है और शायद जल्दी लिख भी न पाऊँ। किन्तु पंकज जी के मंतव्य को और अफलातून जी के समाजवादी जन परिषद- उत्तर प्रदेश के विचारों को पढ़ा, चर्चा गंभीर और मजेदार थी और मै अपने आपको को लिखने से रोक न सका, एक तरफ कंप्यूटर पर एरियनस बैंड का गाना बज रहा था ‘’देखा है तेरी आंखों को, चाहा है तेरी अदाओं को, इसमें मेरा कसूर क्या है सनम’ ’लग रहा था कि लिखते समय मेरे मुँह पर तमाचा मार रहा था या मै इस गीत के मुँह पर।
वैसे मेरा तरकश और मंतव्य और तरकश पर जाना कम ही होता था एक बार पंकज जी ने कहा कि आप तरकश पर नही जाते है क्या? तो मेरा कहना था कि शायद हां वो भी जोगलिखी पर, क्योंकि मेरा उनके चिठ्ठे पर ज्यादा जाना होता है जो मेरे चिट्ठे पर आते है, और उनके पर भी जाना होता है तो उनके चिट्ठे पर आते है (उनके कमेंट के लिंक के द्वारा)। कौन नहीं जानता है कि सर्वाधिक कमेंट कौन करता है, इस लिये तरकश पर जाना तो होता तो है, सर्वाधिक जोगलिखी पर, अब तो मंतव्य पर भी होने लगा है। शायद मेरी यह बात कई बंधुओं को खराब भी लगे।
अब मुख्य मुद्दे पर आना चाहिए, पंकज जी का प्रश्न था कि क्या श्री कृष्ण मवाली थे? मुझे कोई शक नही है नही है कि वे मवाली नही थे, श्रीकृष्ण बनना तो कितना आसान है पर नही भूलना चाहिये कि वे कभी राम भी थे, अगर को आज के दौर मे कोई श्रीकृष्ण बनना चाहता है तो उसे राम के आचरण को भी नही भूलना चाहिये, एक तरफ श्री कृष्ण श्री की 16 हजार रानियां थी, तो राम एक पत्नीव्रता थे। श्रीकृष्ण से बड़ा मवाली इस दुनिया कोई नही मिलेगा, ऐसा कौन राजा होगा जो अपने से गरीब साथियों के साथ खेलता, कौन ऐसा मित्र होगा जो अपने दीन मित्र के पैरों को धोया होगा और बिन मांगे चार चावल के दानों के बदले राजपाट दे देगा। कौन ऐसा पति होगा 16 हजार रानियों को एक साथ प्रेम दे सकता होगा जहां आज के जमाने मे जिससे प्रेम विवाह होता है उसी से विवाह विच्छेद होते देर नहीं लगती है। श्री कृष्ण रासलीला करते थे, तो एक मर्यादित ढंग से राधा से उन्होंने प्रेम किया पर, पर राधा पवित्र रही और विवाह किसी और से हुआ, आज के जमाने में सारे कर्म हो जाते है, शादी बाद मे होती है और परिणाम पहले आ जाता है। शादी न होने पर नैनी के नये यमुना का नये पुल पर चले जाते है, आत्महत्या करने के लिये, ये कहना न कहना कि उस जमाने में यमुना पुल न था न तो राधा भी कूदने के लिए चली जाती। प्रेम एक हद तक ठीक है पर प्रेम का प्रदर्शन कहाँ तक उचित है। वो भी श्री कृष्ण का नाम लेकर की वे भी प्रेम करते थे। श्रीकृष्ण का प्रेम सच्चे प्रेम का प्रतीक था न कि भोग का, अगर कोई श्रीकृष्ण को मवाली कहता है, तो मै भी सुर मे सुर मिला के कहूँगा कि कृष्ण मवाली थे, और मुझे अफसोस होगा कि हमारे देश मे ऐसे और मवाली क्यों पैदा हुऐ।
देश को क्या हो गया है? अपना दोष दूसरे को गले मढता है। आज से ठीक एक साल पहले जब मेरठ मे पुलिस वालों ने जमकर लैला-मजनू की पिटाई की गई थी तब कोई समाजवादी और अन्यों ने विरोध किया जबकि जिसका नाम लेकर आज हल्ला मचाया जा रहा है उसी ने पुलिस की कार्यवाही का समर्थन किया था, जबकि उत्तर प्रदेश मे समाजवादी सरकार थी और वही बृज प्रदेश है जहाँ श्रीकृष्ण रहते थे। क्यों भूलते है कि मोदी से पहले इतिहास बनाने वाले मुलायम है। ये दोहरे मापदंड कब तक चलते रहेंगे?
मोदी के दुश्मनों भाइयों की कमी उनके घर मे ही कम नही है, क्योकि जब तक मोदी है तब तक किसी भी भाई के मुख्यमंत्री की सम्भावना नही है, अगर बाहर हल्ला होती है तो यहाँ मोदी के सुशासन के कारण है क्योंकि जो विकास मोदी ने 5 साल मे गुजरात मे किया है वह आज तक किसी प्रदेश की सरकार और यहाँ तक कोई केन्द्रीय सरकारों ने नहीं किया है। आज की सरकारें तो विकास के नाम पर कहीं कन्या विद्याधन बांट रही है तो कही बेरोजगारी भत्ता तो कहीं विशेष वर्ग को आरक्षण देकर वोट की राजनीति खेलती है। पर मोदी के शासन में यह नहीं सुनाई दिया। अगर अगला प्रधानमंत्री अगर मोदी न हो तो मोदी जैसा जरूर हो।
एक बात सोचने पर दिमाग को खटकती है कि गांधी-गुजरात और मोदी इन्हीं तीनों पर कीचड़ ज्यादा क्या उछाला जाता है? क्योंकि गुजरात मे कीचडों की कमी नही है, 1/5 भाग गुजरात में कीचड़ ही भरा हुआ है, कारण है ‘’कच्छ की रण’’ कीचड़ मय है। इस कारण तीनों पर ही ज्यादा कीचड़ उछाला जाता है, और इसके पीछे और साथ चलने वाले भी कीचड़ खाते है। कुछ लोगों की आदत ही होती है कीचड़ उछालने कि क्योंकि वे भूल जाते है कि सबसे पहले कीचड़ उनके ही हाथ मे लगता है जो कीचड़ उछालते है। मोदी को जितना लोकप्रियता विरोधियों से मिली उतना उनके समर्थकों(पार्टी) से नहीं मिली है। पहले आज से 5 साल पहले जब मै हाई स्कूल का छात्र था और नरेंद्र मोदी भाजपा के महासचिव हुआ करते थे तो मुझे यहीं मोदी मुझे फूटी आँखों नहीं सुहाते थे क्योंकि मोदी की आवाज मे पता नही क्या लगता था कि उसे बयान करने के लिये मेरे पास शब्द नहीं है। गोधरा के बाद जिस प्रकार के दृश्य हमारे सामने रखे गए और और जिस प्रकार मोदी ने सबका सामना करते हुए, सरकार का त्यागपत्र देकर पुन: जनता का विश्वास प्राप्त किया। जनता के द्वारा दिये गये विश्वास मत को विपक्षियों से ठोग कहा ¾ के बहुमत से निर्वाचित सरकार को बरखस्त करने की मॉंग की गई। क्या यह जनता के साथ विस्वास घात न होता। जब महत 14.5 प्रतशित मुस्लिमों के बल पर पूरे देश मे कही भी सरकार बनाने का दावा किया जाता है तो क्या 84 प्रतशित हिन्दू के बल अगर कोई सरकार बनती है तो केवल उसका विरोध क्यों? जब उत्तर प्रदेश में MY समीकरण चल सकता तो H समीकरण से परहेज क्यों? ये तो वही बात हुई गुड़ खाएं और गुलगुले से परहेज, क्योंकि यह उनके हित मे नही है इसलिये यह ठीक नहीं है।
अक्सर लोग कहते मिल जाते है कि आज समाज कितना असुरक्षित हो गया है। आखिर यही कहने वालों ने ही समाज को असुरक्षित कर दिया है। कपड़ो के नाम पर छात्राओं 8-9 गज की साडी के नाम पर आज मात्र 2 गज का कपडा की बचा है। भगवान को भी इनकी इज्जत बचाने के लिये सोचना पड़ता है कि जाये तो कैसे जाये? आखिर कब तक आधुनिकता के नाम पर हम अपने आप को नंगा करते रहेंगे? सीमाओं का अतिक्रमण कभी भी ठीक नहीं होता है, और प्रकृति इसे अपने अनुरूप