आज कल संघ के सम्बन्ध में काफी चर्चा चल रही है, ऐसे में बड़े भैया की डायरी में रखे एक पत्र को यहां यथावत रखूँगा। जो संघ के बारे मे संक्षिप्त कहते हुए भी बहुत कुछ कहता है।
प्रिय मित्र,
संघ क्या है यह समझना और समझना दोनों ही कठिन है, कोई इन्हे फासीवाद कहता है तो कोई साम्प्रदायिकता फैलाने वाला संगठन। जितने प्रकार के लोग मिलते है उतनी प्रकार की तुलानाऐ की जाती है।ऐसे तुलना करने वाले किस प्रकार के थर्मामीटर का प्रयोग करते है यह विचार करने प्रश्न है। यदि वातावरण की आर्द्रता मापने वाला है तो वह शरीर के ताप को कैसे सही बतायेगा, यदि कोई चाहे कि ट्रकों की माप करने वाले कांटे से एक किलो चीनी को कैसे तौला जा सकता है।
इसी प्रकार कुछ लोग पाँच किलो चीनी तौलने वाले तराजू से ट्रक को तौलने का प्रयास कर रहे है। कई वर्षो से संघ कार्य करने वाले लोगों से पूछता हूं तो पाता हूँ कि उनके पास इस प्रश्न की जानकारी नहीं है कि संघ क्या ? किसी काम से मध्यप्रदेश के सतना जिले में जाना हुआ, वर्षा के दिन थे, एक संघी भाई से भेंट हुई, जिज्ञासा वश उनसे मैंने यही दो प्रश्न किये--
संघ क्या है ?
आप मुसलमानों के सम्बन्ध मे इतना विद्वेश क्यों फैलाते है?
मैने जिनसे प्रश्न किया वे इंजीनियरिंग कॉलेज मे प्राध्यापक थे। पहले प्रश्न के उत्तर मे वे कहते है- मै भी करीब 10 वर्षों से इसी के शोध मे हूँ। दूसरे प्रश्न का उत्तर वे मंद मंद मुस्कुराहट के साथ टाल गये। मुझे लगा कि प्रोफेसर साहब मेरे प्रश्न से बचना चाहते है, और मै विजेता सा भाव लिये प्रसन्न हो चुप रह गया।
वहॉं रहने दौरान ही प्रकृति का प्रकोप बरपा भयंकर वर्षा हुई। मै अपने कमरे में बैठा वर्षा का आनंद ले रहा था। तभी अचानक प्रोफेसर साहब आये और कहने लगे मेरे साथ चलो। उनके कहने में कुछ जल्दी पन का भाव था अत: मैने भी बिना प्रश्न किए तहमत (लुंगी) उतार कर पैंट शर्ट पहन, छाता लेकर मै उनके साथ हो दिया। रास्ते मे साथ चलते हुए उन्होंने बताया कि कई इलाकों मे बाढ़ आई है, वहां आपकी सहायता की जरूरत है। यह वाक्या लगभग सुबह के पांच बजे का था। स्थान विशेष पर पहुंचने पर पता चला कि यहां पर सायंकाल से ही सहायता चालू है।" जो मेरे आनंद का विषय था कि वह किसी की मृत्यु और तबाही का कारण बनी हुई थी", जिनके कार्य व्यवहार को मै गालियां दिया करता था वे ही उन डूबते के तिनके का सहारा बने थे। बुद्धि के तर्कों का माहिर मै किन्कर्तव्यविमुढ बना सब कुछ देख रहा था। मुझे क्या करना चाहिये यह मेरी समझ मे नही आ रहा था? जिन्हे मै न जाने क्या क्या कहता था वो किसी माहिर खिलाड़ी की भांति इस विपदा से भी खेल रहे थे, लोगों को काल के गाल से निकालने का काम कर रहे थे।
मुझे एक शिविर मे ले लाये जाने वाले लोगों के नामों की सूची बनाने तथा किसी की पूछताछ मे सहायता करने को कहा गया था। मेरे द्वारा बनाई गई सूची और वहां काम करने वाले लोगों के भेदभाव रहित काम ने मुझे मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर दे रहे थे।
आपका
...................................
