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राष्ट्रहित एवं स्थाई सरकार के लिये घर से निकले पपप
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जबलपुर में दूसरा दिन - महेन्द्र, सलिल व ब्लागर मीट
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जबलपुर की यात्रा - प्रथम दिन
जबलपुर में मै 4 अप्रैल सायं 6 बजे तक पहुँच गया था। मेरे मित्र ताराचंद्र मुझे स्टेशन पर लेने पहुँच गये थे। स्टेशन पर एक लड़का जो इलाहाबाद से मेरे साथ था, उसे हमारा साथ बिछड़ने का गम था। जब उसे पता चला कि मै पहली बार अलेके यात्रा कर रहा हूँ तो वह और भी चिंतित हो गया। मैने उसे भरोसा दिलाया कि मै जबलपुर पहली बार जरूर जा रहा हूँ पर यहाँ मुझे एक दर्जन से ज्यादा लोग जानते है। उसकी कुछ चिंता कम होती है। जाते जाते मैने उसका नंबर लिया और संपर्क बनाए रखने की बात की। 4 अप्रैल के बाद से मैंने उसे दो बार बात कर चुका हूँ, वह भी मुम्बई पहुँच गया था।
जब मै ताराचंद्र के साथ चल तो जबलपुर की रौनक देखते ही बनती थी। मेरे मन में जो जबलपुर के प्रति धारणा थी वह बदल रही थी। कुछ देर में मै अपने गंतव्य स्थान पर पहुँच गया। ताराचंद्र को भी अपने काम पर जाना था मै भी जबलपुर को स्थिर तौर पर देखना चाहता था। मै भी पैदल निकल पड़ा, करीब 8 से 12 किमी पैदल चलकर जबलपुर शहर को देखा और रात्रि 10 बजे वापस पहुँचा। जहाँ मै रूका था अगर उसका जिक्र न करूँ तो प्रथम दिन चर्चा अधूरी रह जायेगी। मै उस परिवार के प्रति आभार प्रकट करता हूँ। सहृदय धन्यवाद देता हूँ, जहाँ मुझे परिवार जैसा वातावरण मिला।
शहर का पूरा माहौल भक्तिमय था, जावरा की यात्रा देखना सुखद था। करीब 2 दर्जन मंदिरों में माथा टेक प्रसाद ग्रहण किया। जबलपुर को संस्कारधानी ऐसे ही नही कहा गया। प्रथम दिन कई जबलपुर के ब्लॉगरों को अपने पहुँचने की सूचना दिया और अगले दिन का कार्यक्रम तय किया। रात्रि के 10 बजे के बाद सोने का टाइम हो गया था, और फिर मै सो गया।
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