औकात में रहे मीडिया और उनके नुमाइन्‍दे



आज दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने महत्‍वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया कि न्यायाधीशों पर आधारहीन टिप्पणियॉं बर्दाश्त नहीं की जायेगी। न्यायालय की एक खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अदालत की अवमानना का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में एक लक्ष्मण रेखा खींच रखी है, जिसका प्रकाशक ने उल्लंघन किया है। न्यायाधीश आर. एस. सोढ़ी और न्यायाधीश बी. एन. चक्रवर्ती की खंडपीठ ने सजा सुनाने के लिए 21 सितंबर की तारीख तय की और मिड डे संपादक एम. के. तयाल, प्रकाशन, एस. के. अख्तर, स्थानीय संपादक वितुषा ओबेराय और कार्टूनिस्ट इरफान को उस दिन व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित रहने का आदेश दिया। अदालत ने अखबार में छपी रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए यह कार्रवाई की। अखबारों में एक तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सभरवाल पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान राजधानी में सीलिंग के मामले में कुछ ऐसे निर्णय दिए, जिससे उनका बेटा लाभान्वित होता था।

Delhi High Court
मिड डे ने 18 और 19 मई 2007 के अंक में वाई. के. सभरवाल द्वारा सीलिंग पर दिए गए आदेशों पर सवाल उठाए थे। अखबार का कहना था कि दिल्ली में बड़े पैमाने पर सीलिंग होने से सभरवाल के बेटों को फायदा हुआ। वे चीफ जस्टिस के सरकारी बंगले से बिजनेस चला रहे थे। सुनवाई के दौरान अखबार अपनी स्टोरी पर कायम रहा। अखबार का कहना था कि उसने सचाई बयान की है। मिड डे के वकील शांति भूषण ने कहा कि अखबार द्वारा प्रकाशित तथ्यों से साफ है कि चीफ जस्टिस के बेटों को सीलिंग से फायदा हुआ।

अदालत का यह फैसला निश्चित रूप से आधुनिक अंधी पत्रकारिता को उसकी औकात बता रहा है कि पत्रकार जगत जिस अपने आपको लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मनाता है, वह उसकी भूल है। इस देश के संविधान में चौथे स्तम्भ की कोई उल्लेख नही है। पत्रकार अपने आपको लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ होने के मद में अपने पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान पढ़ाये गये पाठों को भूल जाते है। कि पत्रकारों को निष्‍पक्षता बरतनी चाहिए और कम से कम बिना साक्ष्‍यों के संवैधानिक पदों पर आसीन (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीश व राज्यपाल) के खिलाफ बयानबाजी से बचना चाहिए।

हाल में कुछ माह पहले हिन्दी ब्लागिंग में भी इस प्रकार का प्रकरण देखने को मिला था जिसमें इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के मा. न्यायमूर्ति श्री एसएन श्रीवास्तव को एक सम्मानित टीवी चैनल की महिला पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी द्वारा कुछ लोगों शह पर किसी पार्टी का एजेन्‍ट, मानसिक रूप से असंतुलित, सरकारी वेतन भोगी, बेटे को पेट्रोल पंप दिया गया इसलिये दबाव में आकर फैसला दिया गया तथा अनेक प्रकार के अशोभनीय शब्दों का प्रयोग किया गया। जो निश्चित रूप से न्‍यायालय की अवमानना के दायरे में आता है। जब यह बातें जिम्मेदार पत्रकार के जुबान से निकलती है तो सही में कष्ट होता है कि यह समान आज की चकाचौंध में अपने मूल उद्देश्यों से भटक रहा गया है।

हिन्‍दी ब्‍लॉग समुदाय की यह घटना श्री सब्बरवाल के ऊपर लगाए गए आरोपों से भी गंभीर है क्योंकि न सिर्फ न्‍यायधीश पर आक्षेप है बल्कि मोहतरमा के द्वारा सम्पूर्ण न्यायालय तथा न्यायाधीशों को न सिर्फ गाली दी गयी अपितु भारत के संविधान में वर्णित न्यायाधीशों के अधिकार और सम्मान को चुनौती दी गई थी। भारत के संविधान में साफ वर्णित है कि न्‍यायाधीश न तो सरकारी मुलाजिम है और न ही सरकार का वेतन भोगी। पत्रकार समुदाय द्वारा संज्ञान में यह कदम उठाना निश्चित रूप से महंगा पड़ सकता है, क्योंकि मिड डे की जगह मोहतरमा का नाम भी हो सकता था।

