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निबंध - जीवन परिचय क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला खाँ
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महिला सशक्तिकरण पर निबंध
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जीवन-परिचय अमर शहीद पं. राम प्रसाद 'बिस्मिल'
शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल के पूर्वजों का मूल निवास स्थान 'तोमर धार' में चम्बल नदी के किनारे स्थित ग्राम बरवाई था। तोमर धार में चम्बल नदी के किनारे पर दो ग्राम आबाद थे- रूअर ग्राम तथा बरवाई ग्राम, ये दोनों ही ग्राम ग्वालियर राज्य में प्रसिद्ध थे। इनकी प्रसिद्धी का कारण था इन ग्रामों के निवासियों का उद्दण्ड होना। ग्राम बरवाई बिस्मिल जी का पैतृक ग्राम है। यह ग्राम चम्बल संभाग में ग्वालियर के पास मुरैना, अम्बाह से 9 कि.मी. दूर उत्तर दिशा में स्थित है। रूअर ग्राम और बरवाई ग्राम में दूरी पाँच कि.मी. की है। दोनों ही ग्राम 'तोमर' बाहुल्य, दोनों ही एक पुरखे की संतान तथा दोनों ग्रामों के वीर निवासियों के कारण दूर-दूर तक विख्यात थे। ''यह ग्राम बरवाई 550 वर्ष पूर्व सनाढ्य ब्राह्मणों बरोलियों द्वारा बसाया हुआ ग्राम है। पहले यह वीरबाई के नाम से जाना जाता था।
वीरबाई से विरबाई व अब बरवाई के नाम से सुप्रसिद्ध है।" मुरैना जिले की पहचान पहले तंवरधार अथवा तोमरधार जिले के रूप में थी। तोमरधार में स्थित इन दोनों ग्रामों के निवासी बड़े ही स्वतंत्र प्रकृति तथा स्वाभिमानी स्वभाव के थे। ये राज्य की सत्ता की चिन्ता नहीं करते थे। यहाँ के जमींदार भी इच्छा होने पर राज्य को भूमि-कर देते थे और इच्छा न होने पर मालगुजारी देने से साफ इनकार कर देते थे। यदि राज्य का कोई अधिकारी या तहसीलदार आता तो ये बीहड़ों में छिप जाते, वहीं अपने पशु ले जाते तथा भोजनादि की व्यवस्था भी बीहड़ में कर लेते। उनके घर पर कुछ भी ऐसे कीमती सामान न रह जाते, जिसकी नीलामी से मालगुजारी वसूल की जा सके। इन जमींदारों के इस उद्दण्ड व्यवहार के संबंध में कई कथाएँ प्रचलित थीं। बिस्मिल जी एक ऐसे ही जमींदार के विषय में लिखते हैं कि ''एक जमींदार के सम्बन्ध में कथा प्रचलित है कि मालगुजारी न देने के कारण ही उनको कुछ भूमि माफी में मिल गई। पहले तो कई साल तक भागे रहे। एक बार धोखे से पकड़ लिए गए तो तहसील के अधिकारियों ने उन्हें बहुत सताया। कई दिन तक बिना खाना-पानी के बंधा रहने दिया। अन्त में जलाने की धमकी दे, पैरों पर सूखी घास डालकर आग लगवा दी। किंतु उन जमींदार महोदय ने भूमि-कर देना स्वीकार न किया और यही उत्तर दिया कि ग्वालियर महाराज के कोष में मेरे कर न देने से ही घाटा न पड़ जायेगा। संसार क्या जानेगा कि अमुक व्यक्ति उद्दण्डता के कारण ही अपना समय व्यतीत करता है। राज्य को लिखा गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि उतनी ही भूमि उन महाशय को माफी में दे दी गई।" इसी प्रकार की एक और प्रचलित कथा के विषय में बिस्मिल जी लिखते हैं कि इसी प्रकार एक समय इन ग्रामों के निवासियों को एक अद्भुत खेल सूझा। उन्होंने महाराज के रिसाले के साठ ऊँट चुराकर बीहड़ों में छिपा दिए। राज्य को लिखा गया, जिस पर राज्य की ओर से आज्ञा हुई कि दोनों ग्राम तोप लगवाकर उड़वा दिए जाएं। न जाने किस प्रकार समझाने-बुझाने से वे ऊँट वापस किए गए और अधिकारियों को समझाया गया कि इतने बड़े राज्य में थोड़े से वीर लोगों का निवास है, इनका विध्वंस न करना ही उचित होगा। तब तोपें लौटाई गईं और ग्राम उड़ाए जाने से बचे। ये लोग अब राज्य-निवासियों को तो अधिक नहीं सताते, किंतु बहुधा अंग्रेजी राज्य में आकर उप द्रव कर जाते थे और अमीरों के मकानों पर छापा मारकर रात ही रात बीहड़ में दाखिल हो जाते थे। बीहड़ में पहुँच जाने पर पुलिस या फौज कोई भी उनका बाल बाँका नहीं कर सकती।
'कबिरा' शरीर सराय है भाड़ा दे के बस।
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