Share:
भगवान श्री राम की मृत्यु कैसे हुई
Ram Bhagwan Ki Mrityu Kaise Hui Thi
भगवान श्री राम की मुक्ति से पूर्व यदि हम उनके जीवनकाल पर नजर डालें तो प्रभु राम ने पृथ्वी पर 10 हजार से भी ज्यादा वर्षों तक राज किया है। अपने इस लम्बे परिमित समय में भगवान राम ने ऐसे कई महान कार्य किए हैं, जिन्होंने हिन्दू धर्म को एक गौरवमयी इतिहास प्रदान किया है। प्रभु राम अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे, जिनका विवाह जनक की राजकुमारी सीता से हुआ था। अपनी पत्नी की रक्षा करने के लिए भगवान राम ने राक्षसों के राजा रावण का वध भी किया था।
फिर कैसे भगवान राम इस दुनिया से लोप हो गए? वह क्या कारण था जो उन्हें अपने परिवार को छोड़ विष्णु लोक वापस पधारना पड़ा। पद्म पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक दिन एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार में पहुंचे और उनसे अकेले में चर्चा करने के लिए निवेदन किया। उस संत की पुकार सुनते हुए प्रभु राम उन्हें एक कक्ष में ले गए और द्वार पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा किया और कहा कि यदि उनके और उस संत की चर्चा को किसी ने भंग करने की कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा।
लक्ष्मण ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने लगे। वह वृद्ध संत कोई और नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए काल देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना होगा।
अभी उस संत और श्रीराम के बीच चर्चा चल ही रही थी कि अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए। उन्होंने लक्ष्मण से भगवान राम से बात करने के लिए कक्ष के भीतर जाने के लिए निवेदन किया लेकिन श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। ऋषि दुर्वासा हमेशा से ही अपने अत्यंत क्रोध के लिए जाने जाते हैं, जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ता है, यहां तक कि स्वयं श्रीराम को भी।
लक्ष्मण के बार-बार मना करने पर भी ऋषि दुर्वासा अपनी बात से पीछे ना हटे और अंत में लक्ष्मण को श्री राम को श्राप देने की चेतावनी दे दी। अब लक्ष्मण की चिंता और भी बढ़ गई। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर उन्हें श्राप मिलने से बचाएं।
लक्ष्मण कभी नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके भाई को कोई किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सके। इसलिए उन्होंने अपनी बलि देने का फैसला किया। उन्होंने सोचा यदि वे ऋषि दुर्वासा को भीतर नहीं जाने देंगे तो उनके भाई को श्राप का सामना करना पड़ेगा, लेकिन यदि वे श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध जाएंगे तो उन्हें मृत्यु दंड भुगतना होगा, यही लक्ष्मण ने सही समझा।
Share:
इस दुनिया में आने वाला इंसान अपने जन्म से पहले ही अपनी मृत्यु की तारीख यम लोक में निश्चित करके आता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जो आत्मा सांसारिक सुख भोगने के लिए संसार में आई है, वह एक दिन वापस जरूर जाएगी, यानी कि इंसान को एक दिन मरना ही है। लेकिन इंसान और ईश्वर के भीतर एक बड़ा अंतर है। इसलिए हम भगवान के लिए मरना शब्द कभी इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसके स्थान पर उनका इस ‘दुनिया से चले जाना’ या ‘लोप हो जाना’, इस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं।
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के महान अवतार प्रभु राम के इस दुनिया से चले जाने की कहानी काफी रोचक है। हर एक हिन्दू यह जानना चाहता है कि आखिरकार हिन्दू धर्म के महान राजा भगवान राम किस तरह से दूसरे लोक में चले गए। वह धरती लोक से विष्णु लोक में कैसे गए इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के महान अवतार प्रभु राम के इस दुनिया से चले जाने की कहानी काफी रोचक है। हर एक हिन्दू यह जानना चाहता है कि आखिरकार हिन्दू धर्म के महान राजा भगवान राम किस तरह से दूसरे लोक में चले गए। वह धरती लोक से विष्णु लोक में कैसे गए इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
हिन्दू धर्म के प्रमुख तीन देवता है ब्रह्मा, विष्णु और महेश, इनमें से भगवान विष्णु के कई अवतारों ने विभिन्न युग में जन्म लिया। यह अवतार भगवान विष्णु द्वारा संसार की भलाई के लिए लिए गए थे। भगवान विष्णु द्वारा कुल 10 अवतारों की रचना की गई थी, जिसमें से भगवान राम सातवें अवतार माने जाते हैं। यह अवतार भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूजनीय माना जाता है।
प्रभु श्रीराम के बारे में महर्षि वाल्मीकि द्वारा अनेक कथाएं लिखी गई हैं, जिन्हें पढ़कर कलयुग के मनुष्य को श्रीराम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वाल्मीकि के अलावा प्रसिद्ध महाकवि तुलसीदास ने भी अनगिनत कविताओं द्वारा कलियुग के मानव को श्री राम की तस्वीर जाहिर करने की कोशिश की है। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक, सभी जगहों पर भगवान राम के मंदिर स्थापित किये गए हैं। इनमें से कई मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से बनाए गए हैं।
प्रभु श्रीराम के बारे में महर्षि वाल्मीकि द्वारा अनेक कथाएं लिखी गई हैं, जिन्हें पढ़कर कलयुग के मनुष्य को श्रीराम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वाल्मीकि के अलावा प्रसिद्ध महाकवि तुलसीदास ने भी अनगिनत कविताओं द्वारा कलियुग के मानव को श्री राम की तस्वीर जाहिर करने की कोशिश की है। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक, सभी जगहों पर भगवान राम के मंदिर स्थापित किये गए हैं। इनमें से कई मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से बनाए गए हैं।
भगवान श्री राम की मुक्ति से पूर्व यदि हम उनके जीवनकाल पर नजर डालें तो प्रभु राम ने पृथ्वी पर 10 हजार से भी ज्यादा वर्षों तक राज किया है। अपने इस लम्बे परिमित समय में भगवान राम ने ऐसे कई महान कार्य किए हैं, जिन्होंने हिन्दू धर्म को एक गौरवमयी इतिहास प्रदान किया है। प्रभु राम अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे, जिनका विवाह जनक की राजकुमारी सीता से हुआ था। अपनी पत्नी की रक्षा करने के लिए भगवान राम ने राक्षसों के राजा रावण का वध भी किया था।
फिर कैसे भगवान राम इस दुनिया से लोप हो गए? वह क्या कारण था जो उन्हें अपने परिवार को छोड़ विष्णु लोक वापस पधारना पड़ा। पद्म पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक दिन एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार में पहुंचे और उनसे अकेले में चर्चा करने के लिए निवेदन किया। उस संत की पुकार सुनते हुए प्रभु राम उन्हें एक कक्ष में ले गए और द्वार पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा किया और कहा कि यदि उनके और उस संत की चर्चा को किसी ने भंग करने की कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा।
लक्ष्मण ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने लगे। वह वृद्ध संत कोई और नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए काल देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना होगा।
अभी उस संत और श्रीराम के बीच चर्चा चल ही रही थी कि अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए। उन्होंने लक्ष्मण से भगवान राम से बात करने के लिए कक्ष के भीतर जाने के लिए निवेदन किया लेकिन श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। ऋषि दुर्वासा हमेशा से ही अपने अत्यंत क्रोध के लिए जाने जाते हैं, जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ता है, यहां तक कि स्वयं श्रीराम को भी।
लक्ष्मण के बार-बार मना करने पर भी ऋषि दुर्वासा अपनी बात से पीछे ना हटे और अंत में लक्ष्मण को श्री राम को श्राप देने की चेतावनी दे दी। अब लक्ष्मण की चिंता और भी बढ़ गई। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर उन्हें श्राप मिलने से बचाएं।
लक्ष्मण हमेशा से अपने ज्येष्ठ भाई श्री राम की आज्ञा का पालन करते आए थे। पूरे रामायण काल में वे एक क्षण भी श्रीराम से दूर नहीं रहे। यहां तक कि वनवास के समय भी वे अपने भाई और सीता के साथ ही रहे थे और अंत में उन्हें साथ लेकर ही अयोध्या वापस लौटे थे। ऋषि दुर्वासा द्वारा भगवान राम को श्राप देने जैसी चेतावनी सुनकर लक्ष्मण काफी भयभीत हो गए और फिर उन्होंने एक कठोर फैसला लिया।
लक्ष्मण कभी नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके भाई को कोई किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सके। इसलिए उन्होंने अपनी बलि देने का फैसला किया। उन्होंने सोचा यदि वे ऋषि दुर्वासा को भीतर नहीं जाने देंगे तो उनके भाई को श्राप का सामना करना पड़ेगा, लेकिन यदि वे श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध जाएंगे तो उन्हें मृत्यु दंड भुगतना होगा, यही लक्ष्मण ने सही समझा।
वे आगे बढ़े और कमरे के भीतर चले गए। लक्ष्मण को चर्चा में बाधा डालते देख श्रीराम ही धर्म संकट में पड़ गए। अब एक तरफ अपने फैसले से मजबूर थे और दूसरी तरफ भाई के प्यार से निस्सहाय थे। उस समय श्रीराम ने अपने भाई को मृत्यु दंड देने के स्थान पर राज्य एवं देश से बाहर निकल जाने को कहा। उस युग में देश निकाला मिलना मृत्यु दंड के बराबर ही माना जाता था।
लेकिन लक्ष्मण जो कभी अपने भाई राम के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकते थे उन्होंने इस दुनिया को ही छोड़ने का निर्णय लिया। वे सरयू नदी के पास गए और संसार से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हुए वे नदी के भीतर चले गए। इस तरह लक्ष्मण के जीवन का अंत हो गया और वे पृथ्वी लोक से दूसरे लोक में चले गए। लक्ष्मण के सरयू नदी के अंदर जाते ही वह अनंत शेष के अवतार में बदल गए और विष्णु लोक चले गए।
अपने भाई के चले जाने से श्री राम काफी उदास हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं, ठीक उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से चले जाने का विचार बनाया। तब प्रभु राम ने अपना राज-पाट और पद अपने पुत्रों के साथ अपने भाई के पुत्रों को सौंप दिया और सरयू नदी की ओर चल दिए।
अपने भाई के चले जाने से श्री राम काफी उदास हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं, ठीक उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से चले जाने का विचार बनाया। तब प्रभु राम ने अपना राज-पाट और पद अपने पुत्रों के साथ अपने भाई के पुत्रों को सौंप दिया और सरयू नदी की ओर चल दिए।
वहां पहुंचकर श्री राम सरयू नदी के बिलकुल आंतरिक भूभाग तक चले गए और अचानक गायब हो गए। फिर कुछ देर बाद नदी के भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस प्रकार से श्री राम ने भी अपना मानवीय रूप त्याग कर अपने वास्तविक स्वरूप विष्णु का रूप धारण किया और वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया।
भगवान राम का पृथ्वी लोक से विष्णु लोक में जाना कठिन हो जाता यदि भगवान हनुमान को इस बात की आशंका हो जाती। भगवान हनुमान जो हर समय श्री राम की सेवा और रक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाते थे, यदि उन्हें इस बात का अंदाजा होता कि विष्णु लोक से श्री राम को लेने काल देव आने वाले हैं तो वे उन्हें अयोध्या में कदम भी ना रखने देते, लेकिन उसके पीछे भी एक कहानी छिपी है।
जिस दिन काल देव को अयोध्या में आना था उस दिन श्री राम ने भगवान हनुमान को मुख्य द्वार से दूर रखने का एक तरीका निकाला। उन्होंने अपनी अंगूठी महल के फर्श में आई एक दरार में डाल दी और हनुमान को उसे बाहर निकालने का आदेश दिया। उस अंगूठी को निकालने के लिए भगवान हनुमान ने स्वयं भी उस दरार जितना आकार ले लिया और उसे खोजने में लग गए।
जब हनुमान उस दरार के भीतर गए तो उन्हें समझ में आया कि यह कोई दरार नहीं बल्कि सुरंग है जो नाग-लोक की ओर जाती है। वहां जाकर वे नागों के राजा वासुकि से मिले। वासुकि हनुमान को नाग-लोक के मध्य में ले गए और अंगूठियों से भरा एक विशाल पहाड़ दिखाते हुए कहा कि यहां आपको आपकी अंगूठी मिल जाएगी। उस पर्वत को देख हनुमान कुछ परेशान हो गए और सोचने लगे कि इस विशाल ढेर में से श्री राम की अंगूठी खोजना तो कूड़े के ढेर से सूई निकालने के समान है।
लेकिन जैसे ही उन्होंने पहली अंगूठी उठाई तो वह श्री राम की ही थी। लेकिन अचंभा तब हुआ जब दूसरी अंगूठी उठाई, क्योंकि वह भी भगवान राम की ही थी। यह देख भगवान हनुमान को एक पल के लिए समझ ना आया कि उनके साथ क्या हो रहा है। इसे देख वासुकि मुस्कुराए और उन्हें कुछ समझाने लगे।
वे बोले कि पृथ्वी लोक एक ऐसा लोक है जहां जो भी आता है उसे एक दिन वापस लौटना ही होता है। उसके वापस जाने का साधन कुछ भी हो सकता है। ठीक इसी तरह श्रीराम भी पृथ्वी लोक को छोड़ एक दिन विष्णु लोक वापस आवश्य जाएंगे। वासुकि की यह बात सुनकर भगवान हनुमान को सारी बातें समझ में आने लगीं। उनका अंगूठी ढूंढ़ने के लिए आना और फिर नाग-लोक पहुंचना, यह सब श्री राम का ही फैसला था।
वासुकि की बताई बात के अनुसार उन्हें यह समझ आया कि उनका नाग-लोक में आना केवल श्री राम द्वारा उन्हें उनके कर्तव्य से भटकाना था ताकि काल देव अयोध्या में प्रवेश कर सकें और श्री राम को उनके जीवनकाल के समाप्त होने की सूचना दे सकें। अब जब वे अयोध्या वापस लौटेंगे तो श्रीराम नहीं होंगे और श्रीराम नहीं तो दुनिया भी कुछ नहीं है।
Share:
अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें....
महाशक्ति पर 319 हिट ! आखिर माजरा क्या था ?
मेरे ब्लॉग पर 319 हिट हुई इसकी चर्चा काफी हुई। लिंकित मन पर निलिमा जी भी बरस पड़ी नारद रूपी जीतेन्द्र चौधरी जी पर कि कुछ गड़बड़ है। नीलिमा जी ने कई मुद्दे उठाऐ उन मुद्दों से मेरा कोई सरोकार नही है, पर मेरे ब्लाग पर 319 हिट के उत्तर के लिये मै बाध्य हूँ। बताता हूँ हुआ क्या:-
- अचानक मै नारद पर पहुँचा देखा कि मेरे लेख के समाने हिट कम है।फिर मेरे मन मे आया कि हर व्यक्ति का अपना एक पाठक वर्ग होता है, जो अक्सर नारद पर से उसके ब्लॉग पर जाता है। इस प्रकार कुछ के ब्लॉग के समान रेटिंग ज्यादा होती है तो कुछ के सामने कम, पर मैने ऐसा महसूस किया कि जिनके लेख के सामने हिट ज्यादा होती है उनके ब्लॉग पर अन्य लोग भी जाते है यह सोच कर कि शायद अच्छा लिखा हो इस कारण ज्यादा लोग गये होंगे। इस प्रकार पाठक के मनोभाव पर असर पड़ता है और वह इस बहाने मैंने आपने लेख के सामने अनगिनत क्लिक किया और विवादित होने का कारण बना। पर मैने जैसा सोचा था वैसा हुआ मुझे अपने इस लेख एक दिन मे सर्वाधिक पाठक पाने को भी मिले मेरे गणक के हिसाब से मैने 80 से ज्यादा पाठक पाये थे। अर्थात मैने पाठक के हृदय को परिवर्तित करने मे सफलता भी पाई।
- एक बात मै कहना चाहता हूँ कि नारद पर इस क्लिक रेटिंग से विभिन्न ब्लॉगरों को दिक्कत का सामना करना पड़ता होगा। अनूप जी, समीर जी भाटिया जी व जीतूजी आदिके लेखों पर अधिक क्लिक होते है, पर कुछ ब्लॉग ऐसे है जिन पर एक भी क्लिक नहीं होता है नारद पर होने के बाद भी जैसा कि एक ब्लाग है जिस पर रामायण और महाभारत है।
- अत: जीतू जी से अनुरोध है कि वे इस रेटिंग पद्धति की तरफ ध्यान दे, हो करे तो यह साप्ताहिक किया जा सकता है। जिससे कि पाठकों के मन पर किसी लेख के प्रति विपरीत प्रभाव न जाये।
- नारद पर और क्या हो रहा यह मै नही जानता, किंतु महाशक्ति पर 319 हिट के लिये जीतूजी या नारद जिम्मेदार नहीं हे।
- मैंने यह सब काफी सोच समझ कर, बिना किसी गलत उद्देश्य के लिये किया था। मैंने अपने हिट संबंधी बात को अपने लेख मे कहना चाहता था पर समयाभाव के कारण मै यह तत्काल न कर सका, क्योंकि यह 26 फरवरी के बाद यह मेरा कोई लेख है ।
अब तो आप महाशक्ति पर 319 चटकें की बात तो समझ ही गये होगें। :)
Share:
अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें....
सदस्यता लें
संदेश (Atom)