साईकिल कमल संवाद



हमारे एक बहुत ही अच्‍छे मित्र(अभी नाम नही लूँगा) है, बहुत मुद्दो पर हम मतैक्‍य है सिवाय पार्टियों की के , इसके सिवाय लगभग हम बहुत बातों पर सहमत रहते है। यह हमारे मित्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति के सिरमौर है। इनमे वह क्षमता है जो अभी से ही दिखती है, अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्‍व के साथ जलपान आदि कर चुके है। इनका भविष्‍य बहुत उज्‍जवल है, और मै इस भविष्‍य को और भी उज्‍जव होने की सदा कामना करता हूँ। ता‍कि कोई भी शीर्ष पर पहुँचे, मगर वक्‍त ऐसा आये कि हमारी सार्थक विचार धारा प्रभावी हो। हम अक्‍सर कुछ मुद्दो पर बात करते है आज ही अचानक आर्कुट पर उनसे बात हुई, मुझे लगा कि इसे शेयर किया जा सकता है। तो मै उसे प्रस्‍तुत कर रहा हूँ -
साईकिल का सारथी: namaskar..
भाजपा को वोट दे: नमस्‍कार मित्र केसे हे
साईकिल का सारथी: सब बढ़िया है...आपको ने बहुत वोट माँगा...
भाजपा को वोट दे: अभी भी मांग रहे है। और बताइये क्‍या चल रहा है।
साईकिल का सारथी: main bhi mang raha hun...bhai bs party ka anter hai....haaa haaaa
भाजपा को वोट दे: आप किंग मेकर हो सकते है, किंग नही किंग तो हम है हम। हा हा हा
साईकिल का सारथी: क्योंकि हम गरीबों ,नौजवानों,किसानो,बेरोजगारों,बुनकरों,मजदूरों की बात करतें हैं इसीलिए .....और आप लोग तो राजा हो ही...
भाजपा को वोट दे: सिर्फ बात ही करते है, काज के नाम पर अकाज करते है। काम तो हम करते है, गुजरात को देखिये, कम ही काम हुआ है, अब यही काम भारत में भी होगा।
साईकिल का सारथी: माँ के दो बेटों में खाने से लेकर रहने तक की लडाई लगा दी...विकास की बात करतें हैं...मौका मिले तो देश बाँट दें...
भाजपा को वोट दे: एक बार मौका मिला तो 45 साल के कांग्रेस के कंलक को धोया, पर आप जैसी कुछ पार्टियों ने हमारे 6-7 सीट ज्‍यादा काग्रेस को फिर से सत्‍ता में लाकर भारत माता के माथे पर कंलक लगाने के काबिल बना दिया। अगर 2004 मे कांग्रेस की सरकार न होती तो 2009 में अपनी अन्तिम सांसे गिन रही होती, और सत्‍ता का मुकाबला मेरे और आपमे होता, आपने ही मौका गवां दिया।
साईकिल का सारथी: जी यहाँ मैं मैं आपसे सहमत हूँ...पर मुझे लगता है की भारतमाता का सम्मान सभी को करना चाहिए...आप की पार्टी के बहुत सारे लोग दो भैएयों में वैमनष्यता का बीज बोते है...ये ठीक नहीं....यह भी तो कलंक है...
भाजपा को वोट दे:
कौने से भाई मित्र ? वह भाई जिसने अपनी चाचा की मृत्‍यु के बाद अपने अपनी चाची और भाई को बेदखल कर पूरे सम्‍पत्ति अपनी मॉं के साथ मालिक बन गया ? जिसने कभी सुध नही ली। उस वेवा की व्यथा को आप क्‍यो भूल जाते जिसके कारण उसे अपने जेठ के खिलाफ चुनाव लड़ना पड़ता है। उस पर परिवार ने कभी इन माँ बेटो को अपना माना ही नही।
भाजपा को वोट दे: (काफी देर तक अन्‍य बात नही आती है) अब मुझे जाना होगा, कुछ निमंत्रणों में जाना है। फिर मिलते है, जय श्रीराम
साईकिल का सारथी: same here..


