आज न चाहते हुये बहुत कुछ लिखना पड़ रहा है, वो भी दुख के साथ, दुख इस बात का नही कि ब्लॉगवाणी बंद हो गया है, दुख इस बार का कि किसी की महत्वाकांक्षा और छिछोरापन के कारण एक फलती फूलती साइट का अंत हो गया। ब्लॉगवाणी एक साईट नही थी वह एक परिवार थी, परिवार के नियम के अनुसार हम सदस्य चलते थे, जो पारिवारिक सदस्यों नियमों को नहीं मानता था उसके साथ सख्ती की जाती थी। खैर मै किसी नियम के पचड़े में नहीं पड़ना चाहूँगा।
ब्लॉगवाणी को समाप्त करने से पहले ब्लॉगवाणी मंडल को सोचना चाहिए था, जो कदम उन्होंने उठाया, हो सकता है वह समय कि मांग रही हो, किन्तु आज जनभावना की मांग है कि ब्लॉगवाणी को आज जन के समक्ष लाया जाये। जब कुछ लोग गूगल ग्रुप आदि को अपनी निजी संपत्ति बता कर इठला सकते है कि ब्लॉगवाणी के मंच को भी अपने नियम शर्तों के लिये स्वतंत्र है, किसी को शामिल करना व न करना ब्लॉगवाणी की इच्छा पर निर्भर करता है न कि ब्लागर की गुंडई और दबंगई पर, जो कि आम दिनो में देखने को मिला।
याद समझ में नही आता कि पंसद 1 हो या 25 यह जरूरी है कि ब्लाग कि गुणवत्ता, कुछ छद्म मानसिकता वाले लोग, इस प्रकार के कृत्य में लगे थे जिससे इस प्रकार का दूषित वातावरण तैयार हो रहा था। आशा करता हूँ कि ब्लागवाणी जल्द ही हमारे बीच होगा।
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नवरात्रि पर मिलिये अदिति की बहन से
ये हे अदिति की बहन अभी नाम नही रखा गया है, ये नौ महीने की पूरी हो गई है, आठ दांत निकल आया है, खड़ी होने लगी है, चार-छ: कदम चल भी लेती है। अभी बोलना नही आता है, इनके मुँह से पहला शब्द निकला अबुवा, अब अम्मा शब्द बोल लेती है। हम सभी छोटी बिट्टी कहते है। आज नवरात्रि की अष्टमी के पावन अवसर पर ब्लाग जगत में पहली बार छोटी बिट्टी को ला रहा हूँ। ये चित्र जनवरी 2009 के है, जब वह 2 महीने की थी।
आप आज छोटी बिट्टी से मिल ही चुके किन्तु बड़ी बिट्टी अदति को को भूलियेगा मत वो भी आपके बीच पिछले 4 साल से है, मौजूद रही है।
आप आज छोटी बिट्टी से मिल ही चुके किन्तु बड़ी बिट्टी अदति को को भूलियेगा मत वो भी आपके बीच पिछले 4 साल से है, मौजूद रही है।
जय माता दी
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सुदर्शन जी के दर्शन और सदर्शन जी से बात
घर पहुँचने पर अन्य कामो से छूट कर ईमेल चेक किया तो पाया कि एक सुदर्शन ब्लॉग के श्री मिश्रा जी का ईमेल प्राप्त हुआ। उन्होंने अपना नंबर दिया हुआ, हमने भी मोबाइल उठाया और घंटी बजा दी। आपसे भी बात करके बहुत अच्छा लगा, बहुत दिनों से इच्छा थी कि आपसे बात हो, वह भी आज पूरी हो गयी। कुछ औपचारिक और कुछ अनौपचारिक बात भी हुई। बात के दौरान उन्होंने मुझे अपने यहां आमंत्रित किया और मैंने उन्हें अपने यहां, फिर हुआ कि जो जहां पहले पहुँच जाये।
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