जनहित याचिका / Public Interest Litigation



Public Interest Litigation
जनहित याचिका/Public Interest Litigation (जिसे संक्षेप में PIL/पीआईएल कहते है)  वह याचिका है, जो कि जन (लोगों) के सामूहिक हितों के लिए न्यायालय में दायर की जाती है। कोई भी व्यक्ति जन हित में या फिर सार्वजनिक महत्व के किसी मामले के विरुद्ध, जिसमें किसी वर्ग या समुदाय के हित या उनके मौलिक अधिकार प्रभावित हुए हों, जनहित याचिका के जरिए न्यायालय की शरण ले सकता है।

जनहित याचिका किस न्यायालय के समक्ष दायर की जा सकती है। जनहित याचिका निम्नलिखित न्यायालयों के समक्ष दायर की जा सकती है:-
  1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय के समक्ष।
  2. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत उच्चन्यायालय के समक्ष।
जनहित याचिका कब दायर की जा सकती है
जनहित याचिका दायर करने के लिए यह जरूरी है, कि लोगों के सामूहिक हितों जैसे सरकार के कोई फैसले या योजना, जिसका बुरा असर लोगों पर पड़ा हो। किसी एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होने पर भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है।

जनहित याचिका कौन व्यक्ति दायर कर सकता है
कोई भी व्यक्ति जो सामाजिक हितों के बारे में सोच रखता हो, वह जनहित याचिका दायर कर सकता है। इसके लिये यह जरूरी नहीं कि उसका व्यक्तिगत हित भी सम्मिलित हो।
जनहित याचिका किसके विरूद्ध दायर की जा सकती है
जनहित याचिका केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, नगर पालिका परिषद और किसी भी सरकारी विभाग के विरूद्ध
दायर की जा सकती है। यह याचिका किसी निजी पक्ष के विरूद्ध दायर नहीं की जा सकती। लेकिन अगर किसी निजी पक्ष या कम्पनी के कारण जनहितों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हो, तो उस पक्ष या कम्पनी को सरकार के साथ प्रतिवादी के रूप में सम्मिलित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कानपुर में स्थित किसी निजी कारखाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा हो, तब जनहित याचिका में निम्नलिखित प्रतिवादी होंगे -
  1. उत्तर प्रदेश राज्य / भारत संघ जो आवश्यक हो अथवा दोनों भी हो सकते है।
  2. राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड और
  3. निजी कारखाना।
जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
जनहित याचिका ठीक उसी प्रकार से दायर की जाती है, जिस प्रकार से रिट (आदेश) याचिका दायर की जाती
है।
उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिए निम्नलिखित बातों का होना जरूरी है।
प्रत्येक याचिका की एक छाया प्रति होती है। यह छाया प्रति अधिवक्ता के लिये बनाई गई छाया प्रति या अधिवक्ता की छाया प्रति होती है। एक छाया प्रति प्रतिवादी को देनी होती है, और उस छाया प्रति की देय रसीद लेनी होती है। दूसरे चरण में जनहित याचिका की दो छाया प्रति, प्रतिवादी द्वारा प्राप्त की गई देय रसीद के साथ न्यायालय में देनी होती है।

उच्चतम न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
उच्चतम न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिये याचिका की पाँच छाया प्रति दाखिल करनी होती हैं। प्रतिवादी को याचिका की छाया प्रति सूचना आदेश के पारित होने के बाद ही दी जाती है।

क्या एक साधारण पत्र के जरिये भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है
जनहित याचिका एक खत या पत्र के द्वारा भी दायर की जा सकती है लेकिन यह याचिका तभी मान्य होगी जब यह निम्नलिखित व्यक्ति या संस्था द्वारा दायर की गई हो।
  1. व्यथित व्यक्ति द्वारा,
  2. सामाजिक हित की भावना रखने वाले व्यक्ति द्वारा,
  3. उन लोगों के अधिकारों के लिये जो कि गरीबी या किसी और कारण से न्यायालय के समक्ष न्याय पाने के लिये नहीं आ सकते।
जनहित याचिका दायर होने के बाद न्याय का प्रारूप क्या होता है
जनहित याचिका में न्याय का प्रारूप प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है।
  1. सुनवाई के दौरान दिये गये आदेश, इनमें प्रतिकर,औद्योगिक संस्था को बन्द करने के आदेश, कैदी को जमानत पर छोड़ने के आदेश, आदि होते हैं।
  2. अंतिम आदेश जिसमें सुनवाई के दौरान दिये गए आदेशों एवं निर्देशों को लागू करने व समय सीमा जिसके अन्दर लागू करना होता है।
क्या जनहित याचिका को दायर करने व उसकी सुनवाई के लिये वकील आवश्यक है
जनहित याचिका के लिये वकील होना जरूरी है और राष्ट्रीय/राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अन्तर्गत सरकार के द्वारा वकील की सेवाएं प्राप्त कराए जाने का भी प्रावधान है।

निम्नलिखित परिस्थितियों में भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है
  1. जब गरीबों के न्यूनतम मानव अधिकारों का हनन होरहा हो।
  2. जब कोई सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों की पूर्ति न कर रहा हो।
  3. जब धार्मिक अथवा संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो।
  4. जब कोई कारखाना या औद्योगिक संस्थान वातावरण को प्रदूषित कर रहा हो।
  5. जब सड़क में रोशनी (लाइट) की व्यवस्था न हो, जिससे आने जाने वाले व्यक्तियों को तकलीफ हो।
  6. जब कहीं रात में ऊँची आवाज में गाने बजाने के कारण ध्वनि प्रदूषण हो।
  7. जहां निर्माण करने वाली कम्पनी पेड़ों को काट रही हो, और वातावरण प्रदूषित कर रही हो।
  8. जब राज्य सरकार की अधिक कर लगाने की योजना से गरीब लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़े।
  9. जेल अधिकारियों के खिलाफ जेल सुधार के लिये।
  10. बाल श्रम एवं बंधुआ मजदूरी के खिलाफ।
  11. लैंगिक शोषण से महिलाओं के बचाव के लिये।
  12. उच्च स्तरीय राजनैतिक भ्रष्टाचार एवं अपराध रोकने के लिये।
  13. सड़क एवं नालियों के रखरखाव के लिये।
  14. साम्प्रदायिक एकता बनाए रखने के लिये।
  15. व्यस्त सड़कों से विज्ञापन के बोर्ड हटाने के लिये, ताकि यातायात में कठिनाई न हो।
जनहित याचिका से संबन्धित उच्चतम न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय
  1. रूरल लिटिगेशन एण्ड इंटाइटलमेंट केन्द्र बनाम् उत्तर प्रदेश राज्य, और रामशरण बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय के कहा कि जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान न्यायालय को प्रक्रिया से संबन्धित औपचारिकताओं में नहीं पड़ना चाहिए।
  2. शीला बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका को एक बार दायर करने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता।
भारतीय विधि से संबधित महत्वपूर्ण लेख


Share:

भारतीय बैंकिंग बोर्ड एवं मानक बोर्ड द्वारा बैंकों के लिए निर्धारित आचार संहिता



ग्राहकों के प्रति बैंकों की कुछ प्रतिबद्धताएं होती हैं जिसे सुनिश्चित करते हुए बैंकों को अपने ग्राहकों के साथ निष्पक्ष एवं न्यायसंगत व्यवहार करना चाहिए। भारतीय बैंकिंग बोर्ड एवं मानक बोर्ड द्वारा निर्धारित आचार संहिता प्रतिबद्धताएं निम्नलिखित हैं:
  1. बैंक के काउंटर पर नकदी एवं चेक की प्राप्ति तथा भुगतान की न्यूनतम बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  2. बैंकों द्वारा प्रस्तुत उत्पादों एवं सेवाओं के लिए तथा बैंकों के स्टाफ द्वारा अपनायी जा रही क्रिया विधियों तथा प्रथाओं में इस कोड की प्रतिबद्धता तथा मानकों को पूरा कराना।
  3. यह सुनिश्चित करना कि बैंक के उत्पाद तथा सेवाएं संबंधित कानूनों तथा नियमों का पूरी तरह से पालन करती हैं।
  4. ग्राहक के साथ बैंक के व्यवहार ईमानदारी तथा पारदर्शिता के नैतिक सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए।
  5. बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी शाखाओं में सुरक्षित तथा भरोसेमंद बैंकिंग तथा भुगतान प्रणालियां चलती रहें।उत्पाद एवं सेवा के बारे में ग्राहकों को स्पष्ट रूप से सूचना देना। इसके लिए हिन्दी, अंग्रेजी या स्थानीय भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  6. बैंक के विज्ञापन तथा संवर्धन संबंधी साहित्य स्पष्ट होने चाहिए। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि विज्ञापन किसी प्रकार से भ्रामक न हों।
  7. बैंक के उत्पादों एवं सेवाओं के संबंध में, उन पर लागू शर्तों तथा ब्याज दरों और सेवा प्रभारों के संबंध में ग्राहकों को स्पष्ट सूचना दिया जाना चाहिए।
  8. ग्राहकों को कैसे लाभ हो सकता है, उसके वित्तीय निहितार्थ क्या हैं,आदि बातों की जानकारी देना तथा किसी प्रकार की समस्या होने पर ग्राहक किससे संपर्क करें, इन सब बातों की जानकारी दी जानी चाहिए।
  9. ग्राहकों के खाते तथा सेवा के उपयोग के बारे में नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराना बैंकों का कर्तव्य है।
  10. कुछ गलत हो जाने पर शीघ्र तथा सहानुभूतिपूर्वक कार्रवाई करना।
  11. गलती को तुरंत सुधारना तथा बैंक की गलती के कारण लगाए गए बैंक प्रभारों को रद्द करना।
  12. ग्राहकों की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करना।
  13. तकनीकी असफलता के कारण उत्पन्न हुई किसी समस्या को दूर करने के लिए वैकल्पिक उपाय उपलब्ध कराना।ब्याज दरों, प्रभारों या शर्तों में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों से ग्राहकों को अवगत कराना।
  14. ग्राहकों की व्यक्तिगत सूचना को गोपनीय रखना।
  15. खाता खोलते समय ग्राहकों को उत्पाद या सेवा से संबंधित सभी नियम एवं शर्तों की जानकारी देना।

