प्रथमतः ताजमहल राज-प्रासाद होने के कारण स्मारक की भांति जन-सामान्य के लिए खुला नहीं था जैसा कि वह अब है और वह सतर्कता से आरक्षित था। वह केवल प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए आमन्त्रण पर ही अधिगम्य था, या फिर विजेता के लिए। इसलिए इन दिनों के विज्ञापन एवं संचार-व्यवस्था के युग के समान कोई उसके विषय में प्रसंगों की प्राप्ति की अपेक्षा नहीं कर सकता। दूसरा उत्तर यह है कि प्राचीन और मध्ययुगीन भारत में विस्मय विमुग्ध कर देने वाले आकर्षक भवन, प्रासाद और मन्दिर इतनी अधिक संख्या में थे कि मात्र वर्णन के आधार पर उन्हें एक-दूसरे से वरीयता नहीं दी जा सकती थी। वह सब जो हम तक पहुंचा अथवा किसी यात्री द्वारा उल्लेख किया गया वह यही है कि "वे अवर्णनीय रूप से सुन्दर है" या "आश्चर्यजनक, आकर्षक, भव्य है।"
मुस्लिम इतिहासों में एक स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है कि मुहम्मद गजनी कहता है कि मथुरा का भव्य कृष्ण मन्दिर तो 200 वर्षों में भी पूर्ण नही हो पाया होगा और विदिशा (वर्तमान भिलसा) का मन्दिर तो 300 वर्ष में पूरा हो पाया होगा। वे जो कहते हैं, कि हमें शाहजहां से पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का उल्लेख नहीं मिलता उनसे हम प्रतिप्रश्न करते हैं कि मुस्लिम आक्रामकों से पूर्व मथुरा और विदिशा के उन भव्य मन्दिरों का उल्लेख क्यों नहीं मिलता? इनका उत्तर सरल है। या तो पहले के विवरण उपलब्ध नहीं हैं या फिर किसी विवरण विशेष को इसलिए सुरक्षित रखने की चिन्ता नहीं की गई, क्योंकि भारत में ऐसे मन्दिरों की भरमार थी।
ताज महल की सच्चाई की कहानी |
बादशाह बाबर अपने संस्मरण भाग-2, पृष्ठ 192 पर हमें बताता है "गुरुवार (10 मई 1526) को मध्याह्नोत्तर मैंने आगरा में प्रवेश किया और सुलतान इब्राहीम के प्रासाद में निवास किया।" उसके बाद पृष्ठ 251 पर बाबर आगे लिखता है- "ईद के कुछ ही दिनों बाद हमने सुलतान इब्राहीम के प्रासाद में (11 जुलाई 1526) बड़े हाल में, जो कि पत्थर के श्रृंखलायुक्त स्तम्भों से सज्जित हैं, गुम्बद की नीचे विराट भोज का आयोजन किया।"
यहाँ स्मरणणीय है कि बाबर ने दिल्ली और आगरा पर, इब्राहीम लोदी को पानीपत में पराजित करने पर, अधिकार किया था इस प्रकार उसने उन हिन्दू प्रासादों पर अधिकार लिया जिन पर एक अन्य विदेश विजेता इब्राहीम लोदी अधिकार किए हुए था। इसलिए बाबर आगरा के उस प्रासाद को जिस पर उसने अधिकार किया था, इब्राहीम का प्रासाद कहता है।
उसका विवरण देते हुए बाबर कहता है कि राजप्रासाद पत्थरों का श्रृंख्लाबद्ध स्तम्भों से सज्जित है। यह ताजमहल के स्तम्भ-पीठ के कोनों पर स्थित चार सुन्दर श्वेत स्तम्भों की ओर स्पष्ट संकेत है। फिर उसने एक भव्य महाकक्ष का विवरण दिया है जो स्पष्टतया वह कक्ष है जिसमें मुमताज और शाहजहां की बनावटी कब्रें हैं। बाबर आगे कहता है कि इसके मध्य में एक गुम्बद है। हमें विदित है कि केन्द्रीय बनावटी मकबरों वाले कक्ष में गुम्बद है। यह मध्य में स्थित माना जाता है, क्योंकि यह चारों और से इस प्रकार कमरों से घिरा हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बाबर 10 मई 1526 से अपनी मृत्यु-पर्यन्त 26 दिसम्बर 1530 तक उस प्रासाद में रहा था, जो
