जसवंत सिंह
आडवानी भी जिन्ना का गुणगान कर चुके थे और अब जसवंत ने भी किया, दोनो के गुणगान मे बहुत बड़ा अंतर है। आडवानी ने जो किया मै उस पर जाना नही चाहूँगा किन्तु जसवंत पर जरूर कहना चाहूँगा। जिस व्यक्ति ने भाजपा निर्माण से लेकर आज तक अपना जीवन अपनी पार्टी को दिया आज वही पार्टी उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया, और कारण सरदार पटेल पर टिप्पणी को बताया जा रहा है। जसवंत सिंह को पार्टी से निकालना भाजपा की सबसे बड़ी राजनैतिक भूलो में से एक होगी। अपनी लिखी पुस्तक सरदार पटेल पर टिप्पणी दुर्भाग्य पूर्ण है किन्तु अनुचित नही है। देश की अखंडता में जिनता योगदान सरदार पटेल का रहा है उसे कोई भी भूला नही सकता किन्तु यह भी भूला दिया जाना कि गलत होगा कि सरदार पटेल भी हमेंशा गांधी के हाथ की कठपुतली साबित हुये है। एक बड़ा जनमानस चाहे वह हिन्दू रहा होगा या मुसलमान विभाजन के पक्ष में नही था किन्तु नेहरू-गांधी पदलिप्सा के आगे पूरा देश लाचार रहा और विभाजन की भीषण विभीषिका से जूझता रहा।आज यह शोध का विषय होना चाहिये कि क्या भारत विभाजन रोका जा सकता था ? मेरी नज़र में इसका उत्तर हाँ में आएगा क्योंकि आज देश में जितने मुसलमान है उतने आज पाकिस्तान में भी नही है। जब आज मुस्लिम स्वतंत्रता पूर्वक रह सकते है तो तब भी रह सकते थे किन्तु नेहरू के मोह में गांधी जी के आँखो में पट्टी सी बांध दी थी। नेहरू के अतिरक्ति कोई भी ऐसा भारतीय नेता इस हैसियत में नही था कि व गांधी जी के गलत बातों का विरोध कर सकें, यहाँ तक कि सरदार पटेल भी नही। देश के साथ साथ काग्रेस का एक बड़ा जनमानस खुद सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखता था किन्तु नेहरू और गांधी के प्रभाव में जो वस्तु स्थिति हमारे समाने आयी उससे हम भली भाति परिचित है, कि देश कि इच्छा के विरूद्ध हमने नेहरू के रूप में देश का पहला प्रधानमंत्री पाया।
नेहरू, गांधी व पटेल आज जरूरत है कि देश के विभाजन की सही विभिषिका देश के समाने रखी जाये, वही जसवंत सिंह ने रखने का प्रयास किया था। भारत विभाजन के लिये जिन्ना से ज्यादा दोषी नेहरू, गांधी और कांग्रेस पार्टी है जो जो मुस्लिमो को साथ नही रख सकें, आज यही काग्रेस पार्टी मुस्लिमों को की सबसे बड़ी हितैसी बनी हुई है। गेहू के साथ सदैव घुन पीसा जाता है, नेहरू और गांधी के पापों के छिट्टे पटेल पर पड़ना स्वाभाविक ही था।
गांधी और सुभाष
जसवंत सिंह की किताब पर जो रवैया भाजपा का है वह र्दुभाग्य पूर्ण है, वह एक लेखक की किताब को अपनी विचारधारा से तुलना कर रही है और किताब के लेखक के विचारों को अपनी विचारधारा से जोड़ रही है। भाजपा के अंदर की इस कुस्ती को असली मजा देश विभाजन की दोषी कांग्रेस ले रही है।त् इंटरनेट के विभिन्न सूत्रों से
साभार
Share: