संघ गीत - संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) गीत - संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो



संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो॥
युग के साथ मिल के सब, कदम बढ़ाना सीख लो।
एकता के स्वर में गीत, गुनगुनाना सीख लो।
भूलकर भी मुख में, जाति-पंथ की न बात हो।
भाषा, प्रांत के लिए, कभी न रक्तपात हो॥
फूट का भरा घड़ा है, फोड़कर बढ़े चलो ॥१॥
संगठन गढ़े चलो.............॥

आ रही है आज, चारों ओर से यही पुकार
हम करेंगे त्याग, मातृभूमि के लिए अपार॥
कष्ट जो मिलेगा, मुसकुराकर सब सहेंगे हम।
देश के लिए सदा, जियेंगे और मरेंगे हम।
देश का ही भाग्य, अपना भाग्य है, यह सोच लो॥२॥
संगठन गढ़े चलो.................॥


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दस करोड़ की लाटरी



90 वर्षीय एक सज्जन की दस करोड़ की लाटरी लग गई। इतनी बड़ी खबर सुनकर कहीं दादाजी खुशी से मर न जाएं, यह सोचकर उनके घरवालों ने उन्हें तुरंत जानकारी नहीं दी। सबने तय किया कि पहले एक डॉक्टर को बुलवाया जाए फिर उसकी मौजूदगी में उन्हें यह समाचार दिया जाए ताकि दिल का दौरा पड़ने की हालत में वह स्थिति को संभाल सके।
शहर के जानेमाने दिल के डॉक्टर से संपर्क किया गया । डॉक्टर साहब ने घरवालों को आश्वस्त किया - आप लोग चिंता मत करें । दादाजी को यह समाचार मैं खुद दूंगा । उन्हें कुछ नहीं होगा, मेरी गारंटी है।
डॉक्टर साहब दादाजी के पास गए । कुछ देर इधर - उधर की बातें कीं फिर बोले - दादाजी, मैं आपको एक शुभ समाचार देना चाहता हूं। आपके नाम दस करोड़ की लाटरी निकली हैं।
दादाजी बोले - अच्छा ! लेकिन मैं इस उमर में इतने पैसों का क्या करूंगा । पर अब तूने यह खबर सुनाई है तो जा, आधी रकम मैंने तुझे दी।
डॉक्टर साहब धम् से जमीन पर गिरे और उनके प्राण पखेरू उड़ गए ।
एक मित्र द्वारा भेजा हुआ


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ब्‍लागवाणी बंनी गंदी राजनीति का शिकार



आज न चाहते हुये बहुत कुछ लिखना पड़ रहा है, वो भी दुख के साथ, दुख इस बात का नही कि ब्लॉगवाणी बंद हो गया है, दुख इस बार का कि किसी की महत्वाकांक्षा और छिछोरापन के कारण एक फलती फूलती साइट का अंत हो गया। ब्लॉगवाणी एक साईट नही थी वह एक परिवार थी, परिवार के नियम के अनुसार हम सदस्य चलते थे, जो पारिवारिक सदस्यों नियमों को नहीं मानता था उसके साथ सख्ती की जाती थी। खैर मै किसी नियम के पचड़े में नहीं पड़ना चाहूँगा।

ब्लॉगवाणी को समाप्त करने से पहले ब्लॉगवाणी मंडल को सोचना चाहिए था, जो कदम उन्होंने उठाया, हो सकता है वह समय कि मांग रही हो, किन्तु आज जनभावना की मांग है कि ब्लॉगवाणी को आज जन के समक्ष लाया जाये। जब कुछ लोग गूगल ग्रुप आदि को अपनी निजी संपत्ति बता कर इठला सकते है कि ब्लॉगवाणी के मंच को भी अपने नियम शर्तों के लिये स्वतंत्र है, किसी को शामिल करना व न करना ब्लॉगवाणी की इच्छा पर निर्भर करता है न कि ब्लागर की गुंडई और दबंगई पर, जो कि आम दिनो में देखने को मिला।

याद समझ में नह‍ी आता कि पंसद 1 हो या 25 यह जरूरी है कि ब्‍लाग कि गुणवत्‍ता, कुछ छद्म मानसिकता वाले लोग, इस प्रकार के कृत्‍य में लगे थे जिससे इस प्रकार का दूषित वातावरण तैयार हो रहा था। आशा करता हूँ कि ब्‍लागवाणी जल्‍द ही हमारे बीच होगा।


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