स्टार न्यूज पर लोकतंत्र पर हमला न होकर बल्कि छद्म पत्रकारिता के मुंह पर किया गया वज्र पात था। आज की पत्रकारिता केवल और केवल बिकती है, पैसा फेंको तमाशा देखो के तर्ज पर। आज के दौर में मीडिया पैसों की वह रोटी जिसे कुत्ता भी नहीं पूछता पर निर्भर करती है। भारत में न्यूज चैनल कुकुरमुत्ते की तरह उपज गये है। और हर के पास एक से बढ़कर एक न्यूज होती है जो केवल उनके पास ही होती है और दूसरे न्यूज चैनल का उस महान न्यूज का नामोनिशान नहीं होता है।
अपने आप को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाली मीडिया की नींव अब कमजोर हो गई है। जहां पत्रकारिता सत्य के लिये जानी जाती थी, वही आज कौड़ी के भाव बिक रही है। हर न्यूज चैनल पर किसी न किसी राजनीतिक पार्टी का आधिपत्य है। तो ऐसे में मीडिया पर विश्वास करना खुद से विश्वासघात के बराबर है।
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