स्वाध्याय के लिए सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक विचारक एवं पुस्तकों



स्वाध्याय के लिए हमेशा सत्साहित्य का ही अध्ययन करना चाहिए। इसके लिए हमारे प्राचीन ऋषि – मुनियों का ग्रन्थ बहुत ही उपयोगी है किन्तु सभी संस्कृत में है तथा जिनका अनुवाद हुआ वह भी संस्कृत स्तर का ही है अतः उन्हें हर किसी के लिए समझ पाना थोड़ा कठिन होता है । फिर भी जो कोई भी इन ग्रंथो से स्वाध्याय करना चाहे कर सकता है । इनमें वेद, उपनिषद, गीता, योगवाशिष्ठ, रामायण आदि मुख्य है । जिन्हें इन्हें पढ़ने की सुविधा ना हो वह निम्नलिखित लेखकों के साहित्य का अध्ययन कर सकते है ।
 
  • महर्षि दयानंद – दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी टंकारा में सन् 1824 में मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और माँ का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए। इनकी पुस्तके आपको आर्य समाज की किसी भी वेबसाइट पर मुफ्त में डाउनलोड करने अथवा पढ़ने के लिए मिल जाएगी। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कई धार्मिक व सामाजिक पुस्तकें अपनी जीवन काल में लिखीं। प्रारम्भिक पुस्तकें संस्कृत में थीं, किन्तु समय के साथ उन्होंने कई पुस्तकों को आर्यभाषा (हिन्दी) में भी लिखा, क्योंकि आर्यभाषा की पहुँच संस्कृत से अधिक थी। हिन्दी को उन्होंने 'आर्यभाषा' का नाम दिया था। उत्तम लेखन के लिए आर्यभाषा का प्रयोग करने वाले स्वामी दयानन्द अग्रणी व प्रारम्भिक व्यक्ति थे। स्वामी दयानन्द सरस्वती की मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
    • सत्यार्थप्रकाश
    • ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
    • ऋग्वेद भाष्य
    • यजुर्वेद भाष्य
    • चतुर्वेदविषयसूची
    • संस्कारविधि
    • पञ्चमहायज्ञविधि
    • आर्याभिविनय
    • गोकरुणानिधि
    • आर्योद्देश्यरत्नमाला
    • भ्रान्तिनिवारण
    • अष्टाध्यायीभाष्य
    • वेदाङ्गप्रकाश
    • संस्कृतवाक्यप्रबोध
    • व्यवहारभानु
  • स्वामी विवेकानंद – स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।स्वामी विवेकानंद की बहुत सारी पुस्तके Internet archive पर उपलब्ध है । आप वहाँ से डाउनलोड कर सकते है।
  • स्वामी रामतीर्थ – स्वामी रामतीर्थ का जन्म सन् 1873 की दीपावली के दिन पंजाब के गुजरावालां जिले मुरारीवाला ग्राम में पण्डित हीरानन्द गोस्वामी के एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके बचपन का नाम तीर्थराम था। विद्यार्थी जीवन में इन्होंने अनेक कष्टों का सामना किया। भूख और आर्थिक बदहाली के बीच भी उन्होंने अपनी माध्यमिक और फिर उच्च शिक्षा पूरी की। पिता ने बाल्यावस्था में ही उनका विवाह भी कर दिया था। वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर चले गए। सन् 1891 में पंजाब विश्वविद्यालय की बी० ए० परीक्षा में प्रान्त भर में सर्वप्रथम आये। इसके लिए इन्हें 90 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति भी मिली। अपने अत्यंत प्रिय विषय गणित में सर्वोच्च अंकों से एम० ए० उत्तीर्ण कर वे उसी कालेज में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हो गए।[3] वे अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा निर्धन छात्रों के अध्ययन के लिये दे देते थे। इनका रहन-सहन बहुत ही साधारण था। लाहौर में ही उन्हें स्वामी विवेकानन्द के प्रवचन सुनने तथा सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला। उस समय वे पंजाब की सनातन धर्म सभा से जुड़े हुए थे।  तुलसी, सूर, नानक, आदि भारतीय सन्त; शम्स तबरेज, मौलाना रूसी आदि सूफी सन्त; गीता, उपनिषद्, षड्दर्शन, योगवासिष्ठ आदि के साथ ही पाश्चात्य विचारवादी और यथार्थवादी दर्शनशास्त्र, तथा इमर्सन, वाल्ट ह्विटमैन, थोरो, हक्सले, डार्विन आदि मनीषियों का साहित्य इन्होंने हृदयंगम किया था। इन्होंने अद्वैत वेदांत का अध्ययन और मनन प्रारम्भ किया और अद्वैतनिष्ठा बलवती होते ही उर्दू में एक मासिक-पत्र "अलिफ" निकाला। इसी बीच उन पर दो महात्माओं का विशेष प्रभाव पड़ा - द्वारकापीठ के तत्कालीन शंकराचार्य और स्वामी विवेकानन्द।वेदांत पर इनकी पुस्तके बहुत ही उपयोगी है । यह भी आप Internet archive से प्राप्त कर सकते है।
