विन्‍डोज लाइव राइटर का प्रयोग



काफी दिनों पहले इसके बारे में सुना था और प्रयोग करने की कोशिश भी किया किन्तु सफलता नहीं मिला। आज प्रात: श्री अफलातून जी ने फिर से इसके बारे में बताया और मैं इसका प्रयोग करने की ओर अग्रसर हुआ। आज यह पहला लेख इससे डालने जा रहा हूँ अभी सफलता की आशा कम ही है।
आज अफलातून जी ने बताया‍ कि इसमें ऑफ लाइन लिखकर आप अपने लेख को अपने ब्‍लाग पर डाल सकते है। यही देखने का प्रयास कर रहा हूँ कि यह चमत्कार होता है कि नहीं। मैं अकसर आनलाइन होकर लेख लिखता हूँ और बिना पढ़े उसे पोस्ट कर देता हूँ। जिसके कारण मेरे लेखों में व्याकरणात्मक अशुद्धियां देखने को मिलती है। लाइव राइटर के कारण अब इस प्रकार की अशुद्धियां कम देखने को मिल सकती है।
पहले तो मै अकसर माइक्रोसोफ्ट वर्ड पर लिख कर अपने ब्‍लाग पर जा कर पोस्ट कर देता था इससे भी गलतियां कम होती थी। ठीक है अब मैं इसे पोस्ट करने का प्रयास करता हूँ देखता हूँ कि यह होता है कि नहीं।



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एक भीनीं सी मुस्‍कान और भगवान के प्रति धन्‍यवाद



मैं प्रतापगढ़ जा रहा था एक रेलवे क्रासिंग पड़ती है उस समय अमृतसर से हाबड़ा जाने वाली ट्रेन का समय था। फाटक बंद था। मैं भी गाड़ी से उतर कर रेल को देखने पटरी की ओर चल दिया तभी देखता हूँ कि एक कुत्‍ता रेल की पटरी पर दौड़ रहा था उसके पीछे ट्रेन थी ट्रेन से भी तेज दौड़ने के प्रयास में कुत्‍ता और तेज दौड़ रहा था पर पर वह कुदरत की चाल से ट्रेन को पछाड़ पाने में असमर्थ था। ट्रेन का अगला हिस्सा आगे कि ओर कुछ ज्यादा झुका होता है ट्रेन से पहले कुत्‍ते का एक टक्कर मारी और कुत्‍ता नीचे की ओर लेट गया हो सकता हो पीड़ा के मारे ही क्यों न हो फिर बचने की प्रयास में खड़ा होता है और फिर वह डिब्बों के नीचे भाग से टकराया और फिर लेट गया। ट्रेन की गति इतनी तेज थी कि तीसरी बार जब वह उठा तो ट्रेन जा चुकी थी और वह पूर्ण रूपेण जीवित था। पर चोट तो लगी ही थी। जैसा कि मैंने इस दृश्य का देखने वाला पहला शख्स था मेरे तो रोंगटे खड़े हो गये। मेरे मन ईश्वर से बस इतनी ही प्रार्थना थी कि वह बच जाये। कहते है कि भगवान से कुछ सच्चे हृदय से माँगो तो भगवान कभी इनकार नही करते और आज प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिला। मेरी निगाह एक टक कुत्‍ते पर थी और वह लगड़ाते हुए जा रहा था। मेरे साथ वह कई दर्जन लोगों के मुख पर एक भीनीं सी मुस्कान और भगवान के प्रति धन्यवाद देखने को मिल रहा था। मैं भी अपने गन्तव्य की और चल दिया।


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पढ़ोगें तो मूर्ख बन जाओंगे के साथ कुछ गम्‍भीर प्रश्‍न



