महर्षि श्री अरविंद के अनमोल वचन



  • सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। - श्री अरविंद
  • भातृभाव का अस्तित्व केवल आत्मा में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के सहारे टिक ही नहीं सकता। - श्री अरविंद
  • कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है। - श्री अरविंद
  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद
  • यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्‍चा व्‍यवहार करें तो आप खुद सच्‍चे बनें और अन्‍य लोगों से भी सच्‍चा व्‍यवहार करें। - महर्षि अरविन्‍द 
सत्‍य वह चट्टान है जिसके ऊपर विश्‍वनिर्मित है। सत्‍येन तिष्‍ठेन जगत्। मिथ्‍यत्‍व कभी भी शक्ति का वास्‍तविक स्‍तोत नही बन सकता। जब आंदोलन के मूल में मिथ्‍यात्‍वता है, तो उनका असफल होना निश्चित है। कूटनीति तभी किसी की सहायता कर सकती है जब वह आंदोलन पर चले। कूटनीति को मूल सिद्धान्‍त बनाना अस्तित्‍व के नियमों का उल्‍लंघन करना होगा।
(श्री अरविन्‍द के लेख, वार्तालाप और भाषण संकलन भारत पुनर्जन्‍म, पृष्‍ठ 37 से उद्धृत)


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दिल्‍ली यात्रा के दौरान बने कुछ रिकार्ड



 

कल की पोस्ट पर पहली टिप्पणी अरूण जी की प्राप्त हुई, जिसमें उन्होने कीर्तिमान की बात कही थी। निश्चित रूप में वह मेरे संज्ञान में नही था किंतु जब अरूण जी ने बात लाकर रख ही दिया है तो मैं भी सोच रहा हूँ कि आगे कुछ और जोड़ा जाये :)
  • मेरी यात्रा किसी भी ब्लॉगर के जीवन की पहली यात्रा ब्लॉगर यात्रा रही। अर्थात मैं अपनी पहली यात्रा सिर्फ ब्‍लागिंग के लिये ही किया।
  • रेलवे के द्वारा अपनी प्रथम ब्‍लागिंग यात्रा में लूटा जाने वाला प्रथम ब्‍लागार भी मै ही हूँ। जो अपनी पहली यात्रा में नाजायज तरीके से लूटा गया। ( इसकी चर्चा बाद में करूँगा)
  • किसी भी ब्लॉगर को उसकी प्रथम ब्लॉगर यात्रा में लूटे जाने का विरोध करने वाला भी मैं पहला ब्लागर हूँ। मै रेलवे द्वारा खुद को लूटे जाने का महाप्रबंधक व मुख्य प्रबंधक वाणिज्य से शिकायत किया। अर्थात ब्‍लागिंग के लिये की जाने वाली यात्रा में पहली शिकायत मैने दर्ज की है। (सुबूत के तौर पर शिकायत की रीसिविंग कापी मेरे पास है)
  • ब्‍लागिंग के लिये सामान्य टिकट से यात्रा करने वाला पहला ब्लॉगर। दिल्ली से इलाहाबाद तक की 650 किमी की यात्रा 20 घन्टे से भी कम समय में पूरी की।
  • टीटीई के द्वारा आगरा के कानपुर के लिये आरक्षण की सीट उपलब्ध करने के लिये रिश्वत मागने वाले टीटीई को रिश्वत देने इनकार करने वाला पहला ब्लॉगर (इसके बारे में बाद में लिखूँगा)
  • जनरल बोगी में आगरा से कानपुर तक की रात्रि 1 से सुबह 7 बजे तक खड़े होकर यात्रा करने वाला प्रथम ब्लॉगर।
  • सामूहिक ब्लाग के दो ब्‍लागरों की एक साथ पहली बार यात्रा
  • दिल्ली यात्रा के दौरान लगभग 35 किमी चलने वाला पहला ब्लॉगर, (हुआ क्‍या कि हम दिल्ली घूमते-2 रास्‍ता भूल गये जिससे भी पूछा तो रास्ता वही बता रहा था कि ग्रीन गार्डेन से आई आई टी गेट जाओं अर्थात जहां से आये हो वही फिर जाओं। पर हम थे कि उस रास्‍ते पर दोबारा जाने को तैयार नही थे, फिर हम अपनी मन के रास्‍ते पर चल दिये और काफी मस्कत के बाद हिरण पार्क से रोज गार्डेन होते हुये गन्तव्य तक पहुँच गये) इसके अलावा भी काफी चला हुआ। इंडिया गेट के पास, नेहरू प्लेस पर, और गुंडगॉंव और फ़रीदाबाद आते जाते समय, आगरा में, अनूप जी के मिडिल रोड पर और भी बहुत जगह)
  • 100 घंटों की कुल यात्रा में 18 घन्टे से भी कम सोने वाला पहला ब्लॉगर,
  • एक ब्लॉगर के रूप में आगरा जाकर ताजमहल न देखने वाला पहला ब्लॉगर
  • सबसे कंजूस ब्लॉगर यात्रा, यात्रा के दौरान दो व्यक्तियों का 4 दिन में मात्र 1300 से कम रूपये खर्च हुआ। (इसमें रेलवे 300 रूपये की लूट शामिल है)
  • दिल्ली में रात्रि 1 बजे सोकर सुबह 5 बजे उठने वाला पहला ब्लॉगर।
  • एक और रिकार्ड है जो मै आपने लेख में जिक्र करूँगा।
  • इसके अलावा और भी चाहे अनचाहे रिकार्ड है जो अभी याद नही आ रहे है। :)
किसी को लगे कि उन्होने यह रिकार्ड बनाया है तो प्रमाण सहित अरूण जी के पास दर्ज कीजिऐं। :) वे इस बात को आगे के दौर में बढ़ायेगें।


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रेल का सफ़र इलाहाबाद से दिल्‍ली तक



 


हमारी यात्रा की तिथि 23 आखिर आ ही गई, मै अपनी पूरी तैयारी में था चूंकि यह मेरी पहली लम्बी यात्रा थी, और इसको लेकर मै काफी उत्‍सुक भी था। मैने ताराचन्‍द्र को कह दिया था कि मेरे यहां रात्रि 8:30 बजे तक आ जाना, और वह समय से आ भी गया था। घर में सभी के पैर छूकर निकलते निकलते 8:55 हो गये थे। प्रयागराज एक्‍सप्रेस का समय रात्रि 9:30 का और हम समय से चल रहे थे। सुबह राजकुमार और शिव भी मुझे यात्रा के लिये शुभकामनाएं देने आये थे, मैंने राजकुमार से विशेष आग्रह किया था कि रात्रि में भी तुम आना और राजकुमार भी हमें छोड़ने वालों में था। हमें छोड़ने के लिये भइया, अदिति और राजकुमार थें। सभी के चेहरे पर प्रसन्नता दिख रही थी। अदिति भी रेल को और काफी भीड़ को देखकर प्रसन्न थी। रात्रि के साढ़े नौ बज चुके थे और रेल चलने के संकेत दे रही थी। समय होते रेल चल भी दी। रेल के चलने पर अदिति काफी प्रसन्न दिख रही थी किन्तु धीरे-धीरे जैसे जैसे मै उससे दूर जा रहा था जैसे उसके चेहरे पर प्रसन्नता गायब हो कर एक अजीब सी उदासी देखने को मिल रही थी अर्थात वह भावुक हो रही थी। शायद रोने भी लगी हो किन्‍तु यह रेल ने मुझे अपनी रफ्तार के आगे देखने नही दिया।

धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया। सभी यात्री कुछ तो सोने की तैयारी करने लगे तो कुछ बातों में तल्लीन हो गये। मै और तारा चन्‍द्र भी अपनी बातों में मस्‍त थें। मुझे नीचे की सीट मिली थी तो तारा चन्‍द्र को बीच की। इससे हमें और भी आराम था, हमने रात्रि 1 बजे तक बीच के सीट को फोल्ड ही रहने दिया और जग चर्चा में लग गये। 1 बजे के बाद रामचंद्र को कुछ नींद की शिकायत हुई तो मैंने उन्हें कहा कि तुम भी अब अपनी सीट पर चले चलो और यह कह कर सीट को खोल दिया गया। इसी बीच एक और मजेदार वाक्या हुआ रात्रि में करीब 10:30 बजे एक सज्‍जन आये और मुझसे कहने लगे कि मुझे पहचाने मुझे पहचाने मैने भी सोचा कि यह बंदा इनती दावे से यह कर रहा है तो निश्चित रूप से मुझे जानते होंगे मैने भी अपनी दिमाग की चक्करघिन्नी दौड़ाई और फटाक से बोल पड़ा कि आप चुन्‍तन है। यह सुनते ही उन जनाब् के चेहरे की हवाई उड़ने लगी। और आस पास के लोगों पर हल्की से मुस्कान भी देखने को मिल रही थी। फिर उन्‍होने अपना परिचय दिया कि वे उच्‍च न्‍यायालय में अधिवक्‍ता है और उन्‍होने मुझे मेरे घर पर देखा था। चुंतन का ख्‍याल में मन इसलिये भी आया कयोकि मुझे नही लग रहा था कि रेल में भी मुझे कोई पहचानेगा और कुछ दिनों पूर्व चुंतन से मुलाकात हुई थी हो सकता हो वही हो। फिर हम लोगों ने उनसे विदा लिया और उन्‍होने आपनी सीट और बताई। उसके बाद मै रात्रि में काफी देर तक यह वाक्‍या सोच सोच कर हसता रहा। रात्रि 2 बजे के बाद मै सो गया और सुबह/रात्रि 3 बजे के जब मै उठा तो अलीगढ़ रेलवे स्‍टेशन था और फिर चद्दर निकाल का फिर से लेट गया। फिर जब उठा तो सुबह के 5 बज रहे थे। मै फिर नित्‍यकर्म से निवृत्‍त होकर जग गया और 5.45 तक तारा चन्‍द्र को भी जगा दिया। और फिर सीट को उठा दिया। हमारी देखा देखी और और लोगों ने भी अपनी नीद हराम कर ली।

गाजियाबाद के आते आते सभी अपने सामान को समेटने लगे थे, हम भी तैयार होने लगे थे। दिल्‍ली के दर्शन हमें गाजियाबाद से ही होने लगा था। एक ऊँची ऊँची इमारत, विशालकाय फैक्‍ट्री भी दिख रही थी। हमने यमुना नदी भी देखा जिसे तारा चन्‍द्र यमुना मानने से ही इंकार कर रहे थे। क्योंकि तारा चन्‍द्र के मन में जो परिकल्पना थी उससे दिल्ली की यमुना आधी दिख रही थी। आगे चलने पर हमें बड़ी-बड़ी इमारतों के साथ ही मलिन बस्ती भी देखने को मिल जिससे लगा कि दिल्‍ली का एक रूप यह भी है। रेल यात्रा करते समय नीचे की चिकनी सड़के मन को मोह रही थी। इस बीच मै लगातार शैलेश जी और अपने एक और मित्र सुरेन्‍द्र सुमन सिंह (पहली बार मिल रहा था) से मोबाइल पर संपर्क में था। शैलेश जी से उत्तर मिला कि आपके लेने के लिये अनिल त्रिवेदी जी जा रहे है। तो सुरेन्द्र जी से बात हुई तो वे कह रहे थे कि आप कहीं मत जाइए मै आपसे मिलने के लिये उत्सुक हूँ और 7.30 तक मै आ रहा हूँ। बात होते ही होते हम दिल्‍ली स्‍टेशन पर पहुँचते ही मेरी यह रेल यात्रा वृतान्‍त समाप्‍त होती है।



अब आपको अगली कड़ी में अनिल त्रिवेदी और सुरेंद्र सुमन जी के साथ बस पर बिताये पलों का वर्णन करूँगा। व्‍यस्‍तताओं के कारण देरी के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ।



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