बनाने के लिए अपना रास्ता स्वयं खोज लेती है। कुछ लोगों का कहना है कि युगलों का साथ-साथ घूमना खराब नहीं है और आंकड़े कहते है कि मित्र तथा नजदीकी संबंधी इन हादसों के लिए ज्यादा जिम्मेदार होते है। जब आप किसी पर छींटाकशी करते हो तो क्यों भूल जाते हो जिस चौराहे पर आप खडे हो कर जो कुकृत्य कर रहे है, उसी सड़क के दूसरे चौराहे पर कोई आपकी बहन के साथ आपकी हरकत की पुर्नावृत्ति कर रहा होगा? जो कुछ आप करे वह सही है और कोई वही काम आपके साथ किया जाये तो आपको गलत क्या लगता है। दोहरे मापदंड मिटाने होगे, गलत- तो गलत है चाहे आप हो या कोई, समाज को बदलने से अपने आप को बदलो जिस दिन आप बदलोगे समाज अपने आप बदल जायेगा।
आजकल का छात्र जीवन को छात्र जीवन को छात्र जीवन कहने में भी संकोच होता है, लगता है कि हम अपने आप को ही गाली दे रहे है, विश्वविद्यालय शिक्षा केन्द्र न होकर प्रेम स्थान और नेतागीरी का संयुक्त रणक्षेत्र बनता जा रहा है। मेरे 3 साल के विश्वविद्यालय काल में विश्वविद्यालय परिसर तथा उसके परिधि के 2 किमी क्षेत्र में छात्रों के बीच नेतागिरी और प्रेम प्रसंग के संबंध में आधा दर्जन हत्या सहित सैकड़ों झडप देखने को मिली है। एक दो बार तो गोलीबारी और बमबारी परिसर में मेरे आखों के समने हुई है। छात्र नेता के नाम एसे छात्र आज भी केन्द्रीय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आज भी है जिन्होंने मेरे जन्म के 2 साल पहले यानी 1984 में स्नातक किया था, आज ये छात्र नेता इलाहाबाद उच्च न्यायालय में छात्रसंघ अध्यक्ष पद के लिये रिट दाखिल किया है।
गलत काम का प्रतिकार जरूरी है, चाहे कोई कहे। मुझे नहीं लगता कि मेरठ और अहमदाबाद मे जो हुआ गलत हुआ, तब मेरठ पुलिस को समर्थन था तो आज दुर्गा वाहिनी को है। कम से कम समाज का एक वर्ग तो इस नगे नाच के प्रतिकार के लिए उठा। आगे उम्मीद है कि ऐसे लोग सामने आएंगे। जिस दिन से महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिये समान ‘वस्त्र नियम’ लागू हो जाएगा, तब भारत मे हर तरफ महिलाओं के प्रति आपराधिक प्रवृत्तियों मे कमी आयेगी। यह समय गम्भीर चिन्तन का है कि क्या हमारी पीढ़ी सही रास्ते पर जा रही है। आज के युवा वर्ग आधुनिकता के दौर में अपने अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है। आज उसकी चाहत उसी की जान की दुश्मन बनी हुई है। इस आत्मघाती प्रवृत्ति से हम सब को बचना होगा। शायद मै इस समय इस हिन्दी चिट्ठा जगत का उम्र, योग्यता तथा अन्य सभी क्षेत्रों में सबसे छोटा सदस्य हूँ, यह लेख लिखते समय काफी असहज महसूस कर रहा था, क्योंकि मैंने इस विषय पर पहले कभी नही लिखा था। मेरी कही गई किसी बात को आप अन्यथा न लेगे चाहे वह श्रीकृष्ण के प्रति हो या अन्य के प्रति, मेरी कमियों तथा गलतियों को नजरअंदाज करेंगे।
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