इंडिया गेट प्रथम विश्वयुद्ध एवं अपफगानयुद्ध में मारे गए शहीद सैनिकों की स्मृति में बनाया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध में 70,000 भारतीय सैनिक तथा अपफगानिस्तान युद्ध में पश्चिमोत्तर सीमा पर भारतीय सैनिक शहीद हुए। इन्ही ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम इंडिया गेट की दीवार पर अंकित है। इंडिया गेट की स्थापना की नींव ड्यूक ऑफ कनॉट ने 1921 में रखी। यह स्मारक ल्यूटियन्स के द्वारा डिजायन किया गया जो दस वर्ष के बाद तत्कालीन वायस लार्ड इरविन के द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसी में स्वतंत्राता प्राप्ति के काफी बाद भारत सरकार ने ‘अमर जवान ज्योति’बनवाये जो दिन-रात जलता है। अमर जवान ज्योति दिसंबर 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के त्याग और बलिदान की याद दिलाता है। भारतीय सैनिकों के सम्मान में यह बनाया गया है।
इंडिया गेट का वास्तु प्रारूप में भी यूरोपीय और भारतीय कला का मिश्रण है। यह षटभुजीय आकार में है। यह भारतीय परिस्थिति में यूरोपीय मेमोरियल आर्क ‘‘आर्क डी ट्राइम्पफ’’ पेरिस की संरचना के अनुसार बना है। इंडिया गेट का स्मारक भरतपुर (राजस्थान) के लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। दोनों तरपफ पत्थर पर ‘इंडिया गेट’ खुदा हुआ है। 1914-1919 भी लिखा है। शिखर पर तेल डालने का स्थान है जो लाॅ को जलने के लिए ईंध्न उपलब्ध् करता है। पर अब गैस ईंध्न से यह चलता है। इंडिया गेट के चारों तरपफ विशाल हरा-भरा आकर्षक लॉन है जो इसकी सुंदरता को बढ़ाता है। यहां नौकायन की सुविध उपलब्ध् है। शाम होते ही इंडिया गेट आश्चर्यजनक रूप से प्रकाशित हो जाता है। झरने, प्रकाश के रंग के साथ मनोरम दृश्य प्रस्तु करते हैं जिससे पर्यटक आकर्षित होते हैं। इंडिया गेट राजपथ के अंतिम छोर पर अवस्थित है जो लोगों के लिए मनोरंजक पिकनिक स्थल है। यहां सालोभर पर्यटक और लोग आते हैं परंतु ग्रीष्म ऋतू में विशेष भीड़ रहती है। इंडिया गेट में प्रवेश और फोटोग्राफी निःशुल्क हैं तथा दर्शकों के लिए हमेशा दिन-रात खुला रहता है। नजदीकी मेट्रो स्टेशन - प्रगति मैदान है।
राष्ट्रपति भवन:- ब्रिटिश शासन के दौरान वाइसराय भारत में सत्ता का केंद्र था। एक ऐसी घुरी जिसके चारों और प्रशासनिक व्यवस्था घूमती थी। इसलिए नई दिल्ली को इस तरह बनाने का पैफसला किया कि इसे केंद्र मान कर शहर का नक्शा बनाया जाए। दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारक वाइसराय निवास, कनॉट प्लेस और इंडिया गेट राजपथ। इंडिया गेट पर एक हेक्सामेन बनाया गया जिस के चारों ओर उससे निकलने वाली सड़कों पर राजा महाराजा के निवास बनाने का विचार था अंग्रेज निर्माताओं का स्वपन था कि राज भवन को पहाड़ी के उफपर बनया जाए ताकि पूरे शहर में कहीं से भी देखा जा सके, परंतु जिस रूप में वायसराय हाउफस बना वह ल्यूटेन के लिए जीवन भर एक पीड़ा का कारण बना रहा यह। विजय चैक से भी दिखाई नहीं देती। नार्थ और साउथ ब्लाक कहीं ज्यादा भव्य रूप में दिखाई देते हैं। ल्यूटेन ने बहुत प्रयास किया हरर्बट बैंकर से विवाद भी हुआ और उसके सचिवालय बाद एक ऐसी बड़ी खाली जगह छोड़ने की व्यवस्था की गई जहां सरकारी समारोह आयोजित किए जा सके। आज हम इसे विजय चैक कहते हैं। उस समय इसे ग्रेट प्लेस कहते थे।
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