आज अप्रैल फूल दिवस है, यानी अंग्रेज भाइयों ने हम भारतीयों के लिये मूर्ख बनाने का दिन भी दिन भी निर्धारित कर गये है। मैं इस दिवस को नहीं मानता हूँ, पर देशी हवा के बयार में मूर्खता का ऐसा प्रचलन हुआ है कि‍ मैं सोचने को मजबूर हूँ कि क्या इसकी भी आवश्यकता ?
 यह हमारी तुच्छ मानसिकता की सोच है कि हम न्‍यू इयर, वैलेंटाइन डे, अप्रैल फूल डे, जैसे अन्तर्राष्ट्रीय दिवस तो जो शोर से मनाते है। किन्तु हम कुछ अन्य इनसे भी ज्यादा महत्वपूर्ण दिवस क्यों भूल जाते है। मैं पश्चात संस्कृति अपनाने का विरोधी नहीं हूँ, विरोधी हूँ तो पश्चात संस्कृति की गंदगी अपनाने का।
जब हम न्‍यू इयर, वैलेंटाइन डे, अप्रैल फूल डे मनाते है तो मनाए किन्तु हमने विश्व मातृ दिवस, विश्व पितृ दिवस, विश्व संगीत दिवस, विश्व फोटोग्राफी दिवस, चिकित्सक दिवस, पत्रकारिता दिवस, विश्व थ्रियेटर दिवस, अन्‍तर्राष्‍ट्रीय परिवार दिवस, अन्‍तर्राष्‍ट्रीय  प्रेस स्वतंत्रता दिवस, विश्व श्रमिक दिवस, विश्व विरासत दिवस, राष्ट्रीय युवा दिवस, विश्व मितव्ययिता दिवस, विश्व खाद्य दिवस और विश्व मांसाहार दिवस की ओर कभी ध्यान दिया ?
मैंने यहां पर जितने भी दिवस गिनाए है, उन सभी दिवसों का सम्बन्ध किसी ने किसी हिन्दी चिट्ठाकार से अवश्य है। पर शोक और क्षोभ का विषय है कि कोई भी कभी भी इन सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिवसों पर न तो कभी लिखा ही न ही बधाई का आदान प्रदान हुआ।
क्या हमने पश्चात गंदगी को एकत्र करने का ठेका ले रखा है? यह सोचनीय विषय है। आज मैं नारद पर गया तो चारों दिशाओं में मानवता के हत्यारे जार्ज बुश का चेहरा नजर आ रहा था। जैसा कि मुझे अनुमान तो था कि आज मूर्ख दिवस है पर इसे देख कर पक्का यकीन भी हो गया है। एक दो लेख को देखा तो मजाक मय ही माहौल था। फिर मुझे लगा कहीं सभी के चिठ्ठे पर मूर्ख बनाने का अभियान न चल रहा हो। और कही किसी पर टिप्‍प्‍णी किया तो मूर्ख की श्रेणी में न खड़ा कर दिया जाये।

मैंने आज के दिन के सारे लेख जिनकी हेडिग नारद पर थी सभी एक साथ एक सामान्य सा वाक्य (को पढ़ोगें तो मूर्ख बन जाओगे) जोड़ कर पढ़ना चालू किया तो
ग़ज़लें और कविताएँ इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
कविता सीखो हे कविराज… इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
धर्म के नाम पर - को पढ़ोगें तो मूर्ख बन जाओगे
आरक्षण : चाहिये ही चाहिये को पढ़ोगें तो मूर्ख बन जाओगे
कादम्बिनी कार्यकारी सम्पादक श्री विष्णु नागर की क़लम से इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
एप्रिल वाला फूल के फल इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
सोवियत संघ में नेताजी के साथ क्या हुआ? इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
गूगल टीआईएसपी: ब्रॉडबैंड दा बाप इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
शर्त सिर्फ एक हिन्दी में लिखो (प्रतियोगिता) इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
फुरसतिया बोले हमहू साइट बनैबे… इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
यह कदम्ब का पेड़ इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
न्यायपालिका पर ताला क्यों नहीं लगा देते? इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
सौ चूहे खाकर चले अर्जुन सिंह हज करने इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
अप्रैल-फूल इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
आरक्षण : आ....क थू इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
हिटलर से बड़ा तानाशाह राहुल गांधी इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
Super Hot & Sexy Angelina Jolie !!! इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!
Bunch of Jokers?…..really? इसे पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे!

आगे और भी है और आप को पढ़ोगे तो मूर्ख बन जाओगे लगा कर पढ़ सकते है। अब आप खुद सोचिये कि कौन आज लेख पढ़ कर मूर्ख बनना चाहेगा।
एक बात तो मुझे समझ में आती कि जो लोग दूसरे सचेत लोगों को मूर्ख बनाने में लगे होकर हँसते है वे उसने बड़े मूर्ख है जो वास्तव में मूर्ख होते है।


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