साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर एस 6 को लगभग 1500 शांतिप्रिय समुदाय के लोगों ने घेर पर उसमें आग लगा दी। इस अग्निकांड में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, जिसमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे। कोच को आग के हवाले करने वाले लोग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि कोच एस 6 में कारसेवक और उनके परिवार वाले यात्रा कर रहे है। कोई हिंदू यात्री बोगी से बाहर ना निकल पाए इसलिए योजना के अनुसार उन पर पत्थर भी बरसाए जाने लगे। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस घटना को एक सोची-समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया। गुजरात पुलिस ने भी अपनी जांच में ट्रेन जलाने की इस वारदात को आईएसआई की साजिश ही करार दिया था, जिसका मकसद हिंदू कारसेवकों की हत्या कर राज्य में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना था।
हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है। गुजरात के कई शहरों में भड़के साम्प्रादायिक दंगे गोधरा की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आए। इन दंगों का कारण कुछ और नहीं बल्कि साबरमती एक्सप्रेस में जिंदा जलाए गए कारसेवकों की मौत का बदला लेना था। विदेशी चरित्र वाली मीडिया तथा वोट की राजनीति करने वालों ने गोधरा कांड की प्रतिक्रिया के रूप में उभरे गुजरात दंगों के बाद हिंदुओं को पूरे विश्व में दंगाइयों के रूप में प्रस्तुत कर दिया। और उस पर तुर्रा ये कि दंगों की बात करते समय कहीं भी ये नहीं कहा गया कि इसके पीछे गोधरा का भीषण नरसंहार जिम्मेदार था।
साबरमती एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे निर्दोष और मासूम कारसेवक व उनके परिवार जिसमें छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल थे, को निर्मम तरीके से आग के हवाले करने वाले दंगाई मुसलमान ही थे। गोधरा नरसंहार पर किसी मीडिया या किसी राजनीतिक पार्टी ने मुस्लिमों पर निशाना नहीं साधा, लेकिन जब गोधरा नरसंहार की प्रतिक्रिया हुई तो मीडिया और सेक्युलर पार्टियों द्वारा प्रचारित किया गया कि गुजरात में हिंदूओं ने मुसलमान आबादी को अपना निशाना बनाया तो वैश्विक स्तर पर हिंदू धर्म के लोगों को एक कट्टर और क्रूर धर्म के रूप में प्रचारित किया गया।
पहले कहा जाता था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आज मुजफ्फरनगर दंगों के के बाद कहा जा रहा है कि दंगों का कोई धर्म नहीं होता है, ये बाते वही लोग कह रहे है जो भगवा आतंकवाद की बात करते है और गुजरात दंगो को हिंदू दंगा कहा गया था, आखिर आज पैमाने क्यों बदल रहे है क्योंकि आज उत्तर प्रदेश में टोपी वालो की सरकार है? पंथ/धर्म निरपेक्षता यह कहती है सभी वर्गों के लिए समान व्यवहार हो किन्तु वोट की राजनीति सारे आंकड़े और पैमाने बदल रही है।
आज गोधरा पर बात करने की जरूरत मुझे आज इसलिए पड़ी क्योंकि आज समय है की इन छद्म वोट लोभियों उनकी करतूतों का बात जनता के बीच ले जाया जा सके। क्योंकि गृह मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि अखिलेश सरकार के गठन के बाद सांप्रदायिक दंगो/झडपो का शतक लग चुका है और मुज्जफरनगर में चल रहे दंगो में सैकड़ों लोग जान-माल से हाथ धो चुके है। किन्तु आज न तो मीडिया और न ही सेक्युलर रुदालियों के आखो में आंसू है क्योंकि ये दंगा शांतिप्रिय लोगों के नेतृत्व में सपा सरकार द्वारा प्रायोजित है। हज की रवानगी के साथ अखिलेश यादव की टोपी यही सन्देश देती है कि टोपी वालो आतंक मचाओ सपा आपके साथ है।
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