नमस्कार,
आज समय आ गया है मेरा इस परिवार से विदा लेने का, आप लोगों ने एक साल तक मुझे अपना प्यार और आशीष दिया इसके लिये धन्यवाद।
लेखन का कार्य करना तब तक ठीक है जब तक कि अर्न्तात्मा आपको लिखने के लिये प्रेरित करे। मुझे लगता है कि अब मेरे अन्दर की अर्न्तात्मा की मार डाली गई है। जब अर्न्तात्मा की हत्या हो जाये तो निश्चित रूप से लेखन की कसौटी पर खरा नही उतरता है।
मै पिछले कई दिनों से अपने आपको ''विवादों की लोकप्रियता'' के पैमाने का खरा और सही बात न कह पाने के कारण मानसिक रूप से अशान्त महसूस कर रहा हूँ। और इस अशान्ति के कारण आत्मा प्रवंचना के के अवसाद के ग्रस्त महसूस कर रहा हूँ।
मैने इस सम्बन्ध में कई मित्रों से राय लेनी चाही कि शायद अब मेरी विवादों के प्रति दिक्कतों के प्रति यह परेशनियॉं खत्म होगीं किन्तु उन मित्रों से भी सहयोग नही मिला या तो वे ही नही मिलें।
मै यह निर्णय लेने के लिये कई महीनों से जद्दोजहद कर रहा था कि क्या यह करना ठीक होगा? पेरशानियों के आगे चिट्ठाकारिता के जज्बात आगे आ जाते थे। और मुझे अपने फैसले से पीछे हटना पड़ता था। पर आज मै पूरे मूड से हूँ, मै जानता हूँ कि जो मै करने जा रहा हूँ निश्चित रूप से न्यायोचित नही है किन्तु कभी कभी न्याय का भी अतिक्रमण करना पड़ता है।
यह कदम उठाने के लिये मै अपने आप को स्वयं दोषी मानता हूँ। कि मै लगभग सभी के बातों पर विस्वास कल लेता हूँ और लोग मेरा उपयोग आपने आपना काम निकलने मे करते है। और काम हो जाने के बाद दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल का फेक देते है।
इधर कुछ दिनों पूर्व देखने में आया था कि कुछ चिट्ठाकारों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से महाशक्ति का बहिस्कार किया जा रहा था और इसकी छाप निश्चित रूप से चिट्ठाचर्चा पर प्रत्यक्ष रूप से दिखती है। मै पहले भी कह चुका हूँ कि किसी चिट्ठे की चर्चा करना या न करना चिटृठाकार का मौलिक हक है किन्तु किसी चिट्ठे को लगातर निगलेट करना बहिस्कार नही तो क्या है?
विवादों की लोकप्रियता के दौर मे मेरे हितैसी होने का दावा करके मेरी चैट को खूब सार्वजनिक किया गया और मेरे मेलों को मेरी अनुमति के बिना दूसरे को पढ़ाया गया। दूसरों के लिये तो यह कार्य कार्य चिट्टाकारिता के पैमाने के विपरीत है और स्वयं के लिये अनुरूप हो जाता है।
विवदों के दौर में कई लोगों ने मुझे आड़े हाथ लेने का प्रयास किया किन्तु वे भूल जाते है वे भी पाक साफ नही है। मै स्वयं काजल की कोठरी मे बैठा हूँ कि साफ दिखने का दावा नही करता किन्तु कुछ लोग ऐसे है जो अपनी गिरेबान में झाक कर देखें तो पता चालेगा कि सफेद पोश की आड़ मे कितनी मैल जमी है।
मै जैसा था वैसा ही रहूँगा निश्चित रूप से मै गलत काम को बर्दास्त नही कर सकता। और जब तक यहॉं रहूँगा निश्चित रूप से अन्याय और गलत काम का सर्मथन नही करूँगा। और मेरे इस कदम से निश्चित रूप से कई लोगों को काफी कष्ट पहूँचेगा।
मै दुनिया बदले की सोच रहा था पर मै न तो गांधी हूँ और न ही एडविना का दिवाना नेहरू जिसके पीछे दुनिया चल देगी। दुनियॉं नही बदलेगी मुझे ही बदलना होगा। और आज मै इस हो अपना पहला कदम उठा रहा हूँ। निश्चित रूप से मेरे लिये यह कदम उठाना आसान नही था किन्तु कभी कभी कड़े फैसले लेने ही पड़ते है।
मै सभी एग्रीगेटरों से भी निवेदन करता हूँ कि वे इस ब्लाग को अपने एग्रीगेटर से हटा दे। इस पोस्ट को ही मेरा अन्तिम निवेदन समझा जाये। सभी चिठ्ठाकर भइयों से भी निवेदन है कि वे मेरे ईमेल को अपनी लिस्ट से हटा दे, अब मै हिन्दी ब्लागर नही रहा। आगे से महाशक्ति पर कोई लेख नही लिखा जायेगा।
सच मे आज यह सब लिख कर मै सुकून और शान्ति महसूस कर रहा हूँ। लग रहा है कि मैने आज कोई काम स्वविवेक से किया है। कम से कम अब विवादों की लोकप्रियता का अन्त होगा और चिट्ठारिओं पर आरोप तो न लगेगें।यहॉं मेरा दम घुट रहा था अब खुली हवा अच्छी लग नही है।क्योकि ब्लागिंग के अलावा भी बहुत काम है।
सच में दुख तो हो रहा है कि एक प्रिय गीत आपके और मेरे दुख को कम करेगा .............
बहार ख़्हतम हुई, दिल गया ख़ुशी भी गई
वो कया गये के मोहब्बत की ज़िंदगी भी गई
(चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के)-२
किसी तरह आता नहीं चैन दिल को
ना ख़ामोश रह के ना फ़रियाद कर के
बहुत रोएंगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
अरे ओ मेरे दिल के दुशमन ज़माने
तुझे कया मिला मुझ को बरबाद कर के
बहुत रोएंगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
ख़ुशी दे के तक़दीर ने दे दिया ग़म
किया क़ैद क्योँ मुझ को आज़ाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के।
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