Share:

भेड़ाघाट और दुर्घटना के लिये याद रहेगा जबलपुर का तीसरा दिन



जबलपुर की यात्रा के दो सस्‍मरणों (जबलपुर की यात्रा - प्रथम दिनजबलपुर में दूसरा दिन - महेन्‍द्र, सलिल व ब्‍लागर मीट)को तो आपने पढ़ा ही होगा। आज मै भेड़ाघाट जा रहा हूँ , मेरी तनिक भी इच्‍छा नही है किन्‍तु सुपारी दी थी तो जाना पड़ेगा ही। जबलपुर की मीट में ही श्री गिरीश बिल्‍लोरे जी ने मुझे भेड़ाघाट घुमाने की सुपारी ले ली थी और उन्‍होने इसे अगले दिन पूरा करने के लिये एक अपरण कर्ता को मय कार के साथ भेज दिया। उसने बताया कि आपको खुफिया जगह ले जाया जा रहा है। मैंने पूछा आपके सरगना (गिरीश जी) वहां होंगे कि नहीं ? उत्तर मिला नहीं। फिर क्या था फोन मिलाया और शिकायत दर्ज की, तो अपनी व्यस्तता को बताई जो जायज थी।





मुझे और ताराचंद्र को उस गाड़ी चालक ने पूरी सहुलियत के साथ घुमाया, बहुत कम पैदल चलवाया। बहुत कम समय में बहुत ही यादगार स्मृति मेरे मन में बन गई। कुछ देन में कुछ खरीदारी भी किया किया। चलते वक्त नजदीक के एक होटल में जलपान भी किया। कुछ देर में वाहन चालक ने हमें अपने गंतव्‍य स्‍थान हरिभूमि पर पहुंचा दिया। कुछ देर में मित्र तारा अपने ऑफिस का काम देख कर मुझे आराम करने के लिये घर छोड आये। शाम 4-5 बजे तक वो फिर आते है और मुझे अपने साथ हरिभूमि के दफ्तर में अपने कुछ मित्रों से मिलवाया। काफी देर तक मुलाकात बातचीत का दौर चला । मुझे लगा कि मै ऑफिस के काम में बाधा पहुँच रहा हूँ तो सभी से अनुमति घूमने निकल पड़ा।


शाम का समय था कहां कहां घूमा मुझे पता नही था, तीन दिनो बाद पहली बार जबलपुर में साइबर कैफे दिखा। जैसे ही मै बैठा वैसे ही श्री गिरीश जी का फोन आया, कि मै हरिभूमि पर आपका इंतजार कर रहा हूँ। मुश्लिक से 5 मिनट भी न हुये थे, दाम पूछा तो 10 रूपये बताया देकर चलता बना। 5 मिनट में हरिभूमि पहुँच गया, श्री गिरीश जी के साथ चौराहे की चाय की चुस्‍की हुयी और और खबर सुनाई दी कि कही हेलीकाप्‍टर गिर पड़ा है। हरिभूमि से ज्‍यादा तेज गिरीश जी का नेटवर्क था जो इस खबर की पुष्टि की । इसी चर्चा के बीच बहुत तेज आंधी पानी भी आ गया, और हम जल्‍दी से गाड़ी में बैठकर श्री गिरीश जी के आवास पहुँच गये।

जलपान के साथ विभिन्‍न मुद्दे पर गरम चर्चा भी हुई, 2006 से लेकर वर्तमान चिट्ठाकारी पर चर्चा भी की गई, और भविष्‍य की संकल्‍पनाओं की आधारशिला भी रखा गया। कुछ बातो पर मुझे जबलपुर के उन ब्‍लागरो से कभी कुछ कहना चाहूँगा, जो मुझे अत्‍मीय मान देते है, समय अपने पर वह मै करूँगा। करीब रात्रि 10.30 भोजन के बाद हम सभी परिवार जनो से आ‍शीर्वाद ले विदा हुये। श्री गिरीश जी व परिवार से जो प्‍यार मिल उसके लिये धन्‍यवाद या आभार व्‍यक्‍त करना, उस स्‍वर्णिम पल का अपमान करना ही होगा, इन तीन दिनो में मुझे अपने परिवार की स्‍मृति तो थी किन्‍तु सभी की छवि जबलपुर के ब्‍लागरों मे दिख रही थी।

