एक कम्पनी तो विभिन्न देवी देवताओं के चित्र वस्त्रों पर प्रिंट है। वस्त्रों की बात तक तो ठीक थी पर उसे अन्त: वस्त्रों पर प्रिंट करना क्या हिन्दू भावनाओं को चोट पहुँचने के लिये नहीं है। तनिक विचार करें कि क्या यह उचित है ?
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हे राम! क्या हो रहा है ? लगातार 18 मैचों में मेरी क्रिकेट टीम को हार का सामना करना पड़ा, यह दुर्भाग्य का विषय है कि जिस टीम मे मै रहता हूँ उस टीम को हार का मुँह देखना पड़ता है। यह मात्र संयोग है या कुछ और ही।
हर दिन नही टीम बनाई जाती है। और सभी की खेल के प्रति सभी खिलाड़ियों की यह जिज्ञासा होती है कि क्या आज प्रमेन्द्र भैया (मैं) जिस टीम में रहेंगे वह टीम जीतेगी कि नहीं ? मैच के बाद हर खिलाड़ी के जुबान पर एक ही बात होती है कि आज फिर जिस टीम में प्रमेन्द्र भइया थे वह टीम हार गई।
यह शायद फील्ड का दोष है या कुछ और जब से हम लोग डीएसए क्रिकेट स्टेडियम में खेलने जा रहे है मेरी टीम को जीत का स्वाद नहीं मिला है। मै यह कह सकता हूँ कि हर व्यक्ति को जीत का स्वाद मिल गया है, केवल मुझे छोड़कर।
ऐसा नही है कि जब भी मै हारा हूँ, मैने खराब प्रदर्शन किया है 18 मैचों में केवल मै एक बार अपने प्रदर्शन के कारण हारा हूँ। जिसमे मैंने एक ओवर में 22 रन दनादन दिये थे। बाकी सर्वकालीन 18 मैचों में अब तक लगभग 22 ओवरों 57 विकेट ले चुका हूँ जिसमे एक ओवर की लगातार चार बालों पर चार विकेट लिये थे। रनों का भी अंबार लगाने में कभी पीछे रहा हूँ। अब तक 222 से ज्यादा रन बना चुका हूँ।
पर आज के मै मै तो हद हो गई जीता जिताया मैच हाथ से निकल गया, आठ ओवरों में जीत के लिये 42 रन बनाने थे। दो खिलाड़ी 18 गेंदों में मात्र 6 रन ही बना पाये थे चूंकि हमारा नियम होता है कि हर किसी को बैटिंग मे प्राथमिकता देने की होती है। पर एक खिलाड़ी तो लगातार 14 गेंदे झेल गया। तो टीम में कप्तान ने उसे रिटायर कर मुझे उतरने को कहा और मै रनिग छोर पर खड़ा था तभी वालिंग होती है और एक विकेट गिर जाता है। स्कोर होता है 19 गेंद 7 रन 1 विकेट। अर्थात जीतने के लिये 29 गेंदों पर 35 रन फिर स्ट्राइक मुझे मिलती है और फिर अगले दो ओवरों में 1 छक्के और 2 चौका स्कोर होता है 5 ओवर 36 बन गये थे । और अगले ही गेंद पर मै लम्बा शॉट खेलने के और एक अच्छे कैच के कारण आउट होना पड़ा और मेरे बाद दो विकेट शेष थे जीतने के लिये चाहिये था 1 गेंदों में 7 रन पर धन्य हो मेरी टीम उसके आगे बिना रन बनाए ऑल आउट हो गई। सभी को लग रहा था कि आज मेरी टीम जीत जायेगी किल्तु नियति को मेरी हार ही पंसद थी। और हर जुबान पर फिर से यही चर्चा कि प्रमेन्द्र भइया जिस टीम मे रहते हे वो टीम डीएसए क्रिकेट स्टेडियम कभी नही जीती है। और सब हंसी के साथ घर चल देते है इस चर्चा केसाथ कि क्या कर मेरी टीम जीतेगी। मेरी हार का क्या कारण है क्या आपको पता है ?
गंदगी किसी को पसंद नहीं है फिर भी क्यों जाते हो गंदगी पर? मोहल्ला नामक एक कुख्यात ब्लॉग समाज विद्वेष फैलाने का काम कर रहा है माफ कीजिएगा मैंने समाज का नाम दे कर गलती कर रहा हूँ। कम्प्यूटर तक ही सीमित है मोहल्ले की गंदगी। केवल इसका उद्देश्य है कि हम लोगों में फूट डाला जाये और ये लोग बैठ तमाशा देखें।
इन लोगों की स्थिति मुहल्ले की गन्दी सुअर की तरह है कि कितना भी अच्छा आप उनको खाना दीजिए किन्तु अपशिष्ट पदार्थ के बिना उनका पेट नहीं भरता उन्हीं की प्रजाति में कुछ इस प्रकार के पत्रकार भी आते है। जो जितने भी विषय लिखने को न हो किन्तु इन्हें हिंदुत्व विरोध के अलावा कुछ सूझता ही नहीं है।
मैं तो सिर्फ इतना कहूंगा कि मोहल्ले की गलत पोस्ट का कदापि उत्तर मत दीजिये। गंदगी को एक जगह तक सीमित रखिये। निश्चित है कि गंदगी में जायेंगे तो आपके साथ गंदगी आयेगी ही चाहे वो पैरों से ही क्यों न आये। जहाँ तक टिप्पणी की बात है तो जो भी अन्य टिप्पणी उनके ब्लॉग पर आती है न तो उनका कोई मालिक होता है। यह सब टिप्पणी मोहल्ले के कर्ताधर्ता स्वयं बैठ कर देते है। क्योंकि खुराफात के लिये कुछ तो करना ही होगा।