महर्षि अरविन्द ने कहा था-
विनाश जितना बड़ा होगा, सृजन के अवसर उतने ही मुक्त होगे, किन्तु विनाश प्राय: लंबा, धीमा और उत्पीड़क होता है, सृजन अपने आगमन में मंद गति और विजय में बाधित होता है। रात्रि बार-बार लौटकर आती है और दिवस उगने में देर लगाता है अथवा ऐसा भी लगता है कि कहीं भोर का मिथ्या आभास तो नहीं। इसलिये निराश मत हों बल्कि ताक और कर्म कर जो उतावले होकर आशा करते है, वे निराश भी जल्दी ही हो जाते हैं- न आशा कर न भय, किन्त ईश्वर का उद्देश्य और उसे पूरा करने का अपना संकल्प सुनिश्चित कर लें। (श्री अरविंद के लेख, वार्तालाप और भाषण संकलन- भारत का पुनर्जन्म, पृष्ठ 136-137 से उद्धृत)
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