वर्तमान में ताजमहल नाम से जाना जाता है। इसका अभिप्राय यह सिद्ध हुआ कि मुमताज(ताज की तथाकथित मलिका) की लगभग 1630 में मृत्यु से कम-से-कम 100 वर्ष पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण हमें उपलब्ध है। इस प्रकार के स्पष्ट उल्लेख के बावजूद भी ताजमहल से सम्बन्धित हमारे इतिहास और अन्य विवरण समस्त विश्व में बड़ी विनम्रता से दावा करते फिरते है कि दुखी शाहजहां ने एक खुले मैदान में अपनी पत्नी की मृत्यु पर उसके लिए ताजमहल नाम का एक मकबरा बनवाया।
वर्तमान में ताजमहल नाम से जाना जाता है। इसका अभिप्राय यह सिद्ध हुआ कि मुमताज(ताज की तथाकथित मलिका) की लगभग 1630 में मृत्यु से कम-से-कम 100 वर्ष पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण हमें उपलब्ध है। इस प्रकार के स्पष्ट उल्लेख के बावजूद भी ताजमहल से सम्बन्धित हमारे इतिहास और अन्य विवरण समस्त विश्व में बड़ी विनम्रता से दावा करते फिरते है कि दुखी शाहजहां ने एक खुले मैदान में अपनी पत्नी की मृत्यु पर उसके लिए ताजमहल नाम का एक मकबरा बनवाया।
बाबर द्वारा ताजमहल का उल्लेख करना ताजमहल के प्राचीन प्रासाद होने का चौथा स्पष्ट प्रमाण है। पहले तीन स्पष्ट प्रमाण थे- शहाजहां के दरबारी इतिहास-लेखो का यह निर्देश कि ताजमहल मानसिंह और जयसिंह का राजप्रासाद था, इसी के समान, मियां नूरुल हसन सिद्की की पुस्तक 'दि सिटी आफ ताज' के पृष्ठ 31 पर और 'ट्रेवल्स इन इंडिया' नाम पुस्तक के पृष्ठ 111 पर टैवर्नियर का वक्तव्य कि मकबरें से सम्बन्धित पूर्ण कार्य की अपेक्षा मचान बंधवाने का खर्च अधिक था, स्वीकारोक्ति है। उस वक्तव्य की विशेषता के विषय में हम पहले स्पष्ट कर चुके हैं।
बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित मुमताज महल का मकबरा यहीं बच्चे को जन्म देते हुई थी मौत |
विंसेंट स्मिथ हमें बताता है- " बाबर के संघर्षमय जीवन का उसके आगरा स्थित उद्यान-प्रासाद में शातिंमय अन्त हुआ।" पुनः यह एक ज्वलन्त प्रमाण है कि बाबर का अन्त ताजमहल में हुआ। आगरा में केवल ताजमहल ही एक ऐसा प्रासाद है, जिसमें सुरम्य उद्यान था। बादशाहनामा इसका उल्लेख 'सब्ज जमीनी' के रूप में करता है जिसका अभिप्राय होता है हरा-भरा, विस्तीर्ण वैभवशाली, रसीला, प्राचीरों से घिरा उद्यान।
मुमताज़ की क़ब्र भी बुरहानपुर |
बाबर भारत में नवागुन्तुक होने के कारण अपनी पश्चिम एशिया स्थित मातृभूमि के प्रति अनुरक्त था, इसलिए उसने इच्छा व्यक्त की थीं कि उसको काबुल के समीप दफनाया जाय। तदनुसार उसका शव वहां ले जाया गया। यदि उसकी ऐसी इच्छा न होती तो सम्भव है मुगलों की भारत में अपहरणकारी प्रवृत्ति के अनुसार ताजमहल में ही, जहां उसकी मृत्यु हुई थी, उसे दफनाया जाता। यदि वह वहां दफनाया गया होता तो हमारा इतिहास ये बतलाता कि हुमायूं ने अपने पिता के प्रति महान् धार्मिक आदरभावना के वशीभूत उसके लिए ताजमहल जैसे अद्भुत मकबरे का निर्माण कराया।
यदि मुमताज की अपेक्षा शाहजहां की दूसरी पत्नी सरहन्दी बेगम, जो कि वर्तमान में ताजमहल के बाहरी भाग मे दफन है, वह 1630 में मरी होती तो तब कदाचित् यह कहा जाता कि हथियाए गए हिन्दू प्रासाद के गुम्बद वाले केन्द्रीय कक्ष में उसे दफनाया गया था। उस स्थिति में हमारा इतिहास मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति शाहजहां के प्रेम का कपोल-कल्पित वर्णन करता।