  • महर्षि अरविन्द – राष्ट्रीय आन्दोलन में लगे हुए विद्यार्थियों को शैक्षिक सुविधाएं प्रदान करने हेतु कलकत्ता में एक राष्ट्रीय महाविद्यालय स्थापित किया गया। श्री अरविन्द को 150 रु प्रति माह के वेतन पर इस कॉलेज का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया। इस अवसर का लाभ उठाते हुए श्री अरविन्द ने 'राष्ट्रीय शिक्षा' की संकल्पना का विकास किया तथा अपने शिक्षा-दर्शन की आधारशिला रखी। यही कॉलेज आगे चलकर जादवपुर विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। प्रधानाचार्य का कार्य करते हुए श्री अरविन्द अपने लेखन तथा भाषणों द्वारा देशवासियों को प्रेरणा देते हुए राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेते रहे। 1908 ई में राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण श्री अरविन्द गिरफ्तार हुए व जेल में रहे। उन पर मुकदमा चलाया गया तथा अदालत में दैवयोग से उनके मुकदमे की सुनवाई सैशन जज सी पी बीचक्राफ्ट ने की जो अरविन्द के ICS के सहपाठी रह चुके थे तथा अरविन्द की कुशाग्र बुद्धि से प्रभावित थे। अरविन्द के वकील चितरंजन दास ने जज बीचक्राफ्ट से कहा- "जब आप अरविन्द की बुद्धि से प्रभावित हैं तो यह कैसे संभव है कि अरविन्द किसी षडयन्त्र से भाग ले सकते हैं?" बीच क्राफ्ट ने अरविन्द को जेल से मुक्त कर दिया।महर्षि अरविन्द की पुस्तकों के संदर्भ में हम कुछ निश्चितता से कह नहीं सकते क्योंकि इनकी पुस्तके बहुत कम मिलती है । google search से आपको मिल जाएगी।
  • परमहंस योगानंद – परमहंस योगानन्द बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानन्द प्रथम भारतीय गुरु थे जिन्होने अपने जीवन के कार्य को पश्चिम में किया। योगानन्द ने 1920 में अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। संपूर्ण अमेरिका में उन्होंने अनेक यात्रायें की। उन्होंने अपना जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरन्तर विश्व व्यापी कार्य को दिशा देने में लगाया। उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति योगी कथामृत (An Autobiography of a Yogi) की लाखों प्रतिया बिकीं और सर्वदा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा रही हँ।इनकी पुस्तकें स्वाध्याय के लिए बहुत ही उपयोगी है । क्योंकि इनकी पुस्तकों में शास्त्रीय बातें कम और जीवन के अनुभव अधिक हुआ करते है ।
  • स्वामी शिवानन्द – स्वामी शिवानन्द सरस्वती वेदान्त के महान आचार्य और सनातन धर्म के विख्यात नेता थे। उनका जन्म तमिलनाडु में हुआ पर संन्यास के पश्चात उन्होंने जीवन ऋषिकेश में व्यतीत किया। स्वामी शिवानन्द का जन्म अप्यायार दीक्षित वंश में 8 सितम्वर 1887 को हुआ था। उन्होने बचपन में ही वेदान्त की अध्ययन और अभ्यास किया। इसके वाद उन्होने चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया। तत्पश्चात उन्होने मलाया में डाक्टर के रूप में लोगों की सेवा की। सन् 1924 में चिकित्सा सेवा का त्याग करने के पश्चात ऋषिकेष में बस गये और कठिन आध्यात्मिक साधना की। सन् 1932 में उन्होने शिवानन्दाश्रम और 1936 में दिव्य जीवन संघ की स्थापना की। अध्यात्म, दर्शन और योग पर उन्होने लगभग 300 पुस्तकों की रचना की। 14 जुलाई 1963 को वे महासमाधि लाभ किये।स्वामी शिवानन्द की सभी पुस्तके आप DSSV की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है ।
  • पंडित श्री राम शर्मा आचार्य – पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की पुस्तके सबसे अच्छी है क्योंकि इन्होने जीवन के हर पहलु पर ३००० से अधिक पुस्तके लिखी है । इनकी पुस्तकों का मुख्य उद्देश्य ही मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास और विचारों का परिवर्तन है । गायत्री परिवार की अखण्डज्योति पत्रिका १९४० से आज भी नवीन साधकों के लिए संजीवनी का कार्य कर रही है । पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की। उनने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।
    • पुस्तकें
      •     अध्यात्म एवं संस्कृति
      •     गायत्री और यज्ञ
      •     विचार क्रांति
      •     व्यक्ति निर्माण
      •     परिवार निर्माण
      •     समाज निर्माण
      •     युग निर्माण
      •     वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
      •     बाल निर्माण
      •     वेद पुराण एवम् दर्शन
      •     प्रेरणाप्रद कथा-गाथाएँ
      •     स्वास्थ्य और आयुर्वेद
    • आर्श वाङ्मय (समग्र साहित्य)
      •     भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व
      •     समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान
      •     गायत्री महाविद्या
      •     यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान
      •     युग परिवर्तन कब और कैसे
      •     स्वयं में देवत्व का जागरण
      •     समग्र स्वास्थ्य
      •     यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया
      •     ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
      •     निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र
      •     जीवेम शरदः शतम्
      •     विवाहोन्माद : समस्या और समाधान
    • क्रांतिधर्मी साहित्य
      •     शिक्षा ही नहीं विद्या भी
      •     भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
      •     संजीवनी विद्या का विस्तार
      •     आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
      •     जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
      •     नवयुग का मत्स्यावतार
      •     इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
      •     महिला जागृति अभियान
      •     इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १
      •     इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २
      •     सतयुग की वापसी
      •     परिवर्तन के महान् क्षण
      •     महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण
      •     प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
      •     नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
      •     समस्याएँ आज की समाधान कल के
      •     मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
      •     स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
      •     जीवन देवता की साधना-आराधना
      •     समयदान ही युग धर्म
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार


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अमर योद्धा नेताजी सुभाष चंद्र बोस - आजादी के प्रेरणास्त्रोत Subhash Chandra Bose Life Essay



23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जानकीनाथ बोस एवं प्रभावती के घर जन्मे सुभाष चंद्र बोस का जीवन अत्यंत संघर्ष पूर्ण, शौर्यपूर्ण और प्रेरणादायी है। बाल्यकाल से ही शोषितों के प्रति उनके मन में गहरी करुणा का भाव था। आठ साल की उम्र में वह स्वूफल के गेट पर खड़ी भिखारिन को रोजाना अपना आधा खाना खिला देते थे। गरीब, पीडि़त, शोषित जनता के लिए उनका दिल हमदर्दी से भरा था। क्रांतिकारियों के प्रति उनके मन में विशेष सम्मान था। विवेकानंद की शिक्षाओं का सुभाष पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अपने विशिष्ट व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों की वजह से सुभाष चन्द्र बोस भारत के इतिहास एक महत्वपूर्ण स्थान रखते है। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उस समय हुआ जब भारत में अहिंसा और असहयोग आन्दोलन अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थें। इन आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होनें भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। पेशे से बाल चिकित्सक डा. बोस ने नेताजी की राजनीतिक और वैचारिक विरासत के संरक्षण के उनके कोलकाता स्थित आवास में  नेताजी रिसर्च ब्यूरो की स्थापना की।
1939 में सुभाषचन्द्र बोस का अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में आगमन
1939 में सुभाष चन्द्र बोस का अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में आगमन
सुभाष के बड़े भाई शरत चंद्र बोस और भाभी विभावती ने उनके विचारों को नई दिशा दी। शुरू से ही वह बहुत मेधावी छात्रा रहे।उनके राजनीतिक जीवन को दिशा देने में ‘देशबंधु’ चितरंजन का अहम योगदान था। शुरुवात में तो नेताजी की देशसेवा करने की बहुत मंशा थी, पर अपने परिवार की वजह से उन्होंने विदेश जाना स्वीकार किया। पिता के आदेश का पालन करते हुए वे 15 सितम्बर 1919 को लंदन गए और वहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने लगे। वहां से उन्होंने आई.सी.एस. की परीक्षा में गुणवत्ता श्रेणी में चौथा स्थान हासिल किया। भारत को आजादी दिलाने में सुभाष चंद्र बोस के योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उस समय की राजसी ठाठ-बाट वाली आइसीएस की नौकरी को छोड़कर अपने देश को मुक्त कराने के लिए निकल पड़े। लोकतांत्रिक ढंग से कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुने गए सुभाष ने गांधीजी की हठधर्मिता को देखते हुए उनकी इच्छा के पालन के लिए पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चन्द्र बोस की सराहना हर तरफ हुई। देखते ही देखते वे एक युवा नेता बन गए। 3 मई 1939 को सुभाषचन्द्र बोस ने कलकता में फाॅरवर्ड ब्लाक अर्थात अग्रगामी दल की स्थापना की।सितम्बर,1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रांरभ हुआ। ब्रिटिश सरकार ने सुभाष के युद्ध विरोधी आन्दोलन से भयभीत होकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सन् 1940 में सुभाष को अंग्रेज सरकार ने उनके घर पर ही नजरबंद कर रखा था। नेताजी अदम्य साहस और सूजबूझ का परिचय देते हुए 17 जनवरी 1941 की सुबह वह अंग्रेजों की नजरबंदी तोड़कर कोलकाता के अपने घर से निकल गए। कोलकाता से दिल्ली, पेशावर होते हुए वह काबुल पहुंचे और वहां से जर्मनी। जर्मनी में उन्हें हिटलर ने पूरा सहयोग दिया। करीब दो दशक के राजनीतिक जीवन में से अगर जेल यात्राओं और देश निषकासन के 14 साल का समय निकाल दें तो उन्हें जनता के साथ मिलकर राजनीतिक कार्य करने के लिए करीब छह साल ही मिले। इतने कम समय में उन्होंने हिंदुस्तान के जनमानस को ऐसा आंदोलित किया, जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वह पनडुब्बी द्वारा जर्मनी से जापान के लिए रवाना हुए। साढ़े तीन माह की कठिन और खतरनाक यात्रा के बाद जून 1943 में जापान पहुंचकर उन्होंने वहां के प्रधानमंत्राी हिडेकी तोजो से मुलाकात की। तोजो सुभाष चंद्र बोस से अत्यंत प्रभावित हुए। सुभाष की सादगी, ओजस्विता, साहस और देश प्रेम की भावना ने जापानी प्रधानमंत्री पर अमिट छाप छोड़ी और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के सुभाष के मिशन में उन्हें भरपूर सहयोग दिया।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गान्धी के साथ हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में (सन् 1938) उन दोनों के बीच राजेन्द्र प्रसाद और नेताजी के वायें सरदार बल्लभ भाई पटेल भी दिख रहे हैं।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी के साथ हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में (सन् 1938) उन दोनों के बीच राजेन्द्र प्रसाद और नेताजी के बाएं सरदार वल्लभ भाई पटेल भी दिख रहे हैं।
महान देशभक्त रासबिहारी बोस के मार्गदर्शन में सुभाष ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर के वैफथे नामक हॉल में आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) का गठन किया। इस सरकार को जापान, इटली, जर्मनी, रूस, बर्मा, थाईलैंड, फिलीपींस, मलेशिया सहित नौ देशों ने मान्यता प्रदान की। आजाद हिंद सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री के पद की शपथ लेते हुए सुभाष ने कहा- मैं अपनी अंतिम सांस तक स्वतंत्रता यज्ञ को प्रज्वलित करता रहूंगा। नेताजी सुभाष के स्वतंत्रता संग्राम का सबसे अहम अध्याय है आजाद हिंद फौज का गठन करना और एक अविश्वसनीय युद्ध में जीत के मुहाने तक पहुंच जाना।
सुभाष का उनकी पत्नी के साथ दुर्लभ चित्र
सुभाष का उनकी पत्नी के साथ दुर्लभ चित्र
इस मुहिम में जापान ने उनकी हर तरह से सहायता की। विश्व इतिहास में आजाद हिंद फौज जैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता जहां 30-35 हजार युद्ध बंदियों को संगठित, प्रशिक्षित कर अंग्रेजों को पराजित किया। पूर्व एशिया और जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज का विस्तार करना शुरू किया। पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहां स्थानीय भारतीय लोगों से आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने का और आर्थिक मदद करने का आहृान किया। रंगून के 'जुबली हॉल' में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण सदैव के लिए इतिहास के पत्रों में अंकित हो गया जिसमें उन्होंने कहा था -"स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आज़ादी को आज अपने शीश फूल की तरह चढ़ा देने वाले पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है, जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सकें। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। खून भी एक दो बूँद नहीं इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमें में ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो दूँ ।" द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत के ब्रिटिश सामराज्य पर आक्रमण किया। आजाद हिंदी फ़ौज ने जबरदस्त पराक्रम दिखाते हुए ब्रिटिश सेना को हराकर उन्होंने इंफाल और कोहिमा में करीब 1500 वर्ग मील के इलाके पर कब्जा कर लिया था। इंग्लैंड ने इस युद्ध को इतिहास का सबसे कठिन युद्ध माना। विश्व युद्ध के अंतिम चरण में जापान की हार के साथ समीकरण बदल गए। ऐसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पीछे हटना पड़ा।
टोक्यो में सुभाष चंद्र बोस, 1943
टोक्यो में सुभाष चंद्र बोस, 1943
प्रख्यात विद्वान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने नेताजी के मृत्यु पर नया सनसनी खेज खुलासा किया है उनका का मानना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हत्या रूस में स्टालिन ने कराई थी और इसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का हाथ बताया और उनके पास इस संबध में दस्तावेज़ है जो नेताजी की जयंती पर वह मेरठ में सारे दस्तावेज और फाइलें सार्वजानिक करेगे। स्वामी का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नेताजी को वार क्रिमिनल घोषित कर दिया गया तो उन्होंने एक फर्जी सूचना फ्लैश कराई गई कि प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत हो गई। बाद में वे शरण लेने के लिए रूस पहुंचे, लेकिन वहां तानाशाह स्टालिन ने उन्हें कैद कर लिया। स्टालिन ने नेहरू को बताया कि नेताजी उनकी कैद में हैं क्या करें? इस पर उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को इसकी सूचना भेज दी। कहा कि आपका वार क्रिमिनल रूस में है। साथ ही उन्होंने स्टालिन को इस पर सहमति दे दी कि नेताजी की हत्या कर दी जाए। स्वामी ने दावा किया कि नेहरू के स्टेनो उन दिनों मेरठ निवासी श्याम लाल जैन थे। 26 अगस्त 1945 को आसिफ अली के घर बुलाकर नेहरू ने उनसे यह पत्र टाइप कराया था। श्याम लाल ने खोसला आयोग के सामने यह बात तो रखी पर उनके पास सबूत नहीं थे। स्वामी का मानना है कि इसी अहसान में नेहरू हमेशा रूस से दबे रहे और कभी कोई विरोध नहीं किया। कहा कि नेताजी की मौत के रहस्य से पर्दा उठेगा। सच सामने आएगा कि देश के गद्दार कौन थे?
वास्तव में नेता जी की मृत्यु के संबंध में जो विवाद बना हुआ है कि 18 अगस्त 1945 के बाद का सुभाषचन्द्र बोस का जीवन/मृत्यु आज तक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है। 23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदेई, पायलट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गंभीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अंतिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितंबर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोक्यो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयी। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेज के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हुई थी। सुभाष चंद्र बोस के अंतिम समय को लेकर रहस्य बना हुआ है। माना जाता है कि हवाई हादसे में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन सुभाष के बहुत से प्रशंसक इस थ्योरी में विश्वास नहीं रखते है।

कोलकाता स्थित नेताजी भवन में रखी कार जिसमें बैठकर सुभाष चन्द्र बोस घर से फरार हुए
कोलकाता स्थित नेताजी भवन में रखी कार जिसमें बैठकर सुभाष चन्द्र बोस घर से फरार हुए

सुभाष चन्द्र बोस के अनमोल वचन
  • तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा!
  • दिल्ली चलो।
  • याद रखिये सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
  • याद रखें सबसे बड़ा अपराध अन्याय और गलत के साथ समझौता करना है।
  • प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिन्दी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।
  • राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम् , शिवम्, सुन्दरम् से प्रेरित है।
  • याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
  • इतिहास में कभी भी विचार-विमर्श से कोई वास्तविक परिवर्तन हासिल नहीं हुआ है। 
 चित्रों में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
सुभाष का उन दिनों का चित्र जब वे सन् 1920 में इंग्लैण्ड आईसीएस करने गये हुए थे
सुभाष का उन दिनों का चित्र जब वे सन् 1920 में इंग्लैण्ड आईसीएस करने गये हुए थे
सुभाष के पिता जानकीनाथ बोस का सन् 1905 का चित्र विकिमीडिया कॉमंस से
सुभाष के पिता जानकीनाथ बोस का सन् 1905 का चित्र विकिमीडिया कॉमंस से
सुभाषचन्द्र बोस का पोर्टेट उनके हस्ताक्षर सहित
सुभाष चन्द्र बोस का पोर्टेट उनके हस्ताक्षर सहित
कटक में सुभाष चन्द्र बोस का जन्मस्थान अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है।
कटक में सुभाष चन्द्र बोस का जन्म स्थान अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है।
जापान के टोकियो शहर में रैंकोजी मन्दिर के बाहर लगी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा
जापान के टोक्यो शहर में रैंकोजी मन्दिर के बाहर लगी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा

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बुद्धिवर्धक देसी जड़ी बूटी शंखपुष्पी Homegrown Herbs Shankpushpi



आयुर्वेद में वर्णित महत्वपूर्ण औषधि शंखपुष्पी

आयुर्वेद में हर तरह के रोगों व विकारों का रामबाण इलाज यथासंभव है यह ऐलोपैथिक डॉक्टरों ने भी माना है। आयुर्वेद में वर्णित महत्वपूर्ण औषधि शंखपुष्पी (वानस्पतिक नाम :Convolvulus pluricaulis) स्मरणशक्ति को बढ़ाकर मानसिक रोगों व मानसिक दौर्बल्यता को नष्ट करती है। इसके फूलों की आकृति शंख की भांति होने के कारण इसे शंखपुष्पी कहा गया है। इसे लैटिन में प्लेडेरा डेकूसेटा के नाम से जाना जाता है। शंखपुष्पी को स्मृति सुधा भी कहते हैं यह एक तरह की घास होती है जो गर्मियों में अधिक फैलती है। शंखपुष्पी का पौधा हिन्दुस्तान के जंगलों में पथरीली जमीन पर पाया जाता है। शंखपुष्पी का पौधा लगभग 1 फुट ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 4 सेंटीमीटर लम्बी, 3 शिराओं वाली होती है, जिसको मलने पर मूली के पत्तों जैसी गंध निकलती है। शंखपुष्पी की शाखाएं और तना पतली, सफेद रोमों से युक्त होती है। पुष्प भेद से शंखपुष्पी की 3 जातियां लाल, सफेद और नीले रंग के फूलों वाली पाई जाती है। लेकिन सफेद फूल वाली शंखपुष्पी ही औषधि प्रयोग के लिए उत्तम मानी जाती है। इसमें कनेर के फूलों से मिलती-जुलती खुशबू वाले 1-2 फूल सफेद या हल्के गुलाबी रंग के लगते हैं। फल छोटे, गोल, चिकने, चमकदार भूरे रंग के लगते हैं, जिनमें भूरे या काले रंग के बीज निकलते हैं। जड़ उंगली जैसी मोटी, चौड़ी और संकरी लगभग 1 इंच होती है। शंखपुष्पी को संस्कृत में क्षीरपुष्पी, मांगल्य कुसुमा, शंखपुष्पी, हिंदी में शंखाहुली, मराठी में शंखावड़ी, बंगाली में डाकुनी या शंखाहुली गुजराती में शंखावली और लैटिन में प्लेडेरा डेकूसेटा कहते है।