  16. बैंक की प्रत्येक शाखा में शुल्क एवं प्रभार की सूची लगाना।
  17. ग्राहक को यदि बैंक से कोई शिकायत है तो, उसे कैसे, कहाँ तथा किससे शिकायत करनी है, इसकी जानकारी उपलब्ध कराना।
  18. कोई भी बैंक बिना ग्राहक की लिखित अनुमति के, टेलीफोन,एसएमएस, ईमेल आदि द्वारा नए उत्पादों या सेवा के बारे में अतिरिक्त जानकारी नहीं देगा।
  19. बैंक को ग्राहक के जमा व ऋण खातों पर लगने वाले ब्याज की सूचना देनी चाहिए।
  20. ग्राहक की जमाराशियों पर ब्याज, कितना और कब देंगे या ऋण खातों पर प्रभार कब लगाया जाएगा इसकी सूचना बैंक को देनी चाहिए।
  21. किसी उत्पाद के ब्याज दर पर होने वाले परिवर्तनों की सूचना ग्राहक को दी जानी चाहिए।
  22. बैंक को अपनी शाखाओं में सूचना पट्ट लगाना आवश्यक है तथा उस पर निःशुल्क सेवाओं की सूची, बचत खाते में न्यूनतम जमा राशि न रखने पर लगने वाला प्रभार, बाहरी चेक की वसूली, मांग ड्राफ्ट, चेक बुक जारी करने पर, खाता विवरण, खाता बंद करने तथा एटीएम में राशि जमा करने एवं निकालने पर लगने वाले प्रभार की सूचना लिखना अनिवार्य है।
  23. ग्राहकों द्वारा चुने गए उत्पाद या सेवा की शर्तों के उल्लंघन या अनुपालन न करने पर दंड के बारे में भी बैंक को सूचित करना चाहिए।
  24. यदि बैंक किसी प्रभार में वृद्धि करते हैं या नया प्रभार लागू करते हैं, तो इसके प्रभावी होने की तारीख से एक माह पूर्व उन्हें अधिसूचित किया जाना चाहिए।
  25. बैंक ग्राहक की वैयक्तिक सूचना को गोपनीय रखने के लिए प्रतिबद्ध होता है, लेकिन कुछ अपवादात्मक मामलों में उसे छूट है, जो निम्न हैंः 1. बैंक को कानूनी तौर पर देनी पड़े, 2. सूचना देना जनहित में जरूरी हो और 3. बैंक के हितों के लिए सूचना देना आवश्यक हो।


Share:

बलात्कार (Rape) क्या है! कानून के परिपेक्ष में



 बलात्कार (Rape) क्या

बलातकार किसे कहते है
कानून की नजर में बलात्कार (Balatkar) अथवा रेप एक जघन्य अपराध है। आए दिन महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं। महिलाएं सामाजिक रूढि़वादियों से बचने के लिए इस बात को दबा देती हैं। इसकी खास वजह पुलिस एवं कोर्ट-कचहरी है। कुछ लोग तो पुलिस थानों में सूचना भी नहीं देते हैं। कानून की नजर में -
“किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध यदि कोई व्यक्ति उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता है, उसे बलात्कार या रेप कहते हैं।''
बलात्कार और यौन हिंसा के अन्य मामले विकसित और विकासशील देशों दोनों में ही देखे जाते हैं। बलात्कार भारतीय दंड संहिता (आई. पी. सी) की धाराओं 375 और 376 के तहत अपराध है। किसी महिला की स्वीकृति के बिना उसके साथ यौन हिंसा को बलात्कार के रूप में परिभाषित किया गया है। अगर महिला की उम्र १६ साल से कम है तो उसके साथ कोई भी यौनिक संबंध बलात्कार माना जाता है और उसमें स्वीकृति होने न होने से फर्क नहीं पड़ता है। अगर उसकी शादी हो गई हो तब भी। वैसे भी किसी नाबालिग लड़की से शादी करना कानूनन जुर्म है। परन्तु अनगिनत अपराधी कानूनी कार्यवाही से पहले या बाद में आसानी से बच निकलते हैं। हाल में यह एक विवाद का विषय बना हुआ है कि बलात्कार के लिए मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। कुछ लोगों को लगता है कि यह ज़रूरी है पर अन्य बहुत से लोग, जिनमें महिला संगठन भी शामिल हैं इसे गलत मानते हैं। एक डर यह भी जताया जाता है कि प्रमाण सबूत खतम करने के लिए पीडित महिला को ही खतम कर दिया जाएगा। एक और संभावना यह है कि इस सजा का गलत इस्तेमाल किया जाएगा।
बलात्कार के बाद गर्भधारण न हो इस पर नियंत्रण करना ज़रूरी है। पीडित महिला को चिकित्सक परीक्षण उपरान्त और कानूनी प्रकिया के तुरन्त बाद ही डाक्टर की सलाह से संभोग पश्चात गर्भ निरोधक गोली देनी चाहिये ताकि अनचाहे संभावित गर्भधारण होने से रोका जा सके। अगर इसके पश्चात गर्भधारण हो जाये तो गर्भपात पंजीकृत डाक्टर से करना चाहिये। यह सारी प्रक्रिया पीडिता के लिये शारीरिक, मानसिक और सामाजिक त्रास का कारण होती है इसलिये उसके संवेदनशील व्यवहार जरूरी है।

भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 375 के अन्तर्गत बलात्कार कब माना जाता है -
  1. अगर कोई पुरूष महिला की सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध करता है। सहमति किसी तरह से डरा-धमका कर ली गई हो जैसे उसको मारने, घायल करने या उसके करीबी लोगों को मारने या घायल करने की धमकी दे कर ली गई हो।
  2. अगर सहमति झूठे प्रलोभन, झूठे वादे तथा धोखेबाजी (जैसे कि शादी का वादा, जमीन जायदाद देने का वादा, आदि) से ली जाती है तो ऐसी सहमति को सहमति नहीं माना जाएगा।
  3. नकली पति बनकर उसकी सहमति के बाद किया गया संभोग।
  4. उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह दिमागी रूप से कमजोर या पागल हो।
  5. नशीले पदार्थ के सेवन के कारण वह होश में न हो तब उसकी सहमति ली गई हो।
  6. 16 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ किया गया शारीरिक सम्बन्ध बलात्कार की श्रेणी में आता है चाहेलड़की की सहमति हो तब भी।
बलात्कार के लिए सजा
  1. सात साल का कारावास जो बढ़कर 10 साल का भी हो सकता है। कुछ मामलों में इसे उम्र कैद में भी बदला जा सकता है। इसके अलावा जुर्माना भी हो सकता है।
  2. जिस महिला के साथ बलात्कार किया गया हो वह उसकी पत्नी हो और 12 साल से कम उम्र की न हो तब उस व्यक्ति को 2 साल का कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  3. अगर न्यायालय 7 साल से कम की सजा देता है तो उसे लिखित रूप में उसका उचित कारण देना होगा।
विशेष परिस्थितियों में सजा -  निम्न व्यक्तियों द्वारा किए गए बलात्कार की सजा कम से कम 10 साल का सश्रम कारावास जिसको उम्र कैद तक बढ़ाया जा सकता है अगर कोई पुलिस अधिकारी निम्न अवस्थाओं में बलात्कार करता है -
  1. उस थाने के क्षेत्र के अन्दर जिसका वह क्षेत्र अधिकारी हो।
  2. उन थानों के अन्दर जो उसके अधिकार में न हो।
  3. वह महिला जो उसकी हिरासत में या उसके अधीनस्थ अधिकारी की हिरासत में हो।
  4. लोक सेवक जो अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके उसकी हिरासत में हो या उसके अधीनस्थ की हिरासत में होने वाली महिला के साथ बलात्कार करता है।
  5. नारी निकेतनों, बाल संरक्षण गृहों, कारावास के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए उनकी हिरासत में जो महिलाएं हों उनके साथ बलात्कार करता हो।
  6. अस्पताल का प्रबन्धक और कर्मचारियों द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए उनकी हिरासत में जो महिलाएं हो उनके साथ बलात्कार करता हो।
  7. गर्भवती महिला के साथ जो बलात्कार करता हो।
  8. 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ जो बलात्कार करता हो।
  9. जो सामूहिक बलात्कार करता हो।
निम्नलिखित परिस्थितियों में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करना अपराध माना जाता है -
  1. जो व्यक्ति कानूनी तौर पर अलग रहता हो परन्तु पत्नी की सहमति के बिना शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता हो, उसको 2 साल का कारावास और जुर्माना भी हो सकता है।
  2. लोक सेवक द्वारा अपने अधिकारों का दुरूपयोग करके, नारी निकेतनों, बाल संरक्षण गृहों एवं कारावास, अस्पताल का प्रबन्धक और कर्मचारियों द्वारा उनके संरक्षण में जो महिलाएं हो उनके साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता हो, ऐसे सभी अपराधों में 5 साल तक की सजा और जुर्माना दोनों भी हो सकते हैं।