इस प्रकार ताजमहल एक बार सन् 1530 में बाबर का मकबरा बनने से बचा और फिर एक बार 100 वर्ष के बाद सरहन्दी बेगम के मकबरे के रूप में भी भावी पीढ़ी में प्रख्यात होने से बचा। यदि ऐसा हो गया होता तो हमारा इतिहास और पर्यटक-साहित्य हुमायूं के अपने पिता बाबर के प्रति अथवा शाहजहां का मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति अगाध प्रेम का कोई-न-कोई उपयुक्त स्पष्टीकरण रच ही लेता। ऐसी वे कपोल-कल्पानाएं हैं जो वर्तमान मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकें अपने काल्पनिक अनुमानों को प्रमाणित करने के लिए दुलकी चाल हैं। प्रथम मुगल बादशाह बाबर ताजमहल में रहा था और वहीं उसकी मृत्यु हुई। इसकी पुष्टि बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम द्वारा लिखित हुमायूंनामा, एनैट एसव्म् बेबेरिज द्वारा अंग्रेजी में अनूदित हुमायूं के इतिहास, से भी होती है।
गुलबदन बेगम के इतिहास के अनूदित संस्करण पृष्ठ 109 और 110 पर अंकित है कि (बाबर की) " मृत्यु सोमवार 26 दिसम्बर, 1530 को हुई। उन्होंने हमारी बाबुओं और माताओं का इस बहाने से वहां से बाहर भेज दिया कि चिकित्सक देखने के लिए आ रहे हैं सब उठ गए। वे सभी बेंगमों और मेरी माताओं को बड़े भवन में ले गए।" (पृष्ठ 109 पर अंकित टिप्पणी में 'ग्रेट-हाउस को प्रासाद के रूप में लिखा है।) "मृत्यु को गुप्त रखा गया। शुक्रवार 29 दिसंबर, 1530 को हुमायूं सिहासन पर बैठा" पृष्ठ 110 पर अंकित टिप्पणी कहती है- " बाबर का शव पहले वर्तमान ताजमहल से नदी के दूसरी और राम अथवा आराम बाग में रखा गया था। बाद में उसको काबुल ले जाया गया।"
उपरिलिखित उ़द्धरण से स्पष्ट है कि बाबर की मृत्यु ताजमहल में हुई थी। जब यह विदित हो गया कि उसकी मृत्यु हो गई तो हरम की औरतें जो अन्यत्र रहती थीं, प्रासाद अर्थात् ताजमहल में लाईं गयीं। बाद में हुमायूं को ताजमहल में मुकुट पहनाना था इसलिए बाबर का शव ताजमहल से उठाकर यमुना नदी के उस पार राम बाग अथवा आराम बाग नामक प्रासाद में ले जाया गया। इतिहासकारों और पुरातत्त्ववेत्ताओं की यह धारणा कि आगरा के राम बाग प्रासाद का बाबर की मृत्यु से कुछ-न-कुछ सम्बन्ध अवश्य है, उसका इस उद्धरण से स्पष्टीकरण होता है।
हिन्दल (बाबर का पुत्र और बादशाह हुमायूँ का भाई) के विवाह के भोज के सम्बन्ध में गुलबदन बेगम लिखती है-" रत्नजडि़त सिंहासन जिसे मेरी मलिका ने भोज के लिए दिया उसे भव्य भवन के सामने वाले चौक में रखा गया और एक स्वर्ण-जडि़त दीवान उसके सामने रखा गया (जिस पर) बादशाह सलामत और उनकी प्रियतमा साथ-साथ बैठ, भवन (रहस्यमय) के अष्टकोणीय कक्ष में एक रत्नजडि़त सिंहासन स्थापित था और इसके ऊपर तथा नीचे स्वर्ण-जडि़त झालरें और मोती की लडि़याँ लटक रही थीं।"
रहस्यमय भवन का अष्टकोषीय कक्ष स्पष्टतया ताजमहल का वह मध्यवर्ती कक्ष है जिसमें 100 वर्ष बाद शाहजहां ने मुमताज की कब्र बनवाई और 1666 में ओरंगजेब ने अपने पिता बादशाह शाहजहां को दफनाया। ताजमहल रहस्यमय भवन इसलिए कहलाता है क्योंकि इसका मूल शिव-मन्दिर जैसा प्रतीत होता है। वही भवन विशाल भवन भी कहलाता है, क्योकि यह भव्य राजकीय आवास था।
अन्य महत्वपूर्ण लेखसुप्रसिद्ध इतिहासविद् प्रो.पी. एन. ओक ने अपनी पुस्तक "ताजमहल मन्दिर भवन है" से जनजागरण हेतु प्रकाशित
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