इस ब्लागर भेंटवार्ता का स्वरूप कुछ इस प्रकार सकार हुआ। एक दिन मेरे पास अचानक शशि भाई का ईमेल आया कि
"कि प्रमेन्द्र आने वाली 9 फरवरी को हम आपके इलाहाबाद मे होंगे तुमसे मिलकर अच्छा लगेगा। कृपया अपना सम्पर्क सूत्र दो तुमसे मिलूँगा।
मै भी इस ईमेल को पढ़कर प्रसन्न था कि कोई मुझसे मिलने आ रहा है। मैने भी जल्दी में अपना लैन्डलाइन नम्बर और पता ईमेल कर दिया, पर मुसीबत आती है तो घेर कर आती है। जब 9 तारीख आई तो मेरा लैंडलाइन खराब था। सुबह से लेकर दोपहर तक इंतजार करता रहा कोई ही आया और फोन का तो आना नामुमकिन था। फिर मैंने दोपहर में शशि भाई को फोन किया और शशि ने कहा हैलो, मैने कहा मै प्रमेन्द्र आप मुझसे मिलना चाहते थे (जबकि मिलना तो मै चाहता था) शशि भाई ने भी जोशो खरोश के साथ मेरा अभिवादन किया और मुझे एक पता देकर वहां बुलाया कि क्या आप आ सकते हो ? चूंकि समयाभाव था और मैंने जाने में असमर्थता व्यक्त कर दिया। बस फिर क्या था? इलाहाबाद की पहली ब्लागर भेंट वार्ता आयोजन से पहले ही दम तोड़ने जा रही थी।
शाम आते आते होनी को जो मंजूर था वह होने जा रहा था, सायंकाल मुझे पिताजी ने एक जगह जाने को कहा, जब जगह का नाम सुना तो मेरी बाँछें खिल गई। जो जगह शशि भाई ने बताई थी उसके पास ही पिताजी वाली जी जगह थी। तो फिर क्या था ? मेरे पास गाड़ी था, ड्राइवर और मेरा खास मित्र राजकुमार था। हम लोग पहुँच गये शशि भाई से मिलने। जब पहुंचे तो वहां का रंग कुछ दूसरा था जहाँ एक ब्लागर से मिलना असंभव लग रहा था वहीं दो दों ब्लॉग से भेंट हो रही थी। शशि भाई के साथ अमिताभ त्रिपाठी जी भी थे। फिर क्या था जम कर चर्चा हुई।
बातों ही बातों में कुछ देर बाद शशि जी ने कहा कि मुझे नार्दन इंडिया पत्रिका के कार्यालय में कुछ काम है। फिर शशि भाई को लेकर हम लोग पत्रिका कार्यालय लेकर गये और मेरे दिमाग की चक्करघिन्नी चली और गाड़ी में बैठाकर उन्हें बिना बताए अपने घर ले आये जबकि उनका मेरे घर पर आने का कोई प्रोग्राम नहीं था। सीधे घर पर पहुँच कर उन्हें थोड़ा अजीब सा लगा किंतु पहुँचने के बाद वे कर ही क्या सकते थे। मैंने उन्हें घर में बैठाया किन्तु वे बैठते थे वे जाने की जल्दी कर रहे थे। मै भी मै था मै भी बिना खातिरदारी किये उन्हें कैसे जाने देता ? मैने शशि भाई से कहा कि आपने चाय तो बहुतों पी होगी किन्तु एक ब्लॉगर की हाथ की बनी चाय पहली बार पियेंगे। शशि भाई भी राजी हो गये। चूंकि चाहे सुबह हो शाम चाय बनाना होता है मेरा काम।
मै चाय बनने गया तो मेरे भइया, माता जी और मित्र शशि भाई और अमिताभ जी से बाते कर रहे थे। चाय तैयार करके लाया और सबको पिलायी, शशि भाई चाय और मेरी जम के तारीफ की। फिर शशि भाई ने पिताजी से मिलने की इच्छा जाहिर की किन्तु वे अपने ऑफिस में काम मे व्यस्त थे। मैंने उन्हें कहा कि मै उन्हे सूचना दे देता हूँ कि आप मिलना चाहते है फिर पिताजी आये। फिर मै शशि भाई को उनके गंतव्य तक छोडने गया और धीरे धीरे सभा विसर्जित हो गई। शशि भाई अपनी गाड़ी से पूर्व तो मै पश्चिम की ओर चल दिया पर कुछ देर बिताई गयी छवियॉं आज जी आँखों से सामने नाच रही है।
बताइए आप कब आ रहे है ? मेरी हाथ की बनी चाय पीने :)
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