बलात्कार से शोषित महिला कौन-कौन सी सावधानी बरतें
  1.  अपने सगे सम्बन्धियों या दोस्तों को खबर करें।
  2. तब तक स्नान न करें जब तक डाक्टर जाँच व प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न हो जाए।
  3. कपड़े न धोये क्योंकि यह कपड़े जाँच के आधार हैं।
  4. प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराएं।
प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें-
  1. घटना की तारीख
  2. घटना का समय
  3. घटना का स्थान अवश्य लिखाएं।
  4. रिपोर्ट लिखाने के बाद उसकी एक काॅपी अवश्य लें।
  5. पुलिस का कर्तव्य है कि वह पीडि़त महिला की डाक्टरी जाँच पंजीकृत डाक्टर से या नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में करवाकर डाक्टरी जांच की काॅपी अवश्य दें।
  6. बलात्कार के समय जो कपड़े पीडि़त महिला ने पहने हैं, डाक्टरी जांच के बाद पुलिस आपके सामने उन कपड़ों को सील बन्द करेगी जिसकी रसीद अवश्य ले लें।
बलात्कार और टू फिंगर टेस्ट (Rape and Two Finger Test) :
  1. बलात्कार हुआ है, इसे सिद्ध करने के लिये लिए डॉक्टर टू फिंगर टेस्ट करते हैं। यह एक बेहद विवादास्पद परीक्षण है, जिसके तहत महिला की योनि में उंगलियां डालकर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है। यह भी जांचा जाता है कि दुष्कर्म की शिकार महिला सम्भोग की आदी है या नहीं। यह एक बेहद विवादास्पद परीक्षण है, जिसके तहत महिला की योनि में उंगलियां डालकर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है।
  2. टू फिंगर टेस्ट के दो मामले उदाहरण के लिए लिए जा सकते है। वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने एक अभियुक्त यतिन कुमार को टू फिंगर टेस्ट आधार पर दोषी करार दिया क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता था कि पीड़ित महिला को ‘सेक्स की आदत’ नहीं थी क्योंकि डॉक्टर अपनी दो उंगलियों को ‘मुश्किल’ से प्रवेश करा सका, जिसके कारण खून बह निकला था और कोर्ट इस टेस्‍ट के आधार पर निष्कर्ष पर पहुँचाी कि पीडिता का बलात्‍कार हुआ है किन्‍तु इसी टेस्‍ट के आधार पर 2006 में पटना हाइ कोर्ट में हरे कृष्णदास को गैंगरेप के मामले में बरी कर दिया गया क्योंकि डॉक्टर ने जांच में पाया कि पीड़िता की हाइमन पहले से भंग थी और वह सक्रिय सेक्स लाइफ जी रही थी। जज का कहना था कि महिला का कैरेक्टर ‘लूज़’ है।
  3. निश्चित रूप से टू फिंगर टेस्ट एक सभ्‍य समाज की असभ्‍य जांच प्रकिया है। भारत में 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने टू फिंगर टेस्ट को बलात्कार पीड़िता के अधिकारों का हनन और मानसिक पीड़ा देने वाला बताते हुए खारिज कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि सरकार को इस तरह के टू फिंगर टेस्‍ट को खत्म कर कोई दूसरा तरीका अपनाना चाहिए।
बलात्कार के मामले की सुनवाई की प्रक्रिया
  1. बलात्कार के मामले की सुनवाई एक बन्द कमरे में होती है।
  2. किसी अन्य व्यक्ति को वहाँ उपस्थित रहने की अनुमति नहीं होती।
अगर पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखने से मना कर दे तो आप निम्न जगहों पर शिकायत कर सकते हैं
