मित्र तारा चन्द्र द्वारा प्रकाशित कालेज की लडकियॉं कविता पर बंसत आर्य जी की टिप्पणी आई कि उक्त कविता किसी अंजुम रहबर की है। उनकी टिप्पणी निम्न है-
इस बारे में जब मैने तारा चन्द्र जी से पूछा कि क्या जो बंसत जी कह रहे है वह ठीक है? इस पर उनका कहना था कि यह कविता पूर्ण रूप से मेरी है, और अधूरी है। अभी इसकी चंद पक्तिंयॉं ही प्रकाशित किया है क्योकि मेरी पुरानी डायरी नही मिल रही है जिस पर मैने लिख रखा है।
श्री बंसत जी किसी पर आक्षेप लगाना ठीक नही है। अगर आपके पास प्रमाण हो तो प्रस्तुत कीजिए अगर आप प्रमाण देते है तो हम मानने को तैयार है कि यह कविता/गजल जैसा आप कह रहे है सही है।
एक कविता की दूसरे से समानता होना स्वाभाविक है, हो सकता है कि कुछ पक्तिं में समानता हो सकती है। और यह हिन्दी के शुरवाती दिनों से होता चला आया है। कई ऐसी रचनाऐं है जिनमें सूर और तुलसी के पद्यों में समानता मिलती है। यह कहना कि तुलसी ने सूर को टीप कर लिखा है ठीक नही।
Basant Arya ने कहा…
ये भी जिक्र कर दिया होता कि ये गजल अंजुम रहबर की है तो वे कितनी खुश होती?
इस बारे में जब मैने तारा चन्द्र जी से पूछा कि क्या जो बंसत जी कह रहे है वह ठीक है? इस पर उनका कहना था कि यह कविता पूर्ण रूप से मेरी है, और अधूरी है। अभी इसकी चंद पक्तिंयॉं ही प्रकाशित किया है क्योकि मेरी पुरानी डायरी नही मिल रही है जिस पर मैने लिख रखा है।
श्री बंसत जी किसी पर आक्षेप लगाना ठीक नही है। अगर आपके पास प्रमाण हो तो प्रस्तुत कीजिए अगर आप प्रमाण देते है तो हम मानने को तैयार है कि यह कविता/गजल जैसा आप कह रहे है सही है।
एक कविता की दूसरे से समानता होना स्वाभाविक है, हो सकता है कि कुछ पक्तिं में समानता हो सकती है। और यह हिन्दी के शुरवाती दिनों से होता चला आया है। कई ऐसी रचनाऐं है जिनमें सूर और तुलसी के पद्यों में समानता मिलती है। यह कहना कि तुलसी ने सूर को टीप कर लिखा है ठीक नही।
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