नये ब्‍लाग - नये ब्‍लागर



  1. मीडिया व्यूह : नीशू तिवारी
  2. आशुतॊष मासूम : आशुतोष
  3. कालचक्र : महेन्‍द्र मिश्र
ये कुछ नये ब्‍लाग और ब्‍लागर है जिन्‍होने ने अभी अभी अपना ब्‍लाग शुरू किया है आप इनका स्‍वागत और उत्‍साहवर्धन करें।
विभिन्‍न एग्रीगेटर जो इसे अपने यहॉं जगह दे सकते है देने का कष्‍ट करें या मार्गदर्शन करने करें। कि वे इन पर कैसे स्‍थान पर सकते है।


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संघकिरण घर घर देने को



संघकिरण घर घर देने को, अगणित नंदा दीप जले,
मौन तपस्वी साधक बनकर, हिमगिरी से चुपचाप गले ॥ध्रु.॥
नई चेतना का स्वर देकर, जन मानस को नया मोड दे
साहस शौर्य ह्रदय में भरकर नई शक्ति का नया छोर दे
संघशक्ति के महाघोष से, असुरों का संसार दले ॥१॥
मौन तपस्वी साधक बनकर....
 
परहित का आदर्श धारकर, पर पीड़ा को ह्रदय हार दे
निश्चल निर्मल मनसे सबको ममता का अक्षय दुलार दे
निशा निराशा के सागर में, बन आशा के कमल खिले ॥२॥
मौन तपस्वी साधक बनकर....

जन-मन-भावुक भाव भक्ती दे, परंपरा का मान यहाँ
भारत माँ के पदकमलों का गाते गौरव गान यहाँ
सबके सुख दुख में समरस हो, संघ मंत्र के भाव पलें ॥३॥
मौन तपस्वी साधक बनकर....


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प्रेरक प्रसंग- ला और लीजिए



एक सेठ कुऍं में गिर पड़ा। गड्डा बहुत गहरा नहीं था। सो निकलने के लिये चिल्‍लाने लगें। एक किसान ने सुना तो पहुँचा और बोला- ला! अपना हाथ उसके रस्‍सी बाँध कर ऊपर खीच लेंगे। सेठ जी हाथ ऊपर करने को और किसी फन्‍दे में फसने को तैयार नही हो रहे थे।
झंझट देखकर एक अन्‍य समझदार किसान आदमी वहॉं पहुँच गया और हुज्‍जत को समझ गया। उसने कहा- ‘’सेठ जी रस्‍सी पकड़ लीजिए और इसे सहारे आप ऊपर आ जायेगें।‘’ 
सेठ जी ने बात मान ली और बाहर निकल आये। पहली बार किसान कह रहा था कि ला हाथ और दूसरे ने कहा कि रस्‍सी पकड़ लिजिए। दोनों की कहना एक था किन्‍तु भाव अलग अलग थे।
इससे हमें यह शिक्षा मिलती है परोपकार भी मृदुभाव से किया जाना चाहिऐ तभी फलित होता है।


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