प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह, अधिवक्ता इलाहाबाद उच्च न्‍यायालय



आज के दिन के साथ प्रमेन्द्र प्रताप सिंह के नाम के साथ अधिवक्ता इलाहाबाद उच्च न्यायालय भी जुड़ गया। रविवार 25 जुलाई 2010 को उत्तर प्रदेश विधिज्ञ परिषद में अधिवक्ता के रूप में पंजीयन हो गया है।
बहुत से कम ही लोगो के फर्म को ऐसे अधिवक्ताओं ने प्रमाणित किया होगा उन्होंने उम्र के 7 दशक देखे होंगे किन्तु मेरे लिये सौभाग्य की बात यह रही कि मेरा चरित्र उस व्यक्तित्व ने प्रमाणित किया जिन्होने 7 दशक इस विधि व्यवसाय को दिया है। ऐसे विधि विद्वान उत्तर प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता श्री वीरेन्द्र कुमार सिंह चौधरी, वरिष्ठ अधिवक्ता, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने किया, जिनका खुद का पंजीयन सन 1942 का है।
कोशिश ही नही पूर्ण निष्ठा होगी कि अच्छा करूँ.... जय हिंद, भारत माता की जय, जय श्री राम


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एक सुबह दिल्‍ली के नाम



वर्ष 2007 के बाद 18 जुलाई को पुन: अपने मित्र के साथ दिल्‍ली पहुँचना हुआ। नई दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन से अपने मित्र के फ्लैट पहाड़गंज से पैदल ही निकल दिये, दूरी 1 किसी से भी कम थी तो किसी प्रकार की सवारी करना मूर्खता ही होगी साथ ही साथ जब पैदल चलना हो तो आस-पास की दर्शनीयता बढ़ जाती है।
मित्र के यहां फ्रेश हुए नहाये धोये और आराम किये। फिर अपने बहुत पुराने सहपाठी से यहाँ निकल दिये, मुझे उस जगह का नाम तो नहीं मालूम पर पहाड़गंज से उस स्थान का किराया 15 रुपये लगा था, मतलब दूरी पर्याप्त थी, इंडिया गेट भी देखा उसी रास्ते पर तो सीबीएसई का दफ्तर भी तो और तो और दिल्‍ली नगर निगम का आफिस भी, आखिर जब उस मित्र के पास भी पहुंच गया जिससे मै अन्तिम बार कक्षा-8 में मिला था, हमारी बहुत पटती थी, उसी माता जी भी मुझे देखते पहचान गई, वकाई उस परिवार में बैठ कर बहुत सुखद महसूस कर रहा था।
हम लोग शाम को ही एक बहुत ही अच्‍छे मंदिर मे भी गये और काफी देर वहाँ से सुखद वातावरण का आनंद लिया। चूकि कैमरा दोस्‍त तो फोटो नही ले सके। शाम को जम्‍मू के लिये ट्रेन थी तो मेट्रो मे घूमते घामते नई दिल्ली रेलवे स्‍टेशन की ओर चल दिये।


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राजनीति मे खून का खेल



आखिरकार इलाहाबाद की राजनीतिक गलियों पर फिर खून खराबा हो गया है। मुट्ठीगंज मोहल्ला में मंत्री नंद गोपाल गुप्ता के आवास के सामने ही बम से प्राणघातक हमला किया गया। जिसमें मंत्री गंभीर रूप से घायल हुए और उनका एक अंगरक्षक की मृत्यु कारित हुआ। ठीक इसी प्रकार कुछ साल पहले बसपा विधायक राजू पाल की हत्या करवा दी गई थी जिसका आरोप सत्ताधारी पार्टी पर लगाया गया था और आज खुद बसपा सत्ताधारी पार्टी है।
समाज सेवा का चोला पहन कर उतरे राजनीतिक लोग क्यों अपने ही सफेदपोश धारियों की जान के पीछे पड़ जाते है ? आखिर समाजसेवा के नाम पर उनका असली मकसद क्या होता है यह आज तक समझ से परे है। राजनीति में आने के बाद लोगों के पास पता नहीं कौन सा कुबेर का खजाना लग जाता है कि वो कुछ ही दिन में सड़क के व्यापारी से अरबपतियों में शुमार हो जाते है। राजनीति की चादर को मैला करने मे ऐसे लोगो की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है।
समाजसेवा के नाम पर खून का खेल समझ से परे है, आखिर कब तक इस प्रकार किसी का बेटा, भाई, पति, पिता को छीना जाता रहेगा ? जो अंगरक्षक मरा है क्‍या सरकारी मदद उसकी कमी को पूरा कर पायेगी? कुछ बाते हमेशा दिल का झकझोर देती है। आखिर हम कहाँ खड़े है ?


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