॥ शिव मानसपूजा ॥ - भावार्थ सहित (Shiv Manas Puja)



Shiv Manas Puja

आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनूठी स्तुति है । यह स्तुति शिव भक्ति मार्ग को अत्यधिक सफलता के साथ ही एक अत्यंत गूढ़ रहस्य को समझाता है । शिव मात्र भक्ति द्वारा प्राप्त हो सकते हैं, उनकी भक्ति हेतु बाह्य आडम्बर की कोई आवश्यकता नहीं है । इस स्तुतिमें हम प्रभु को भक्ति द्वारा मानसिक रूप से कल्पना की हुई वस्तुएं समर्पित करते हैं । हम उन्हें रत्न जड़ित सिंहासन पर आसीन करते हैं, वस्त्र, नैवेद्य तथा भक्ति अर्पण करते हैं; परन्तु ये सभी हम स्थूल रूप में नहीं अपितु मानसिक रूप में अर्पण करते हैं । इस प्रकार हम स्वयं को शिव को समर्पित कर शिव स्वरूप में विलीन हो जाते हैं ।

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम॥


जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌॥1॥


मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूँ कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान हों। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूँ। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूँ।
जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूँ, आप ग्रहण कीजिए।

सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र धृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्‌॥


शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥2॥


मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पाँच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥


साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥3॥


हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रहा हूँ। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियाँ आपको प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूँ। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें।

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥

संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥4॥

हे शंकर जी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वती जी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूँ, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूँ, वह आपकी आराधना ही है।

कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्‌।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥5॥
हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।

इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा सम्पूर्णं

शिवमानसपूजा - भावार्थ सहित (Shiv Manas Puja)


Share:

॥ मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥ Mritasanjeevani Stotram



मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्
Mritasanjeevani Stotram
Mritasanjeevani Stotram
एवमारध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमेश्वरं।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ॥१॥
evamaradhy gaurishan devan mrityungjayameshvaran ।
mritasangjivanan namna kavachan prajapet sada ॥

गौरीपति मृत्युंजयेश्वर भगवान शंकर की विधि पूर्वक आराधना करने के पश्चात भक्त को सदा मृतसञ्जीवन नामक कवच का सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये ॥१॥

सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं ।
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ २॥
sarat sarataran punyan guhyadguhyataran shubhan ।
mahadevasy kavachan mritasangjivanamakan ॥

महादेव भगवान् शङ्कर का यह मृतसञ्जीवन नामक कवच का तत्त्वका भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है गुह्य और मङ्गल प्रदान करनेवाला है ॥२॥

समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभं ।
शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥३॥
samahitamana bhootva shrinushv kavachan shubhan ।
shritvaitaddivy kavachan rahasyan kuru sarvada ॥

[आचार्य शिष्य को उपदेश करते हैं कि – हे वत्स! ] अपने मन को एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवच को सुनो । यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है । इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना ॥३॥

वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः ।
मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥४॥
varabhayakaro yajva sarvadevanishevitah ।
mrityungjayo mahadevah prachyan man patu sarvada ॥

जरा से अभय करने वाले, निरन्तर यज्ञ करने वाले, सभी देवताओं से आराधित हे मृत्युंजय महादेव ! आप पूर्व-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥४॥

दधाअनः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुजः प्रभुः।
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥५॥
dadhaanah shaktimabhayan trimukhan shadbhujah prabhuh ।
sadashivo-a-gniroopi mamagneyyan patu sarvada ॥

अभय प्रदान करने वाली शक्ति को धारण करने वाले, तीन मुख वाले तथा छ: भुजाओं वाले, अग्रि रूपी प्रभु सदाशिव अग्नि कोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥५॥

अष्टदसभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः ।
यमरूपि महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु ॥६॥
ashtadasabhujopeto dandabhayakaro vibhuh ।
yamaroopi mahadevo dakshinnasyan sadavatu ॥

अठारह भुजाओं से युक्त, हाथ में दण्ड और अभयमुद्रा धारण करने वाले, सर्वत्र व्याप्त यम रुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥६॥

खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः ।
रक्षोरूपी महेशो मां नैरृत्यां सर्वदावतु ॥७॥
khadgabhayakaro dhiro rakshogannanishevitah ।
rakshoroopi mahesho man nairrityan sarvadavatu ॥

हाथमें खड्ग और अभयमुद्रा धारण करने वाले, धैर्यशाली, दैत्यगणों से आराधित रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥७॥

पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः ।
वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदावतु ॥८॥
pashabhayabhujah sarvaratnakaranishevitah ।
varunatma mahadevah pashchime man sadavatu ॥

हाथ में अभयमुद्रा और पाश धाराण करनेवाले, शभी रत्नाकरों से सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥८॥

गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः ।
वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा ॥९॥
gadabhayakarah prannanayakah sarvadagatih ।
vayavyan marutatma man shangkarah patu sarvada ॥
हाथों में गदा और अभयमुद्रा धारण करने वाले, प्राणों के रक्षक, सर्वदा गतिशील वायु स्वरूप शंकर जी वायव्य कोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥९॥ 
 
शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः ।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः ॥१०॥
shangkhabhayakarastho man nayakah parameshvarah ।
sarvatmantaradigbhage patu man shangkarah prabhuh ॥

हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले नायक (सर्व मार्ग द्रष्टा) सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान शिव समस्त दिशाओं के मध्य में मेरी रक्षा करें ॥१०॥

शूलाभयकरः सर्वविद्यानमधिनायकः ।
ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥११॥
shoolabhayakarah sarvavidyanamadhinayakah ।
eeshanatma tathaishanyan patu man parameshvarah ॥

हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशान स्वरूप भगवान परमेश्वर शिव ईशान कोण में मेरी रक्षा करें ॥११॥

ऊर्ध्वभागे ब्रःमरूपी विश्वात्माऽधः सदावतु ।
शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः॥१२॥
oordhvabhage brahmaroopi vishvatma-a-dhah sadavatu ।
shiro me shangkarah patu lalatan chandrashekharah ॥

ब्रह्म रूपी शिव मेरी ऊर्ध्वभाग में तथा विश्व आत्म स्वरूप शिव अधोभाग में मेरी सदा रक्षा करें । शंकर मेरे सिर की और चन्द्रशेखर मेरे ललाट की रक्षा करें ॥१२॥

भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु ।
भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः ॥१३॥
bhoomadhyan sarvalokeshastrinetro lochane-a-vatu ।
bhrooyugman girishah patu karnau patu maheshvarah ॥

मेरे भौंहों के मध्य में सर्व लोकेश और दोनों नेत्रों की त्रिनेत्र भगवान शंकर रक्षा करें, दोनों भौंहों की रक्षा गिरिश एवं दोनों कानों को रक्षा भगवान महेश्वर करें ॥१३॥

नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः ।
जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ॥१४॥
nasikan me mahadev oshthau patu vrishadhvajah ।
jihvan me dakshinamoortirdantanme girisho-a-vatu ॥
 महादेव मेरी नासिका की तथा वृषभध्वज मेरे दोनों ओठों की सदा रक्षा करें । दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वा की तथा गिरिश मेरे दांतों की रक्षा करें ॥१४॥

मृतुय्ञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः।
पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ॥१५॥
mrituyngjayo mukhan patu kanthan me nagabhooshannah ।
pinaki matkarau patu trishooli hridayan mam ॥

मृत्युञ्जय मेरे मुख की एवं नागभूषण भगवान शिव मेरे कंठ की रक्षा करें । पिनाकी मेरे दोनों हाथोंकी तथा त्रिशूली मेरे हृदय की रक्षा करें ॥१५॥

पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः ।
नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वौ मे पार्वतीपतिः ॥१६॥
pangchavaktrah stanau patu udaran jagadishvarah ।
nabhin patu viroopakshah parshvau me parvatipatih ॥

पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनों की और जगदीश्वर मेरे उदर की रक्षा करें । विरूपाक्ष नाभि की और पार्वती पति पार्श्वभाग की रक्षा करें ॥१६॥

कटद्वयं गिरीशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः।
गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः ॥१७॥
katadvayan girishau me prishthan me pramathadhipah ।
guhyan maheshvarah patu mamoroo patu bhairavah ॥

गिरीश मेरे दोनों कटिभाग की तथा प्रमथ अधिप पृष्ठभाग की रक्षा करें । महेश्वर मेरे गुह्यभाग की और भैरव मेरे दोनों ऊरुओं की रक्षा करें ॥१७॥

जानुनी मे जगद्दर्ता जङ्घे मे जगदम्बिका ।
पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥१८॥
januni me jagaddarta jangghe me jagadambika ।
padau me satatan patu lokavandyah sadashivah ॥

जगत धर्ता मेरे दोनों घुटनों की, जगदम्बिका मेरे दोनों जांघों की तथा लोक वन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरों की रक्षा करें ॥१८॥ 

गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम ।
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥१९॥
girishah patu me bharyan bhavah patu sutanmam ।
mrityungjayo mamayushyan chittan me gannanayakah ॥
गिरीश मेरी भार्या की रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रों की रक्षा करें । मृत्युञ्जय मेरे आयुकी गणनायक मेरे चित्तकी रक्षा करें ॥१९॥ 

सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः ।
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥२०॥
sarvanggan me sada patu kalakalah sadashivah ।
etatte kavachan punyan devatanan ch durlabham ॥

कालों के काल सदाशिव मेरे सभी अंगों की रक्षा करें । [ हे वत्स ! ] देवताओं के लिए भी दुर्लभ इस पवित्र कवच का वर्णन मैंने तुमसे किया है ॥२०॥

मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् ।
सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥२१॥
mritasangjivanan namna mahadeven keertitam।
sahsravartanan chasy purashcharannamiritam ॥

महादेव जी ने मृतसञ्जीवन नामक इस कवच को कहा है । इस कवच का सहस्त्र आवृत्ति को पुरश्चरण कहा गया है ॥२१॥

यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः ।
सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥२२॥
yah pathechchhrinuyannityan shravayetsu samahitah ।
sakalamrityun nirjity sadayushyan samashnute ॥

जो अपने मन को एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथवा दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्यु को जीतकर पूर्ण आयु का उपयोग करता है ॥ २२॥
हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ ।
आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥२३॥
hasten va yada sprishtva mritan sangjivayatyasau ।
aadhayovyadhyastasy n bhavanti kadachan ॥

जो व्यक्ति अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवच का पाठ करता है, उस आसन्न मृत्यु प्राणी के भीतर चेतना आ जाती है । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥२३॥

कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा ।
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥२४॥
kalamriyumapi praptamasau jayati sarvada ।
animadigunaishvaryan labhate manavottamah ॥

यह मृतसञ्जीवन कवच काल के गाल में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर देता है और वह मानव उत्तम अणिमा आदि गुणों से युक्त ऐश्वर्यको प्राप्त करता है ॥२४॥

युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशतिवारकं ।
युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥२५॥
yuddarambhe pathitvedamashtavishativarakan ।
yuddamadhye sthitah shatruh sadyah sarvairn drishyate ॥

युद्ध आरंभ होने के पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवच का २८ बार पाठ करके रणभूमि में उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुओं से अदृश्य रहता है ॥२५॥

न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै ।
विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा ॥२६॥
n brahmadini chastrani kshayan kurvanti tasy vai ।
vijayan labhate devayuddamadhye-a-pi sarvada ॥

यदि देवताओं के भी साथ युद्ध छिड जाये तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है ॥२६॥

प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं ।
अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च ॥२७॥
pratarootthay satatan yah pathetkavachan shubhan ।
akshayyan labhate saukhyamih loke paratr ch ॥

जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोकमें भी अक्षय्य सुख प्राप्त होता है ॥२७॥

सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः ।
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥२८॥
sarvavyadhivinirmriktah sarvarogavivarjitah ।
 ajaramarano bhootva sada shodashavarshikah ॥
वह सम्पूर्ण व्याधियों से मुक्त हो जाता है, सब प्रकार के रोग उसके शरीर से भाग जाते हैं । वह अजर-अमर होकर सदा के लिये सोलह वर्ष वाला व्यक्ति बन जाता है ॥२८॥

विचरव्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् ।
तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ॥२९॥
vicharavyakhilan lokan prapy bhoganshch durlabhan ।
tasmadidan mahagopyan kavacham samudahritam ॥
इस लोक में दुर्लभ भोगों को प्राप्त कर संपूर्ण लोकों में विचरण करता रहता है। इसलिये इस महा गोपनीय कवच को मृतसञ्जीवन नाम से कहा है ॥२९॥

मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥३०॥
mritasangjivanan namna devatairapi durlabham ॥
यह देवताओं के लिए भी दुर्लभ है ॥३०॥

॥ इति वसिष्ठ कृत मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥
॥ iti vasishth krit mritasangjivan stotram ॥

॥ इस प्रकार मृतसञ्जीवन कवच सम्पूर्ण हुआ ॥
 
Extremely Powerful Shiv Mrit Sanjeevani has the power to defeat even if the war is with demigods. This kavach can rejuvenate even the sick bodies and has the marvelous power to heal any kind of disease.
This powerful Mrit Sanjeevani Mantra can make you healthy & disease free and can bring a new life to you. This Mrit Sanjeevani Mantra can fill you with everlasting positive vibrations.


Latest Mahadev Wallpaper - Shiva Wallpaper

Shiva 4K wallpapers

Best Collection of Lord Shiva Wallpapers For Your Mobile

Best Collection of Lord Shiva Wallpapers For Your Mobile

Download Lord Shiva Wallpaper

Download Lord Shiva Wallpaper

Mahadev Mobile Wallpaper

Mahadev Mobile Wallpaper

Tag - mrit sanjeevani kavach, mrit sanjeevani kavach benefits, mrit sanjeevani kavach path, mrit sanjeevani kavach pdf download, mrit sanjeevani kavacham, mrit sanjeevani stotra, mrit sanjeevani stotra pdf download, mrit sanjeevani stotram, mrit sanjivani kavach, mrit sanjivani kavach in hindi, mritasanjeevani stotra, mritasanjeevani stotram and mritsanjivani stotra, Mrit Sanjeevani Vidya, Mrit Sanjeevani Mantra Lyrics, Mrit Sanjeevani Stotram, Mrit Sanjeevani Mantra Benefits,मृत संजीवनी कवच Mrita Sanjeevana Kavacham, Mrit Sanjeevani Mantra, Mrit Sanjeevani Mantra In Sanskrit, Mrit Sanjeevani Mantra In Hindi Meaning, मृत्यु संजीवनी कवच, मृत्यु संजीवनी कवच लाभ, मृत्यु संजीवनी कवच पथ, मृत्यु संजीवनी कवच पीडीएफ डाउनलोड, मृत्यु संजीवनी कवचम, मृत्यु संजीवनी स्तोत्र, मृत्यु संजीवनी स्तोत्र पीडीएफ डाउनलोड, मृत्यु संजीवनी स्तोत्रम, कवच , मृत्युसंजीवनी स्तोत्र और मृत्यु संजीवनी स्तोत्र, मृत्यु संजीवनी विद्या, मृत्यु संजीवनी मंत्र के बोल, मृत्यु संजीवनी स्तोत्रम, मृत्यु संजीवनी मंत्र लाभ, मृत्यु संजीवनी मंत्र मृत्यु संजीवनी कवचम, मृत्यु संजीवनी मंत्र, मृत्यु संजीवनी मंत्र संस्कृत में, मृत्यु संजीवनी मंत्र संस्कृत में, मृत्यु संजीवनी मंत्र संस्कृत में


Share:

चिन्तन - आपसी फूट का परिणाम



हमारे कार्यों को संपादित करने में जहां विचारों की विशेष भूमिका रहती है, वहीं हमारे विचार ही हमें शुभ और अशुभ कार्यों को निष्पादित करने के लिए बाध्य करते हैं। ये विचार ही हैं जो हमारे ऋषियों-मुनियों ने अपने जीवन के आनुभूतिक भावों को मानव कल्याण के लिए कहे हैं। विवेक पूर्वक विचार करके ही हमें निर्णय लेना चाहिए।


एक विशेष शब्द है फूट । इसको आगे अपने जीवन में कोई स्थान नहीं देना चाहिए। इस शब्द के व्यवहार से जीवन नष्ट हो सकता है। फूट का शाब्दिक अर्थ तो होता है विरोध, बैर, बिगाड़ या फूटने की क्रिया का भाव । साथ ही फूट का एक और अर्थ होता है ऐसा फल जो पकने पर और धूप के प्रभाव से स्वयमेव ऊपर से फटने लगता है, ककड़ी की प्रजाति का एक फल । यद्यपि इस फल को बड़े चाव से खाया जाता है। लेकिन यही फूट फल के रूप में न होकर जब परिवार में होती है तो परिवार बिखर जाता है, बर्बाद हो जाता है। एक कहावत है- वन में में उपजे सब कोई खाय, घर में उपजें घर बह जाय।।

इस शब्द को परिवार के साथ जोड़ने का अच्छी तरह पकने से नहीं अर्थ होता है बल्कि अध-कच्चे सम्बंधो ओर
तालमेल के अभाव से है। वैचारिक कच्चेपन और टुच्चेपन के भाव से है। जिसके बिना परिवार में फूट पड़ना सम्भव नहीं होता। फल के फूट का फटना उसकी पक्कावस्था के चरमोत्कर्ष का द्योतक है। जबकि परिवार में फूट पड़ना सम्बंधो, विचारों और आपसी तालमेलों में पतन और विनाश प्रकट करता है। यह छोटा सा शब्द फूट न केवल परिवार को बल्कि बड़े-बड़े राष्ट्रों को कलह, संघर्ष और अंहिसा के मार्ग से विनाश की ओर ढकेलता है। अस्तु हमें आपस की फूट से दूर रहकर संगठित होकर परिवार ओर समाज के संगठित कार्यों को पूरा करना चाहिए । अंग्रेजी कहावत है हम संगठित ओर एक साथ रहेंगे तो हर प्रकार की प्रगति और उन्नति को प्राप्त करेंगे और यदि हम विभाजित हुए अलग-अलग हुए, परस्पर मतैक्य रखकर न चले तो पतन अवश्यम्भावी है। तुलसी बाबा ने कहा है कि- जहां सुमति तॅहजहां सुमति तॅह सम्पति नाना, जहां कुमति तॅह विपति निदानां ।

अपने धर्म शास्त्रों में कहा गया है ‘‘संघे शक्ति कलौ युगे’’ कलियुग में अर्थात आज के समय में संगठन में ही असीमित शक्ति होती है। पराधीन काल में चतुर अंग्रेज हमारी इस संगठित शक्ति को तहस-नहस करते हुए उन्होनें अपनी स्वार्थ पूर्ति के कारण निर्णय किया Divide and Rule अर्थात विभाजित करो और राज्य करो। अंग्रेज अपनी इसी बात के अंतर्गत इस देश के हिंदुओं और मुसलमानों में बांट कर राज्य करते रहे। क्योंकि हम संगठित होकर शक्ति के रूप में खड़े नहीं हुये है। अतः पराधीन हुए । हमें इस आपसी फूट से दूर रहकर अपने विवेकपूर्ण विचारों के कार्य निष्पादन कर अपना, समाज का और राष्ट्र का कल्याण करना चाहिए । तभी हम अपने लक्ष्य को पूरा कर सकेंगे।



Share: