RTI मलतब सूचना का अधिकार के अंतर्गत आरटीआई कैसे लिखे



 


 सूचना का अधिकार अधिनियम (अधिनियम सं. 22/2005)

अधिनियम का परिचय - संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया है, जिसे 15 जून, 2005 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली और 21 जून 2005 को सरकारी गजट में अधिसूचित किया गया। अधिनियम के अनुसार, यह, जम्मू व कश्मीर राज्य को छोड़कर, संपूर्ण भारत पर लागू है। 

  1. सार्वजनिक प्राधिकारी- "सार्वजनिक प्राधिकारी" से आशय है (क) संविधान द्वारा अथवा उसके अंतर्गत (ख) संसद द्वारा निर्मित किसी अन्य कानून के द्वारा (ग) राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून के द्वारा (घ) समुचित सरकार आदि द्वारा जारी अथवा दिए गए किसी आदेश के द्वारा स्थापित कोई प्राधिकरण अथवा निकाय अथवा स्व-शासी संस्था।
  2. सूचना का अधिकार - सूचना का अधिकार में ऐसी सूचना तक पहुँच का होना समाहित है, जो किसी सार्वजनिक प्राधिकारी द्वारा धारित अथवा उसके नियंत्रण में है। इसमें कार्य, दस्तावेज, अभिलेखों को देखने, दस्तावेजों/ अभिलेखों से टीप, उद्धरण लेने और सामग्री के प्रमाणित नमूने तथा इलेक्ट्रॉनिक रूप में संग्रहीत सूचना प्राप्त करने का अधिकार शामिल है।
  3. प्रकटन से छूट-प्राप्त सूचना - अधिनियम की धारा 8 व 9 में कतिपय श्रेणियों की सूचनाओं को नागरिकों पर प्रकट करने से छूट का प्रावधान है। सूचना पाने के इच्छुक व्यक्तियों को सलाह दी जाती है कि वे सूचना हेतु अनुरोध प्रस्तुत करने के पहले अधिनियम की तत्संबंधी धाराओं को देख लें।
  4. सूचना के लिए कौन अनुरोध कर सकता है - कोई भी नागरिक निर्धारित शुल्क देकर अंग्रेजी/हिन्दी/जहाँ आवेदन किया जा रहा हो वहाँ की राजभाषा भाषा में लिखित में अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सूचना के लिए आवेदन कर सकता है। आवेदन लखनऊ स्थित केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी को सीधे अथवा केन्द्रीय सहायक जन सूचना अधिकारी के माध्यम से भेजा जाना चाहिए। RTI मलतब सूचना का अधिकार - ये कानून हमारे देश मे 2005 मे लागू हुआ। जिस का उपयोग कर के आप सरकार और किसी भी विभाग से सूचना मांग सकते है आम तौर पर लोगो को इतना ही पता होता है, परंतु इस सम्‍बन्‍ध में रोचक जानकारी निम्न हूँ -

  1. आरटीआई से आप सरकार से कोई भी सवाल पूछ कर सूचना ले सकते है
  2. आरटीआई से आप सरकार के किसी भी दस्तावेज़ की जांच कर सकते है
  3. आरटीआई से आप दस्तावेज़ या Document की प्रमाणित Copy ले सकते है
  4. आरटीआई से आप सरकारी काम काज मे इस्तमल सामग्री का नमूना ले सकते है
  5. आरटीआई से आप किसी भी कामकाज का निरीक्षण कर सकते है आरटीआई कि निम्‍न धाराऐं महत्‍वपूर्ण है इन्‍हे स्‍मरण में रखना चाहिये -
  1. धारा 6 (1) - आरटीआई का application लिखने का धारा है
  2. धारा 6 (3) - अगर आप की application गलत विभाग मे चली गयी है तो गलत विभाग इस को 6 (3)
  3. धारा के अंतर्गत सही विभाग मे 5 दिन के अंदर भेज देगा
  4. धारा 7(5) - इस धारा के अनुसार BPL कार्ड वालों को कोई आरटीआई शुल्क नही देना होता
  5. धारा 7 (6) - इस धारा के अनुसार अगर आरटीआई का जवाब 30 दिन मे नही आता है तो सूचना फ्री मे दी जाएगी
  6. धारा 18 - अगर कोई अधिकारी जवाब नही देता तो उस की शिकायत सूचना अधिकारी को दी जाए
  7. धारा 19 (1) - अगर आप की आरटीआई का जवाब 30 दिन मे नही आता है तो इस धारा के अनुसार आप प्रथम अपील अधिकारी को प्रथम अपील कर सकते हो
  8. धारा 19 (3) - अगर आप की प्रथम अपील का भी जवाब नही आता है तो आप इस धारा की मदद से 90 दिन के अंदर 2nd अपील अधिकारी को अपील कर सकते हो आरटीआई कैसे लिखे -


इस के लिए आप एक साधा पेपर ले और उस मे 1 इंच की कोने से जगह छोड़े और नीचे दिए गए प्रारूप मे अपने आरटीआई लिख ले

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सूचना का अधिकार 2005 की धारा 6(1) और 6(3) के अंतर्गत आवेदन


सेवा मे
(अधिकारी का पद)/ जन सूचना अधिकारी
विभाग का नाम

विषय - आरटीआई act 2005 के अंतर्गत .................. से संबधित सूचनाए

1- अपने सवाल यहाँ लिखे
2-
3
4

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू का पोस्टल ऑर्डर ........ संख्या अलग से जमा कर रहा /रही हूं।

या

मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय
नाम:
पता:
फोन नं:

भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख 



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वीर सम्राट सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य



वीर सम्राट सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य 

हेम चन्द्र सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य दिल्ली के सिंहासन पर बैठे अंतिम हिन्दू सम्राट थे। उन्होंने भारत को एक शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अत्यंत साहसी तथा पराक्रमपूर्ण विजय प्राप्त की थीं। हेमचन्द्र अलवर क्षेत्र में राजगढ़ के निकट माछेरी ग्राम में 1501 ईं. में जन्मे धार्मिक संत पूरणदास के पुत्र थे। बाद में उनका परिवार सुन्दर भविष्य की कामना से रिवाड़ी आ गया था तथा वहीं हेमचन्द्र ने शिक्षा प्राप्त की थी।

उन दिनों ईरान-इराक से दिल्ली के मार्ग पर रिवाड़ी महत्वपूर्ण नगर था। उन्होंने शेरशाह सूरी की सेना को रसद तथा अन्य आवश्यक सामग्री पहुंचानी शुरू कर दी थी तथा बाद में युद्ध में काम आने वाले शोरा भी बेचने लगे थे। शेरशाह सूरी की मृत्यु 22 मई, 1545 ईं. को हुई थी। यह कहा जाता है कि शेरशाह के उत्तराधिकारी इस्लामशाह की नजर रिवाड़ी में हाथी की सवारी करते हुए, युवा, बलिष्ठ हेमचंद्र पर पड़ी तथा वे उसे अपने साथ ले गए, उनकी प्रतिभा को देखकर इस्लामशाह ने उन्हें शानाये मण्डी, दरोगा ए डाक चौकी तथा प्रमुख सेनापति ही नहीं, बल्कि अपना निकटतम सलाहाकार बना दिया। साथ में 1552 ई. में इस्लामशाह की मत्यु पर उसके 12 वर्षीय पुत्र फिरोज खां को शासक बनाया गया, परन्तु तीन दिन के बाद आदित्यशाह सूरी ने उसकी हत्या कर दी। नए शासक का मूलत: नाम मुवरेज खां या मुबारक शाह था, जिसने 'आदित्यशाह' की उपाधि धारण की थी। आदित्यशाह एक विलासी शराबी तथा निर्बल शासक था। उसके काल में चारों ओर भयंकर विद्रोह हुए। आदित्यशाह ने व्यावहारिक रूप से हेेमचन्द्र को शासन की समस्त जिम्मेदारी सौंपकर, प्रधानमंत्री तथा अफगान सेना का मुख्य सेनापति बना दिया। अधिकतर अफगान शिविरों ने भी आदित्यशाह के खिलाफ विद्रोह कर दिए थे। हेमचन्द्र ने अद्भुत शौर्य तथा वीरता का परिचय देते हुए एक-एक करके उनके विरुद्ध 22 युद्ध लड़े तथा सभी में महान सफलताएं प्राप्त की थीं। उसने एक-एक करके आदित्यशाह के सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया।

1556 ईं. में जब बाबर का ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं पुन: भारत लौटा तथा उसने खोये साम्राज्य पर अधिकार करना चाहा। आदित्य शाह स्वयं तो चुनार भाग गया, और हेमचन्द्र को हुमायूं से लड़ने के लिए भेज दिया। इसी बीच 26 जनवरी, 1556 ई. को अफीमची हुमायूं की, जो जीवन भर इधर-उधर भटकता तथा लुढ़कता रहा, सीढ़ियों से लुढ़क कर मौत हो गई। हेमचन्द्र ने इस स्वर्णिम अवसर को न जाने दिया। उन्होंने भारत में स्वदेशी राज्य की स्थापना के लिए अकबर की सेनाओं को आस-पास के क्षेत्रों से भगा दिया। हेमचन्द्र ने सेना को संगठित कर, ग्वालियर से आगरा की ओर प्रस्थान किये। उनकी विजयी सेनाओं ने आगरा के मुगल गवर्नर सिकन्दर खां बेगम को पराजित किया।

हेमचन्द्र ने अपार धनराशि के साथ आगरा पर कब्जा किया। और वे विशाल सेना के साथ अब दिल्ली की ओर बढे। दिल्ली का मुगल गवर्नर तारीफ बेग खां अत्यधिक घबरा गया तथा भावी सम्राट अकबर तथा बैरमखां से एक विशाल सेना तुरन्त भेजने का आग्रह किया। बैरमखां की सेना जो पंजाब के गुरुदासपुर के निकट कलानौर में डेरा डाले पड़ी थी, बैरमखां ने तुरन्त अपने योग्यतम सेनापति पीर मोहम्मद शेरवानी के नेतृत्व में एक विशाल सेना देकर भेजा। भारतीय इतिहास का एक महान निर्णायक युद्ध 6 अक्तूबर, 1556 ई. तुगलकाबाद में हुआ जिसमें लगभग 3000 मुगल सैनिक मारे गए। आखिर 7 अक्तूबर, 1556 को भारतीय इतिहास का वह विजय दिवस आया जब दिल्ली के सिंहासन पर सैकड़ों वर्षों की गुलामी तथा अधीनता के बाद हिन्दू साम्राज्य की स्थापना हुई। यह किसी भी भारतीय के लिए, जो भारतभूमि को पुण्यभूमि मातृभूमि मानता हो, अत्यंत गौरव का दिवस था।

हेमचन्द्र का राज्याभिषेक भी भारतीय इतिहास की अद्वितीय घटना थी। भारत के प्राचीन गौरवमय इतिहास से परिपूर्ण पुराने किले (पांडवों के किले) में हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार राज्याभिषेक था। अफगान तथा राजपूत सेना को सुसज्जित किया गया। सिंहासन पर एक सुन्दर छतरी लगाई गई। हेमचन्द्र ने भारत के शत्रुओं पर विजय के रूप में 'शकारि' विजेता की भांति ' विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की। नए सिक्के गढ़े गए। राज्याभिषेक की सर्वोच्च विशेषता सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य की घोषणाएं थीं जो आज भी किसी भी प्रबुद्ध शासक के लिए मार्गदर्शक हो सकती हैं। सम्राट ने पहली घोषणा की, कि भविष्य में गोहत्या पर प्रतिबंध होगा तथा आज्ञा न मानने वाले का सिर काट लिया जाएगा। सम्भवत: यह समूचे पठानों, मुगलों, अंग्रेजो तथा भारत की स्वतंत्रता के बाद तक की दृष्टि से पहली घोषणा थी। (देश की स्वतंत्रता के पश्चात डा. राजेन्द्र प्रसाद ने ऐसे 3000 पत्रों व तारों को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को भेजते हुए आग्रह किया था कि भारत का पहला कानून 15 अगस्त, 1947 को गौ हत्या बंद के बारे में होना चाहिए। तत्कालीन प्रकाशित पत्र-व्यवहार से ज्ञात होता है कि मिश्रित संस्कृति का ढोंग पीटते हुए पं. नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया था ) ।

जहां दिल्ली में यह विजय दिवस था, वहां बैरम खां के खेमे में यह शोक दिवस था। आगरा, दिल्ली सम्भलपुर तथा अन्य स्थानों के भगोड़े मुगल गवर्नर अपनी पराजित सेनाओं के साथ मुंह लटकाए खड़े थे। अनेक सेनानायकों ने हेमचन्द्र के विरुद्ध लड़ने से मना कर दिया था, वे बार-बार काबुल लौटने की बात कर रहे थे। परन्तु बैरम खां इस घोर पराजय के लिए तैयार न था। आखिर 5 नवम्बर, 1556 ई. को पानीपत में पुन: हेमचन्द्र व मुगलों की सेनाओं में टकराव हुआ।

प्रत्यक्ष द्रष्टाओं का कथन है कि हेमचन्द्र के दाईं और बाईं ओर की सेनाएं विजय के साथ आगे बढ़ रही थीं। केन्द्र में स्वयं सम्राट सेना का संचालन कर रहे थे। परन्तु अचानक आंख में एक तीर लग जाने से वे बेहोश हो गए। देश का भाग्य पुन: बदल गया। हेमचन्द्र को बेहोश हालत में ही सिर काट कर मार दिया गया। उनका मुख काबुल भेजा गया तथा शेष धड़ दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया गया। उससे भी उनकी जब तसल्ली न हुई उनके पुराने घर मछेरी पर आक्रमण किया गया। लूटमार की गई, उनके 80 वर्षीय पिता पूरनदास को धर्म परिवर्तन के लिए कहा गया, न मानने पर उनका भी कत्ल कर दिया गया।

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  2. क्षत्रिय- राजपूत के गोत्र और उनकी वंशावली 
  3. क्षत्रियों की उत्पत्ति एवं ऐतिहासिक महत्व 
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इलाहाबाद हाईकोर्ट बार की सफलता की दिशाहीनता





उच्च न्यायालय की बेंच को लेकर कुछ अधिवक्ता समूहों द्वारा जिस तरह से भाजपा और प्रधानमंत्री को टारगेट कर पुतले फुके जा रहे है यह ठीक नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार अधिवक्ताओं की बार है किसी पार्टी विशेष नहीं और किसी पार्टी विशेष को हाईकोर्ट बार के मंच से राजनीतिक रोटियां नहीं सुनी देनी चाहिए।

हमारा एक ही उद्देश्य होना चाहिए उच्च न्यायालय की अखंडता का, वह किसी हमें किसी एक दल के विरोध करके और किसी एक दल के सहयोग नहीं मिलने वाला है।

हमें देखना होगा कि क्या राजनाथ या लक्ष्मी बाजपेई ने मीडिया के सामने बेच की बात स्वीकार है? या मेरठ बेंच के अधिवक्ताओं को इनका घेराव करके वार्ता कि और खुद ही ऐसे बयानों की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी।

जब भाजपा के सांसद श्री Keshav Prasad Maurya व श्री Shyamacharan Gupta ने पहले ही कह दिया कि वो उच्च न्यायालय को नहीं बटने देंगे तो बार के मंच से भाजपा विरोधी बयान क्यों देने दिए जा रहे है ?

जिस प्रकार सलाहकार समिति में कांग्रेसी विधायक अनुग्राह नारायण सिंह को सलाहकार सामिति में रखा गया वो भी ठीक नही है क्योकि वह बार के सदस्य भी नही है, अगर जन्प्रातिनिधि के तौर पर अनुग्रह को रखा गया तो केशव मौर्य और श्यामाचरण गुप्त को भी रखा जाना चाहिए था। ये सरकार से बात करने में ज्यादा सक्षम थे और भी अधिवक्ता जो बेंच की लड़ाई में ज्यादा प्रखर हो सकते है उनको साथ लेने और आगे करने की जरूरत है न कि बेंच की लड़ाई में बार के मैदान में राजनैतिक खेल खेलने की।

भाजपा के लोग भी बार की लड़ाई में साथ है और साथ भी दे और गाली खाए, एक साथ दोनों काम संभव नही हो सकता है। सर्वप्रथम बार का कांग्रेसीकरण और सपाईकारण बंद होना चाहिए।


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