बीते माह की 30 तारीख को हमारे चिट्ठाकारी जीवन 2 साल पूरे हो गये, और देखिए, मै यहीं बात भूल गया कि 30 जून को मैने अपना ब्लाग बनाया था। खैर देर आये दुरूस्त आये की तर्ज पर हम दुरूस्त आ गये है, और अपने चिट्ठाकारी के तीसरे साल में पहुँच कर 2 साल पूरे करने की घोषणा करते है।
हुआ यो कि मै अपने पढ़ाई लिखाई, खेल कूद जैसे विषयों पर छुट्टी में ज्यादा व्यस्त था। और इन दिनों मुझे याद ही नही रहा कि मै कभी चिट्ठाकार भी हुआ करता था। :) आज अचानक गाहे बगाहे ही याद आ गया कि मेरे चिट्ठाकारी शुरू किये दो साल पूरे हो गये है। थोड़ा दुख भी हुआ कि उस दिन पोस्ट न डाल सका, क्योकि खास दिन की पोस्ट का कुछ खास ही महत्व होता है।
इधर चिट्ठाकारी और कम्प्यूटर से दूरी का मुझे सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिला, 2006 के ग्रेजुएशन में मेरा अब तक का सबसे खराब शैक्षिक प्रदर्शन हुआ था, और मै मात्र 0.42 प्रतिशत अंक की कमी के कारण 50 प्रतिशत अंक भी नही पा पाया था, मुझे इसकी कसक आज तक है। कई ऐसी परीक्षाये आयोजित होती है जिसमें 50 प्रतिशत की मॉंग होती है और मै अयोग्य हो जाता हूँ और दिल पर सिर्फ और सिर्फ खीझ और सिर्फ निराशा ही हाथ आती है।
चूकिं मेरी इच्छा विधि की पढ़ाई की थी और 2006 की असफलता के ग्रहण के कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश न हो सका था। इच्छा के विपरीत साल न खराब हो इस लिये राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से एम ए का फार्म भर दिया था और फिर इस बार मैने पक्का इरादा किया था कि परास्नातक में अच्छा प्रर्दशन करूँगा। और इसी विश्वास के कारण अर्थशास्त्र परास्नातक में प्रथम सेमेस्टर में 58, द्वितीय में 65 तथा हफ्ते भर पूर्व घोषित तृतीय सेमेस्टर में 76 प्रतिशत अंक लाये थे। यह मेरी अब तक की दी गई किसी भी परीक्षा का सर्वोत्तम अंक है। निश्चित रूप से आशा के अनुरूप सफलता पर खुशी मिलती है।
2007 के शुरू होते ही विधि की पढ़ाई की प्रबल इच्छा फिर जाग गई, और असमजस में था कि एमए के साथ विधि कैसे होगा, किन्तु कुछ मित्रों ने बताया कि मुक्त विश्वविद्यालय की पढ़ाई के साथ किसी और विश्वविद्यालय से डिग्री कोर्श कर सकते है, मुक्त विश्वविद्यालय के गुरूजनों से सम्पर्क किया तो उन्होने भी ऐसा ही उत्तर दिया। अक्टूबर माह में मैने विधि में प्रवेश ले लिया और कम समय में पर्याप्त तैयारी के बोझ के साथ लग गया। फरवरी में एमए तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा के बाद ही 15 अप्रेल से विधि के पर्चे भी प्रारम्भ हो गये। मेरी बहुत अच्छी तैयारी नही थी, किन्तु जहां चाह तहाँ राह की धारण सत्य हुई 2 जुलाई को मेरा विधि का परिणाम हुआ, रिजल्ट आशा के विवरीत हुआ, करीब 60 से 65 प्रतिशत की उम्मीद लगा कर बैठा था किन्तु 56 प्रतिशत पर आ कर रूक गया, तो भी परिणाम ठीक ही रहा। 7 और 9 जुलाई को मेरा एमए का अन्तिम सेमेस्टर होगा, और इस साल मेरे पास काफी समय होगा विधि के लिये और पूरी कोशिश करूँगा कि अगली परीक्षाऍं भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करूँ।
पिछले तीस जून 2007 का लेख - चिट्ठाकारी में महाशक्ति के एक साल
हुआ यो कि मै अपने पढ़ाई लिखाई, खेल कूद जैसे विषयों पर छुट्टी में ज्यादा व्यस्त था। और इन दिनों मुझे याद ही नही रहा कि मै कभी चिट्ठाकार भी हुआ करता था। :) आज अचानक गाहे बगाहे ही याद आ गया कि मेरे चिट्ठाकारी शुरू किये दो साल पूरे हो गये है। थोड़ा दुख भी हुआ कि उस दिन पोस्ट न डाल सका, क्योकि खास दिन की पोस्ट का कुछ खास ही महत्व होता है।
इधर चिट्ठाकारी और कम्प्यूटर से दूरी का मुझे सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिला, 2006 के ग्रेजुएशन में मेरा अब तक का सबसे खराब शैक्षिक प्रदर्शन हुआ था, और मै मात्र 0.42 प्रतिशत अंक की कमी के कारण 50 प्रतिशत अंक भी नही पा पाया था, मुझे इसकी कसक आज तक है। कई ऐसी परीक्षाये आयोजित होती है जिसमें 50 प्रतिशत की मॉंग होती है और मै अयोग्य हो जाता हूँ और दिल पर सिर्फ और सिर्फ खीझ और सिर्फ निराशा ही हाथ आती है।
चूकिं मेरी इच्छा विधि की पढ़ाई की थी और 2006 की असफलता के ग्रहण के कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश न हो सका था। इच्छा के विपरीत साल न खराब हो इस लिये राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से एम ए का फार्म भर दिया था और फिर इस बार मैने पक्का इरादा किया था कि परास्नातक में अच्छा प्रर्दशन करूँगा। और इसी विश्वास के कारण अर्थशास्त्र परास्नातक में प्रथम सेमेस्टर में 58, द्वितीय में 65 तथा हफ्ते भर पूर्व घोषित तृतीय सेमेस्टर में 76 प्रतिशत अंक लाये थे। यह मेरी अब तक की दी गई किसी भी परीक्षा का सर्वोत्तम अंक है। निश्चित रूप से आशा के अनुरूप सफलता पर खुशी मिलती है।
2007 के शुरू होते ही विधि की पढ़ाई की प्रबल इच्छा फिर जाग गई, और असमजस में था कि एमए के साथ विधि कैसे होगा, किन्तु कुछ मित्रों ने बताया कि मुक्त विश्वविद्यालय की पढ़ाई के साथ किसी और विश्वविद्यालय से डिग्री कोर्श कर सकते है, मुक्त विश्वविद्यालय के गुरूजनों से सम्पर्क किया तो उन्होने भी ऐसा ही उत्तर दिया। अक्टूबर माह में मैने विधि में प्रवेश ले लिया और कम समय में पर्याप्त तैयारी के बोझ के साथ लग गया। फरवरी में एमए तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा के बाद ही 15 अप्रेल से विधि के पर्चे भी प्रारम्भ हो गये। मेरी बहुत अच्छी तैयारी नही थी, किन्तु जहां चाह तहाँ राह की धारण सत्य हुई 2 जुलाई को मेरा विधि का परिणाम हुआ, रिजल्ट आशा के विवरीत हुआ, करीब 60 से 65 प्रतिशत की उम्मीद लगा कर बैठा था किन्तु 56 प्रतिशत पर आ कर रूक गया, तो भी परिणाम ठीक ही रहा। 7 और 9 जुलाई को मेरा एमए का अन्तिम सेमेस्टर होगा, और इस साल मेरे पास काफी समय होगा विधि के लिये और पूरी कोशिश करूँगा कि अगली परीक्षाऍं भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करूँ।
पिछले तीस जून 2007 का लेख - चिट्ठाकारी में महाशक्ति के एक साल
Share: