बाबर के समय में भी था ताजमहल अर्थात तेजोमहालय !




प्रथमतः ताजमहल राज-प्रासाद होने के कारण स्मारक की भांति जन-सामान्य के लिए खुला नहीं था जैसा कि वह अब है और वह सतर्कता से आरक्षित था। वह केवल प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए आमन्त्रण पर ही अधिगम्य था, या फिर विजेता के लिए। इसलिए इन दिनों के विज्ञापन एवं संचार-व्यवस्था के युग के समान कोई उसके विषय में प्रसंगों की प्राप्ति की अपेक्षा नहीं कर सकता। दूसरा उत्तर यह है कि प्राचीन और मध्ययुगीन भारत में विस्मय विमुग्ध कर देने वाले आकर्षक भवन, प्रासाद और मन्दिर इतनी अधिक संख्या में थे कि मात्र वर्णन के आधार पर उन्हें एक-दूसरे से वरीयता नहीं दी जा सकती थी। वह सब जो हम तक पहुंचा अथवा किसी यात्री द्वारा उल्लेख किया गया वह यही है कि "वे अवर्णनीय रूप से सुन्दर है" या "आश्चर्यजनक, आकर्षक, भव्य है।" 
मुस्लिम इतिहासों में एक स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है कि मुहम्मद गजनी कहता है कि मथुरा का भव्य कृष्ण मन्दिर तो 200 वर्षों में भी पूर्ण नही हो पाया होगा और विदिशा (वर्तमान भिलसा) का मन्दिर तो 300 वर्ष में पूरा हो पाया होगा। वे जो कहते हैं, कि हमें शाहजहां से पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का उल्लेख नहीं मिलता उनसे हम प्रतिप्रश्न करते हैं कि मुस्लिम आक्रामकों से पूर्व मथुरा और विदिशा के उन भव्य मन्दिरों का उल्लेख क्यों नहीं मिलता? इनका उत्तर सरल है। या तो पहले के विवरण उपलब्ध नहीं हैं या फिर किसी विवरण विशेष को इसलिए सुरक्षित रखने की चिन्ता नहीं की गई, क्योंकि भारत में ऐसे मन्दिरों की भरमार थी।
ताज महल की सच्चाई की कहानी
ताज महल की सच्चाई की कहानी
हमारा तीसरा उत्तर यह है कि पूर्ववर्ती इतिहास में ताजमहल एवं, अन्य भवनों के सम्बन्ध में, यद्यपि स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होते हैं, तदपि कपटपूर्ण, पारम्परिक प्रशिक्षण द्वारा बुद्धि के कुण्ठित हो जाने के कारण हम उनके महत्व को ग्रहण करने में असमर्थ रहे। ताजमहल के सम्बन्ध में यही बात है। 

बादशाह बाबर अपने संस्मरण भाग-2, पृष्ठ 192 पर हमें बताता है "गुरुवार (10 मई 1526) को मध्याह्नोत्तर मैंने आगरा में प्रवेश किया और सुलतान इब्राहीम के प्रासाद में निवास किया।" उसके बाद पृष्ठ 251 पर बाबर आगे लिखता है- "ईद के कुछ ही दिनों बाद हमने सुलतान इब्राहीम के प्रासाद में (11 जुलाई 1526) बड़े हाल में, जो कि पत्थर के श्रृंखलायुक्त स्तम्भों से सज्जित हैं, गुम्बद की नीचे विराट भोज का आयोजन किया।"
यहाँ स्मरणणीय है कि बाबर ने दिल्ली और आगरा पर, इब्राहीम लोदी को पानीपत में पराजित करने पर, अधिकार किया था इस प्रकार उसने उन हिन्दू प्रासादों पर अधिकार लिया जिन पर एक अन्य विदेश विजेता इब्राहीम लोदी अधिकार किए हुए था। इसलिए बाबर आगरा के उस प्रासाद को जिस पर उसने अधिकार किया था, इब्राहीम का प्रासाद कहता है।