  1. वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/ पुलिस अधीक्षक
  2. मजिस्ट्रेट
घटना का विवरण निम्नलिखित जगहों पर लिखकर भेज सकते हैं -
  1. कलेक्टर
  2. स्थानीय या राष्ट्रीय समाचार पत्रों में
  3. राज्य महिला आयोग
  4. राष्ट्रीय महिला आयोग, 4, दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली-110001
बलात्कार के मामलों में सामान्यजन से अपेक्षाएं - यदि कोई महिला बलात्कार की शिकार हुई है तो निम्नलिखित अतिरिक्त उपाय भी किए जा सकते हैंः
  1. यौन हमले के तुरंत बाद पीडि़त महिला को किसी सुरक्षित जगह पर ले जाना सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह जगह पीडि़ता का घर, उसकी दोस्त अथवा पारिवारिक सदस्य का घर हो सकता है।
  2. पीडि़त महिला के प्रति सहयोग पूर्ण रवैया अपनाएं और उसे विश्वास दिलाएं कि इसमें उसकी कोई गलती नहीं है।
  3. उसके साथ विनम्रता पूर्ण और समझदारी के साथ व्यवहार करें।
  4. पीडि़त महिला से यह पता करें कि क्या वह बलात्कार करने वाले की पहचान कर सकती है और बलात्कार की परिस्थितियों एवं अपनी चोटों के बारे में बता सकती है।
  5. महिला को तुरंत डाक्टरी सहायता मिलना ज़रूरी है और तत्काल चिकित्सकीय/फ़ोरेंसिक (बलात्कार के मामलों में की जाने वाली खास जांच) जांच कराए जाने पर खास जोर दिया जाना चाहिए।
  6. सबूतों को सुरक्षित रखना (पीडि़त के शरीर में रह गई जैविकी सामग्री) महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इन्हीं से यौन हमला करने वाले उत्पीड़क की पहचान होती है, खासतौर से उन मामलों में जिनमें उत्पीड़क कोई अजनबी हो। इसलिए महिला को जांच से पहले नहाना या अपनी साफ़-सफ़ाई नहीं करनी चाहिए।
  7. महिला और उसके परिवार वालों को पुलिस की सहायता लेने में मदद करें और उन्हें समुदाय में काम करने वाले ऐसे अन्य संगठनों से मिलवाएं जो बलात्कार की शिकार हुई महिला को सहायता मुहैया कराने का काम करते हैं।
  8. महिला द्वारा अपराध की रिपोर्ट अभी दर्ज न कराने का फैसला करने पर भी, फ़ोरेंसिक (कानूनी कार्यवाही में मदद के लिए की जाने वाली जांच) चिकित्सा जांच कराना एवं रिपोर्ट और सबूतों को सुरक्षित रखना ज़रूरी है। आवश्यक होता है ताकि पुलिस बाद में उन्हें मामले की कार्रवाई और जांच के लिए प्रयोग कर सके।
  9. गर्भ ठहरने से बचाने के लिए महिला को आपात कालीन गर्भ निरोधक गोलियां दें। अगर गंभीर चोटें लगी हों तो तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए।
  10. महिला की मदद करें, जिससे अगर उसने अभी तक इस घटना के बारे में अपने परिवार वालों को न बताया हो तो वह उन्हें बता सके। पारिवारिक सदस्यों को भी बलात्कार की घटना के बारे में अपनी भावनाओं से उबरना होता है।
  11. महिला और उसके परिवारवालों का हौसला बढ़ाए और बताएं कि बेशक यह एक दिल दहला देने वाली घटना है किंतु इससे बाहर निकलकर आगे बढ़ना ही होगा और इस घटना से जीवन रुकता नहीं और हर चीज़ का अंत नहीं हो जाता।
  12. महिला को विशेष मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता पड़ सकती है और इस बारे में उसे जिला अस्पताल में ले जाने के लिए सहयोग दिया जाना चाहिए।
भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख


Share: