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ब्रह्मचर्यासन से करें स्वप्नदोष, तनाव और मस्तिष्क के बुरे विचारों को दूर
ब्रह्मचर्यासन - प्राय: भोजन के बाद योगासन नहीं किये जाते किन्तु कुछ आसन ऐसे भी होते हैं जो भोजन के बाद भी किये जाते हैं। ऐसे ही आसनों में से एक है ब्रह्मचर्यासन। इस आसन को रात्रि-भोजन के बाद सोने से पहले करने से विशेष लाभ होता है। इस आसन को नियमित से करने के ब्रह्मचर्य-पालन में सहायता मिलती है जिससे अखंड ब्रह्मचर्य की सिद्धि होती है। यह आसन ब्रह्मचर्य की साधना के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है इसलिए इस आसन को ब्रह्मचर्यासन का नाम दिया गया है। इस आसन से मानसिक संतुलन बनाकर मन को शांति प्रदान की जा सकती है। ब्रह्मचारी साधना का अनुपालन करने के लिए ब्रह्मचारी लोग इस आसन को लगाते है।
ब्रह्मचर्यासन की विधि Brahmacharyasana ki Vidhi
समतल भूमि पर दरी या कम्बल बिछाकर बैठ जाएं। अब दोनों पैरों के बीच में अंतर रखते हुए सामने की तरफ फैला दें। इसके बाद बाएं पैर को घुटने से मोड़कर शरीर की ओर खींच ले और दाहिने पैर की जंघा के पास रखें। अब बाएं पैर की एड़ी से दबाव बनाकर पैर के तलवे को जांघ से सटाकर अंगूठे व उंगलियों को दाहिने पैर के घुटने से दबा दें। अब दाहिने पैर को भी इसी तरह से मोड़कर बाएं पैर की जंघा और घुटने के बीच रखे ताकि एड़ी बायीं पैर की जंघा संधि पर दबाव बनाए तथा अंगूठे व उंगलियों के बीच आ जाएं। धड़ को सीधा और आराम की अवस्था में रखें। दोनों हाथों को सीधे फैलाकर घुटनों पर रख दें और हथेलियां खुली हुई व सीधी होनी चाहिए। तर्जनी उंगली और अंगूठा एक दूसरे से स्पर्श करते हुए रहने चाहिए।
ब्रह्मचर्यासन के लाभ : Brahmacharyasana ke Fayde / Benefits in hindi
- इस आसन द्वारा रक्त संचार सुचारु रूप से होने लगता है।
- इसके द्वारा वीर्य को संरक्षित करके वीर्य वृद्धि की जाती है।
- आधा सीसी दर्द के दौरान इस आसन से बहुत आराम मिलता है।
- यदि कोई अप्रिय घटना बहुत प्रयत्न करने के बाद भी नहीं भुलाई जा रही हो तो इस आसन का अभ्यास करने से कुछ दिनों व्यक्ति उस घटना को भूल सकता है।
- इस आसन से ब्रह्मचर्य साधकों में काम भाव और कामुकता के भाव ख़त्म हो जाते है और ब्रह्मचर्य पर भी नियंत्रण किया जा सकता है।
- इस आसन से युवावस्था में बहुत लाभ मिलते है इससे स्वप्नदोष, मस्तिष्क में बुरे विचार और तनाव जैसी समस्या से मुक्ति मिल सकती है।
- पचास वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति इस आसन द्वारा अलौकिक शक्ति को प्राप्त कर सकते है। 8. इस आसन से स्त्री और पुरुष दोनों को समान रूप से लाभ मिलता है।
Brahmacharyasana Yoga Mudra Health Benefits
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हिन्दू विवाह - संस्कार है या संविदा
हिन्दू विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें जो शरीर एकनिष्ठ हो जाते है, किन्तु वर्तमान कानून हिन्दू विवाह की ऐसी तैसी कर दिया है। हिन्दू विवाह को संस्कार से ज्यादा संविदात्मक रूप प्रदान कर दिया है जो हिन्दू विवाह के स्वरूप को नष्ट करता है। हिन्दू विवाह में कन्यादान पिता के रूप में दिया गया सर्वोच्च दान होता है इसके जैसा कोई अन्य दान नहीं है।
विवाह के पश्चात एक युवक और एक युवती अपना वर्तमान अस्तित्व को छोड़कर नर और नारी को ग्रहण करते है। हिन्दू विवाह एक बंधन है न की अनुबंध, विवाह वह पारलौकिक गांठ है जो जीवन ही नही मृत्यु पर्यन्त ईश्वर भी नही मिटा सकता है किन्तु भारत के कुछ बुद्धिजीवियों ने हिन्दू विवाह की रेड़ मार कर रख दी है इसको जितना पतित कर सकते थे करने की कोशिश की है। भगवान मनु कहते है कि पति और पत्नी का मिलन जीवन का नहीं अपितु मृत्यु के पश्चात अन्य जन्मों में भी यह संबंध बरकरार रहता है। हिन्दू विवाह पद्धति में तलाक और Divorce शब्द का उल्लेख नही मिलता है जहां तक विवाह विच्छेद का सम्बन्ध है तो उसके शब्द संधि द्वारा बनाया गया। अत: हिन्दू विवाह अपने आप में कभी खत्म होने वाला संबंध नहीं है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम) में विभक्त किया गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात विवाह नितांत आवश्यक है। हिंदू विवाह में शारीरिक संम्बंध केवल वंश वृद्धि के उद्देश्य से ही होता है।
वयस्कता प्राप्त करने पर,संतानों को मनमानी करने का फैसला निश्चित रूप से हिन्दू ही नहीं अपितु पूरे भारतीय समाज के लिये गलत था। क्या मात्र 18 वर्ष की सीमा पार करने पर ही पिछले 18 वर्षों के संबंध को तिलांजलि देने के लिये पर्याप्त है?
1914 के गोपाल कृष्ण बनाम वैंकटसर में मद्रास उच्च न्यायालय ने हिन्दू विवाह को स्पष्ट करते हुए कहा कि हिन्दू विधि में विवाह को उन दस संस्कारों में एक प्रधान संस्कार माना गया है जो शरीर को उसके वंशानुगत दोषों से मुक्त करता है।
इस प्रकार हम देखेंगे तो पाएंगे कि हिन्दू विवाह का उद्देश्य न तो शारीरिक काम वासना को तृप्त करना है वरन धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति करना है। आज हिन्दू विवाह को कुछ अधिनियमों ने संविदात्मक रूप प्रदान कर दिया है तो हिन्दू विवाह के उद्देश्यों को छति पहुँचाता है।
अभी बातें खत्म नहीं हुई और बहुत कुछ लिखना और कहना बाकी है। समय मिलने पर इस संदर्भ में बात करूँगा।
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