उसका विवरण देते हुए बाबर कहता है कि राजप्रासाद पत्थरों का श्रृंख्लाबद्ध स्तम्भों से सज्जित है। यह ताजमहल के स्तम्भ-पीठ के कोनों पर स्थित चार सुन्दर श्वेत स्तम्भों की ओर स्पष्ट संकेत है। फिर उसने एक भव्य महाकक्ष का विवरण दिया है जो स्पष्टतया वह कक्ष है जिसमें मुमताज और शाहजहां की बनावटी कब्रें हैं। बाबर आगे कहता है कि इसके मध्य में एक गुम्बद है। हमें विदित है कि केन्द्रीय बनावटी मकबरों वाले कक्ष में गुम्बद है। यह मध्य में स्थित माना जाता है, क्योंकि यह चारों और से इस प्रकार कमरों से घिरा हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बाबर 10 मई 1526 से अपनी मृत्यु-पर्यन्त 26 दिसम्बर 1530 तक उस प्रासाद में रहा था, जो
वर्तमान में ताजमहल नाम से जाना जाता है। इसका अभिप्राय यह सिद्ध हुआ कि मुमताज(ताज की तथाकथित मलिका) की लगभग 1630 में मृत्यु से कम-से-कम 100 वर्ष पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण हमें उपलब्ध है। इस प्रकार के स्पष्ट उल्लेख के बावजूद भी ताजमहल से सम्बन्धित हमारे इतिहास और अन्य विवरण समस्त विश्व में बड़ी विनम्रता से दावा करते फिरते है कि दुखी शाहजहां ने एक खुले मैदान में अपनी पत्नी की मृत्यु पर उसके लिए ताजमहल नाम का एक मकबरा बनवाया।
बाबर द्वारा ताजमहल का उल्लेख करना ताजमहल के प्राचीन प्रासाद होने का चौथा स्पष्ट प्रमाण है। पहले तीन स्पष्ट प्रमाण थे- शहाजहां के दरबारी इतिहास-लेखो का यह निर्देश कि ताजमहल मानसिंह और जयसिंह का राजप्रासाद था, इसी के समान, मियां नूरुल हसन सिद्की की पुस्तक 'दि सिटी आफ ताज' के पृष्ठ 31 पर और 'ट्रेवल्स इन इंडिया' नाम पुस्तक के पृष्ठ 111 पर टैवर्नियर का वक्तव्य कि मकबरें से सम्बन्धित पूर्ण कार्य की अपेक्षा मचान बंधवाने का खर्च अधिक था, स्वीकारोक्ति है। उस वक्तव्य की विशेषता के विषय में हम पहले स्पष्ट कर चुके हैं।
बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित मुमताज महल का मकबरा
बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित मुमताज महल का मकबरा यहीं बच्चे को जन्म देते हुई थी मौत 
तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जो ताजमहल शाहजहां के प्रतितामह बाबर के अधिकार में था, किस प्रकार इस परिवार के अधिकार से निकलकर शहाजहां के समय में जयसिंह के अधिकार में आया? इसका स्पष्टीकरण यह है कि बाबर के पुत्र हुमायूं को अपने पिता बाबर की विजयों के लाभ से वंचित होकर उसे भारत छोड़कर भगोड़े की तरह भागना पड़ा था। वह पुनः भारत तो लौटा किन्तु अपनी दिल्ली विजय के 6 मास के भीतर ही परलोक सिधार गया। इसलिए बाबर की मृत्यु के तुरन्त बाद अनेक क्षेत्र, नगर और भवन हिन्दुओं के अधिकार में आ गए। इनमें फतेहपुर सीकरी, आगरा और ताजमहल थे। यह स्मरणीय है कि बाबर के पौत्र अकबर को पुनः स्वयं नए सिरे से सब कुछ करना पड़ा था। दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सीकरी का अधिकार प्राप्त करने से पूर्व अकबर को पानीपत में हिन्दू सेनापति हेमू के विरुद्ध निर्णायक युद्ध द्वारा विजय प्राप्त करनी पड़ी थी। उस समय आगरा का ताजमहल जयपुर के शासक-परिवार के अधिकार में चला गया जिसे कालान्तर में अकबर के हरम के लिए अपनी कन्या देने को बाध्य होना पड़ा था। जयपुर राज्य-परिवार का वंशज मानसिंह जो अकबर का समकालीन और उसका गुलाम था, उस समय ताजमहल का स्वामी था, और बादशाहनामा के अनुसार मानसिंह के पौत्र जयसिंह से मुमताज को दफनाने के बाद ताजमहल को हथियाया गया था।

विंसेंट स्मिथ हमें बताता है- " बाबर के संघर्षमय जीवन का उसके आगरा स्थित उद्यान-प्रासाद में शातिंमय अन्त हुआ।" पुनः यह एक ज्वलन्त प्रमाण है कि बाबर का अन्त ताजमहल में हुआ। आगरा में केवल ताजमहल ही एक ऐसा प्रासाद है, जिसमें सुरम्य उद्यान था। बादशाहनामा इसका उल्लेख 'सब्ज जमीनी' के रूप में करता है जिसका अभिप्राय होता है हरा-भरा, विस्तीर्ण वैभवशाली, रसीला, प्राचीरों से घिरा उद्यान।
मुमताज़ की क़ब्र भी बुरहानपुर
मुमताज़ की क़ब्र भी बुरहानपुर
बाबर भारत में नवागुन्तुक होने के कारण अपनी पश्चिम एशिया स्थित मातृभूमि के प्रति अनुरक्त था, इसलिए उसने इच्छा व्यक्त की थीं कि उसको काबुल के समीप दफनाया जाय। तदनुसार उसका शव वहां ले जाया गया। यदि उसकी ऐसी इच्छा न होती तो सम्भव है मुगलों की भारत में अपहरणकारी प्रवृत्ति के अनुसार ताजमहल में ही, जहां उसकी मृत्यु हुई थी, उसे दफनाया जाता। यदि वह वहां दफनाया गया होता तो हमारा इतिहास ये बतलाता कि हुमायूं ने अपने पिता के प्रति महान् धार्मिक आदरभावना के वशीभूत उसके लिए ताजमहल जैसे अद्भुत मकबरे का निर्माण कराया।
यदि मुमताज की अपेक्षा शाहजहां की दूसरी पत्नी सरहन्दी बेगम, जो कि वर्तमान में ताजमहल के बाहरी भाग मे दफन है, वह 1630 में मरी होती तो तब कदाचित् यह कहा जाता कि हथियाए गए हिन्दू प्रासाद के गुम्बद वाले केन्द्रीय कक्ष में उसे दफनाया गया था। उस स्थिति में हमारा इतिहास मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति शाहजहां के प्रेम का कपोल-कल्पित वर्णन करता।
इस प्रकार ताजमहल एक बार सन् 1530 में बाबर का मकबरा बनने से बचा और फिर एक बार 100 वर्ष के बाद सरहन्दी बेगम के मकबरे के रूप में भी भावी पीढ़ी में प्रख्यात होने से बचा। यदि ऐसा हो गया होता तो हमारा इतिहास और पर्यटक-साहित्य हुमायूं के अपने पिता बाबर के प्रति अथवा शाहजहां का मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति अगाध प्रेम का कोई-न-कोई उपयुक्त स्पष्टीकरण रच ही लेता। ऐसी वे कपोल-कल्पानाएं हैं जो वर्तमान मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकें अपने काल्पनिक अनुमानों को प्रमाणित करने के लिए दुलकी चाल हैं। प्रथम मुगल बादशाह बाबर ताजमहल में रहा था और वहीं उसकी मृत्यु हुई। इसकी पुष्टि बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम द्वारा लिखित हुमायूंनामा, एनैट एसव्म् बेबेरिज द्वारा अंग्रेजी में अनूदित हुमायूं के इतिहास, से भी होती है।
गुलबदन बेगम के इतिहास के अनूदित संस्करण पृष्ठ 109 और 110 पर अंकित है कि (बाबर की) " मृत्यु सोमवार 26 दिसम्बर, 1530 को हुई। उन्होंने हमारी बाबुओं और माताओं का इस बहाने से वहां से बाहर भेज दिया कि चिकित्सक देखने के लिए आ रहे हैं सब उठ गए। वे सभी बेंगमों और मेरी माताओं को बड़े भवन में ले गए।" (पृष्ठ 109 पर अंकित टिप्पणी में 'ग्रेट-हाउस को प्रासाद के रूप में लिखा है।) "मृत्यु को गुप्त रखा गया। शुक्रवार 29 दिसंबर, 1530 को हुमायूं सिहासन पर बैठा" पृष्ठ 110 पर अंकित टिप्पणी कहती है- " बाबर का शव पहले वर्तमान ताजमहल से नदी के दूसरी और राम अथवा आराम बाग में रखा गया था। बाद में उसको काबुल ले जाया गया।"
उपरिलिखित उ़द्धरण से स्पष्ट है कि बाबर की मृत्यु ताजमहल में हुई थी। जब यह विदित हो गया कि उसकी मृत्यु हो गई तो हरम की औरतें जो अन्यत्र रहती थीं, प्रासाद अर्थात् ताजमहल में लाईं गयीं। बाद में हुमायूं को ताजमहल में मुकुट पहनाना था इसलिए बाबर का शव ताजमहल से उठाकर यमुना नदी के उस पार राम बाग अथवा आराम बाग नामक प्रासाद में ले जाया गया। इतिहासकारों और पुरातत्त्ववेत्ताओं की यह धारणा कि आगरा के राम बाग प्रासाद का बाबर की मृत्यु से कुछ-न-कुछ सम्बन्ध अवश्य है, उसका इस उद्धरण से स्पष्टीकरण होता है।
हिन्दल (बाबर का पुत्र और बादशाह हुमायूँ का भाई) के विवाह के भोज के सम्बन्ध में गुलबदन बेगम लिखती है-" रत्नजडि़त सिंहासन जिसे मेरी मलिका ने भोज के लिए दिया उसे भव्य भवन के सामने वाले चौक में रखा गया और एक स्वर्ण-जडि़त दीवान उसके सामने रखा गया (जिस पर) बादशाह सलामत और उनकी प्रियतमा साथ-साथ बैठ, भवन (रहस्यमय) के अष्टकोणीय कक्ष में एक रत्नजडि़त सिंहासन स्थापित था और इसके ऊपर तथा नीचे स्वर्ण-जडि़त झालरें और मोती की लडि़याँ लटक रही थीं।"
रहस्यमय भवन का अष्टकोषीय कक्ष स्पष्टतया ताजमहल का वह मध्यवर्ती कक्ष है जिसमें 100 वर्ष बाद शाहजहां ने मुमताज की कब्र बनवाई और 1666 में ओरंगजेब ने अपने पिता बादशाह शाहजहां को दफनाया। ताजमहल रहस्यमय भवन इसलिए कहलाता है क्योंकि इसका मूल शिव-मन्दिर जैसा प्रतीत होता है। वही भवन विशाल भवन भी कहलाता है, क्योकि यह भव्य राजकीय आवास था। 
सुप्रसिद्ध इतिहासविद् प्रो.पी. एन. ओक ने अपनी पुस्तक "ताजमहल मन्दिर भवन है" से जनजागरण हेतु प्रकाशित 
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बकुची - कुष्ठ रोग, दंत कृमि, श्वास, पीलिया एवं अर्श की रामबाण औषधि



बकुची (Psoralea corylifolia)
बकुची (Psoralea corylifolia) के छोटे-छोटे पादप, वर्षा ऋतु में समस्त भारत वर्ष में अपने आप उगते हैं तथा जगह-जगह इसकी खेती भी की जाती है। साधारणतया बाकुची के पौधे एक वर्षायु होते हैं, परन्तु उचित देखभाल करने से 4-5 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं। औषधि कर्म में इसके बीज और बीजों से प्राप्त तेल का व्यवहार किया जाता है। इस पर शीतकाल में पुष्प लगते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में पुष्प फलों में बदल जाते हैं।