निश्चित रूप से उच्‍च न्‍यायालय का यह फैसला पत्रकारों के मुँह पर तमाचा है जो मीडिया को दम्भ पर गलत काम को बढ़ावा देती है। संवैधानिक पदों पर आक्षेप पर अदालत का यह निर्णय सराहनीय है। न्‍यायालय का यह आदेश अपने आपको चौथा स्तम्भ मनाने वाली बड़बोली मीडिया और पत्रकारों के लिये सीख भी।



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इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय - गीता हो राष्‍ट्रीय ग्रन्‍थ और मदिंरों और हिन्‍दुओं का संगरक्षण दे सरकार



इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने ताजे फैसले में कहा कि मंदिर या कोई भी धार्मिक संस्था की संपत्ति जिला न्यायाधीश की पूर्व अनुमति के बगैर बेची नहीं जा सकती, ऐसी बिक्री शून्य व अवैध मानी जायेगी तथा राज्य सरकार को निर्देश जारी किया कि एक तदर्थ बोर्ड का गठन किया जाये, तब तक के लिये कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति आर एम सहाय की अध्यक्षता में तदर्थ बोर्ड गठित करने के साथ ही सरकार को निर्देश दिया है कि वह मंदिरों व धार्मिक संस्थाओं की रक्षा के लिए विशेष पुलिस बल बनाये और यह कार्यवाही तीन माह में पूरी कर दी जाये।


Allahabad High Court Building at Allahabad

माननीय न्यायमूर्ति ने 104 पृष्ठ का निर्णय में इतिहास के साक्ष्य प्रकट करते हुए कहा कि विगत 1300 वर्षों से लगातार सांप्रदायिक एवं समाज विरोधी तत्वों द्वारा हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा है इस प्रकार के प्रकरणों से सीख लेते हुए राज्य का यह दायित्व है कि वह हिन्दू मंदिरों व धार्मिक संस्थाओं को संरक्षण प्रदान करें और इसके लिए अलग से पुलिस बल या स्पेशल सेल गठित किया जाये।
न्यायालय ने धार्मिक स्वतंत्रता से सम्बन्धित संविधान की अनुच्छेद 25 व 26 का जिक्र करते हुए कहा कि हिन्दुओं को भी धार्मिक आजादी का पूर्ण संरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि आजादी के बाद से कुछ विशेष सम्प्रदाय के व्यक्तियों की जनसंख्या पूरे भारत के कुछ जिले/मोहल्लों में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है और इसके फल स्वरूप हिन्दू जनसंख्या अपनी सुरक्षा के लिये अपनी जमीन व मंदिर की संपत्ति बेचकर सुरक्षित हिन्दू बहुल क्षेत्रों में बस रहे है।

न्यायालय ने राज्य को निर्देशित किया कि मंदिरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाये ताकि समाज विरोधी सांप्रदायिक तत्वों के मंदिरों पर हमले की प्रवृत्ति पर रोक लगायी जा सके। इसी के साथ न्यायालय ने तिल भांडेश्वर वाराणसी स्थित श्री सालिग्राम शिला गोपाल ठाकुर की प्रतिमा पुनस्र्थापित कर रखरखाव का निर्देश दिया है और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह मंदिर के सेवाइती को पूर्ण सहयोग प्रदान करें ताकि मंदिर में राग, भोग व पूजा शांतिपूर्ण ढंग से चलती रहे। एक संप्रदाय की बढ़ती आबादी व तनाव के चलते मंदिर बेचकर उसे इलाहाबाद लाया जा रहा था। इस मामले में न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय के आदेश को रद कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने गोपाल ठाकुर मंदिर के सेवाइत श्यामल राजन मुखर्जी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

न्यायालय ने हिन्दू मंदिरों की देखरेख व सुरक्षा के लिए राज्य सरकार को हिन्दू मंदिरों का बोर्ड गठित करने को भी कहा, जो मंदिरों का पंजीकरण, रखरखाव व प्रबंधन का काम देखेगा इसके सदस्य सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय तथा प्रमुख सचिव धर्मादा उप्र सरकार सदस्य सचिव होंगे। माननीय न्यायालय ने तदर्थ बोर्ड से कहा कि मामले की जॉच कर चार माह में राज्य सरकार को रिर्पोट सौंप दें। और राज्‍य सरकार को भी आदेश दिया कि वह किसी को भी मंदिरों या धार्मिक संस्थाओं, मठ आदि की संपत्ति बेचने की अनुमति न दे जब तक कि जिला न्यायाधीश की अनुमति न प्राप्त कर ली गई हो एक अन्य मामले में माननीय न्यायमूर्ति श्री श्रीवास्तव ने फैसला देते हुए कहा कि राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्र गान , राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय पुष्प के समान भगवद् गीता को राष्ट्रीय धर्मशास्त्र घोषित किया जाना चाहिए। जस्टिस श्रीवास्तव ने वाराणसी के गोपाल ठाकुर मंदिर के पुजारी श्यामल राजन मुखर्जी की याचिका पर फैसला देते हुए कहा कि देश की आजादी के आंदोलन की प्रेरणा स्रोत रही भगवद् गीता भारतीय जीवन पद्धति है। उन्होंने कहा कि इसलिए संविधान के अनुच्छेद 51(ए) के तहत देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इसके आदर्शों पर अमल करें और इस राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करें।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि भगवद् गीता के उपदेश किसी खास संप्रदाय की नहीं है बल्कि सभी संप्रदायों की गाइडिंग फोर्स है। गीता के उपदेश बिना परिणाम की परवाह किए धर्म के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं। यह भारत का धर्मशास्त्र है जिसे संप्रदायों के बीच जकड़ा नहीं जा सकता। न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि संविधान के मूल कर्तव्यों के तहत राज्य का यह दायित्व है कि भगवद् गीता को राष्ट्रीय धर्मशास्त्र की मान्यता दे।

न्यायालय ने यह भी कहा कि भारत में जन्मे सभी सम्प्रदाय, सिख, जैन, बौद्ध आदि हिंदुत्व का हिस्सा है जो भी व्यक्ति ईसाई, पारसी, मुस्लिम, यहूदी नहीं है वह हिन्दू हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 के तहत अन्य धर्मों के अनुयायियों की तरह हिंदुओं को भी अपने सम्प्रदायों का संरक्षण प्राप्त करने का हक है। न्यायालय ने कहा है कि भगवत गीता हमारे नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों की संवाहक है यह हिन्दू धर्म के हर सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इसके आदर्शों को अमल में लाये। माननीय न्यायमूर्ति के इन फैसलों से इस अल्पसंख्यकों की वास्तविकता स्पष्ट करती है वरन इलाहाबाद और आगरा की घटनाओं के बाद हुई हिंसा से इनकी कट्टरता भी प्रकट करती है। इसके पूर्व में भी माननीय न्यायमूर्ति ने मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं का जो फैसला दिया था वह गलत नहीं था। क्योंकि आज वे संख्या में भले हिन्दुओं से कम है किन्तु आज जिन इलाकों में वे हिन्दुओं से संख्या बल में ज्यादा है वहां पर हिन्दुओं का सर्वाधिक अहित हुआ है। आगरा में ट्रक के टक्कर के परिणाम हिन्दुओं की दुकानों को लूट कर किया गया इलाहाबाद के करेली की अफवाह के परिणाम स्वरूप हिन्दू बस्ती की तरफ हमले की योजना रची गई अगर कर्फ्यू न लगा होता तो शायद वस्तुस्थिति कुछ और होती तथा इसके साथ ही साथ कर्फ्यू के कारण कई परिवारों के भोजन नसीब नहीं हुआ। वास्तव आज न्यायालय के निर्णय समाज और सरकार को वास्तविकता का शीशा दिखा रहा है। जो सरकार आज अल्पसंख्यकवाद का ढोंग रच रही है उसे वास्तविकता के आगे जागना होगा।

माननीय न्यायमूर्ति जी को उनके फैसले तथा स्वर्णिम कार्यकाल के लिये हार्दिक शुभकामनाएं।



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आँसू



आज आपके समाने प्रस्‍तुत है अतिथि योगेन्‍द्र प्रताप सिंह ''विपिन'' जो इलाहाबाद वि‍श्‍वविद्यालय के बीए प्रथम वर्ष के छात्र है, और अपनी रचना आँसू को लेकर उपस्थित हुऐ है। जो इन्‍होनें अपनी स्‍नातक की पाठ्य में बबाणभट्ट की रचना अ‍ॉंसू पढने के बाद मन में आये भावों के द्वारा सृजित की है।
ज़ुदाई के व़क्‍त में धार आँसुओं की है,
हर खुशी हर ग़म में बहार आँसुओं की है।
देखें हमने है जि़न्‍दगी के फ़साने,
यहॉं खुशी और प्‍यार का दीदार आँसुओं में है।
कुऑं है, दरिया है या है नदी
हमने देखा समंदर संसार का आँसुओं में है।
आखि़र रिश्‍ता क्‍या है दिल का ऑंखों से,
जो आता इतना प्‍यार आँसुओं में है।
कौन कहता है कि बहता है ऑंसुँओं में ग़म,
हर मरने वाले का मिलता प्‍यार आँसुओं में है।
देख आँसुओं का ये आल़म-ए-मोहब्‍बत,
मेरा दिल कुर्बान हजार बार आँसुओं पे है।


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