रोलाँ गैरो - दिग्गजो को नहीं रास आती ये लाल मिट्टी



 
28 मई से 10 जून तक होने वाला साल का दूसरा टेनिस ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट फ्रेंच ओपन (रोलैंड गारोस) लाल मिट्टी पर खेला जाने वाला विश्व का एकमात्र टूर्नामेंट है। यह टूर्नामेन्‍ट इस लिये भी प्रसिद्ध यह कई विश्व प्रसिद्ध नम्बर एक खिलाड़ियों को यह लाल मिट्टी रास नही आई है। विश्व मे सर्वाधिक 14 गैन्‍डस्‍लैम जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले पीट सैम्‍प्रास, उनके रिकार्ड को तोड़ने मे प्रयासरत लगातार 173 सप्ताह तक नंबर 1 रहने का रिकार्ड बनाने वाले रोजर फेडरर, 8 गैन्‍डस्‍लैम धारी जि‍मी कॉ‍नार्स, 7 ग्रैन्‍डस्‍लैम खिताबधारी जॉन मैकनेरों, 80 हफ्ते तक नम्‍बर एक रहे लेटेन हेविट, 6 खिताब धारी और 58 हफ्तों तक नंबर एक रहे स्‍टेफन एडबर्ग, मात्र एक हफ्ते नम्बर 1 रहे पैट्रिक रफ्टर जिन्‍होने दो ग्रैंड स्लैम जीता है, पूर्व नम्‍बर एक रूसी मरात साफिन, अमेरिकी क्‍यूट ब्वाय के नाम से मशहूर एंडी रोडिक सहित कई बड़े पुरूष खिलाड़ी है जो इससे आज तक महरूम है।

ऐसा नही है कि महिला खिलाड़ियों पर यह लागू नही होती है इस लिस्ट मे पहला नाम आता है विश्व की सबसे कम उम्र मे नम्बर एक का बनने का रुतबा हासिल करने वाली मार्टीना हिंगिस, हिंगिस के शान के कसीदे अभी खत्म नही होते है हिंगिस को 209 हफ्ते तक नंबर एक रही है। हिंगिस को एक बार फ्रेंच ओपन के फाइनल खेलने का अवसर मिला था किन्तु इस अवसर मे एक अनाम सी खिलाड़ी इवा मन्‍जोली के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। मार्टीना की समकालीन और उनकी सबसे बड़ी प्रतिस्‍पधी पूर्व नम्‍बर एक लिंडसे डेवनपोर्ट भी तीन गैन्ड स्लैम जीता पर फ्रेंच ओपन को जीतने मे नाकामयाब रही। गौरतलब है कि लिंडसे ने यह तीनों हिंगिस को हरा कर ही जीता था। ब्‍लैक ब्‍यूटी के नाम से मशहूर विलियम्स बहनों मे एक वीनस ने भी 5 गैन्‍ड जीता पर इसे जीत न सकी। यह संयोग ही कहा जायेगा कि सेरेना इसे एक बार ही जीत सकी है वो भी तब जब इनकी बड़ी बहन वीनस इसकी प्रतिस्‍पधी थी। हाल मे ही सन्‍यास लेने वाली किम क्‍लाइस्‍टर्स, आयोजक देश की ऐमेली मरसमों, रूसी सुन्‍दरी मारिया सारापोआ, भी इस लाल बजरी पर खिताबी जीत पाने से महरूम रही है।

उपरोक्‍त सभी खिलाड़ी कभी न कभी नम्‍बर एक रहा है परन्‍तु देखना है कि क्‍या इस बार वर्तमान मे खेल रहे इन मशहूर खिलाडियों मे से कोई इस मिथक को तोड़ पाने मे सफल रहेगा? अगर यह होता है तो निश्चित रूप से इन खिलाड़ियों के लिये व्यक्तिगत उपलब्धि होगी, क्योंकि दिग्गजों को नहीं रास आई ये लाल मिट्टी।

मै जल्द ही नया फ्रेंच ओपन से सम्बन्धित लेख लेकर आऊँगा कि पर होगा इस प्रतियोगिता को जीतने का दारोमदार। तब तक आप आप भी फ्रेंच ओपन जीतने का प्रयास कर सकते है, यहाँ पर भी आपके लिये प्रतियोगिता चल रही है, और इनाम है वो भी डालरों मे है तो कीजिये आपने आपको इस प्रतियोगिता मे रजिस्टर, आप रजिस्‍टर करते समय स्पॉन्सर आईडी मे मेरी आईडी mahashakti दे सकते है।


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सिन्‍धी समाज की दुर्दशा - राहुल गांधी क्या इसका भी श्रेय लेंगे ?



सिन्‍धी समाज की दुर्दशा - राहुल गांधी क्या इसका भी श्रेय लेंगे ?


हाल में ही एक सिंधी परिवार में जाना हुआ। एक 75 से ज्यादा वर्ष के वृद्ध पुरुष कि यह बात यह बात सुन का दिल को काफी आघात पहुँचा की देश के बंटवारे में बंगालियों का आधा बंगाल, पंजाबियों को आधा बंगाल दिया गया। किन्तु सिन्धियों को क्या मिला? हमें हमारी मातृभूमि से महरूम कर दिया गया।


मेरे लूकरगंज मोहल्ले मे 35 से अधिक सिन्‍धी आबादी है जो आजादी के समय सिन्ध से अपना सब कुछ छोड आये और इस मोहल्ले में बस गये। वृद्ध पुरुष से अपनी सारी व्यथा कर वर्णन किया जो उन्होंने ने 1947 में देखा और सहा था, उनके आंखों में आँसू के साथ-साथ मेरी आँखें भी नम हो गई थी। 

 वृद्ध द्वारा यह प्रश्न उठाना सही भी था। हाल में चुनावी दौरे मे कांग्रेसी स्‍टार प्रचारक राहुल गांधी ने कहा था कि पाकिस्तान बनवाने में उनके परिवार का हाथ है और उसका सम्पूर्ण श्रेय मेरी दादी इन्दिरा गांधी को जाता है। राहुल गांधी क्यों भूलते है पाकिस्तान को बटवाने के साथ-साथ भारत विभाजन का भी पूरा श्रेय इसी परिवार को जाता है। आज राहुल के बयान से यही प्रतीत हो रहा है कि बिल्लियों ने जो चूहे 1947 से लेकर 1975 तक खाये थे उसके डकार आज इनके नाती-पोते ले रहे है। 

 राहुल गांधी क्यों भूलते है कि देश की दुर्दशा के लिए अगर आज सबसे जिम्मेदार कोई है तो वह यही कांग्रेस और गांधी परिवार है। जिसने अपने राजनीतिक लाभ के लिये देश विभाजन तक को स्वीकार कर लिया। उस समय का सबसे समृद्ध समुदायों में से एक सिंधी समाज बीच चौराहे पर आ खड़ा हुआ। आखिर सिन्धियों के लिए आधे सिंध की मांग क्यों नहीं किया गया। क्या सिंधी समाज भारतीय जनमानस का अंग नहीं था। देश में उन्हें शरणार्थियों की तरह छोड़ दिया गया। यह वह समाज था जो पाकिस्तान निर्माण के समय सबसे अधिक प्रभावित हुआ था। गांधी जी को पाकिस्तान को रुपये देने की सुध थी किन्तु इन सिन्धियों की कोई सुध नहीं थी जिनके नाम पर आज भी पाकिस्तान में सिन्ध प्रान्त है। कांग्रेस चाहती तो सिन्‍धु नदी के तरफ का भारत की ओर का सिंध प्रांत की मांग कर सकती थी किन्तु कांग्रेस कि इस भूल के कारण यह समुदाय अपने अपनी अरबों खरबों से ज्यादा की संपत्ति छोड़ने पर विवश हुई। आखिर आजादी के समय इस धर्म को हितों की अनदेखी करना किसकी भूल थी? इस समाज को इनके घर से ऐसा निकाला गया कि जैसे किसी कुत्ते के सामने एक रोटी का टुकड़ा डाल कर बुलाओ और फिर जोर एक लाठी मार दों। बड़ा कष्ट होता है अपनी मातृभूमि को छोड़ने की। क्या बीतता होगा इन पर? किसी ने इनकी खबर ली? मुस्लिमों के लिये खच्चर सच्‍चर कमेटी का गठन आवश्यक है किन्तु सिंधी समाज की तरह अन्य वह धर्म व समुदाय जो वास्तव में अल्पसंख्यक है उनके लिये किसी प्रकार की योजना कभी कांग्रेस ने नहीं बनाई। आखिर क्यों? कारण साफ है कि मुस्लिमों के लिये कार्य करने पर 20% वोट बैंक जो दिखाई देता है देश की एक चौथाई लोक सभा क्षेत्रों में मुस्लिम मत निर्णायक जो होते है। आखिर प्रश्न उठता है कि जो धर्म अथवा समुदाय 20% होकर भी 25 से ज्यादा प्रतिशत को प्रभावित करने की क्षमता रखता है वह अल्पसंख्यक कैसे हो सकता है ? 

 जो काम अंग्रेजों ने आजादी से पहले किया वही काम अंग्रेजों द्वारा बनाई गई पार्टी कांग्रेस आजादी के बाद कर रही है। आज कांग्रेस भी ''फूट डालो राज करो'' की नीति लागू करना चाहती है। वह परोक्ष रूप से देश में ''नेहरू-गांधी'' परिवार का राजतंत्र लाना चाहती है। और इसी राजतंत्र के सपने आज गांधी परिवार के युवराज देख रहे है। कांग्रेस द्वारा धर्मनिरपेक्षता का फटा नगाड़ा बजा कर देश को पुरानी गति पर लाना चाहती है। आज देश गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है किन्तु इस पार्टी के नेताओं को वोट बैंक की राजनीति दिख नहीं है। लोक सभा चुनाव तो 2009 में प्रस्तावित है किन्तु इस सरकार के नुमाइंदों को इसके विखंडन की रूपरेखा दिखने लगी है और इसी का परिणाम है सच्‍चर कमेटी का गठन। क्या धर्मनिरपेक्षता में केवल मुस्लिम समुदाय का हित दिखता है ? कभी कई धर्मों की पैदाइश राहुल गांधी को सिन्धी-बौद्ध-जैन-पारसी की भी सुध आई कि इस धर्म समुदाय के लोग भी इस देश में रहते है ओर ये भी देश के एक मतदाता है। कारण है कि यह समुदाय केवल मतदाता है कि वोट बैंक नहीं है नहीं तो इनके उत्थान के लिये भी योजनाएं बनाई जाती है।

 आज ऐसे कई धर्म और समाज अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रहे है किन्तु गांधी एंड सन्स को इनकी ओर कोई खबर नहीं है। ऐसा नहीं है कि इनकी खबर इनको नहीं है चूंकि यह एक सशक्त वोट बैंक नहीं है इस लिये इनकी ओर ध्यान देना अपने चुनावी समय को खराब करना है।

राजनीति अपनी जगह पर है, किन्तु देश का यह सबसे सभ्य समाज कभी भी अपनी उपेक्षा और मातृभूमि के अपमान के लिये कांग्रेस और कांग्रेसी परिवार को माफ नहीं करेगा। क्या राहुल गांधी भारत विभाजन का भी श्रेय लेने की हिम्मत रखते है ?



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किम क्लाइस्टर्स का सन्‍यास




महिला टेनिस की महानतम खिलाडि़यों में से एक किम क्लिस्‍टर ने बीतों दिनों अपने पेशेवर टेनिस कैरियर से सन्‍यास ले लिया। इस महान खिलाड़ी के सन्‍यास के पीछे सबसे महत्‍वपूर्ण कारण था पिछले कई वर्षो से चोटों से जूझना। इस चोटों के कारण उन्‍हे कई बार मैचों से बहार भी बैठना पड़ा, जो उनकी कैरियर की सफलता पर दाग लगा रहे थें।

सन 1997 से अपना टेनिस करियर शुरू करने वाली किम ने अपने 10 साल के छोटे से करियर मे वो उपलब्धियाँ प्राप्त की जो बड़े बड़े नामी खिलाड़ी भी पाने मे वंचित रह जाते है। भले ही किम ने सिंगल मे एक ही खिताब जीता था किन्तु उनके समकालीन बड़ी बड़ी महिला टेनिस खिलाड़ी उनसे खौफ खाती थी।

8 जून 1983 को बेल्जियम के बिलेजेन मे जन्मी क्लिस्टर्स ने हर दम चुनौतियों से डटकर मुकाबला किया। चोटों से वे कई बार से परेशान हुई किन्तु उन्होंने मैदान को कभी नहीं छोड़ा, इस समय मैदान छोड़ने के तर्क मे क्लिस्टर कहती है कि मेरी सगाई हो चुकी है जल्द ही शादी होने वाली है और मैं नही चाहती कि मै अपनी शादी में बैसाखी पर चलते हुए जाऊ।

अपने संन्यास के बारे में किम क्लिस्टर्स ने अपनी वेब डायरी में लिखा है- मेरा सफ़र बहुत अच्छा रहा है लेकिन अब इसे छोड़ने का समय आ गया है। किम ने वर्ष 2005 में यूएस ओपन का खिताब जीता था. दो बार वे फ़्रेंच ओपन में उप विजेता रही हैं और एक बार ऑस्ट्रेलियन ओपन की। विंबलनड में उनका रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा लेकिन वे दो बार इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता के सेमीफाइनल तक पहुँची। क्लिस्टर्स ने अपना आखिरी डब्ल्यूटीए खिताब इस साल जनवरी में सिडनी में जीता था. लेकिन इस सप्ताह वे वॉरसा में चल रहे जे एंड एस कप के दूसरे दौर में हारकर बाहर हो गई थी।

किम क्लिस्टर्स का भी मानना है कि हर अच्छी चीज का अंत तो होता ही है. उन्होंने स्वीकार किया कि लगातार चोटों से वे परेशान रही हैं और अब उनके लिए खेल जारी रखना मुश्किल होता जा रहा था और खेल को खेलते रहने की इच्छा के बाद भी सन्यास लेना ही उचित है।


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