आज मुम्बई या है पर हम भोपाल क्यो भूल रहे है ?
विश्व की बड़ी औद्योगिक त्रासदी के लिए ज़िम्मेदार मानी जाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री आज भले ही अस्तित्व मे न हो किन्तु इस घटना ने उसे लोगो के आक्रोश पटल पर हमेशा जिन्दा रखा है, ज्ञात हो कि यूनियन कार्बाइड को 2001 मे अमरीकी कंम्पनी डाउ कैमिकल्स ने ख़रीद लिया था और इसके साथ ही साथ डाउ कैमिकल्स ने 25 हजार लोगो के मौत की जिम्मेवारी और 5 लाख से ज्यादा घायलो की बद्दुआएं।
आज भी भोपाल गैस कांड के भुक्त भोगियों को न्याय नही मिल पा रहा है, इसके पीछे दोषी कौन है ? हमारी व्यवस्था कि, हमारी सरकारो की इच्छा शक्ति की या हमारी स्वयं की। आज हम मुम्बई हमले को बड़ी तत्परता से याद करते है करना भी चाहिये किन्तु ऐसे राष्ट्रीय बहस के मुद्दे की अनदेखी किया जाना, इस घटना के पीड़ितों के साथ सबसे बड़ा अन्याय है।
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351 पोस्टो में यादो के झरोखे से झाकती 25 पोस्टे
किसी पोस्ट का सर्वश्रेष्ठ कहा जाये या नही ब्लॉग लेखकों में इसको लेकर मतभेद होगा किन्तु जहाँ तक मै मानता हूँ कि इन 25 पोस्ट में सबसे अच्छी पोस्ट भी है, उस समय मुझे बहुत दुख हुआ था कि वह टिप्पणी प्राप्त नही कर सकी थी।
वह दौर ऐसा था जिसमें टिप्पणी की अपेक्षा करना बहुत कठिन था, नारद जो आज इतिहास बन गया है, सभी पोस्टो की जानकारी के लिये उस पर निर्भर करते थे, आप परिदृश्य बिल्कुल बदल गया है, पोस्ट को पढने के नये नये तरीके सामने आ गये है। उस समय तो हमे पोस्टिंग करनी भी नही आती थी कई पोस्ट तो हमने बिना शीर्षक के किये थे।
जन्मदिन 24 नम्वम्बर को बीत गया, महाशक्ति समूह, जबलपुर परिवार, ब्लाग परिवार की सनेह बधाईयाँ और शुभकामनाऍं मिली, आर्कुट, फेसबुक और फोन आदि पर भी मित्रो ने अपार प्रेम दिया। वाकई बहुत अच्छा लगा। सभी को हृदय से धन्यवाद देता हूँ।
ये 25 पोस्टे निम्न है, जो टिप्पणी प्राप्त न कर सकी और इन 25 में क्रमांक 6, 9, 10,11,21 और 22 नम्बर की पोस्टे मैने बहुत ही मन से लिखी थी। तब टिप्पणी न मिलने पर हमने पोस्ट में लिखा था कि जब टिप्पणी न मिले तो समझना चाहिये कि पोस्ट इतनी अच्छी थी कि उसमें टिप्पणी करने लायक ही कुछ नही था।
- ईशावास्योपनिषद् | Saturday, July 1, 2006
- प्रमेन्द्र प्रताप सिह् | Sunday, July 2, 2006
- बिना शीर्षक की पोस्ट |Sunday, July 2, 2006
- मेरे लिकं | Monday, August 7, 2006
- सम्भूति एवं असम्भूति | Tuesday, August 29, 2006
- अल्प ब्लाग जीवन के फटे में पैबंद | Tuesday, August 29, 2006
- हॅस कर मुझको विदा करो :) | Thursday, August 31, 2006
- भारत मे हिगिंस ने किया जोरदार वापसी आगाज | Monday, September 25, 2006
- ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह | Friday, September 29, 2006
- गांधी वाद खडा चौराहे पर ! | Thursday, October 5, 2006
- आठो तारिकाए एक साथ | Tuesday, November 7, 2006
- बिना पुरुष के भी मां बनना संभव! | Tuesday, April 17, 2007
- महर्षि अरविन्द का जन्मोत्सव- भाग एक | Wednesday, August 22, 2007
- महर्षि अरविन्द का जन्मोत्सव- भाग तीन | Wednesday, August 29, 2007
- परमपूज्यनीय बाला साहब देवरस | Tuesday, December 11, 2007
- आपकी बात बिना काट-छॉंट | Tuesday, December 11, 2007
- कुछ बातें ... | Thursday, February 7, 2008
