- अगर किसी देश को भ्रष्टाचार–मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये काम कर सकते हैं- पिता, माता और गुरु।
- अगर कोई आपके साथ बुरा करता है तो उसे दंड ज़रूर दें। कैसे? बदले में उसके साथ अच्छा व्यवहार करके उसे शर्मिंदा करें और फिर उसके द्वारा की गयी बुराई और खुद की अच्छाई दोनों को भूल जाएँ।
- अधिक संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है और धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है।
- अपने अंदर से अहंकार को निकाल कर स्वयं को हल्का करें, क्योंकि ऊँचा वही उठता है जो हल्का होता है।
- आदमी जन्म के साथ महान नहीं होता, वह संस्कारों की अग्नि में तपता है, तब महान बनता है, संस्कार जीवन की संपदा हैं। संस्कारों से ही हमारा जीवन सुंदर और संपन्न बनता है।
- एक मिनट में जिंदगी नहीं बदलती, पर एक मिनट सोच कर लिया हुआ फ़ैसला पूरी ज़िंदगी बदल देता है।
- कामयाब आदमी को खुशी भले ही ना मिले पर हमेशा खुश रहने वाले आदमी के कामयाबी कदम चूमती है।
- किसी काम का ना आना बुरी बात नहीं है, बल्कि सीखने की कोशिश ना करना बुरी बात है।
- किसी के अहित की भावना करना अपने अहित को निमंत्रण देना है।
- कुपथ्य का त्याग और पथ्य का सेवन करना तथा संयम से रहना— ये तीनों बातें दवाइयों से भी बढ़कर रोग दूर करने वाली हैं।
- कुसंगति में रहने की अपेक्षा अकेले रहना अधिक उत्तम है। अत्यधिक समझदार व्यक्ति पर भी कुसंग अपना प्रभाव दिखा ही देता है।
- केवल अपने सुख से सुखी होना और अपने दुःख से दुःखी होना- यह पशुता है तथा दूसरे के सुख से सुखी होना और दूसरे के दुःख से दुःखी होना- यह मनुष्यता है।
- केवल वही आलसी नहीं है, जो कुछ नहीं करता, वह भी आलसी है जो बेहतर कर सकता था, लेकिन उसने प्रयत्न नहीं किया।
- कैसा आश्चर्य है कि लोग बुरा करने से नहीं डरते, किंतु बुरा कहलाने से डरते हैं। झूठ बोलते हैं, किंतु झूठा कहलाना नहीं चाहते। बेईमानी करते हैं, किंतु बेईमान कहलाना नहीं चाहते। सारांश यह है कि बुरे काम से घृणा नही, किंतु बुरे नाम से घृणा है।
- कोई भी व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोक- हितकारिता के राजपथ पर पूरी निष्ठा के साथ चलता रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुँचा सकती।
- क्षणभर का समय है ही क्या, ऐसा सोचने वाला मनुष्य मूर्ख होता है और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है।
- ग़लती करने में कोई नुकसान नहीं है, परंतु अहंकारवश गलती न मानना पतन का कारण बन जाता है।
- जब आप जीवन में सफल होते हैं तो आपके अपनों को पता चलता है कि आप कौन हैं। जब आप जीवन में असफल होते हैं तो आपको पता चलता है कि आपके अपने कौन हैं।
- जब व्यक्ति आत्म-मंथन कर स्वयं अपनी गलतियां दूर करता है, तब उसकी सफलता में कोई संदेह नहीं रह जाता।
- जब हम क्रोध की अग्नि में जलते हैं तो इसका धुँआ हमारी ही आँखों में जाता है।
- जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं। पहले वे जो सोचते हैं, पर करते नहीं; दूसरे वे जो करते हैं, पर सोचते नहीं।
- जुनून आपसे वह करवाता है, जो आप कर नहीं सकते; हौसला आपसे वह करवाता है जो आप करना चाहते हैं, और अनुभव आपसे वह कराता है जो आपको करना चाहिए। इन तीन गुणों का मेल हो तो कार्य की कीर्ति दासों दिशाओं में गूँजती है।
- जैसे किसी कंपनी का काम अच्छा करने से उसका मालिक प्रसन्न हो जाता है, ऐसे ही संसार की सेवा करने से उसका मालिक (भगवान) प्रसन्न हो जाता है, इसलिए हमें यथासंभव परोपकार करते रहना चाहिए।किसी काम को करने के बाद पछताने से बेहतर है कि काम करने से पहले उसके अच्छे-बुरे के बारे में सोच लिया जाए।
- जैसे सूखी लकड़ियों के साथ मिली होने से गीली लकड़ी भी जल जाती है, उसी तरह पापियों के संपर्क में रहने से धर्मात्माओं को भी उनके समान दंड भोगना पड़ता है।
- जो अपनी शक्ति के अनुसार दूसरों का भला करता है, उसका भला भगवान अपनी शक्ति के अनुसार करते हैं।
- जो उपदेशों से कुछ नही सीखता, उसे तकलीफ़ों की आँधी से ही सीख मिलती है।
- जो क्रोध को क्षमा से दबा लेता है, वही श्रेष्ठ पुरुष है। जो क्रोध को रोक लेता है, निंदा सह लेता है और दूसरों के सताने पर भी दुखी नहीं होता, वही पुरुषार्थ का स्वामी होता है। एक मनुष्य सौ वर्ष तक यज्ञ करे और दूसरा क्रोध न करे तो क्रोध न करने वाला ही श्रेष्ठ कहलाता है।
- जो गीता अर्जुन को केवल एक बार सुनने को मिली, वही गीता हमें प्रतिदिन पढ़ने-सुनने को मिल रही है, यह भगवान की कितनी विलक्षण कृपा है, फिर भी हम उसके ज्ञान को अपने अंदर नही उतार पा रहे हैं।लोगों ने गीता को कंठ में रखा हुआ है, इसलिए इसकी दयनीय स्थिति बनी हुई है। इस स्थिति से उबरने के लिए गीता को कंठ से नीचे उतारना होगा, यानी उसे आचरण में लाना होगा, इससे हमारा जीवन आनन्द से भर जाएगा।
- ज्ञानी हमें सीख देता है कि हमें क्या करना चाहिए, जबकि अज्ञानी हमें सीख देता है कि हमें क्या नहीं करना चाहिए।
- तुम्हारे चरित्र को तुम्हारे अपने कर्मों के सिवाय और कोई कलंकित नहीं कर सकता।
- दूसरों का सहयोग कीजिए, परंतु इतना भी सहज मत हो जाइए कि दूसरा आपको गुलाम समझे।
- दूसरों के जो आचरण हमें पसंद नही, वैसा आचरण हमें दूसरों के साथ भी नही करना चाहिए।
- दूसरों को देखना हो तो उन्हे उन्हीं के दृष्टिकोण से और उन्हीं की परिस्थिति में पहुँच कर देखो, फिर उनकी गलतियां उतनी नही दिखाई देंगी।
- दो तरह से चीज़ें देखने से छोटी नजर आती हैं - एक दूर से और दूसरी गुरूर से।
- धन के रहते हुए तो मनुष्य संत बन सकता है, पर धन की लालसा रहते हुए मनुष्य संत नहीं बन सकता।
- धर्म परिवर्तन केवल धर्म का ही परिवर्तन नहीं, अपितु माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कारों और उनकी सीख का भी परिवर्तन है।
- धूर्त व्यक्ति सच्ची मानसिक शांति का आनंद कभी प्राप्त नही कर सकता। अपने छल-कपट से वह स्वयं ही उलझनों में फँसा रहता है।
- धैर्य एक ऐसा गुण है जो व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है, उसे आगे ले जाता है तथा उसे पूर्णता प्रदान करता है।
- नफरत बहुत सोच-समझकर करनी चाहिए, क्योंकि नफ़रत करते-करते एक दिन हम भी वही बन जाते हैं, जिससे नफ़रत कर रहे हैं।
- नेतृत्व उस व्यक्ति को मिलता है जो खड़ा होकर अपने विचार व्यक्त कर सके।
- पक्षपात ही सब अनर्थ का मूल है। यदि तुम किसी के प्रति दूसरे की तुलना में ज़्यादा प्रेम प्रदर्शित करोगे तो उससे कलह ही बढ़ेगा।
- प्रार्थना के लिए सौ बार हाथ जोड़ने के बजाय, दान देने के लिए एक बार हाथ खोलना अधिक महत्वपूर्ण है।
- बड़ों का अनुसरण करने की इच्छा हो तो धनवानों को नहीं, बल्कि सज्जनों और परोपकारियों को सामने रखना चाहिए।
- बुद्धिमान व्यक्ति को क्रोध ऐसे त्याग देना चाहिए, जैसे सांप अपनी केंचुली को त्याग देता है।
- बुराइयां जीवन में आए, उससे पहले उन्हें मिट्टी में मिला दो, अन्यथा वो तुम्हें मिट्टी में मिला देंगी।
- बोलना तो वह है जो सुनने वालों को वशीभूत कर दे और न सुनने वालों में भी सुनने की इच्छा उत्पन्न कर दे।अगर अपनी संतान से सुख चाहते हो तो अपने माता-पिता को सुख पहुँचाओ, उनकी सेवा करो।
- भगवान को हम जानें, ये ज्ञान है। भगवान हमें जानें, ये भक्ति है।
- मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे, उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है, किंतु स्वयं उसी निन्द्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र बनता है।
- माता-पिता और बड़ों का आशीर्वाद हमारे मानसिक व शारीरिक विकास के लिए ज़रूरी है। यदि हम अपने माता-पिता को खुश नही रख सके तो परमपिता परमेश्वर को कैसे प्रसन्न रख पाएँगे?
- मूर्खों की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की ग़लतियाँ अधिक मार्गदर्शक होती हैं।
- यदि आप सही हैं तो आपको गुस्सा होने की ज़रूरत नहीं और यदि आप ग़लत हैं तो आपको गुस्सा होने का कोई हक नहीं।
- यदि दरवाजा पश्चिम की ओर खुलता हो तो सूर्योदय दर्शन असंभव है। इसी प्रकार मनोवृत्ति नकारात्मक हो तो मन की प्रसन्नता असंभव है।
- यह बड़े आश्चर्य की बात है कि परमात्मा की दी हुई चीज तो अच्छी लगती है, पर परमात्मा अच्छे नही लगते।
- रिश्ते और रास्ते एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कभी रास्ते पे चलते-चलते रिश्ते बन जाते हैं और कभी रिश्ते निभाते-निभाते रास्ते बदल जाते हैं।
- वक्त और हालात दोनों इंसान की ज़िंदगी में कभी एक जैसे नहीं होते। वक्त इंसान की ज़िंदगी बदल देता है और हालात बदलने में वक्त नहीं लगता।
- वास्तव में वही पुरुष धन्य है और वही मानव कहलाने योग्य है, जो जहाँ है, जिस स्थिति में है, वहाँ उसी स्थिति में रहकर यथाशक्ति, यथायोग्य समाज के हित के लिए सोचते-बोलते और करते हैं।
- व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर उठता है। ऊँचे स्थान पर बैठ जाने से वो ऊँचा नहीं हो जाता है।
- शिष्टाचार शारीरिक सुंदरता के अभाव (कमी) को पूर्ण कर देता है। शिष्टाचार के अभाव में सौंदर्य का कोई मूल्य नही रहता।
- संतोष से बढ़कर अन्य कोई लाभ नहीं, जो मनुष्य इस विशेष सदगुण से संपन्न है वह त्रिलोकी में सबसे धनी व्यक्ति है।
- संसार की कामना से पशुता का और भगवान की कामना से मनुष्यता का आरंभ होता है।
- संसार की वस्तुएँ कुछ भी, कितनी भी, कैसी भी पाकर शांति का अनुभव नहीं हो सकता, क्योंकि सामान से सुविधाएं मिल सकती हैं, शांति नहीं। शांति तो सदविचारों से मिलती है।
- सच्चा मित्र वह है जो आप के अतीत को समझता हो, आप के भविष्य में विश्वास रखता हो, और आप जैसे है वैसे ही आप को स्वीकार करता हो।
- सबसे गुणी और सबसे मेहनती नही, बल्कि वह इंसान ज़्यादा प्रगति करता है, जो बदलाव को आसानी से स्वीकार कर लेता है।
- समय और समझ दोनों एक साथ खुशकिस्मत लोगों को ही मिलते हैं क्योंकि अक्सर समय पर समझ नही आती और समझ आने पर समय निकल जाता है।
- हम मन के हीन विचारों के कारण ही दीन बने रहते हैं। दरिद्रता से अधिक हमारे दरिद्रता पूर्ण विचार हैं जो एक कुत्सित वातावरण की रचना करते हैं।
- हम लोकप्रिय तो बनना चाहते हैं, पर लोकहित करना नही चाहते।
- हमारे देश में नैतिक चेतना जाग्रत करने की सख्त ज़रूरत है और इसे बचपन से बच्चों में संस्कारित करना होगा, तभी हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो सकता है।
- हर किसी को खुश रखने के चक्कर में इंसान को अपने कार्यों से समझौता नहीं करना चाहिए।
- हर व्यक्ति दुनिया को बदलने की सोचता है, लेकिन कोई भी व्यक्ति स्वयं को बदलने की नहीं सोचता।
- हिंसा और हथियारों से किसी को हराया तो जा सकता है, पर जीता नहीं जा सकता। जीतना तो हृदय परिवर्तन से ही संभव है, जो अहिंसा नामक दिव्य अमृत का कार्य है।
- हिन्दी की बात मत करो, हिन्दी में बात करो। तभी हम अपनी मातृभाषा को उसका सही स्थान दिला पाएंगे।
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