गुण : यह एक तरह की घास होती है जो गर्मियों में अधिक फैलती है। शंखपुष्पी की जड़ को अच्छी तरह से धोकर, पत्ते, डंठल, फूल, सबको पीसकर, पानी में घोलकर, मिश्री मिलाकर, छानकर पीने से दिमाग में ताज़गी और स्फूर्ति आती है। शंखपुष्पी का पौधा हिन्दुस्तान के जंगलों में पथरीली जमीन पर पाया जाता है। शंखपुष्पी का पौधा लगभग 1 फुट ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 4 सेंटीमीटर लम्बी, 3 शिराओं वाली होती है, जिसको मलने पर मूली के पत्तों जैसी गंध निकलती है। शंखपुष्पी की शाखाएं और तना पतली, सफेद रोमों से युक्त होती है। पुष्पभेद से शंखपुष्पी की 3 जातियां लाल, सफेद और नीले रंग के फूलों वाली पाई जाती है। लेकिन सफेद फूल वाली शंखपुष्पी ही औषधि प्रयोग के लिए उत्तम मानी जाती है। गुण : आयुर्वेद के अनुसार : शंखपुष्पी तीखी रसवाली, चिकनी, विपाक में मीठी, स्वभाव में ठंडी, वात, पित और कफ को नाश करती है, यह चेहरे की चमक, बुद्धि, शक्तिवर्धक, याददाश्त को शक्ति बढ़ाने वाली, तेजवर्द्धक, मस्तिष्क के दोष खत्म करने वाली होती है। यह हिस्टीरिया, नींद नही आना, याददाश्त की कमी, पागलपन, मिर्गी, दस्तावर, पेट के कीड़े को खत्म करता है। शंखपुष्पी कुष्ठ रोग, विषहर, मानसिक रोग, शुक्रमेह, हाई बल्डप्रेशर, बिस्तर पर पेशाब करने की आदत में गुणकारी है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में- शंखपुष्पी का रस बलवान होता है। नाड़ियों को ताकत देने, याददाश्त बढ़ाने, मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ाने, पागलपन, मिर्गी, शंका और नींद दूर करने की यह एक अच्छी औषधि है।
आयुर्वेद के अनुसार : शंखपुष्पी तीखी रसवाली, चिकनी, विपाक में मीठी, स्वभाव में ठंडी, वात, पित और कफ को नाश करती है, यह चेहरे की चमक, बुद्धि, शक्तिवर्धक, याददाश्त को शक्ति बढ़ाने वाली, तेजवर्द्धक, मस्तिष्क के दोष खत्म करने वाली होती है। यह हिस्टीरिया , नींद नही आना ,याददाश्त की कमी, पागलपन, मिर्गी , दस्तावर, पेट के कीड़े को खत्म करता है। शंखपुष्पी कुष्ठ रोग , विषहर, मानसिक रोग , शुक्रमेह, हाई बल्डप्रेशर , बिस्तर पर पेशाब करने की आदत में गुणकारी है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति में- शंखपुष्पी का रस बलवान माना गया है। यह नाड़ियों को ताकत देने, याददाश्त बढ़ाने, मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ाने, पागलपन, मिर्गी, शंका और नींद दूर करने की यह एक अच्छी औषधि है।
वैज्ञानिकों के अनुसार : शंखपुष्पी की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसका सक्रिय तत्व एक स्फटिकीय एल्केलाइड शंखपुष्पी होता है। इसके अतिरिक्त इसमें एक एशेंसियल ऑइल भी पाया जाता है। दिमागी शक्ति को बढ़ाने वाले उत्तम रसायनों में शंखपुष्पी को उत्तम माना जाता है। दिमागी काम करने वालों के लिए यह एक उत्तम टॉनिक है। मानसिक उत्तेजनाओं, तनावों को शांत करने में यह मददगार साबित हुई है।
शुद्धता की पहचान करना - श्वेत, रक्त एवं नील तीनों प्रकार के पौधों की ही मिलावट होती है । शंखपुष्पी नाम से श्वेत, पुष्प ही ग्रहण किए जाने चाहिए । नील पुष्पी नामक (कन्वांल्व्यूलस एल्सिनाइड्स) क्षुपों को भी शंखपुष्पी नाम से ग्रहण किया जाता है जो कि त्रुटिपूर्ण है । इसके क्षुप छोटे क्रीपिंग होते हैं । मूल के ऊपर से 4 से 15 इंच लंबी अनेकों शाखाएँ निकली फैली रहती हैं । पुष्प नीले होते हैं तथा दो या तीन की संख्या में पुष्प दण्डों पर स्थित होते हैं । इसी प्रकार शंखाहुली, कालमेघ (कैसकोरा डेकुसेटा) से भी इसे अलग पहचाना जाना चाहिए । अक्सर पंसारियों के पास इसकी मिलावट वाली शंखपुष्पी बहुत मिलती है । फूल तो इसके भी सफेद होते हैं पर पौधे की ऊँचाई, फैलने का क्रम, पत्तियों की व्यवस्था अलग होती है । नीचे पत्तियां लंबी व ऊपर की छोटी होती हैं । गुण धर्म की दृष्टि से यह कुछ तो शंखपुष्पी से मिलती है पर सभी गुण इसमें नहीं होते । प्रभावी सामर्थ्य भी क्षीण अल्पकालीन होती है।
संग्रह तथा संरक्षण एवं कालावधि - छाया में सुखाएं गए पंचांग को मुखंबद डिब्बों में सूखे शीतल स्थानों में रखते हैं । यह सूखी औषधि चूर्ण रूप में या ताजे स्वरस कल्क के रूप में प्रयुक्त हो सकती है । यदि संभाल कर रखी जाए तो 1 साल तक खराब नहीं होती।

शंखपुष्पी से विभिन्न रोगों में उपचार
  • उच्च रक्तचाप : शंखपुष्पी के पंचांग का काढ़ा 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करते रहने से कुछ ही दिनों में उच्चरक्तचाप में लाभ मिलता है।
  • थायराइड-ग्रंथि के स्राव से उत्पन्न दुष्प्रभाव : शंखपुष्पी के पंचांग का चूर्ण बराबर मात्रा में मिश्री के साथ मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से धड़कन बढ़ने, कंपन, घबराहट, अनिंद्रा (नींद ना आना) में लाभ होगा।
  • गला बैठने पर : शंखपुष्पी के पत्तों को चबाकर उसका रस चूसने से बैठा हुआ गला ठीक होकर आवाज साफ निकलती है।
  • बवासीर : 1 चम्मच शंखपुष्पी का चूर्ण प्रतिदिन 3 बार पानी के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से बवासीर का रोग ठीक हो जाता है।
  • केशवर्द्धन हेतु : शंखपुष्पी को पकाकर तेल बनाकर प्रतिदिन बालों मे लगाने से बाल बढ़ जाते हैं।
  • हिस्टीरिया : 100 ग्राम शंखपुष्पी, 50 ग्राम वच और 50 ग्राम ब्राह्मी को मिलाकर पीस लें। इसे 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ रोज 3 बार कुछ हफ्ते तक लेने से हिस्टीरिया रोग में लाभ होता है।
  • कब्ज के लिए : 10 से 20 मिलीलीटर शंखपुष्पी के रस को लेने से शौच साफ आती हैं। प्रतिदिन सुबह और शाम को 3 से 6 ग्राम शंखपुष्पी की जड़ का सेवन करने से कब्ज (पेट की गैस) दूर हो जाती है।
  • कमज़ोरी : 10 से 20 मिलीलीटर शंखपुष्पी का रस सुबह-शाम सेवन करने से कमज़ोरी मिट जाती है।
  • पागलपन : ताजा शंखपुष्पी के 20 मिलीलीटर पंचांग का रस 4 चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पागलपन का रोग बहुत कम हो जाता है।
  • बुखार में बड़बड़ाना :शंखपुष्पी के पंचांग का चूर्ण और मिश्री को मिलाकर पीस लें। इसे 1-1 चम्मच की मात्रा में पानी से प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करने से तेज बुखार के कारण बिगड़ा मानसिक संतुलन ठीक हो जाता है।
  • बिस्तर में पेशाब करने की आदत : शहद में शंखपुष्पी के पंचांग का आधा चम्मच चूर्ण मिलाकर आधे कप दूध से सुबह-शाम प्रतिदिन 6 से 8 सप्ताह तक बच्चों को पिलाने से बच्चों की बिस्तर पर पेशाब करने की आदत छूट जाती है।
  • मिर्गी में :ताजा शंखपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ते) का रस 4 चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से कुछ महीनों में मिर्गी का रोग दूर हो जाता है।
  • शुक्रमेह में : आधा चम्मच काली मिर्च और शंखपुष्पी का पंचांग का 1 चम्मच चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ कुछ सप्ताह सेवन करने से शुक्रमेह का रोग खत्म हो जाता है।
  • स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए : 200 ग्राम शंखपुष्पी के पंचांग के चूर्ण में इतनी ही मात्रा में मिश्री और 30 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम प्रतिदिन 1 कप दूध के साथ सेवन करते रहने से स्मरण शक्ति (दिमागी ताकत) बढ़ जाती है।
शंखपुष्पी का शर्बत घर पर कैसे बनाए
  • सर्वप्रथम 250 ग्राम सुखी साबुत या पीसी हुई शंखपुष्पी ले और जिन्हें कब्ज हो वह 150 ग्राम शंखपुष्पी +100 ग्राम भृंगराज ले सकते है।
  • रात्रि में 1.5 लीटर (डेढ़ लीटर) पानी मे डाल दे और सुबह धीमी आग पर पकाए। यदि मिट्टी के बर्तन सुलभ हो तो उसमे पकाना अधिक गुणकारी है।
  • इसे इतना पकाए कि पानी 1/3 भाग रह जाए। बचे हुए पानी को साफ़ कपड़े से छान ले । ठंडा होने पर कपड़े मे दबा कर बाकी पानी निकाल ले और बचे हुए को किसी पेड़ के नीचे डाल दे। खाद का काम करेगा।
  • इसके बाद प्राप्त शंखपुष्पी के काढ़े मे 1 ग्राम सोडियम बेंजोएट (SODIUM BENZOATE ) मिला दे, यह केमिस्ट के पास मिलेगा।
  • अब इस काढ़े को रात भर रख दे ताकि मिट्टी जैसा अंश नीचे बैठ जाएगा और अगले दिन इसमे 1 किलो खांड या मिश्री व 10 ग्राम छोटी इलायची मिलाकर धीमी आग पर पकाए। जब मीठा घुल जाए तब इसे उतार ले। ठंडा होने पर काँच या प्लास्टिक कि बोतल मे भर ले। 2 चम्मच से 4 चम्मच दूध मे मिलाकर पियें या पिलाए।


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