रात्रि के समय में जबलपुर की तुलना किसी दुल्हन से करना गलत न होगा। मै जबलपुर की छटा पर से निगाह हटा नहीं पा रहा था, मै उसे देख ही रहा था चौराहे पर एक तीव्र गति से आती हुई फोरविलर के कारण कि गाड़ी असंतुलित हो गई और हम गिर पड़े। जबलपुर के लोगो का प्यार और भगवान हमारे साथ थे इस कारण ज्यादा कुछ नहीं हुआ, हमारे मित्र ताराचंद्र आगाह थे इसलिये बिल्कुल सुरक्षित थे, थोड़ा गाड़ी डैमेज हो गई थी, मै शहर के नजरे लेने में व्‍यस्‍त और इसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा, इस कारण मुझे सड़क पर ही घुटना टेकना पड़ा और नतीजा यह हुआ कि पैट भी फट गई और घुटना भी छिल गया (दर्जी की दया से पैंट रफू और डॉक्टर की दया चोट दोनो जल्‍दी ही विदा हो गये, पर पैंट मे भी दाग है और पैर में भी जो जबलपुर की याद दिलाता रहेगा ) । ताराचंद्र ने पूछा चोट तो नहीं लगी, मैंने कहा नहीं, थोड़ा गाड़ी धीरे चलाया करो, दुर्घटना सिर्फ हमारी गलती से ही नही होती है। हम चल दिये मुझे घर पहुँच तारा चन्‍द्र जी अपने ऑफिस चले गये।

सुबह जब तारा चन्‍द्र उठे मेरी पैंट और चोट देखी जो उन्‍हे फील हुया, कुछ गलती जरूर हुई थी। यही फील करवाना मेरा मकसद भी था, क्‍योकि मेरा मानना है कि दुर्घटना अपनी गलती से नही होती है पर अपनी सावधानी से टाली जा सकती है। आगे की चर्चा अगले पोस्‍ट में ये यादगार अन्तिम दिन था क्‍योकि मुझे इस दिन एक नया परिवार मिला।


Share:

मदद के लिये आभार, आखिर हल मिल ही गया



पिछले कुछ दिनो से मेरा ब्लॉग एक अजीब सी समस्या से जूझ रहा था, उस समस्या के निजात के लिये ब्लॉग समूह से मदद माँगी थी। पोस्ट लिखता था पोस्‍ट मेन पेज पर तो दिखती थी किन्तु पोस्ट के रूप में नही दिख रही थी। परसो मै और जीतू भाई काफी देर तक इस समस्या पर विचार करते रहे किंतु समस्या का समाधान हो ही नहीं रहा था,जीतू भाई भी अपना अमूल्य समय निकाल कर मेरी सहायता करने में लगे थे।

मेरा ब्लॉग दो जगहों पर रिडाईरेक्‍ट हो रहा था, जो एक तकनीकी कमी थी, अन्तोगत्वा जीतू भाई के अनुसार मैने अगले दिन फिर से काम प्रारंभ किया। काम मे लगा ही था कि श्री विजय तिवारी किसलय जी से सुखद बात हुई उनसे बात करने के बाद तो मन प्रसन्न हो हो गया। उनसे बात समाप्त हुई है और जैसे फिर ब्लॉग में हाथ लगाया अपने आप समस्‍या समाप्‍त हो गई।
मुझे एहसास हुआ कि किसी काम की सफलता के पीछे मेहनत के साथ-साथ सही समय का हो भी आवश्यक होता है।


Share: