उल्टी के लक्षण, कारण, इलाज, दवा और उपचार



उल्टी आने के कई कारण हो सकते हैं। जब कभी हमारा शरीर किसी ऐसी चीज को ग्रहण कर लेता है जो संक्रमित हो, तो ऐसे में शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र उसे उल्टी के माध्यम से शरीर के बाहर भेज देता है। इसके अलावा भी ज्यादा खा लेने की वजह से, ज्यादा शराब पी लेने की वजह से, एसिडिटी या फिर माइग्रेन की वजह से उल्टी की समस्या होती है। गर्भवती महिलाओं को भी उल्टी की समस्या से काफी परेशान होना पड़ता है। इसके विभिन्न कारणों में स्टोमक के भीतर ब्लीडिंग होना, इन्फेक्शन, इरिटेशन, इन्टेस्टाइन में ब्लॉकेज, बॉडी केमिकल्स और मिनरल्स कम-ज्यादा होना, बॉडी में टॉक्सिसिटी होना भी शामिल हैं।

ultee ke lakshan, kaaran, ilaaj, dava aur upachaar
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  1. उल्टी के कारण कई तरह के हो सकते हैं जिनमें फूड-पॉइजनिंग, इन्फेक्शन, ब्रेन और सेंट्रल नर्वस सिस्टम में समस्या होना या कोई सिस्टमिक डिजीज होना शामिल हैं।
  2. कई बार उल्टी होने का कारण कोई दवाई का साइड इफ़ेक्ट,कैंसर कीमोथेरेपी में उपयोग में ली गई ड्रग्स या फिर रेडिएशन थेरेपी भी हो सकती हैं।
  3. कई बार अल्कोहल, बियर, वाइन और लिक्वर केमिकल-एसीटैल्डिहाइड में बदल जाते हैं,जिसके कारण अगली सुबह जी मिचलाना जैसी फीलिंग आती हैं जिसे हैंग-ओवर कहते हैं।
  4. कुछ बीमारियों में जी घबराना और उल्टी आना आम होता है। जबकि उस समय रोगी में गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल ट्रैक्ट या स्टमक का उल्टी के लिए कोई कारण नहीं होता जैसे निमोनिया,हार्ट अटैक और सेप्सिस।
  5. कुछ वाइरल इन्फेक्शन, सर में लगी चोट, गालब्लेडर डिजीज, एपेंडीसाईटीस, माइग्रेन, ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन इन्फेक्शन, हाइड्रोसिफेलस (ब्रेन में बहुत सा फ्लूइड जमा होना,सर्जरी में उपयोग आने वाले एनेस्थिशिया के साइड इफ़ेक्ट,स्टोमक प्रोब्लम जैसे ब्लॉकेज (पाइलोरिक ओबस्ट्रेकशन,वो स्थिति जिसके कारण बच्चों में फोर्सफुल थूक बाहर आता हैं) भी उल्टी के कारण हो सकते हैं।
  6. प्रेगनेंसी के दौरान जी मिचलाना और उल्टियां लगातार होती रहती हैं। सामान्यतः शुरुआती कुछ महीनों में मोर्निंग सिकनेस होती हैं लेकिन कई बार ये पूरे 9 महीने भी चल जाती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार उल्टी के प्रकार और कारण
 उल्टी आना कोई गंभीर समस्या नहीं है, बल्कि दिनचर्या, खानपान में बदलाव के कारण भी ऐसी समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन आयुर्वेद में उल्टी के इन 5 प्रकारों का वर्णन मिलता है।
  1. आगंतुज : इस तरह की उल्टी बदबू, गर्भावस्था, अरूचिकर भोजन, पेट में कीड़े या किसी स्थान विशेष पर जाने से हो सकती है। इस तरह की उल्टी को आगन्तुज छर्दि भी कहते हैं।
  2. कफज : कफ के कारण होने वाली उल्टी इस श्रेणी में आती है। इसमें उल्टी का रंग सफेद और प्रकार गाढ़ा होगा। इसका स्वाद मीठा होता है। मुंह में पानी भरना, शरीर का भारी होना, बार-बार नींद आना, जैसे लक्षण इस प्रकार की उल्टी में होना स्वाभाविक हैं।
  3. त्रिदोषज : त्रिदोषज उल्टी वह होती है जो वात, पित और कफ, तीनों कारणों के चलते होती है। यह गाढ़ी, नीले रंग की या खून की हो सकती है। स्वाद में नमकीन या खट्टी हो सकती है। इसके अलावा पेट में तेज दर्द, भूख में कमी, जलन, सांस लेने में परेशानी और बेहोशी भी इसके लक्षणों में शामिल है।
  4. पित्तज : पित्त की गर्मी के कारण होने वाली उल्टी पित्तज की श्रेणी में आती है। इस स्थिति में पीले, हरे रंग की उल्टी आती है और मुंह का स्वाद बेहद बुरा होती है। इसमें भोजन नली व गले में जलन हो सकती है। सिर घूमना, बेहोशी भी इसके लक्षणों में शामिल है।
  5. वातज : पेट में गैस से होने वाली उल्टी वातज की श्रेणी में आती है। इस तरह की उल्टी कम मात्रा में कड़वी, झाग वाली और पानी जैसी होती है। लेकिन कई बार इसके साथ सिर का दर्द, सीने में जलन, नाभि में जलन, खांसी और आवाज का खराब होना आदि समस्याएं भी होती हैं।
उल्टी रोकने के कुछ अन्य घरेलू इलाज
  1. खाने के तुरंत बाद ना सोयें।
  2. खाने के तुरंत बाद ब्रश ना करें, इससे वोमिट होने के सबसे ज्यादा चांस होते है।
  3. गुलुकोस, एलेक्ट्रोल जैसी चीज पीते रहें।
  4. जितना हो सके आराम करें।
  5. तेज सुगन्धित वाली जगह में ना बैठे, इससे जी और ज्यादा मचलाता है।
  6. बहुत हल्का एवं कम तेल मसाले वाला भोजन लें, एवं धीरे धीरे खाएं।
  7. वोमिट जैसा महसूस होने पर, एक एक घूँट पानी पीते रहें।
उल्टी रोकने के आयुर्वेदिक घरेलू इलाज
  1. अदरक पाचन-तन्त्र के लिए बहुत अच्छा होता हैं और उल्टियाँ रोकने के लिए प्राकृतिक रूप से एंटी-एमेटिक के जैसे काम करता हैं। एक चम्मच अदरक के रस और नीम्बू के रस को मिलाकर दिन में 2-4 बार लेने से उल्टियाँ होना और जी घबराना बंद हो जाता हैं। इसके अलावा अदरक के छोटे टुकड़े मुंह में रखने पर भी थोड़ी देर के लिए आराम मिलता हैं । शहद के साथ अदरक की चाय बनाकर भी ली जा सकती हैं।
  2. अदरक में पेट की हर समस्या से निपटने का इलाज होता है। इसके एक टुकड़े को कूचकर पानी में मिला लीजिए। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर इसका सेवन कीजिए। उल्टी से तुरंत लाभ मिलेगा।
  3. उल्टी आने की स्थिति में दो चार लौंग लेकर दांतों के नीचे दबा लें और इसका रस चूसते रहें। इसका स्वाद उल्टी को तुरंत रोकने में कारगर होता है। यह मुंह की तमाम समस्याओं का भी बेहतरीन निदान है। दांतों की सेंसिटिविटी के लिए लौंग अचूक औषधि है।
  4. उल्टी जैसा जी होने पर नींबू का एक टुकड़ा मुंह में रख लें। इससे उल्टी में काफी राहत मिलती है।
  5. एक चम्मच पुदीने की पत्ती का जूस,नींबू का रस और शहद मिलाकर दिन में 3 बार पीने से भी उल्टियां कम होने लगती हैं।
  6. एप्पल साइडर विनेगर भी बेचैनी को कम करता हैं,यह डीटॉक्सीफिकेशन भी करता हैं,इसमें एंटी-माइक्रोबियल गुण होने के कारण यह फूड-पॉइजनिंग भी सही करता हैं। एक चम्मच एप्पल साइडर विनेगर और एक चम्मच शहद को पानी में मिलाकर पीने से जी घबराना और उल्टी होना कम हो सकता हैं। उल्टी होने के कारण मुंह का खराब स्वाद और गंध भी इससे कम की जा सकती हैं। आधे कप पानी में 1 चम्मच विनेगर मिलाकर पीने से मुंह खराब स्वाद और गंध के कारण बार-बार उल्टियां नहीं होती।
  7. ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए आपको कुछ घरेलू उपाय जरूर आजमाने चाहिए। इससे आपको उल्टी की समस्या से तुरंत आराम मिलता है।
  8. कभी भी उल्टी आने पर पुदीने की चाय बनाकर पी लीजिए या फिर केवल उसकी पत्ती को चबाइए। उल्टी से तुरंत राहत मिल जाएगी।
  9. जामुन के पेड़ की छाल का पाउडर बना ले इसे 10 मिनट के लिए पानी में भिगोकर रखें,और अब इसमें 1 चम्मच शहद मिलाकर रोज 2-3 चम्मच इसे पीये। यह ब्लड शुगर को भी कम करता हैं इसलिए लोग इसे डाईबिटिज में भी पीते हैं।
  10. ताजा संतरे का जूस उल्टी में काफी लाभदायक ट्रीटमेंट है। इसके कई अन्य फायदे भी हैं। जैसे, यह शरीर में ब्लड प्रेशर के नियंत्रण के लिए भी बेहद लाभदायक है।
  11. दालचीनी भी जठर संबंधी समस्याओं को शांत करती हैं। इसे लेने से भी जी मिचलाना और उल्टी होने जैसे समस्याओं में कमी आती हैं। एक कप पानी में आधा चम्मच दालचीनी पाउडर डालकर उबालें और इस पानी को पिए,इसमें शहद भी मिला सकते हैं। हालांकि ये उपाय गर्भवती महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
  12. दिन में कई बार सैंफ चबाना उल्टी में बेहद फायदेमंद है। यह मुंह के स्वाद को बदलने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसे खाने के बाद उल्टी से काफी राहत मिलती है।
  13. नींबू और प्याज का रस भी मिलाकर पीने से उल्टियां कम हो सकती हैं।
  14. पुदीने की चाय भी पाचन तन्त्र को संतुलित रखती हैं। यदि ताज़ी पत्तियां उपलब्ध हो तो उन्हें चबाए लेकिन यदि ना हो तो एक चम्मच सुखी पुदीने की पत्तियों को गर्म पानी में डालकर इसके चाय बनाए।
  15. पेट की एसिडिटी शांत रखने के लिए तथा खाना हजम करने के लिए इलायची भी काफी कारगर उपाय है।
  16. मीठी तुलसी की पत्तियों की खुशबू भी उल्टी को कम करती हैं। इसका जूस बनाकर एक ग्लास गर्म पानी में 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से उल्टी होना और जी मिचलाना कम हो जाते हैं।
  17. यदि डॉक्टर की सलाह ले चुके हो या फिर उल्टी होने का कारण समझ आ चुका हो, तो कुछ घरेलू उपायों से भी लगातार होने वाली उल्टियों को रोका जा सकता हैं।
  18. लौंग भी गैस्ट्रिक इरिटेबिलिटी को कम करती हैं, लौंग की चाय बनाई जा सकती हैं या फिर तले हुए लौंग को शहद के साथ मिलाकर भी लिया जा सकता हैं।


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गुर्दे के पथरी के रामबाण घरेलू उपाय एवं उपचार



किडनी में पथरी होना एक आम समस्या हो गई है। हमारी जिन्दगी में किडनी स्टोन गलत खानपान का नतीजा है और लगातार इसके मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यूरिक एसिड, फास्फोरस, कैल्शियम और ऑक्जेलिक एसिड। यही सारे तत्व स्टोन बनाने के लिए उत्तरदायी होते हैं। कुछ पथरी रेत के दानों की तरह बहुत छोटे आकार के होते हैं तो कुछ मटर के दाने की तरह। इसके साथ ही बहुत अधिक मात्रा में विटामिन डी के सेवन से, डिहाइड्रेशन और अनियमित डाइट की वजह से भी किडनी में स्टोन हो जाता है। आमतौर पर पथरी मूत्र के जरिये शरीर के बाहर निकल जाती है, लेकिन जो पथरी बड़ी होती है वह बहुत ही परेशान करती है। किडनी में स्टोन हो जाने पर पेट में हर वक्त दर्द बना रहता है।
घर के बुजुर्गों के पास अक्सर हर दर्द का इलाज होता है और हम लोगो ने अपने घर में बड़े बुजुर्गों जैसे कि दादा-दादी या नाना-नानी को कहते सुना होगा कि सुबह खाली पेट 3-4 गिलास पानी पीने से पेट की सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं। ऐसे ही कितने घरेलू नुस्खे हमें दादी और अन्य लोगों से सुनने को मिले हैं। आज हम पेट और किडनी में पथरी के इलाज के लिए दादी मां के कुछ नुस्खे यानी ऐसे नुस्खे जानेंगे जिन्हें आप घर पर आजमा सकते हैं -
  1. 2-15 दाने बड़ी इलायची, एक चम्मच खरबूजे के बीज की गिरी और दो चम्मच मिश्री एक कप पानी में पीस-मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।
  2. अजवाइन किडनी के लिए टॉनिक के रूप में काम करता है। किडनी में स्टोन के गठन को रोकने के लिए अजवाइन का इस्तेमाल मसाले के रूप में या चाय में नियमित रूप से किया जा सकता है।
  3. अनार का रस किडनी स्टोन के खिलाफ बहुत ही असरदार और सरल घरेलू उपाय है। अनार के कई स्वास्थ्य लाभ के अलावा इसके बीज और रस में खट्टेपन और कसैले गुण के कारण इसे किडनी स्टोन के लिए प्राकृतिक उपाय के रूप में माना जाता है।
  4. आंवला भी पथरी में बहुत फायदा करता है। आंवला का चूर्ण मूली के साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।
  5. करेला बुहत कड़वा होता है और आमतौर पर लोग इसे कम पसंदकरते हैं, लेकिन किडनी स्टोन के मरीजों के लिए यह रामबाण की तरह है।करेले में मैग्नीशियम और फॉस्फोरस नामक तत्त्व होते हैं,जो पथरी को बनने से रोकते हैं। इसलिए किडनी स्टोन की समस्या पर होनेकरेले का सेवनकरना चाहिए।
  6. किडनी स्टोन को बाहर निकालने के लिए बथुआ का साग बहुत ही कारगर माना जाता है। इसके लिए आधा किलो बथुआ के साग को उबालकर छान लें। अब इसे पानी में जरा सी काली मिर्च, जीरा और हल्का सा सेंधा नमक मिलाकर दिन में चार बार पिए, किडनी स्टोन में फायदा होगा।
  7. किडनी स्टोन से छुटकारा दिलाने में अंगूर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अंगूर प्राकृतिक मूत्रवर्धक के रूप में कार्य करता है, क्योंकि इसमें पोटेशियम और पानी भरपूर मात्रा में होता है। अंगूर में अलबूमीन और सोडियम क्लोराइड बहुत ही कम मात्रा में होते हैं, जिनकी वजह से इन्हें किडनी स्टोन के उपचार के लिए अच्छा माना जाता है।
  8. जीरे और चीनी को समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच ठंडे पानी से रोज तीन बार लेने से लाभ होता है और पथरी निकल जाती है।
  9. जैतून के तेल के साथ नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से किडनी स्टोन में फायदा होता है। दर्द होने पर 60 मिलीलीटर नींबू के रस में उतनी ही मात्रा में आर्गेनिक जैतून का तेल मिलाकर सेवन करने से इसके दर्द से भी आराम मिलता है। नींबू का रस और जैतून का तेल पूरे स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है और यह आसानी से उपलब्ध भी हो जाता हैं।
  10. तीन हल्की कच्ची भिंड़ी को पतली-पतली लंबी-लंबी काट लें। कांच के बर्तन में दो लीटर पानी में कटी हुई भिंड़ी ड़ालकर रात भर के लिए रख दें। सुबह भिंड़ी को उसी पानी में निचोड़कर भिंड़ी को निकाल लें। ये सारा पानी दो घंटों के अंदर-अंदर पी लें। इससे किड़नी की पथरी से छुटकारा मिलता है।
  11. तुलसी की चाय पीने से किडनी स्टोन से निजात मिलता है। तुलसी का रस लेने से पथरी को पेशाब के रास्ते निकलने में मदद मिलती है। कम से कम एक महीना तुलसी के पत्तों के रस के साथ शहद लेने से किडनी स्टोन की समस्या से छुटकारा मिल सकता है। तुलसी के कुछ ताजे पत्ते रोजाना चबा भी सकते हैं, यह बहुत ही फायदेमंद है।
  12. नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है। पथरी होने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।
  13. पका हुआ जामुन पथरी से निजात दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।
  14. प्याज में स्टोन नाशक तत्त्व होते है इसका प्रयोगकर किडनी स्टोन से निजात पा सकते है। लगभग 70 ग्राम प्याज को पीसकर और उसका रस निकालकर पिए। सुबह खाली पेट प्याज के रस का नियमित सेवन करने से पथरी के छोटे-छोटे टुकड़ों में होकर निकल जाती है।
  15. मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ़ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पीजिए। पथरी निकल जाएगी।
  16. सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है। आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा।
  17. स्टोन की समस्या से निपटने के लिए केले का सेवनकरना चाहिए। इसमें विटामिन बी-6 होता है। विटामिन बी-6 ऑक्जेलेट क्रिस्टल को बनने से रोकता और तोड़ता है। इसके अलावा विटामिन बी-6,विटामिन बी के अन्य विटामिन के साथ सेवनकरना किडनी स्टोन के इलाज में काफी मददगार होता है। एक शोध के मुताबिक विटामिन बी की 100 से 150 मिलीग्राम दैनिक खुराक किडनी स्टोन के उपचार में बहुत फायदेमंद है।
डिस्क्लेमर: घरेलू इलाज के अलावा डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें और जरूरी इलाज शुरू करें।


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प्रयागराज के महत्वपूर्ण धर्मस्थल





प्रयाग का प्राचीन इतिहास
वैसे तो प्रयाग क्षेत्र वैदिक और पौराणिक काल में समादृत रहा है, लेकिन ऐतिहासिक काल में भी इसके महत्व की चर्चा अनेक इतिहासकारों ने की है। जैन धर्म की श्रमण परम्परा में तीर्थंकर आदिनाथ का अक्षयवट के नीचे कैवल्य प्राप्त करना और बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध का धर्म प्रचार हेतु यहां आना इस क्षेत्र की महत्ता का परिचायक है। प्रयाग के प्रतिष्ठानपुर (वर्तमान झूसी), वत्स देश (कौशाम्बी), अलर्कपुर (अरैल), प्राचीन राज्यों में रहे हैं। प्रतिष्ठानपुर की समकालीनता अयोध्या के सूर्यवंशी नरेश इक्ष्वाकु से मानी गयी है। कहा जाता है कि उस समय यहां के राजा इला थे। वत्स देश के महाराजा उदयन का वर्णन भी अनेक ग्रंथों में । सम्राट अशोक के शिलालेख स्तम्भ प्रयाग में आज भी सुरक्षित हैं। गुप्तकाल के बाद महाराजा हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रयाग की कीर्ति पताका पूरे विश्व में लहरायी थी। कहते हैं कि महाराजा हर्षवर्धन ने ही दो महाकुंभ पर्वों के बीच छठवें वर्ष पर कुंभ पर्व आयोजित कराने की परम्परा का सूत्रपात किया था। मध्यकालीन इतिहास में अकबर के दरबारी अबुल फजल ने आईने-अकबरी में लिखा है कि हिन्दू लोग प्रयाग को तीर्थराज कहते हैं, यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का संगम है।
प्रयाग और स्वतंत्रता संग्राम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयाग की अहम भूमिका रही है। उस समय के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में श्री मदन मोहन मालवीय, सर अयोध्या नाथ, सर सुंदर लाल, मोती लाल नेहरू आदि ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था धीरे धीरे इलाहाबाद स्वाधीनता आंदोलन का केंद्र बनता गया हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती यहीं से प्रकाशित हुई। अभ्युदय, स्वराज्य जैसे क्रान्तिकारी समाचार पत्र भी इसी धरती से प्रकाशित स्वाधीनता आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई। साहित्य, संस्कृति और कला के क्षेत्र में प्रयाग यानी इलाहाबाद का अद्वितीय योगदान है।

प्रयाग का नामकरण एवं माहात्म्य
हमारा देश भारत विश्व की आत्मा कहलाता है और प्रयाग भारत का प्राण कहा गया है। हमारे देश को जीवनदायी शक्तियाँ इसी धरती से मिलती रही हैं। जिस तरह से सनातन धर्म अनादि कहा जाता है, उसी प्रकार प्रयाग की भी महिमा का कोई आदि अंत नहीं है। अरण्य और नदी संस्कृति के बीच जन्म लेकर ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि के रूप में पंच तत्वों को पुष्पित-पल्लवित करने वाली प्रयाग की धरती देश को हमेशा ऊर्जा देती रही है।
प्रकृष्टं सर्वेभ्यः प्रयागमिति गीयते।
दृष्ट्वा प्रकृष्टयागेभ्यः पुष्टेभ्यो दक्षिणादिभिः।
प्रयागमिति तन्नाम कृतं हरिहरादिभिः ।
उत्कृष्ट यज्ञ और दान दक्षिणा आदि से सम्पन्न स्थल देखकर भगवान विष्णु एवं भगवान शंकर आदि देवताओं ने इसका नाम प्रयाग रख दिया। ऐसा उल्लेख कई पुराणों से मिलता है। तीर्थराज प्रयाग एक ऐसा पावन स्थल है, जिसकी महिमा हमारे सभी धर्मग्रंथों में वर्णित है। तीर्थराज प्रयाग को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदाता कहा गया है। यह सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है-यह वर्णन ब्रह्म पुराण में प्राप्त होता है :
प्रकृष्टत्वात्प्रयागोऽसौ प्राधान्यात् राजशब्दवान्।
अपने प्रकृष्टत्व अर्थात् उत्कृष्टता के कारण यह "प्रयाग" है और प्रधानता के कारण "राज" शब्द से युक्त है।

प्रयाग की महत्ता वेदों और पुराणों में सविस्तार बतायी गयी है। एक बार शेषनाग से ऋषियों ने भी यही प्रश्न किया था कि प्रयाग को तीर्थराज क्यों कहा जाता है, जिस पर शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक ऐसा अवसर आया कि सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की जाने लगी। उस समय भारत में समस्त तीर्थों को तुला के एक पलड़े पर रखा गया और प्रयाग को एक पलड़े पर, फिर भी प्रयाग का पलड़ा भारी पड़ गया। दूसरी बार सप्तपुरियों को एक पलड़े में रखा गया और प्रयाग को दूसरे पलड़े पर, वहाँ भी प्रयाग वाला पलड़ा भारी रहा। इस प्रकार प्रयाग की प्रधानता सिद्ध हुई और इसे तीर्थों का राजा कहा जाने लगा। इस पावन क्षेत्र में दान, पुण्य, तप कर्म, यज्ञादि के साथ साथ त्रिवेणी संगम का अतीव महत्व है। यह सम्पूर्ण विश्व का एकमात्र स्थान है, जहाँ पर तीन-तीन नदियाँ, अर्थात गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं और यहीं से अन्य नदियों का अस्तित्व समाप्त हो कर आगे एकमात्र नदी गंगा का महत्व शेष रहा जाता है। इस भूमि पर स्वयं ब्रह्मा जी ने यज्ञादि कार्य सम्पन्न किये। ऋषियों और देवताओं ने त्रिवेणी संगम कर अपने आपको धन्य समझा। मत्स्य पुराण के अनुसार धर्म राज युधिष्ठिर ने एक बार मार्कण्डेय जी से पूछा, ऋषिवर यह बतायें कि प्रयाग क्यों जाना चाहिए और वहां संगम स्नान का क्या फल है इस पर महर्षि मार्कण्डेय ने उन्हें बताया कि प्रयाग के प्रतिष्ठान से लेकर वासुकि के हृदयोपरि पर्यन्त कम्बल और अश्वतर दो भाग हैं और बहुमूलक नाग हैं। यही प्रजापति का क्षेत्र है, जो तीनों लोकों में विख्यात है। यहाँ पर स्नान करने वाले दिव्य लोक को प्राप्त करते हैं, और उनका पुनर्जन्म नहीं होता है। पद्मपुराण कहता है कि यह यज्ञ भूमि है देवताओं द्वारा सम्मानित इस भूमि में यदि थोड़ा भी दान किया जाता है तो उसका फल अनंत काल तक रहता है।
प्रयाग की श्रेष्ठता के संबंध यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चंद्रमा श्रेष्ठ होता है, उसी तरह तीर्थों में प्रयाग सर्वोत्तम तीर्थ है। ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी।
तीर्थानामुत्तमं तीर्थ प्रयागाख्यमनुत्तमम् ।। पद्म पुराण के ही अनुसार प्रयाग में, गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। इन नदियों के संगम में स्नान करने और गंगा जल पीने से मुक्ति मिलती है इसमें किंचित भी संदेह नहीं है। इसी तरह स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, वामन पुराण, बृहन्नारदीय पुराण, मनुस्मृति, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत, रघुवंश महाकाव्यम् आदि में भी प्रयाग की महत्ता का विस्तार से वर्णन किया गया है। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि श्री राम अपने वनवास काल में जब ऋषि भारद्वाज से मिलने गए तो वार्तालाप में ऋषिवर ने कहा हे राम गंगा, यमुना के संगम का जो स्थान है, वह बहुत ही पवित्र है, आप वहां भी रह सकते हैं। श्री रामचरितमानस में तीर्थराज प्रयाग की महत्ता का वर्णन बहुत ही रोचक तरीके से और विस्तार से किया गया है-
माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई।।
देव-दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।
पूजहिं माधव पद जल जाता। परसि अछैवट हरषहिं गाता।।
भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिवर मन भावन।।
तहां होइ मुनि रिसय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथ राजा।।
माघ के महीने में त्रिवेणी संगम स्नान का यह रोचक प्रसंग कुम्भ के समय साकार होता है। माघ में साधु संत प्रातःकाल संगम स्नान करके कथा कहते हुए ईश्वर के विविध स्वरूपों और तत्वों की विस्तार से चर्चा करते हैं।

माघ में संगम स्नान क्यों
Kumbh Sangam Prayagraj
Kumbh Sangam Prayagraj

तीर्थराज प्रयाग में माघ के महीने में विशेष रूप से कुंभ के अवसर पर गंगा, यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान का बहुत ही महत्व बताया गया है। अनेक पुराणों में इसके प्रमाण भी मिलते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार संगम स्नान का फल अश्वमेध यज्ञ के समान कहा गया है। अग्नि पुराण के अनुसार प्रयाग में प्रतिदिन स्नान का फल उतना ही है, जितना कि प्रतिदिन करोड़ों गायें दान करने से मिलता है। मत्स्यपुराण में कहा गया है कि दस हजार या उससे भी अधिक तीर्थों की यात्रा का जो पुण्य मिलता है, उतना ही माघ के महीने में संगम स्नान से मिलता है। पद्म पुराण में माघ मास में प्रयाग का दर्शन दुर्लभ कहा गया है और यदि यहां स्नान किया जाए तो वह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यहां पर मुंडन कराना भी श्रेष्ठ फलदायी कहा गया है। मत्स्य पुराण कहता है कि प्रयाग में मुंडन के पश्चात् संगम स्नान करना चाहिए। स्कंद पुराण के काशी खण्ड में भी प्रयाग में मुंडन की महत्ता बतायी गयी है। जैन धर्म मानने वाले यहाँ केशलुंचन को महत्वपूर्ण मानते हैं। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षयवट के नीचे केशलुंचन किया था।

प्रयागराज के अन्य महत्वपूर्ण धर्मस्थल
प्रयाग में द्वादश माधव और विष्णुपीठ
प्रयागराज के मुख्य देवता विष्णु कहे गये हैं। इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। प्रयाग क्षेत्र को स्थानीय स्तर पर माधव क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
1. श्री त्रिवेणी संगम आदिवट माधव
2. श्री असि माधव (नागवासुकि मन्दिर
3. श्री संकष्ट हर माधव (प्रतिष्ठान पुरी)
4. शंख माधव (छतनाग मुंशी बागीचा)
5. श्री आदिवेणी माधव (अरैल)
6. श्री चक्र माधव (अरैल)
7. श्री गदा माधव (छिवकी गाँव)
8. श्री पद्म माधव (बीकर देवरिया)
9. श्री मनोहर माधव (जानसेनगंज)
10. श्री बिन्दु माधव (द्रौपदी घाट)
11. श्री वेणी माधव (निराला मार्ग, दारागंज)
12. अनन्त माधव (ऑर्डिनेन्स डिपो फोर्ट)

प्रयागराज क्षेत्र में आठ नायकों का भी उल्लेख मिलता है -
त्रिवेणी माधवं सोमं भरद्वाजं च वासुकिम् ।
वन्देऽक्षयवट शेषं प्रयागं तीर्थनायकम् ।। 

शंकराचार्य मठ

विद्वता और तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती का नाम कौन नहीं जानता होगा? ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम को अपने तपोबल से जाग्रत करने वाले इन शंकराचार्य ने प्रयाग के महत्व को समझते हुए यहाँ एक मठ की स्थापना का संकल्प लिया। उन्होंने देखा कि अलोप शंकरी देवी के सामने एक शिव मंदिर है। स्वामी ब्रह्मानन्द जी को यह स्थान उपयुक्त लगा। यहाँ ज्योतिर्मठ का कार्यालय बनाया गया। स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनके शिष्य स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती ने इस मठ की गरिमा को बनाए रखा और उनके शिष्य शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती यहां निवास किया करते हैं।

शंकर विमान मण्डपम
Shankar Viman Mandapam - Prayagraj
Shankar Viman Mandapam - Prayagraj  
गंगा तट पर त्रिवेणी बांध में खंभे वाले मंदिर की चर्चा करते ही आदि शंकर विमान मण्डपम् की आकृति आँखों के सामने उभरने लगती है कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखर सरस्वती की देखरेख में निर्मित यह मंदिर प्रयाग की गरिमा को और उन्नत करता है। अभी तक अपने प्रकार का यह यहां अकेला मंदिर है। इसमें दक्षिण भारत के मंदिरों की शैली की सुंदर मूर्तियों के दर्शन होते है।

बड़े हनुमान जी
Bade Hanuman Ji Temple Prayagraj
Bade Hanuman Ji Temple Prayagraj

गंगा, यमुना तथा अदृश्य सरस्वती के पावन संगम तट पर, त्रिवेणी बांध के नीचे 'बड़े हनुमान जी का मंदिर स्थित है। इस मूर्ति के बारे में एक जनश्रुति है कि एक वणिक जो निःसंतान था, हनुमान जी की एक विशालकाय प्रतिमा बनवाकर नाव में लादकर ले जा रहा था। ऐसा कहा जाता है कि उस वैश्य की नाव इसी स्थान पर, जहाँ हनुमान जी का मंदिर स्थित है रूक गयी। रात्रि -स्वप्न में वैश्य को यह दिखाई दिया कि वह मूर्ति को इसी स्थान पर छोड़कर चला जाये । वणिक ऐसा करने के उपरान्त घर को लौट गया। इस प्रकार उस निःसन्तान वैश्य की मनोकामना पूर्ण हुई और इसी स्थान पर बाघम्बरी बाबा को हनुमान जी की मूर्ति का आभास हुआ। उन्हीं के संरक्षण में खुदाई से 'बड़े हनुमान जी की प्रतिमा मिली, उस स्थान से मूर्ति को उठाने का प्रयास किया गया, किन्तु मूर्ति उस स्थान से हिली भी नहीं। प्रयास असफल हो गया। अंततोगत्वा वहीं हनुमान जी के मंदिर का निर्माण कराया गया।

श्री तुलसीदास जी का बड़ा स्थान
तीर्थराज प्रयाग के परम पावन देवी स्थलों में 'श्री तुलसीदास जी का बड़ा स्थान' का अपना एक अलग ही महत्व है। यह स्थान वैष्णव सम्प्रदाय के उपासकों की पूजा स्थली है। प्रयाग के दारागंज मोहल्ले के दक्षिणी छोर पर स्थित यह स्थल पूरे देश में विख्यात है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना मानस-रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी के समकालीन श्री देव मुरारी जी ने की थी, जो स्वयं को सिद्ध महात्मा थे। उनके गुरु का नाम श्री तुलसीदास था। उन्हीं के नाम पर इस स्थल का नाम "श्री तुलसीदास का बड़ा स्थान" पड़ा।

रामानन्दाचार्य मठ
प्राचीन भारतीय संतों, आचार्यों की श्रृंखला में श्री शंकराचार्य, माधवाचार्य, रामानुजाचार्य तथा निम्बार्काचार्य का नाम उल्लेखनीय है। स्मरणीय है कि प्राचीन भारतीय आचार्यों की श्रृंखला में उत्तर भारत के सर्वप्रथम नेतृत्व का श्रेय श्री रामानंदाचार्य को जाता है। आप ने राम भक्ति धारा को पूरे देश में संचारित कर उत्तर भारत के गौरव को जीवित रखा। उत्तर भारत में रामभक्ति रसधारा को प्रवाहित करने वाले श्री रामानंद प्रयाग के प्रथम नागरिक थे, जिन्होंने सम्पूर्ण भारत को राममय बनाया। आचार्य रामानंद की स्मृति में श्री रामानंदाचार्य मठ का निर्माण हुआ। वर्तमान समय में त्रिवेणी बांध के दक्षिणी किनारे पर किले से सटा श्री रामानंदाचार्य मठ प्रयाग के गौरव में अभिवृद्धि कर रहा है।
जंगमबाड़ी मठ नगर के दारागंज मुहल्ले में जंगमबाड़ी मठ की शाखा स्थापित है। वीरशैव मतावलंबियों का यह स्थान दशाश्वमेध घाट के पास है। कहा जाता है कि वीरशैव मत के प्रतिपादक स्वयं भगवान शिव थे। वीरशैव मतावलंबियों की विशेषता यह है कि वे अपने शरीर में सदैव शिवलिंग धारण किये रहते हैं।

शिव और सिद्धेश्वर महादेव मंदिर
संगम के निकट दारागंज मुहल्ले में स्थित शिवमठ सुदूर प्रांत में रहने वाले एक तपस्वी के भक्ति भाव और संस्कृति प्रेम का परिणाम है। शिव मठ का निर्माण उन्होंने अपनी सारी संपत्ति लगाकर स्थापित किया। दक्षिण भारत के तिरुनेलवेली जिले के वाहकुलम गाँव निवासी श्री वेंगा शिवन जो, आज से लगभग 160 वर्ष पूर्व अपनी सारी संपत्ति शिव मंदिर को समर्पित करने हेतु प्रयाग आ गये और धार्मिक वातावरण देखकर यहीं बसने का संकल्प किया। संस्कृत के विद्वान श्री वेंगा शिवन ने दक्षिण भारतीय तीर्थयात्रियों के निवास के उद्देश्य से शिव मठ की स्थापना की।

नागवासुकि
प्रयाग के अत्यन्त प्राचीन और पौराणिक स्थलों में नागवासुकि का पुष्ट प्रमाण है। वर्तमान समय में नागवासुकि का मंदिर दारागंज (बक्शी) मोहल्ले में स्थित है, जहां नागवासुकी की प्राचीन मूर्ति है वासुकि मध्य में प्रतिष्ठित हैं। उनके दोनों ओर नाग-नागिन के चार जोड़े कामदशाओं में उत्कीर्ण हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर देहली में शंख बजाते हुए दो कीचक उत्कीर्ण हैं, जिनके बीच दो हाथियों के साथ कमल बना हुआ है। मन्दिर के गर्भगृह में फण धारी नाग-नागिन की पुरानी मूर्ति है। मंदिर में विघ्ननाशक गणेश जी की भी प्रतिमा है।
Nag Vasuki Temple Prayagraj

शक्तिपीठ
  1. अलोप शंकरी देवी - प्रयाग की ललिता पीठ के अलोप शंकरी देवी का अत्यधिक महत्व है। अलोपी बाग मोहल्ले में महानिर्वाणी पंचायती अखाड़े के अधीन देवी अलोपशंकरी का मन्दिर स्थित है। मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है, यहां एक चौकोर चबूतरा है, चबूतरे के मध्य एक कुंड है, जिसमें जल भरा रहता है। इस कुंड के ऊपर मंदिर की छत से लटका हुआ एक झूला है। मंदिर में इसी झूले और कुण्ड की पूजा की जाती है।
    Alopashankari Maa Temple Prayagraj
  2. माँ ललिता देवी - तीर्थराज प्रयाग स्थित ललिता पीठ अत्यन्त प्राचीन है, जिसका वर्णन मत्स्य पुराण, ब्रह्म पुराण, कुब्जिका तंत्र, रुद्रयामल तंत्र, तंत्र चूड़ामणि, शाक्तानन्द तरंगिणी, गन्धर्व तंत्र, देवी भागवत आदि ग्रन्थों में पाया जाता है। 51 शक्तिपीठों में वर्णित ललिता पीठ के सम्बन्ध में सती की उंगलियों के गिरने वाली एक कथा पायी जाती है, जिसका वर्णन पुराणों में है। प्रयाग के मीरापुर मोहल्ले में यह मंदिर स्थित है।
    Maa Lalita Devi Shakti Peeth Prayagraj
     Maa Lalita Devi Shakti Peeth Prayagraj
  3. कल्याणी देवी - अलोपशंकरी देवी के प्रसंग में 51 पीठों की कथा के क्रम में माँ कल्याणी का भी वर्णन आया है। मत्स्य पुराण के 108 वें अध्याय में कल्याणी देवी का वर्णन पाया जाता है। प्रयाग माहात्म्य के अनुसार कल्याणी और ललिता एक ही हैं, किन्तु यहाँ पृथक अस्तित्व पाया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के तृतीय खण्ड में वर्णित प्रसंग के अनुसार महर्षि याज्ञवल्क्य ने प्रयाग में भगवती की आराधना करके माँ कल्याणी देवी की 32 अंगुल की प्रतिमा की स्थापना की है। यह मंदिर नगर के कल्याणी देवी मोहल्ले में स्थित है।
    Shakti Peeth Maa Kalyani Devi Temple Prayagraj
    Shakti Peeth Maa Kalyani Devi Temple Prayagraj
भरद्वाज आश्रम
Bhardwaj Muni Ashram Prayagraj
Bhardwaj Muni Ashram Prayagraj
 महर्षि भरद्वाज को कौन नहीं जानता। वे महान तपस्वी और ज्ञानी आचार्य थे। प्रयाग में भारद्वाज जी की चर्चा श्री राम के वनगमन के प्रथम लक्ष्मण समय मिलती है। यह भी पुष्ट प्रमाण है कि बार राम कथा ऋषि याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज को सुनाई थी। जब श्रीराम, सीता और के साथ वन गमन कर रहे थे तो प्रयाग आने पर उन्होंने लक्ष्मण को बताया कि अग्नि की लपटें उठ रही हैं, लगता है कि भरद्वाज मुनि यहीं पर हैं। फिर जानकी समेत श्रीराम, और लक्ष्मण उनके आश्रम दर्शन हेतु पहुंचे थे।

सरस्वती कूप
संगम क्षेत्र में किले के अन्दर सरस्वती कूप स्थित है। माना जाता है सरस्वती नदी यहां इस कूप में दृश्य हैं। इसी प्रकार गंगा के पूर्वी तट पर प्रतिष्ठानपुरी (झूसी) में हंस कूप या हंसतीर्थ स्थित है। इस पवित्र कूप का उल्लेख वाराह और मत्स्य पुराणों में मिलता है। मत्स्य पुराण के अध्याय-106 में हंसकूप का वर्णन किया गया है, जिसे हंस प्रपतन नाम दिया गया है। इस कूप के निकट एक शिलालेख खुदा हुआ है, जिसका तात्पर्य यह है कि हंस रूपी बावली में स्नान करने तथा इसका जल पीने से हंसगति, अर्थात-मोक्ष प्राप्त होता है।
Saraswati Koop Prayagraj
Saraswati Koop Prayagraj
रामचरित मानस में भी गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- "भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा।" वर्तमान में महर्षि भरद्वाज का आश्रम कर्नलगंज मोहल्ले में आनंद भवन के समीप स्थित है, जिसमें भारद्वाज की कोई प्रतिमा तो नहीं है, लेकिन भरद्वाजेश्वर शिवलिंग एवं सहस्र फणधारी शेषनाग की मूर्ति है । मंदिर के आस-पास की भौगोलिक संरचना से स्पष्ट होता है कि गंगा किसी समय यहीं से बहती रही होगी, क्योंकि आश्रम ऊँचाई पर स्थित है और आस-पास काफी ढलान है। कहा जाता है कि जो प्रयाग आने पर भरद्वाज आश्रम नहीं जाता, उसकी यात्रा का फल कम होता है।

कोटी तीर्य (शिवकुटी)
प्रयाग में गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित तीर्थ को कोटि तीर्थ कहा गया है। आधुनिक शिवकुटी ही कोटितीर्थ है। पद्मपुराण के अनुसार यहाँ कोटि-कोटि तीर्थों का निवास है। इस कोटितीर्थ के देवता कोटि तीर्थेश्वर भगवान शिव कहे गये हैं। इसी स्थान के उत्तर में भार्गव, गालव और चामर तीर्थों का भी उल्लेख मिलता है।

श्री हनुमत निकेतन
Hanumat Niketan Temple, Civil Lines - Temples in Prayagraj

Hanumat Niketan Temple, Civil Lines - Temples in Prayagraj
Hanumat Niketan Temple, Civil Lines - Temples in Prayagraj
Hanumat Niketan Temple, Civil Lines - Temples in Prayagraj
नगर के सिविल लाइंस क्षेत्र के कमला नेहरू रोड और स्टेनली रोड के मध्य ऐतिहासिक पुरुषोत्तम दास टंडन पार्क के समीप स्थित "हनुमत-निकेतन" साढ़े तीन एकड़ के क्षेत्र में सुन्दर वाटिकाओं से सुसज्जित है। तीर्थयात्रियों, पर्यटकों व नगर निवासियों की श्रद्धा के केंद्र श्री हनुमत् निकेतन के संस्थापक रामलोचन ब्रह्मचारी जी थे, जिन्होंने बल, बुद्धि, विद्या व ब्रह्मचर्य के प्रतीक, श्री हनुमान जी के दक्षिण भाग में श्रीराम, लक्ष्मण व जानकी और उत्तर भाग में सिंह वाहिनी दुर्गा की मूर्ति वाले इस मन्दिर को राष्ट्र को समर्पित कर दिया है।

समुद्र कूप
Samudrakup of Prayagraj is the Historical
हंस कूप के दक्षिण की ओर निकट ही एक और कुआँ है, जिसका नाम समुद्र कूप है। लोगों का विश्वास है कि यह कूप गुप्त नरेश समुद्रगुप्त ने बनवाया था, इसलिए इसका नाम समुद्र कूप है। यद्यपि अधिकांश लोग यह मानते हैं कि इसका सम्बन्ध समुद्र से है। यह बहुत गहरा कुआं है। मत्स्य पुराण मिलता है।

अक्षयवट
इसका वर्णन पद्म पुराण अनुसार सृष्टि के प्रलय काल में भी यह वृक्ष स्थित रहता है, इसका नाश कभी नहीं होता, इसलिए इसे अक्षयवट कहा गया है। यह प्रयाग की अमूल्य निधियों में से एक है और इसका सर्वाधिक महत्व है। पद्म पुराण में अक्षयवट को श्याम वट का नाम भी दिया गया है और इसकी महत्ता इस प्रकार बतायी गयी है -
akshayavat
श्यामो वटोऽश्यामगुणं वृणोति, स्वच्छायया श्यामलया जनानाम् ।
श्यामः श्रमं कृन्तति यत्र दृष्टः स तीर्थराजो जयति प्रयागः ।।
तात्पर्य यह है कि जहां श्याम वट यानी अक्षयवट अपनी श्यामल छाया से मनुष्यों को दिव्य सत्व गुण प्रदान करता है, जहां माधव अपने दर्शन करने वालों का पाप-ताप नष्ट कर देते हैं, उस तीर्थराज प्रयाग की जय हो। अक्षयवट का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। महाराजा हर्षवर्धन के काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था, उसने भी अपने लेख में अक्षयवट का वर्णन किया है।

पातालपुरी मंदिर
संगम के निकट स्थित किले के पूर्व भाग में तहखाने में स्थित देव मंदिर का पातालपुरी मंदिर है। इसका निर्माण कब और किसके द्वारा कराया गया, यह विवरण नहीं मिलता, लेकिन इसकी प्राचीनता ह्वेनसांग के एक अभिलेख से झलकती है। वह लिखता है कि "नगर में एक शिव मंदिर है, जो अपनी सजावट और चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। इसके बारे में कहा जाता है कि यदि कोई यहां पैसा चढ़ाता है तो स्वर्ग चला जाता है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष (अक्षयवट) है, जिसकी शाखाएं और पत्तियां दूर दूर तक फैली हुई हैं।

patalpuri-temple
वर्तमान स्थिति यह है कि किला भारतीय सेना के अधीन है और मंदिर केवल माघ के महीने में आम जनता के लिए खोला जाता है। मंदिर की लम्बाई 84 फिट एवं चौड़ाई 46.5 फिट है। खंभों के ऊपर टिकी हुई छत की ऊंचाई मात्र साढ़े छह फीट है। मंदिर के अंदर गणेश, गोरखनाथ, नरसिंह, शिवलिंग आदि समेत कुल 46 मूर्तियाँ हैं।

श्री मनकामेश्वर मंदिर (Sri Mankameshwar Mandir)
मनकामेश्वर प्रयाग के प्रमुख तीर्थों में से एक है। यमुना-तट पर स्थित मनकामेश्वर भगवान शिव का मंदिर है, जिसमें मनकामेश्वर महादेव अवस्थित हैं। पुराण वर्णित इस तीर्थ का इसलिए विशेष महत्व है, क्योंकि मनकामेश्वर महादेव के स्मरण और पूजन से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
 
Sri Mankameshwar Mandir

 


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