आज काफी दिनों बाद दिल्ली यात्रा गाथा लिखने को समय मिल ही गया। मैंने अनिल जी और सुरेंद्र सुमन पर पिछली बात को छोड़ा था। अब उसके आगे ले चलता हूँ। दिल्ली स्टेशन पर हम काफी देर से अनिल जी का इन्तजार कर रहे थे। तब वे दिख जाते है और परिचय-परिचयी होती है। फिर मैंने अपनी एक बात अनिल भाई को बताया कि मेरे एक मित्र प्लेटफार्म नंबर एक 7:30 पर मिलने को कहा है। अगर उनसे मिलना हो जाये तो अच्छा होगा। अनिल जी ने तुरंत हाँ कर दिया। और मुझे आभास हुआ कि मेरी हर सार्थक बात में उनकी हॉं थी। फिर काँफी खोजते खोजते सुमन भाई मिल ही गये। फिर हम लोगों से कृर्षि भवन तक के लिये एक बस पकड़ी, गौरेतलब की वह ब्लू लाइन ही थी। मै सोच में पड़ गया कई यह टक्कर मार वाहन हमारी फोटो न खिंचवा दें और हम पेपर और टीवी पर न दिखने लगे। :) पर अफसोस की ऐसा हुआ नहीं :(
बस में मै और सुमन जी साथ साथ से और हमारी बातें खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी। पर उनके साथ मेरा सफर सिर्फ कृर्षि भवन तक ही था। काफी बातें अधूरी रह गई। सच में हम दोनों को इस बात का दुख है। फिर हम लोग कृर्षि भवन पहुंच गए और उससे पहले बात करते हुए सैन्य भवन, उद्योग भवन, रेल भवन, सहित अनेको मंत्रालयों को देखा। फिर कृर्षि भवन से हम लोगों ने जिया सराय के लिये बस पकड़ी तो रास्ते में राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट भी दिखा। फिर इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, पाकिस्तान सहित अनेक राष्ट्रों के दूतावास को भी देखा यह निश्चित रूप से एक अच्छा पल था। यह सब देखते हुए अनिल जी से बात हुई। तो पता चला कि वह वही अनिल है जिनसे मैने इलाहाबाद में फोन पर बात की थी पर मिलना नही हो सका था।
अनिल जी के साथ मै और तारा चन्द्र शैलेश जी के यहाँ पहुँचे लगभग नौ बजे के आस पास तब तक और मित्रों का आगमन हो रहा था। लगभग 1 बजे के आस पास मुझे लगा कि हमारे पास समय कम है कुछ दिल्ली घूम लिया जाना चाहिए। फिर क्या था हम लोग निकल दिऐ आईआईटी गेट के सामने वाली सड़क की ओर ग्रीन पार्क/ गार्डन की ओर वहां जाकर पता चला न यहाँ ग्रीन है न ही गार्डन। फिर क्या था मैने कुछ लोगों से पूछा कि आईआईटी गेट जाने का रास्ता तो उन्होंने बताया कि जैसे आये हो वैसे ही चले जाओं। पर मुझे यह ठीक नही लग रहा था कि जिस रास्ते से चप्पल चटकाते हुऐ आया हूँ फिर से उसी रास्ते को नापू फिर हम लोग विपरीत रास्ते पर निकट दिया गया। फिर हम लोग सफदरगंज पहुंचे और देना बैंक के एटीएम और उनकी सुख सुविधाओं का उपयोग किया। फिर हमें एक बड़ा सा पार्क दिखा जिसे लोग हिरण पार्क कहते थे। मुझे यह अनुमान हो गया कि यह वही पार्क हो सकता है जो हमने आई आई टी गेट पर देखा था। हम अपने अनुमान के निकट थे जब हमने पार्क में प्रवेश किया और लोगो से आईआईटी गेट के बारे में पूछा तो हम सही थे और उनके द्वारा बताया गया आप हिरण पार्क में है आगे जाने पर आप रोज गार्डेन में पहुँच जायेगें। हमारी जान में जान आई हम लगभग 20 किमी पैदल का चक्कर लगा चुके थे। किन्तु तारा चन्द्र की मजाकिया बातों से थकान का अनुभव नही हुआ। रोज गार्डेन के प्रेमी जोडों को देख कर एक अच्छी गजल तारा चन्द्र सुना रहे थे। अचनक गेट से बाहर हम पहुँच गये। फिर हमें मजिंल मिल गई थी। लगभग पॉंच बजे को आस-पास हमें शैलेश जी के निवास पर पहुँचे जहॉ वह अकेले हमारे आने का इन्तजार कर रहे थे।
यहॉं तक का वृत्त समाप्त होता है। आगे की कड़ी में मै आपको इण्डिया गेट और अपने एक अन्य प्रिय मित्र आलोक जी के साथ बिताये गये पलो का वर्णन करूँगा। क्योकि यह ही वह पल था जब मेरे लिये सबसे ज्यादा खुशी और दु:ख के थे।
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