Bakuchi for a perfect Skin
बाह्मस्वरूप - बाकुची के 1-4 फुट तक ऊंचे सीधे खडे़ कोमल पौधे होते हैं, परन्तु शाखाएं अपेक्षाकृत कड़ी और ग्रंथि बिन्दुकित होती हैं। पत्रा साधारण, सवृन्त, 1-3 लम्बी गोलाकार, प्रायः चिकनी दोनों पृष्ठों पर कृष्ण बिन्दुकित होती है। पुष्प नीली झाई लिये, हलके बैंगनी रंग के पत्राकोण से उद्भूत, मंजरियों पर 10-30 की संख्या में लगते हैं। फली छोटी-छोटी काले रंग की, लम्बी, गोल, चिकनी होती हैं तथा प्रत्येक फली में एक बीज, फली के ही आकार का कृष्ण वर्ण एवं बेल फल की भांति सुगन्धित होता है।
रासायनिक संघठन - बाकुची के बीजों में एक उड़नशील तेल, एक राल या रेबिन, एक स्थिर तेल तथा दो क्रिस्टलाइन सत्व सोरालेन पाये जाते हैं। फल के छिलके से सोरोलिडिन सत्व भी प्राप्त किया गया है। बाकुची के कुष्ठघ्न एवं कृमिघ्न कर्म इन्हीं दोनों तत्वों के कारण होते हैं।
विभिन्न रोगों में लाभ 
गुणधर्म - बाकुची मधुर, कड़वी, पाक में तिक्त, कटु रसायन, बिष्टम्भनाशक, शीतल, रुचिकारी, दस्तावर,रूखी, हृदय को हितकारी और कफ रक्तपित्त, श्वास, कोढ़, प्रमेह, ज्वर तथा कृमि को नष्ट करने वाली है। 1 फल पित्तवर्धक, केश तथा त्वचा को हितकारी, चरपरा, कुष्ठ, कफ वात, वमन, श्वास, खांसी शोथ, आम और पांडु रोग विनाशक है।
दंतकृमि - बाकुची की जड़ को पीसकर जरा सी मात्रा में भुनी हुई फिटकरी मिला लें, सुबह शाम इससे मंजन करने से दांत के कीड़े नष्ट हो जायेंगे।
श्वास - आधा ग्राम बीजों का चूर्ण अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है। कफ ढीला होकर निकल जाता है।
दस्त और पेचिश - बाकुची के पत्तों का साग सुबह शाम नियमित रूप से कुछ सप्ताह खिलाते रहने से बहुत लाभ होता है।
पीलिया - 10 मिलीलीटर पुनर्नवा के रस में आधा ग्राम पिसी हुई बाकुची के बीजों का चूर्ण मिलाकर सुबह शाम प्रतिदिन सेवन करने से लाभ होता है। ज्यादा बाकुची का सेवन वमन पैदा करता है।
अर्श - 2 ग्राम हरड़, 2 ग्राम सोंठ और 1 ग्राम बाकुची के बीज लेकर पीस लें, आधे चम्मच की मात्रा में गुड़ के साथ सुबह शाम सेवन करने से लाभ मिलेगा।
बांझपन - मासिक धर्म से शुद्ध होने के पश्चात बाकुची के बीजों को तेल में पीसकर योनि में रखने से गर्भधारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है।
गांठ -  बाकुची के बीजों को पीसकर गांठ पर बांधते रहने से गांठ बैठ जायेगी।

कुष्ठ रोग
  1. बाकुची के बीज चार भाग और तबकिया हरताल एक भाग, दोनों को चूर्ण कर गोमूत्रा में घोंटकर श्वेत दागों पर लगाने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं।
  2. बाकुची और पवाड़ समभाग लेकर सिरके में पीसकर सफेद दागों पर लगाने से दाग में लाभ होता है।
  3. बाकुची, गंधक व गुड्मार को बराबर की मात्रा में लेकर तीनों का चूर्ण कर लें तथा 12 ग्राम चूर्ण को रात्रि में जल में भिगो दें तथा प्रातःकाल निथरा हुआ जल सेवन कर लें तथा नीचे के तल में जमा पदार्थ श्वेत दागों पर लगाते रहने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  4. बाकुची तेल दो भाग, तुवरक तेल दो भाग, चंदन तेल एक भाग मिलाकर रख लें, इस तेल के लगाने से सामान्य त्वक् रोग तथा श्वेत कुष्ठ आदि रोग नष्ट होते हैं।
  5. शुद्ध बाकुची चूर्ण एक ग्राम की मात्रा में आंवले अथवा खैर त्वक के 100 मिलीग्राम क्वाथ के साथ सेवन करने से श्वित्र रोग नष्ट हो जाता है।
  6. बाकुची को तीन दिन तक दही में भिगोकर पिफर सुखाकर रख लें। इसका आतशी शीशी में तेल निकाल लें। इस तेल में नौसादर मिलाकर श्वेत दागों पर लेप करें।
  7. बाकुची, कलौंजी, धतूरे के बीज समभाग लेकर आक के पत्तों के रस में पीसकर श्वेत दागों पर लगाने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  8. बाकुची, इमली, सुहागा और अंजीर मूलत्वक् समभाग लेकर जल में पीसकर सफेद दागों पर लेप करने से श्वित्र रोग नष्ट हो जाता है।
  9. बाकुची, पवांड, गेरू समभाग लेकर कूट पीसकर अदरक के रस में खरल कर सफेद दागों पर लगाकर धूप सेंकने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  10. बाकुची, गेरू और गंधक समभाग लेकर, पीसकर अदरक के रस में खरल कर 10-10 ग्राम की टिकिया बनाकर एक टिकिया रात्रि को 30 मिली जल में डाल दें प्रातः ऊपर का स्वच्छ जल पी लें तथा नीचे की बची हुई औषधि को श्वेत दागों पर मालिश कर धूप सेंकने से श्वित्र (धवल) रोग नष्ट होता है।
  11. बाकुची, अजमोद, पवांड तथा कमल गट्टा समान भाग लेकर कूट पीस, मधु मिलाकर गोलियां बना लें। एक से दो गोली तक प्रातः सायं अंजीर मूल त्वक् क्वाथ के साथ सेवन करने से श्वेत कुष्ठ दूर होता है।
  12. शुद्ध बाकुची 1 ग्राम तथा काले तिल 3 ग्राम लेकर 2 चम्मच मधु मिला, प्रातः सायं सेवन करने से श्वित्र रोग नष्ट होता है।
  13. शुद्ध बाकुची, अंजीर की जड़ की छाल, नीम की छाल तथा पत्रा समभाग लेकर कूट पीसकर खैर छाल के क्वाथ में खरल करके रख लें। दो से पांच ग्राम तक की मात्रा जल के साथ सेवन करने से श्वेत कुष्ठ में लाभ होता है।
  14. बाकुची पांच ग्राम, केसर एक भाग लेकर दोनों को कूट पीसकर गोमूत्रा में खरल कर गोली बना लें। यह गोली जल में घिसकर लगाने से श्वित्र रोग में लाभप्रद है।
  15. बाकुची 100 ग्राम, गेरू 25 ग्राम, पवांड़ के बीज 50 ग्राम लेकर सबको कूट पीसकर वस्त्रा पूत चूर्ण कर भांगरे के रस की 3 भावनाएं देकर रख लें। प्रातः सायं गोमूत्रा में घिसकर लगाने से श्वित्र रोग में लाभ होगा।
  16. बाकुची चूर्ण को अदरक के रस में घिसकर लेप करने से श्वित्र रोग नष्ट होता है।
  17. बाकुची दो भाग, नीला थोथा तथा सुहागा एक एक भाग लेकर कपड़छान चूर्ण कर एक सप्ताह भांगरे के रस में घोंटकर रख लें। इसको नींबू स्वरस में मिला श्वित्र पर लगाने से श्वेत दाग नष्ट होते हैं। यह प्रयोग तीक्ष्ण है, अतः इसके प्रयोग के फलस्वरूप फाले होने पर यह प्रयोग बन्द कर देवें।
  18. शुद्ध बाकुची चूर्ण की एक ग्राम मात्रा, बहेड़े की छाल तथा जंगली अंजीर मूल छाल के क्वाथ में मिलाकर निरन्तर सेवन करते रहने से श्वित्र तथा घोर पुंडरीक में लाभ होता है।
  19. बाकुची हल्दी, अर्कमूलत्वक् समान भाग लेकर महीन चूर्ण कर कपड़छान कर लें। इस चूर्ण को गोमूत्रा या सिरका में पीसकर श्वित्र के दागों पर लगाने से श्वेत दाग नष्ट हो जाते हैं। यदि लेप उतारने पर जलन हो तो तुबरकादि तेल लगाएं।
  20. बाकुची एक किलोग्राम को जल में भिगोकर, छिलके रहित करके पीसकर 8 किलो गौदुग्ध तथा 16 लीटर जल में पाक करें। जल के जल जाने पर दूध मात्रा लेकर उसमें जामन लगाकर जमा दें। मक्खन निकालकर उसका घी बना लें। एक चम्मच घी की मात्रा मधु मिलाकर चाटने से श्वेत कुष्ठ में लाभ होता है।
  21. बाकुची तेल की 10 बूंदे बताशे में डालकर प्रतिदिन कुछ दिनों तक सेवन करने से श्वित्र रोग में लाभ होता है।
  22. बाकुची को गोमूत्र में भिगोकर रखें तथा तीन-तीन दिन बाद गोमूत्रा बदलते रहें, इस तरह कम से कम 7 बार करने के बाद उसको छाया मे सुखाकर पीसकर रखें। उसमें से 1-1 ग्राम सुबह शाम ताजे पानी से खाने से एक घंटा पहले सेवन करें, इससे श्वित्र (सफेद दाग) में निश्चित रूप से लाभ होता है, अनुभूत है।
  23. 1 ग्राम बाकुची और 3 ग्राम काले तिल को मिलाकर एक वर्ष तक दिन में दो बार सेवन करने से कुष्ठ रोग नष्ट होता है।
महत्वपूर्ण लेख
  1. बकुची - कुष्ठ रोग, दंत कृमि, श्वास, पीलिया एवं अर्श की रामबाण औषधि
  2. बढ़ते बच्चों का दैनिक आहार (The Daily Diet of Growing Children)
  3. उत्तम रोगनाशक रामबाण औषधि - रससिंदूर (Ras Sindoor)
  4. गुर्दे की पथरी का औषधीय चिकित्सा (Pharmacological Therapy of Kidney Stones)
  5. स्वप्नदोष रोकने का आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक इलाज
  6. हाथ और बाँह की सुन्दरता के लिए प्राकृतिक उपचार
  7. उच्च रक्तचाप के लिए घरेलू उपचार
  8. सतावर के प्रमुख औषधीय उपयोग
  9. रात्रि भोजन एवं शयन के मुख्य नियम
  10. मधुमेह नाशिनी जामुन के अन्य लाभ
  11. स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है बरगद, पीपल और गूलर
  12. जटिल समस्या के लिए अचूक औषधि है अलसी
  13. औषधीय गुणों से युक्त अदरक
  14. हिस्टीरिया (Hysteria) : कारण और निवारण
  15. जड़ी बूटी ब्राह्मी - एक औषधीय पौधा
  16. घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज


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बढ़ते बच्चों का दैनिक आहार (The Daily Diet of Growing Children)



सही खुराक व खेलकूद बच्चों की ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है। आजकल बच्चों को न तो संतुलित आहार ही मिल रहा है और न ही खेलने-कूदने का पर्याप्त समय ही, जिससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास किसी न किसी रूप में अवश्य ही प्रभावित होता है।
A Healthy Approach to Your Child's Diet...
