जितने लोग ईश्वर को न मानने का ढोंग करते है, इनमें से एक भी बंदा ऐसा नहीं होगा, जिसने कि कभी ईश्वर के सम्मुख सिर न झुकाया हो, कोई कितना भी नास्तिक हो वह कभी न कभी ईश्वर को जरूर मानता है। हाईटेक जमाना है जहां हंसो के बीच बहुला पहुच कर बांग मारता है तो हंसो को भी लगता है कि हम कही नये दौर में पिछड़ न जाये ऐसे मे कुछ हंस भी है जो बकुला की तरह बाग मारते है कि ईश्वर नहीं है, यह तो वही कहावत हो गई कि ‘कौआ कान ले गया’ अपने कान को न देख कर कौवे के पीछे दौड़ जाना, ऐसे ही कुछ अनुयायी है जो केवल हां में हां मिलाना उचित समझते है। क्या चार लोग मिलकर पचरा कर ले की ईश्वर नहीं है तो क्या वास्तव में ईश्वर का अस्तित्व नहीं है।
इस विषय पर मतदान भी हुआ, बात आती है कि कभी-2 वालो के मत को किसमे लिया जाये, क्या आप कभी-2 ईश्वर को मानने वाले को आप यह थोड़े ही कह सकते है वह ईश्वर को नही मानता है वह जरुरत पडने पर ईश्वर को मानता है। एक दिन मे सौ बार जरूरत पड़ेगी सौ बार मानेगा तथा नही पडेगी तो नहीं मानेगा। अर्थात वह ईश्वर को अवश्य (जरूरत पर ही सही) मानेगा। चार को तो 50-50 कर लिये पांचवां होता तो क्या हलाल करके उसका वोट लेते। ये चारो झारखण्ड के विधायक थोडे है कि खरीद कर नास्तिक घोषित करवा कर अपनी सरकार बना लोगे लोकतंत्र नहीं भक्त तंत्र है। ये वो भक्त है जो सशर्त समर्थन तो देते है किंतु भगवान की सत्ता को मानने से इंकार नहीं करते है। क्योकि भगवान जी से इन भक्तों की मांग काफी होती है किन्तु देने न देने की इच्छा भगवान पर होती है भगवान दे या न दे पर ये भगवान का साथ नही छोड़ते है क्योकि कल समर्थन न देंगे तो कल किस मुँह से मांगेंगे।
भगवान का होना या न होना किसी मतदान से नही तय किया जा सकता है वहां तो कदापि नही जहां विचार रखने वालो की संख्या सीमित हो, यह तो ऐसा होगा 50 किलो के पतीले ढाई चाउर (चावल) की खीर पकाना और फिर पूछना कि कितने खा लेंगे। यह कहावत तो सही है कि यह चावल के 4 दानों को देख कर पकने का पता चल जाता है किन्तु विषय बहुत बडा है यह 6 अरब लोगों के बीच की बात है मात्र दो दर्जन के विचारों को हम 6 अरब व्यक्तियों के विचार नहीं मान सकते है। यहां पतीली भी काफी बडी है ऊपर के जिन चावलो को टो रहे है वे आंच न लगने के कारण पके नही है वे नास्तिक है और वे ईश्वर को नही मानते है, और जो टोने के लिये नीचे पहुँच के बाहर थे वे जल गये वे ईश्वर के ज्ञान को प्राप्त कर लिया, अर्थात ईश्वर को देख लिया। वैसे ईश्वर को मानने न मानने का जो पूर्वानुमान जो निकाला जा रहा है वह चुनाव की एग्जिट पोल की तरह फ्लॉप जायेगा। हर वर्ष प्रयाग में करोड़ों श्रद्धालु माघ मेले मे आते है, अयोध्या आते है, काशी आते है पता नहीं कौन-2 से मतावलम्बी विश्व के कोने कोने मे जाते है। वे सब मूरख है और ये चर्चालु बुद्धिमान।
ईश्वर को यह बताने की आवश्यकता नही है मै हूँ वो भी हम जैसे तुच्छ प्राणियों के लिये, जो हर क्षण ज़िन्दगी और मौत से जूझता रहता है। इस विशाल ब्रह्मांड में उपलब्ध भगवान की सृष्टि का अध्ययन लाखो करोडो वैज्ञानिक सैकड़ों वर्षो से करते चले आये है और करते रहेंगे। जब ये करोड़ो विद्वान इस परमात्मा की संरचना का ओर छोर नहीं पा सके तो तो चार लोग क्या ईश्वर को मिटा सकेंगे।
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