सृष्टि की हवाई यात्रा



जी हां, गोवा की हवाई यात्रा अब सिर्फ एक रूपयें में!
यदि आपके पास है मोबाइल- हच, बीएसएनएल, आइडिया, एयरटेल, एमटीएनएल तो डायल कीजिए 5052855 और टाटा, रिलाइन्‍स के लिये ५०५२८५४।
अब आप उत्‍सुक होगें कि किस तरह दिल्ली-गोवा-दिल्ली की हवाई यात्रा मात्र एक रूपये कैसे हो सकती है ?
मैं यह विज्ञापन पढ़ ही रहा था कि पास में बैठे एक बच्चे ने झट से बोला, ``अंकल बताओ न कैसे चलेंगे गोवा? जैसे सृष्टि दीदी गई थी।´´
नहीं, ``मैने कहा´´
फिर कैसे, बच्चा बोला,
हमारे पास पैसे नहीं है। ``मैनें कहा´´,
क्या बात करते हो अंकल आपके पास एक रूपये भी नहीं है।
तभी ट्रिन-ट्रिन तभी फोन की घंटी बोली, `` मैं दिल्ली एयर पोर्ट से बोल रहा हूँ। आप गोवा जाना चाहेंगे सर! सिर्फ एक रूपये में। यह आफर सिर्फ एक शहर के एक खास व्यक्ति के लिए है ज्यादा जानकारी के लिए आप अपने शहर की यात्री सृष्टि से बात कर सकते हैं, धन्यवाद।´´
मेरे कान खान खड़े हो गये, सचमुच एक रूपये में गो-आ जाऊंगा कैसे? मेरे पास तो एक रूपये भी नहीं है। भला मैं कैसे गोवा जा पाऊंगा। जाता तो- समुद्र की लहरें, प्राकृतिक सौन्दर्य, विदेशी सैलानी, हवा-ई यात्रा के अनुभव को महसूस कर पाता और लौटने पर मुझसे भी लोग पूछते कि आप भी ``गो-आ´´ हो आये।
क्या सोच रहे हो अंकल, ``बच्चे ने सवाल किया´´। तो सृष्टि दीदी से पूछ क्यों नही लेते? कैसे पूंछू मेरे पास तो फोन के लिए भी पैसे नहीं है। ``मैंनें कहा´´, फोन करने की जरूरत क्या है? बच्चे ने समझाते हुए कहा। उनकी यात्रा वृतान्त तो अखबार में छपा है। `` बच्चे ने जानकारी दी´´। यह बात तो सही है, ``मैनें कहा´´, तब तक बच्चा हाथ में अखबार की प्रति लाकर पढ़ने लगता है, ``इलाहाबाद शहर के एक बहुप्रतिष्ठत व्यवसायी की 17 वर्षीय पुत्री सृष्टि ने नये यमुना पुल से कूदकर आत्महत्या कर ली। सुबह करीब पांच बजें उसके घरेलू नौकर ने गेट का ताला खुला देखा तो उसे शक हुआ, शक यकीन में तब बदला जब सामने के गैराज में खड़ी कीमती कार भी नही थी। इस बात की जानकारी परिजनों को दी, तब उन्होनें अपनी पुत्री के कमरे में देखा, कमरे में पुत्री के न होने पर घर वाले बेचैन हो गये। सुबह करीब दस बजे जानकारी प्राप्त हुयी कि नये यमुना ब्रिज पर एक सुन्दर किशोरी अपनी एसेन्ट कार से आयी थी, जिस पर गार्ड ने उसकी गाड़ी पर डंडे से पीटा भी। फिर वह वहां से चली गयी और पुन: एक घंंटे बाद वहां आयी और आनन-फानन में एक सुसाइड नोट (जिसमें लिखा था ``कि यह गाड़ी मेरे पिता जी को दे दी जाये और मै अपनी मर्जी से आत्म हत्या कर रही हूँ´´) और चप्पल ब्रिज के किनारे पड़ी मिली। परिवार वाले तथा पुलिस के आलाधिकारी मौका-ए-वारदात पर तुरन्त पहुंच कर नदी में मल्लाह और पीएसी के गोताखोर को यमुना नदी में उतार दिया गया। शाम तक लाश का पता नही चल सका था´´।
सृष्टि दीदी तो हवाई नहीं बल्कि मछली की तरह जल यात्रा की है, क्या नदी के भीतर हवाई यात्रा होती है? ``बच्चे ने पूछा´´, मैनें उत्तर दिया ``नहींं´´, तभी मेरा मित्र खबरवाला हाथ में अखबार लिए आ टपका, गोवा चलोगे, मात्र 48 घंटे मे वापस आ जाओगे। ``खबरवाला ने पूछा´´, वो कैसे, मैने पूछा, जैसे सृष्टि गयी थी। खबरवाला ने बताया, वह तो नदी के अन्दर हवाई यात्रा की है, ``बच्चे ने तापक से बोल दिया,´´। पहले दिन जलयात्रा दूसरे दिन हवाई यात्रा इसी प्रकार हम भी करेंगे। `बच्चे ने उत्सुकता पूर्वक पूूछा´! यह तो तुम्हारी सृष्टि दीदी ने गोवा जाने के लिए ढोंग रचा था, जिसके लिए उसने इतनी कहानी रची थी। तुम्हें कैसे पता, ``मैंने पूछा´´, पता चला है कि वह हमेशा मोबाइल से चिपकी रहती थी और वह उससे एसएमएस करती थी। बस मेरी समझ में आ गया अब आगे न बताओ। ``मैंने कहा,´´ उसने भी विज्ञापन को पढ़कर ही एक रूपयें में ही हवाई यात्रा की है। ट्रिन-ट्रिन तभी फिर फोन की घंटी बजी। ``मैं दिल्ली एयर पोर्ट से बोल रहा हूँ। , अगर आप जानकारी प्राप्त कर चुकें हो तो कृप्या दिल्ली आने का कष्ट करें। सुबह 10 बजे हमारी फ्लाइट गोवा जाने के लिए तैयार रहेगी´´ लेकिन मेरे पास पैसें नहीं है, `मैंने झट से सवाल दाग दिया´, इसकी आपकों चिंता करने की जरूरत नहीं है। आपके शहर यात्री ने दो के सिक्के दिये थे, हमारे पास फुटकर न होने के कारण एक रूपया बचा है, सो आप चल सकते है। वैसे भी भारत में सिक्कों की कमी आ गयी है। ``फोन कालर ने समझाते हुए कहा।´´ अब मैं बिल्कुल निश्चिंत था और गोवा जाने की तैयारी सृष्टि को धन्यवाद देतें हुए करने लगा था।


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दो नये लेखक



आज महाशक्ति से पर मेरे दो मित्र लेखन कार्य में जुड़ गये है जो इलाहाबाद से ही है। दोनो महाशक्ति के प्रारम्भिक सदस्‍यों में से एक है। राजकुमार जी महाशक्ति के 2001 में तथा ताराचन्‍द्र जी 2003 में सदस्‍य है ओर प्रारम्भिक समय से ही महाशक्ति के प्रति निष्‍ठा है। इनका कहना है कि महाशक्ति कोई संस्‍था या संगठन न होकर एक विचार धारा है, और यह विचार धारा प्रत्‍येक सदस्‍य के शिराओं में रक्‍त के समान बह रहा है। दोनो मेरे स्‍कूल तथा कालेज के समय के मित्र है। मै जब प्रत्‍यक्ष रूप से जब से ब्‍लागिंग कर रहा हूँ तब से सम्‍पूर्ण महाशक्ति के सदस्‍य परोक्ष रूप से हर समय मेरी सहायता करते थें। किन्‍तु आज से ये पर्दे के पीछे के साथ साथ पर्दे पर भी मेरे साथ रहेगें।


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चिट्ठाकारों अलविदा



प्रिय चिट्ठाकर भइयों और भगनियों,
नमस्‍कार,


आज समय आ गया है मेरा इस परिवार से विदा लेने का, आप लोगों ने एक साल तक मुझे अपना प्‍यार और आशीष दिया इसके लिये धन्‍यवाद।

लेखन का कार्य करना तब तक ठीक है जब तक कि अर्न्‍तात्‍मा आपको लिखने के लिये प्रेरित करे। मुझे लगता है कि अब मेरे अन्‍दर की अर्न्‍तात्‍मा की मार डाली गई है। जब अर्न्‍तात्‍मा की हत्‍या हो जाये तो निश्चित रूप से लेखन की कसौटी पर खरा नही उतरता है।

मै पिछले कई दिनों से अपने आपको ''विवादों की लोकप्रियता'' के पैमाने का खरा और सही बात न कह पाने के कारण मानसिक रूप से अशान्‍त महसूस कर रहा हूँ। और इस अशान्ति के कारण आत्‍मा प्रवंचना के के अवसाद के ग्रस्‍त महसूस कर रहा हूँ।

मैने इस सम्‍बन्‍ध में कई मित्रों से राय लेनी चा‍ही कि शायद अब मेरी विवादों के प्रति दिक्‍कतों के प्रति यह परेशनियॉं खत्‍म होगीं किन्‍तु उन मित्रों से भी सहयोग नही मिला या तो वे ही नही मिलें।

मै यह निर्णय लेने के लिये कई म‍हीनों से जद्दोजहद कर रहा था कि क्‍या यह करना ठीक होगा? पेरशानियों के आगे चिट्ठाकारिता के जज्‍बात आगे आ जाते थे। और मुझे अपने फैसले से पीछे हटना पड़ता था। पर आज मै पूरे मूड से हूँ, मै जानता हूँ कि जो मै करने जा रहा हूँ निश्चित रूप से न्‍यायोचित नही है किन्‍तु कभी कभी न्‍याय का भी अतिक्रमण करना पड़ता है।

यह कदम उठाने के लिये मै अपने आप को स्‍वयं दोषी मानता हूँ। कि मै लगभग सभी के बातों पर विस्‍वास कल लेता हूँ और लोग मेरा उपयोग आपने आपना काम निकलने मे करते है। और काम हो जाने के बाद दूध में पड़ी मक्‍खी की तरह निकाल का फेक देते है।

इधर कुछ दिनों पूर्व देखने में आया था कि कुछ चिट्ठाकारों के द्वारा अप्रत्‍यक्ष रूप से महाशक्ति का बहिस्‍कार किया जा रहा था और इसकी छाप निश्चित रूप से चिट्ठाचर्चा पर प्रत्‍यक्ष रूप से दिखती है। मै पहले भी कह चुका हूँ कि किसी चिट्ठे की चर्चा करना या न करना चिटृठाकार का मौलिक हक है किन्‍तु किसी चिट्ठे को लगातर निगलेट करना बहिस्‍कार नही तो क्‍या है?

विवादों की लोकप्रियता के दौर मे मेरे हितैसी होने का दावा करके मेरी चैट को खूब सार्वजनिक किया गया और मेरे मेलों को मेरी अनुमति के बिना दूसरे को पढ़ाया गया। दूसरों के लिये तो यह कार्य कार्य चिट्टाकारिता के पैमाने के विपरीत है और स्‍वयं के लिये अनुरूप हो जाता है।

विवदों के दौर में कई लोगों ने मुझे आड़े हाथ लेने का प्रयास किया किन्‍तु वे भूल जाते है वे भी पाक साफ नही है। मै स्‍वयं काजल की कोठरी मे बैठा हूँ कि साफ दिखने का दावा नही करता किन्‍तु कुछ लोग ऐसे है जो अपनी गिरेबान में झाक कर देखें तो पता चालेगा कि सफेद पोश की आड़ मे कितनी मैल जमी है।

मै जैसा था वैसा ही रहूँगा निश्चित रूप से मै गलत काम को बर्दास्‍त नही कर सकता। और जब तक यहॉं रहूँगा निश्चित रूप से अन्‍याय और गलत काम का सर्मथन नही करूँगा। और मेरे इस कदम से निश्चित रूप से कई लोगों को काफी कष्‍ट पहूँचेगा।

मै दुनिया बदले की सोच रहा था पर मै न तो गांधी हूँ और न ही एडविना का दिवाना नेहरू जिसके पीछे दुनिया चल देगी। दुनियॉं नही बदलेगी मुझे ही बदलना होगा। और आज मै इस हो अपना पहला कदम उठा रहा हूँ। निश्चित रूप से मेरे लिये यह कदम उठाना आसान नही था किन्‍तु कभी कभी कड़े फैसले लेने ही पड़ते है।

मै सभी एग्रीगेटरों से भी निवेदन करता हूँ कि वे इस ब्‍लाग को अपने एग्रीगेटर से हटा दे। इस पोस्‍ट को ही मेरा अन्तिम निवेदन समझा जाये। सभी चिठ्ठाकर भइयों से भी निवेदन है कि वे मेरे ईमेल को अपनी लिस्‍ट से हटा दे, अब मै हिन्‍दी ब्‍लागर नही रहा। आगे से महाशक्ति पर कोई लेख नही लिखा जायेगा।

सच मे आज यह सब लिख कर मै सुकून और शान्ति महसूस कर रहा हूँ। लग रहा है कि मैने आज कोई काम स्‍वविवेक से किया है। कम से कम अब विवादों की लोकप्रियता का अन्‍त होगा और चिट्ठारिओं पर आरोप तो न लगेगें।यहॉं मेरा दम घुट रहा था अब खुली हवा अच्‍छी लग नही है।क्‍योकि ब्‍लागिंग के अलावा भी बहुत काम है।
सच में दुख तो हो रहा है कि एक प्रिय गीत आपके और मेरे दुख को कम करेगा .............


बहार ख़्हतम हुई, दिल गया ख़ुशी भी गई
वो कया गये के मोहब्बत की ज़िंदगी भी गई

(चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के)-२

किसी तरह आता नहीं चैन दिल को
ना ख़ामोश रह के ना फ़रियाद कर के
बहुत रोएंगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के

अरे ओ मेरे दिल के दुशमन ज़माने
तुझे कया मिला मुझ को बरबाद कर के
बहुत रोएंगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के

ख़ुशी दे के तक़दीर ने दे दिया ग़म
किया क़ैद क्योँ मुझ को आज़ाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के।


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