बढ़ती उम्र में संतुलित भोजन की अधिक आवश्यकता होती है। क्योंकि लड़कों में 50 प्रतिशत मांसपेशियां व लड़कियों में इस उम्र में चर्बी जमा होती है। संतुलित आहार मोटापे, हाई ब्लडप्रेशर, दिल के रोग, शुगर, हड्डियों की कमजोरी, एनीमिया व विटामिन की कमी आदि से बचाता है।
भोजन की मात्रा कार्य के आधार पर होनी चाहिए। अगर थोड़ा काम करके पूरी खुराक या ज्यादा खुराक बच्चा लेगा तो वह मोटा हो जायेगा। अंदर जाने वाली कैलोरीज व कार्य के रूप में बाहर आने वाली कैलोरीज समान होनी चाहिए।
 Secrets of the benefits of the fruit on health
संतुलित भोजन में 50 प्रतिशत सलाद, सब्जियां व फल होने चाहिए। 25 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट जैसे रोटी, चावल, व 25 प्रतिशत प्रोटीन जैसे दाल, दूध, पनीर आदि होना चाहिए। भोजन में अधिक फाइबर होने चाहिए व सॉफ्ट ड्रिंक को भोजन में कोई जगह न दें।
पौष्टिक और संतुलित भोजन
  • कार्बोहाइड्रेट:- कार्बोहाइड्रेट भोजन में सबसे अधिक होता है व ऊर्जा के सर्वाधिक होता हैं  फल, सब्जियां, मक्का, गेहूं, चावल। बच्चों के भोजन में इन खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
  • वसा:- वसा एसैंशियल फैटी एसिड का खजाना होता है। अनसैच्युरेटिड फैट बच्चों को दें जैसे सरसों का तेल, मूंगफली का तेल, सोयाबीन का तेल आदि। सैच्युरेटिड़ फैट से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है।
  • प्रोटीन:- बढ़ते बच्चों को प्रोटीन प्रतिदिन देना चाहिए, जैसे दालें, फलियां, सोयाबीन, पनीर, दूध, दही आदि डेयरी प्रोडक्ट्स इसके प्रमुख होता हैं।
  • आयरन:- आयरन की कमी बढ़ती उम्र में एनीमिया की वजह बन सकती है। आयरन हरी पत्तेवाली सब्जियों, अनाज, फलियों, ड्राई प्रूफड्स आदि से प्राप्त होता है। इनका सेवन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में कराएं।
  • कैल्सियम:- हड्डियों की ग्रोथ बढ़ती उम्र में होती है। इस समय एक दिन में 1300 मिग्रा. कैल्सियम की आवश्यकता होती है, पर खाने में कैल्सियम की मात्रा इतनी नहीं होती है और कोल्ड ड्रिंक्स तथा कॉफ़ी ज्यादा पीने से कैल्सियम की और कमी हो जाती है। कैल्सियम दूध, पनीर, दही, केला व डेयरी उत्पाद से प्राप्त होता है।
  • जिंक:- जिंक बढ़ते बच्चों की ग्रोथ के लिए बहुत आवश्यक है। दालें, पनीर, दूध आदि से आसानी से इसे प्राप्त किया जा सकता है। बच्चों के भोजन में इन चींजों को शामिल करें।

नाश्ता जरूर दें:- नाश्ते का जीवन में सर्वाधिक महत्व है। यह दिमाग के लिए जरूरी है। नाश्ता करने से चुस्ती-पफुर्ती बनी रहती है और शरीर मोटा नहीं होता है। नाश्ता न करने से मोटापा घटने के बजाय और बढ़ जाता है। नाश्ता हल्का और पौष्टिक दें।
  • नाश्ते में पफास्ट फ़ूड को शामिल न करें। इनमें कैलोरीज अधिक होती हैं और फाइबर्स न के बराबर होते हैं। इन्हें खाने से मोटापा, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग और मधुमेह की बीमारी आदि हो सकती है। सॉफ्ट ड्रिंक्स से दांत खराब होते हैं और हड्डियां भी कमजोर होती हैं। इनमें मिले केमिकल अन्य रोग भी पैदा करते हैं।
  • फ्रूट्स चाट, अंकुरित दालों की चाट, ड्राई फ्रूट्स की चाट बनाकर बच्चों को नाश्ते में दे सकते हैं।
  • कम फैट व कम ऊर्जा वाली चीजें ही बच्चों को नाश्ते में दें।
  • बच्चों को टी. वी. अधिक देर तक न देखने दें क्योंकि वे बैठे-बैठे जंक फ़ूड खाते व कोल्ड ड्रिक्स पीते हैं। और ऊर्जा का व्यय नहीं हो पाता है। अगर टी. वी. देखना है तो खेलना-कूदना भी जरूरी है। प्रतिदिन 30 से 40 मिनट तक शारीरिक श्रम के रूप में बच्चों को खेलने-कूदने दें और पसीना आने दें। पसीना आना बहुत जरूरी है। इससे शरीर निरोग हो जाता है और बच्चों की नींद भी गहरी आती है और नींद अच्छी आने से बच्चों का पाचन संस्थान ही नहीं बल्कि शारीरिक व मानसिक विकास भी समुचित रूप से होता है। खुराक व श्रम के संतुलन से ही बढ़ती उम्र के बच्चे स्वस्थ रहते हैं।
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