- प्रत्यक्ष जी को कितने वोट मिले? | Monday, February 18, 2008
- उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलपति | Friday, March 7, 2008
- रोजर फेडरर कहीं ब्योर्न बोर्ग के पुनर्जन्म तो नहीं | Monday, March 24, 2008
- हिन्दू विवाह | Thursday, April 3, 2008
- गूगल पर प्रतिबंध तो नहीं लग गया है ? | Saturday, April 5, 2008
- भाजपा में शामिल हुए 200 से अधिक मुसलमान | Tuesday, May 6, 2008
- इलाहाबाद में अधिवक्ता की हिरासत में मौत के बाद प्रदेशव्यापी हड़ताल | Wednesday, May 14, 2008
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ऊपर वाला “खुदा” है तो देर से अंधेर भली
एक बात से तो कोई इन्कार नही कर सकता है कि भारत मे सुनामी और भूकंप आने पर इतना हल्ला नही मचता है जितना कि फतवा जारी होने पर, जैसे फतवा न हो गया अल्लाह की जुलाब की घुट्टी हो गई पीते ही दस्त शुरू। आज के समय में यही देखने पर लग रहा है कि यह कैसा दकियानूसी समुदाय है, जो फतवों पर जीता है। फतवा अरबी का लफ्ज़ है। इसका मायने होता है- किसी मामले में आलिम ए दीन की शरीअत के मुताबिक दी गयी राय होती है जिसे स्वीकार करना या न करना राय मागने वाले पर ही निर्भर करता है पर भारत में इसे अल्लाह की वाणी जैसा महत्व दिया जा रहा है। फतवा कोई मांगता है तो दिया जाता है, फतवा जारी नहीं होता है। हर उलेमा जो भी कहता है, वह भी फतवा नहीं हो सकता है। फतवे के साथ एक और बात ध्यान देने वाली है कि हिन्दुस्तान में फतवा मानने की कोई बाध्यता नहीं है। फतवा महज़ एक राय है। मानना न मानना, मांगने वाले की नीयत पर निर्भर करता है। लेकीन हिन्दुस्तान मे फतवा मुस्लमाने के लिये हिन्दुस्तान का संविधान से भी ज्यादा महत्वपुर्ण है
21 शताब्दी मे कुछ जारी फतवे और इस्लामिक न्यायिक निर्णयों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इस्लाम में अल्लाह, मुहम्मद साहब, फतवा और पुरुषों के अलावा कोई भी चीज पाक नही है। गुनाह अगर पुरुष करता है तो स्त्री पर थोप दिया जाता है कि अमुक स्त्री के आकर्षण के कारण पुरुष की नीयत खराब हो गई तो इसमें पुरुष की क्या दोष है ? इसे कहते है खुदा का न्याय।
एक कहावत है कि ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नही, यदि ऊपर खुदा ही बैठा है तो देर से अंधेर ही भली जो स्त्रियों को दोयम दर्जे पर स्थापित करता है और कही बलात्कार की शिकार लड़की को 200 कोड़े तो कहीं पैंट पहनने पर मारे गए 40 कोड़े और तो और मस्जिद में नमाज अदा करने पर महिलाओं को फतवा जारी कर दिया जाता है। आपको हाल की कुछ खबरों की ओर ले जाता हूँ -बलात्कार की शिकार लड़की को 200 कोड़े मारने की सजा जेद्दाह : जेद्दाह में एक सऊदी अदालत ने पिछले साल सामूहिक बलात्कार की शिकार लड़की को 90 कोड़े मारने की सजा दी थी। उसके वकील ने इस सजा के खिलाफ अपील की तो अदालत ने सजा बढ़ा दी और हुक्म दिया: '200 कोड़े मारे जाएं।' लड़की को 6 महीने कैद की सजा भी सुना दी। अदालत का कहना है कि उसने अपनी बात मीडिया तक पहुंचाकर न्याय की प्रक्रिया पर असर डालने की कोशिश की। कोर्ट ने अभियुक्तों की सजा भी दुगनी कर दी। इस फैसले से वकील भी हैरान हैं। बहस छिड़ गई है कि 21वीं सदी में सऊदी अरब में औरतों का दर्जा क्या है? उस पर जुल्म तो करता है मर्द, लेकिन सबसे ज्यादा सजा भी औरत को ही दी जाती है।
महिलाओं को पैंट पहनने पर मारे गए 40 कोड़े!खार्तूम। सूडान में कुछ महिलाओं को पैंट पहनना काफी महंगा पड़ गया। दरअसल कुछ सूडानी महिलाएं पैंट पहनकर रेस्टोरेंट में खाना खाने गई थीं। तभी वहां पर करीब 30 की संख्या में पुलिसकर्मी पहुंचे और इन्हें गिरफ्तार कर लिया। इन महिलाओं को 40-40 कोड़े लगाने का आदेश दिया गया।
वेबसाइट ‘डेलीमेल डॉट को डॉट यूके’ के मुताबिक ये महिलाएं देश की राजधानी खार्तूम के एक रेस्टोरेंट में बैठी थीं तभी अचानक पुलिस वहां पहुंची और 13 महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया। कुछ महिलाओं ने तो गलती मानते हुए माफी मांग ली तो उन्हें 10 कोड़े लगाकर छोड़ दिया गया लेकिन कुछ ऐसी थी जिन्होंने अपनी गलती स्वीकार नहीं की तो उन्हें 40 कोड़ों की सजा दी गई।
मालूम हो कि गिरफ्तार की गई महिलाओं में से एक लुबना अहमद अल-हुसैन नाम की एक पत्रकार भी थी। उसने बताया कि कैसे पुलिस ने बिना सूचना के बिल्डिंग पर धावा बोल पैंट पहने महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया। उस पत्रकार महिला ने बताया कि मैंने पैंट पहनी थी और मेरी तरह 10 महिलाओं ने भी पैंट पहनी थी। लुबना अहमद एल-हुसैन काफी जानीमानी रिपोर्टर हैं और सूडानी अखबार में कॉलम भी लिखती हैं। ये देश दो भागों में बंटा है। खार्तूम में मुसलमान हैं और दक्षिण में ईसाई हैं। जिन महिलाओं को दोषी पाया गया वो ज्यादातर दक्षिण से थीं। वहां पर गैर मुसलमान भी शरिया कानून का विरोध नहीं कर सकते।
मस्जिद में नमाज अदा करने पर महिलाओं को मिला फतवा गुवाहाटी (टीएनएन)
असम के हाउली टाउन में कुछ महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी किया गया क्योंकि उन्होंने एक मस्जिद के भीतर जाकर नमाज अदा की थी। असम के इस मुस्लिम बाहुल्य इलाके की शांति उस समय भंग हो गई , जब 29 जून शुक्रवार को यहां की एक मस्जिद में औरतों के एक समूह ने अलग से बनी एक जगह पर बैठकर जुमे की नमाज अदा की। राज्य भर से आई इन महिलाओं ने मॉडरेट्स के नेतृत्व में मस्जिद में प्रवेश किया। इस मामले में जमाते इस्लामी ने कहा कि कुरान में महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने की मनाही नहीं है। जिले के दीनी तालीम बोर्ड ऑफ द कम्युनिटी ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि इस तरीके की हरकत गैरइस्लामी है। बोर्ड ने मस्जिद में महिलाओं द्वारा नमाज करने को रोकने के लिए फतवा भी जारी किया।
कम कपड़े वाली महिलाएं लावारिस गोश्त की तरह
मौलवी मेलबर्न (एएनआई) : एक मौलवी के महिलाओं के लिबास पर दिए गए बयान से ऑस्ट्रेलिया में अच्छा खासा विवाद उठ खड़ा हुआ है। मौलवी ने कहा है कि कम कपड़े पहनने वाली महिलाएं लावारिस गोश्त की तरह होती हैं , जो ' भूखे जानवरों ' को अपनी ओर खींचता है। रमजान के महीने में सिडनी के शेख ताजदीन अल-हिलाली की तकरीर ने ऑस्ट्रेलिया में महिला लीडर्स का पारा चढ़ा दिया। शेख ने अपनी तकरीर में कहा कि सिडनी में होने वाले गैंग रेप की वारदातों के लिए के लिए पूरी तरह से रेप करने वालों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। 500 लोगों की धार्मिक सभा को संबोधित करते हुए शेख हिलाली ने कहा , ' अगर आप खुला हुआ गोश्त गली या पार्क या किसी और खुले हुए स्थान पर रख देते हैं और बिल्लियां आकर उसे खा जाएं तो गलती किसकी है , बिल्लियों की या खुले हुए गोश्त की ?'
कामकाजी महिलाएं पुरुषों को दूध पिलाएं : फतवा
काहिरा : मिस्र में पिछले दिनों आए दो अजीबोगरीब फतवों ने अजीब सी स्थिति पैदा कर दी है। ये फतवे किसी ऐरे-गैरे की ओर से नहीं बल्कि देश के टॉप मौलवियों की ओर से जारी किए जा रहे हैं।
देश के बड़े मुफ्तियों में से एक इज्ज़ात आतियाह ने कुछ ही दिन पहले नौकरीपेशा महिलाओं द्वारा अपने कुंआरे पुरुष को-वर्करों को कम से कम 5 बार अपनी छाती का दूध पिलाने का फतवा जारी किया। तर्क यह दिया गया कि इससे उनमें मां-बेटों की रिलेशनशिप बनेगी और अकेलेपन के दौरान वे किसी भी इस्लामिक मान्यता को तोड़ने से बचेंगे।
गले लगाना बना फतवे का कारण
इस्लामाबाद (भाषा) : इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के धर्मगुरुओं ने पर्यटन मंत्री नीलोफर बख्तियार के खिलाफ तालिबानी शैली में एक फतवा जारी किया है और उन्हें तुरंत हटाने की मांग की है। बख्तियार पर आरोप है कि उन्होंने फ्रांस में पैराग्लाइडिंग के दौरान अपने इंस्ट्रक्टर को गले लगाया। इसकी वजह से इस्लाम बदनाम हुआ है।
फतवा: ससुर को पति पति को बेटा
एक फतवा की शिकार मुजफरनगर की ईमराना भी हुई। जो अपने ससुर के हवस का शिकार होने के बाद उसे अपने ससुर को पति और पति को बेटा मानने को कहा और ऐसा ना करने पे उसे भी फतवा जारी करने की धमकी मिली।
मौत का फतवा और तस्लीमा नसरीन बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन इस समय दुनिया की सबसे विवादित और चर्चित लेखिका हैं। बांग्लादेश में तो उनकी हत्या का फ़तवा इस्लामी कट्टरपंथियों ने तभी जारी कर दिया था जब उन्होंने ‘लज्जा’ नामक उपन्यास लिखा था। जान बचाने के लिए उन्हें अपना देश छोड़कर नॉर्वे में शरण लेनी पड़ी थी. यह वर्ष 1993 की बात है।
देश में इससे ज्यादा स्तब्ध कर देने वाली घटना और क्या हो सकती है जब किसी की हत्या के लिये फतवा दिया जाता है। ऐसा ही तस्लीमा के विरोध की कमान एक भारतीय इमाम ने किया था। ये कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के इमाम हैं और इनका नाम एसएसएनआर बरकती है। बरकती ने तस्लीमा की हत्या का फ़तवा जारी किया था । यह वही है जिन्होने तस्लीमा नसरीन का मुँह काला किए जाने और जूतों की माला पहनाए जाने का फ़तवा जारी किया था और इस बार की तरह ही 50 हज़ार रुपयों का इनाम भी घोषित किया था।
जब तस्लीमा का मुँह काला किया गया तो मानवाधिकारी कहाँ थे? भारत की सरकार भी पुरुषार्थ रूप को त्याग कर अपनी नई भूमिका में आ जाती है। भारत सरकार भी चीन को धमकी दे सकती है पर मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ कार्यवाही नही कर सकती है। भारत सरकार भी जानती है कि कि चीन हमला करेगा तो सेना देखेगी और मुसलमान जब हमला करेगा तो देखना तो हमें ही पड़ेगा।
जब खुले आज ऐसे फतवे दिये जाते है तो समाज के वे तथाकथित सेक्युलर किन्नर फौज का भी पता नही चलता है कि वे किस दरबे में घुसी हुई है जो मोदी को गरियाने में आगे रहते है, उनके मुँह से मोदी के लिये ऐसी बद्दुआ निकलती है जैसा कि किन्नरों के सम्बन्ध में विख्यात है। इन सेक्युलर वेश्याओं के भली तो रेड लाइट एरिया की वेश्या है जो अपना धंधा हिंदू मुसलमान देख कर तो नहीं करती। उनका का तो सिर्फ धंधा करना होता है।
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